Saturday, July 27, 2024
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वन्दना यादव का स्तंभ ‘मन के दस्तावेज़’ – तरक्की की राह

एक सवाल आज ख़ुद से पूछिये कि आप अपने जीवन से खुश है या नहीं? खुश नहीं है यह एक स्थिति है मगर दूसरी स्थिति पर आपको अपने विचार जानना ज़रूरी है। दूसरी स्थिति पूछती है कि आपको अपने जीवन से शिकायतें है या आप नाखुश रहते हैं? क्या सच में प्रकृति के निर्माता से आपको भी शिकायतें हैं कि उसने आपके साथ बहुत नाइंसाफी की है। आपके भाई-बहन या दोस्त को इतना सब दिया और आपके हिस्से में कंजूसी कर दी। ठीक है, आपके अनुसार यह सही हो सकता है मगर जो उसने आपको दिया, क्या आपने ठीक से उस सबकी गिनती कर ली है?  
आपके पास ऐसी तमाम चीजें हैं, जो दूसरों के पास नहीं है, या कम है। क्या आपने ईमानदारी उन सबकी गिनती कर ली है? कुछ भूल तो नहीं गए? यदि यह सही तब आइये शुरू से शुरू करते हैं। 
पहला नंबर आता है आँखों का। अब दोनों हाथ-पैरो का नंबर है। क्या आप जानते हैं कि आपके शरीर के सभी अंग आपके लिए नियामत हैं। क्या आपको मालूम है कि आपका मस्तिष्क बहुत ताकतवर है। अपने मस्तिष्क की ताकत से, आप हर असंभव को संभव में बदल सकते हैं। इसका मतलब यही हुआ कि जितना समय आपने दूसरों से ईर्ष्या करने, कुढ़ने या चिढ़ने में बर्बाद कर दिया है, उस समय को आप सही दिशा में उपयोग कर सकते थे… अब भी चाहेंगे तो सही दिशा में अपने समय का उपयोग कर सकते है।
यक़ीन मानिये कि सफलता की ट्रेन अभी भी छूटी नहीं है। आप इस समय भी दौड़कर गाड़ी में सवार हो सकते हैं। कहावत है ना कि जब जागो, तब ही सवेरा। इसीलिए बस एक काम करें कि नकारात्मकता से ख़ुदको दूर रखकर सकारात्मकता की गाड़ी पकड़ लीजिए। याद रखिये कि हाथ पर हाथ रखकर बैठे रहने से कुछ नहीं होगा। जिस क्षेत्र में आप तरक्की चाहते हैं, उस दिशा में आपको खूब मेहनत करनी होगी। और जैसे ही आप मेहनत करना शुरू करेंगे, तरक्की की दिशा में आपके कदम खुद-ब-खुद बढ़ने लगेंगे। यानी आपकी तरक्की शुरू हो जाएगी।
वन्दना यादव
वन्दना यादव
चर्चित लेखिका. संपर्क - [email protected]
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2 टिप्पणी

  1. आज दो सप्ताह बाद मन के दस्तावेज को पढ़ पाए , स्वयं को परीक्षित किया और पाया कि हम पास हैं यहाँ। हम आज भी सीखने के लिये तत्पर रहते हैं।और हम जो भी हैं ,जैसे भी हैं इसका श्रेय हम अपने माता-पिता और अपने गुरुजनों के अतिरिक्त वनस्थली के उस परिवेश को देते हैं। जहाँ हम तराशे गए।और सच में हमें स्वयं पर रत्ती भर घमंड नहीं पर ईश्वर के प्रति आभारी हैं कि उसने एक अच्छा इंसान बनने के लिये एक बेहतर मानसिकता पोषित की। हमें सर्वांग स्वस्थ शरीर दिया।
    हम संतुष्ट हैं इसलिए ही हम खुश हैं।हम किसी भी वस्तु, व्यक्ति या स्थिति में दुखी नहीं होते। तुलना भी नहीं और अपेक्षा भी नहीं।बस एक कमजोरी है कि यह हर पल दिमाग में रहता है कि कुछ भी काम किसी के भी प्रति ऐसा न हो कि कोई नाराज़ हो जाये। हमें नाराजगी किसी की भी बर्दाश्त नहीं होती।जब तक मना न लें चैन नहीं पड़ता।
    आज का आपके मन का दस्तावेज हमारे दिल के बहुत करीब है।
    शुक्रिया वंदना जी!
    आभार पुरवाई

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