हम हमेशा से सुनते आए हैं कि सफलता किसी का इंतज़ार नहीं करती। मगर जो असल जीवन में समझा, वह इसके बिल्कुल उलट है। मैं देखती हूँ कि सफलता इंतज़ार करती है। मगर वह सबका इंतज़ार नहीं करती। उसे कुछ जुनूनी लोगों की तलाश होती है। वह उन्हीं के हिस्से में आती है जो उसको पाना चाहते हैं। जो सफल होने के लिए अपनी नींद तक गंवाने को तैयार रहते हैं। जिन्होंने सफल होने का ना सिर्फ सपना देखा, बल्कि हर सांस के साथ उस सपने को जीया, और उसे पाने के लिए हर चुनौती को स्वीकार की, सफलता ऐसे ही मतवालों का चुनाव करती है।
मैं बार-बार कहती हूँ कि प्रकृति से बड़ा गुरू ओर कोई नहीं है। प्रकृति हमें जीना सिखाती है, जीतना सिखाती है और हारते हुए इंसान को एक बार फिर से अपने पैरों पर खड़ा होने का सबक सिखाती है। जब-जब आप हिम्मत हारते हैं, वह आपको झकझोरती है, पुन: उठने को, हालात से लड़ने को उकसाती है। दरअसल प्रकृित हमें आत्मसम्मान के साथ जीने की कला सिखाती है।
अब सवाल उठता है कि सफलता क्या है? इसका सीधा सा जवाब है, ‘सफलता आपकी सोच पर निर्भर करती है।’ आप कब, कहाँ पहुँचने को सफल होना मान लें, आपके अनुसार वही सफलता है। इसी तरह सामाजिक मानदंड के अनुसार भी किसी व्यक्ति को सफल-असफल घोषित किया जाता रहा है।
किसी स्थिती को सफल मानना या उन्हीं हालात को असफल घोषित करना, हमारी सोच पर निर्भर करता है। गांव से शहर या महानगर पहुँचना एक व्यक्ति के लिए “मैं जीवन में सफल हो गया हूँ।” वाली खुशी का सबब बन सकता है। इसका अगला कदम यह भी हो सकता है कि वह पहले से शहर में रह रहे लोगों को ‘ये तो यहीं पैदा हुए, कहीं गए ही नहीं। यह सब असफल हैं। इन सबमें तो मैं ही सफल हूँ।’ भी सोच सकता है। मगर यह सच नहीं है। सफल होने के लिए किसी दूसरे स्थान पर जाना या अपना पता बदलना एकमात्र पैमाना नहीं है। इस विषय पर एक युवा की कहानी मुझे याद आ रही है।
राजस्थान के झुंझुनू जिले के भावेश कुमार सेना में जाना चाहता थे मगर यह संभव नहीं हो सका। इसके बाद भावेश ने अपने गाँव में रहकर कमाई के लिए पारंपरिक साधनों से अलग, कुछ नया करने का मन बनाया। अपनी पालतू गायों के दूध दुहने, दही जमाने से लेकर घी बनाने तक के वीडियो उसने सोशल मीडिया पर पोस्ट करने शुरू कर दिये। शुरू-शुरू में उसे खास रिस्पांस नहीं मिला मगर उसने हिम्मत नहीं हारी। वह गायों की देखभाल और उनको खिलाए जाने वाले चारे के वीडियो बनाता, पोस्ट करता रहा। घी बनाने के पूरे प्रोसेस को वह बारीकी से दिखाता।
धीरे-धीरे उसे ऑर्डर मिलने लगते हैं। यह युवा अपनी माँ के साथ मिलकर घी का उत्पादन कर रहा था। इसके प्रोडेक्ट की गुणवत्ता के आधार पर इसको और अधिक काम मिलने लगा। बढ़ते काम को देखकर इसने अपने जैसे अन्य परिवारों को भी इस काम में लगा लिया। गांव में रह कर यह युवक देश-विदेश में अपना बेहतरीन क्वॉलिटी के प्रोडेक्ट के कारण अपनी अलग पहचान बना चुका है। इसने अपनी कंपनी का नाम ‘कसूतम’ रखा है। इसीलिए कहा जाता है कि सफलता उम्र और स्थान नहीं देखती। यह सिर्फ जुनून देखती है। जीतने के जज़्बे को देखती है, और देखती है कि अपने लक्ष्य को पाने की किसमें, कितनी भूख है।
जिसने समय की माँग को समझा, सही निर्णय लिये, और सही दिशा में मेहनत की, सफलता ने उसका चुनाव किया। हो सकता है कि इस बार सफलता आपका इंतज़ार कर रही हो। बहुत मुमकिन है कि अगला नंबर आपका ही आ जाए मगर उसका लिए आपको अपनी तैयारी पूरी करनी होगी। तो अभी कमर कस लीजिए, अपनी तैयारी शुरू कर दीजिए। याद रखिए कि सफर आसान नहीं होगा मगर यह भी तो सच है कि कौनसा रास्ता आसान हुआ है! तो इस बार अपनी पसंद की मंज़िल पर पहुंचने के लिए थोड़ी मेहनत और सही।
अच्छा लिखा आपने वंदना जी आपने!
हमने अभी- अभी पुरवाई पढ़ना शुरू किया है ।आपको जरूर पढ़ते हैं। १तारीख का विषय भी अच्छा था हमने टिप्पणी भी लिखी थी।पता नहीं आपने पढ़ी या नहीं।
किसी भी कार्य की सफलता के लिये योजनाबद्ध नियोजन परम आवश्यक है। सर्व प्रथम लक्ष्य निर्धारण, फिर कठोर परिश्रम ,परिणाम -सफलता।
संकल्प शक्ति का प्रबल होना बहुत जरूरी है वरना मुश्किलों में हार जाते हैं। हार में भी हौसले का जज्बा बनाए रखना जरूरी है। अगर एक बार गिर जाते हैं तो उठने का हुनर आना भी जरूरी है ।
आपके स्तंभ प्रेरणा भी देते हैं और हौसला भी बढ़ाते हैं बहुत-बहुत शुक्रिया वंदना जी इस स्तंभ के लिए
नीलिमा जी इस सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आभार। पाठकीय प्रतिक्रियाओं से पता लगता है कि ‘मन के जज़्बात’ कॉलम का उद्देश्य सफल हो रहा है, यह जानना सुखद है।
सार्थक एवं प्रेरक सृजन की बधाई! प्रकृति से अच्छा गुरु कोई नहीं है! रोचक लेखन पढ़कर मन प्रसन्न हो गया।
रश्मि जी आपको ‘मन के दस्तावेज़’ कॉलम पसंद आ रहा है, यह जानना सुखद है।