पर्व-त्यौहारों के साथ हमारी स्मृतियाँ जुड़ी रहती हैं। बचपन की यादें, लड़कपन के किस्से, युवा होते हुए दौर की स्मृतियाँ और  लगभग हर मुमकिन रिश्ते के साथ किसी ना किसी तरह की यादों का संसार बसा रहता है। 
आज हम दीपावली मना रहे हैं। इसी मौके पर आप अपनी यादाश्त पर थोड़ा-सा जोर डालकर बीते समय की गलियों में चक्कर लगा कर आइये। अब कोशिश कर के देखिए कि दीपोत्सव की कौनसी यादें आपके मन पर अंकित हैं? कौन-से रिश्तों से जुड़ी बातें आपको सबसे ज्यादा याद है? आपको बहुत कुछ याद आ गया होगा। वो शरारतें, चुहुलबाजियाँ, भाई-बहनों के साथ लड़ना-झगड़ना, मान-मनुहार करना।
मिल-बाँटकर फूलझड़ियाँ, टिकड़ी और अनार जलाना। पूजा के लिए गेंदे, गुलाब, चमेली और गुडहल के फूल लाना। पूजा से कुछ देर पहले हरी दूब लेकर आना। शाम की लक्ष्मी पूजा में सबका आरती करना और फिर माँ के हाथ की बनी मिठाईयाँ, मूंग दाल हलवा, खीर और भी ना जाने क्या-कुछ। इसका सीधा-सा मतलब हुआ कि पर्व-त्यौहारों की यादों में व्यक्तिगत जीवन बसता है। 
किसी भी पर्व या त्यौहार की पहली स्मृति अधिकतर अपने परिवार से जुड़ी हुई होती है। आपको भी माँ-पापा या नानी-दादी के किस्से याद आए होंगे। किसी त्यौहार को मनाने के पीछे का कारण बादमें याद आएगा। यानी किसी खास दिन की याद को जीवित रखने में एतिहासिक महत्व से अधिक व्यक्तिगत स्मृतियाँ महत्वपूर्ण होती है। परंपराओं के पीढ़ी दर पीढ़ी चले आ रहे जुबानी किस्सों के मौखिक दस्तावेज और इतिहासकारों के तथ्यों से अधिक महत्वपूर्ण हो जाती है व्यक्तिगत स्मृतियाँ। 
इस बार दीवाली पर आप भी ऐसी ही अनमोल यादें सजाइये। बच्चों के साथ,  माता-पिता, दाद-दादी या नाना-नानी के साथ को यादगार बनाने की तैयारी कीजिए।  अपने बहन-भाईयों के साथ, मित्र-परिचितों के साथ दीपोत्सव को इस तरह मनाइये कि जब कभी जीवन थकाने लगे, या अकेलापन सताने लगे, तब इन्हीं यादों के मजबूत धागों पर चल कर आप उन जीवंत पलों को बार-बार फिर से जी लें।
याद रखिये कि यादें जीवन में सुख का संचार करती हैं। हमारा जीवन यादों के अंग-संग बंधा रहता है। इसीलिए ऐसा समय बनाइये जो आज के लिए ही आनंददायक नहीं रहे, बल्कि भविष्य के लिए भी इंधन का काम करे। आइये, दीपावली पर खुशियों के दीप रोशन करें।

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