शांता बाई मेरे आने से पहले ही ऑफ़िस झाड़ पोंछ कर तैयार रखती है ।सुगंधित ताजे फूलों का गुलदस्ता मेरा स्वागत करता नज़र आता। मेरे आते ही अभिवादन कर अलमारी से फ़ाइल निकाल कर मेज़ पर रख देती ।कोई काम कहो ,”जी मेडम ,”कह कर तुरंत काम में लग जाती । बड़ी प्यारी बच्ची है ।
शांता रंगोली बहुत सुंदर बनाती है ।कोई भी कार्यक्रम हो ,कोई चित्र बनाने को कहो , वह हूँ-बहु उतार देती है और इतने सजीव रंग भरती है कि देखने वाले मंत्र मुग्ध हो जायें ।
 मेरा जन्मदिन सभी बहुत धूम -धाम से मनाते हैं ।ढेरों गुलदस्ते और उपहार ।शांता पूरे ऑफ़िस को बड़े क़रीने से सजाती ।फ़र्श, दिवारे और फ़र्नीचर चम-चम करने लगते हैं।
।शांता को आवाज़ देकर मैंने पूछा ,” तुमने कुछ खाया कि नहीं ।” वह संकुचित सी अंदर आई ,उसके हाथ में एक पुराना सा थैला था । बोली ,” मैडम जी हम आपके लिए कुछ लाए हैं ,आप स्वीकार करेंगी ?”
मैंने हाथ बढ़ाते हुए कहा ,”क्या लाई हो ।” उसने थैले से एक ट्रैन्स्पेरेंट लिफ़ाफ़ा निकाला ।एक गुलाबी सादी चादर उसमें से चमक रही थी ।”
मैंने आगे बढ़ कर उपहार लिया और मुस्कुराते हुए कहा ,”थैंक यू, पर इसकी क्या ज़रूरत थी ।”
”आज आपका जन्मदिन है ना ।”वह बोली ।
मैंने उपहार टेबल पर रख दिया । वह उतावली सी होकर बोली “आप खोल कर देखिए ना ।”
उसके आग्रह पर लिफ़ाफ़ा खोला तो दंग रह गई ।बहुत सुंदर ढेर से गुलाब के फूलों के बीच में मेरी तस्वीर बनी हुई थी ।नीचे लिखा था ,”आप जीयो हज़ारों साल , मैडम।
”मेरे आंसु निकल गए ।कितनी मेहनत से बनाई थी उसने यह चादर । कैसे किया होगा रंगों का इंतज़ाम ?
“कैसा लगा हमारा छोटा सा उपहार मैडम?” उसके मासूम सवाल ने मेरी तंद्रा तोड़ी और मैंने उसे गले से लगा लिया ।
 मुँह से निकला ,”सबसे श्रेष्ठ उपहार ।”

2 टिप्पणी

  1. अच्छी लघुकथा.
    कामगारों के साथ अच्छे व्यवहार की पैरवी चुपके से करती है

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