फ़िल्म कलाकार आपको कार, शैंपू, इंश्योरेंस, पान मसाला से लेकर सॉफ्ट ड्रिंक्स, टॉयलट साफ़ करने के क्लीनर तक बेचते दिखाई देंगे। बॉलीवुड अभिनेता और अभिनेत्री ऐसे विज्ञापनों में आपको टीवी से लेकर शहरों में लगे बिल बोर्ड्स तक पर नजर आते होंगे। इससे एक नुक्सान उनका अवश्य हुआ है। पहले के सितारों को लेकर जो एक रहस्यमयता बनी रहती थी वो अब सिरे से ग़ायब हो गई है। और तो कुछ नहीं ये सितारे उपहास का पात्र अवश्य बनते हैं चाहे अपने लिये नोट छापने में सफल हो जाते हों।

मेरे दोस्त का पोता बहुत सवाल पूछता है। जब वह टीवी स्क्रीन पर अजय देवगन को विमल पान मसाला का विज्ञापन करते देखता है तो अपने दादा से मासूम सा सवाल पूछ बैठता है, “दादा जी, ये सिंघम अंकल पान मसाला क्यों बेच रहे हैं?” उसके आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहता जब उसके फ़ेवरिट सिंघम अंकल कभी जोड़ों के दर्द की दवा बेचते दिखाई दे रहे हैं तो कभी पेट में गैस की गोलियों की तारीफ़ कर रहे हैं। बेचारा पोता परेशान है कि सिंघम अंकल के जोड़ों में दर्द रहता है; उनके पेट में गैस रहती है और वे खाते पान मसाला हैं – तो फिर अपराधियों से लड़ते कैसे होंगे… उनकी तो सेहत इतनी ख़राब है!
मेरे हमउम्र साथी कभी सोच भी नहीं सकते थे कि राज कपूर, दिलीप कुमार, देव आनन्द, राज कुमार, मनोज कुमार, सुनील दत्त, जैसे सुपर स्टार समाचारपत्रों में नमक, तेल, गुटका आदि-आदि बेचते नज़र आएं। वैसे विनोद खन्ना सिंथॉल साबुन का विज्ञापन करते थे और राजेश खन्ना मैक्लीन्स टूथपेस्ट का। एक ज़माने में किशोर कुमार ब्रिलक्रीम की तारीफ़ करते थे तो जैकी श्रॉफ़ चारमिनार सिगरेट की। 
हमें याद है कि लक्स साबुन के विज्ञापनों में सिने-तारिकाएं निरंतर दिखाई देती थीं। चन्द महीनों के बाद तारिका बदल जाती थी। इसका कारण यही रहा होगा कि लक्स को ब्यूटी सोप कहा जाता था और समझाया जाता था कि यदि आपको सिने-तारिकाओं जैसा सुन्दर दिखना है तो लक्स साबुन इस्तेमाल करना होगा। जहां तक मुझे याद पड़ता है 1941 में लीला चिटनिस ने लक्स के विज्ञापन में भाग लिया था। 
सिनेमा के बड़े सितारे अपने आपको विज्ञापन की दुनिया से दूर ही रखते थे। अभी टीवी घर-घर नहीं पहुंचा था। और सिनेमा के सितारों के बारे में एक रहस्य का आवरण बना रहता था। सितारे हमारे बेडरूम में नहीं घुसपैठ किया करते थे। मगर अपने शोध के दौरान मुझे कुछ पुराने विज्ञापन देखने का मौक़ा मिला जिसमें से एक में दिलीप कुमार का चेहरा एक अचार की बोतल पर दिखाई दिया तो एक एअरलाइन ने राज कपूर, बलराज साहनी और निरुपा राय के चेहरे का इस्तेमाल किया। मगर इन महान सितारों ने विज्ञापनों को कभी भी आय का माध्यम नहीं बनाया था।   
विज्ञापन जगत के अपने अलग सितारे हुआ करते थे जो भिन्न उत्पादों का समर्थन करते दिखाई दे जाते थे। लिरिल साबुन का विज्ञापन करने वाली कैरन ल्युनेल पूरे देश में जाना पहचाना चेहरा बन गया था। बाद में वह एअर इंडिया में एअर होस्टेस बन गई। जैकी श्रॉफ़ और कबीर बेदी तो पहले विज्ञापन जगत के सितारे ही थे। उन्हें फ़िल्मों में तो बाद में काम मिलना शुरू हुआ। 
एक सवाल यह भी दिमाग़ में आता है कि जो फ़िल्मी सितारे फ़िल्मों में काम करने के करोड़ों लेते हैं, वे विज्ञापनों में काम करने का कितना दाम वसूलते होंगे। और फिर जब किसी विज्ञापन में फ़िल्मी सितारे करोड़ों का चूना लगाते होंगे तो उस विज्ञापन का प्रॉडक्ट भी तो उतना ही महंगा हो जाता होगा। विज्ञापन का बजट भी तो उस प्रॉड्क्ट की कीमत में शामिल किया जाता होगा। विज्ञापनों में शामिल अन्य छोटे कलाकारों का बजट लगातार गिर रहा है जबकि फ़िल्म कलाकार अपने बैंक अकाउण्ट विज्ञापनों के माध्यम से भर रहे हैं। 
फ़िल्म कलाकार आपको कार, शैंपू, इंश्योरेंस, पान मसाला से लेकर सॉफ्ट ड्रिंक्स, टॉयलट साफ़ करने के क्लीनर तक बेचते दिखाई देंगे। बॉलीवुड अभिनेता और अभिनेत्री ऐसे विज्ञापनों में आपको टीवी से लेकर शहरों में लगे बिल बोर्ड्स तक पर नजर आते होंगे। इससे एक नुक्सान उनका अवश्य हुआ है। पहले के सितारों को लेकर जो एक रहस्यमयता बनी रहती थी वो अब सिरे से ग़ायब हो गई है। और तो कुछ नहीं ये सितारे उपहास का पात्र अवश्य बनते हैं चाहे अपने लिये नोट छापने में सफल हो जाते हों। 
यह तो आप सबने ख़ुद ही महसूस किया होगा कि जब विज्ञापन आ रहे होते हैं तो हम टीवी की ओर ध्यान ही नहीं देते। यदि उन्हें फ़ास्ट फ़ॉर्वर्ड कर सकते हैं तो कर देते हैं। अब तो यूट्यूब भी बिना विज्ञापनों के कार्यक्रमों का विज्ञापन दे रही है। ऐसे में भला पान मसाला, तेल, शैंपू और कार आदि के निर्माताओं को इतनी भारी रक़म अदा करने से लाभ क्या होता होगा। जो लोग विज्ञापन देखते हैं उन्हें भी यह मालूम रहता है कि जो सितारे विज्ञापन कर रहे हैं वे स्वयं इन वस्तुओं का उपयोग नहीं करते होंगे। 
क्या आपने कभी सोचा है कि ये सितारे जो विज्ञापन करते हैं उसके लिये एक-एक दिन की शूटिंग के ये कितने पैसे चार्ज करते हैं? अमिताभ बच्चन का तो लगभग 500 करोड़ रुपये का विज्ञापनों का पोर्टफ़ोलियो है। ये सितारे कुछ ऐसे लोग हैं जिन्हें यह भी नहीं पता होगा कि इनके पास कितने पैसे हैं मगर और अधिक कमाने की लालसा कभी पूरी नहीं होती। 
अमिताभ बच्चन, आमिर ख़ान, सलमान ख़ान, शाहरुख़ ख़ान, अजय देवगण, अक्षय कुमार, ऐश्वर्य राय, करीना कपूर, हृतिक रौशन, रणवीर सिंह जैसे कलाकार एक दिन की शूटिंग के तीन से दस करोड़ के बीच फ़ीस चार्ज करते हैं। महानगरों में तो शायद ही इनके विज्ञापन के कारण प्रॉडक्ट की बिक्री में कुछ ख़ास फ़र्क पड़ता होगा। हां शायद कस्बों और गाँव में आम आदमी सितारों से प्रभावित हो जाता होगा। भला सोचिये क्या अक्षय कुमार अपने घर का टॉयलट ख़ुद साफ़ करता होगा! क्योंकि उसने ‘टॉयलट’ नाम की फ़िल्म बनाई है, इससे क्या उसे यह हक़ बनता है कि वह ऐसा अहसास बनाए कि टायलट की सफ़ाई भी स्वयं ही करता होगा। उसे टॉयलट क्लीनर का विज्ञापन करने का क्या हक़ बनता है?
जब हम 82 साल के अमिताभ बच्चन और 58 वर्ष के शाहरुख़ ख़ान को एवरेस्ट पाव भाजी के मसाले से बनाई गई भाजी के लिये स्लो मोशन में भागते देखते हैं तो, हमें एवरेस्ट पाव भाजी मसाला तो कहीं दिखाई नहीं देता; बस अमिताभ बच्चन और शाहरुख़ ख़ान पर तरस अवश्य आता है कि भाई ये क्या कर रहे हो?
एक अन्य सर्वे के अनुसार आमिर खान एक प्रोडक्ट एंडोर्स करने के लिए 11 करोड़ रुपए लेते हैं। वहीं शाहरुख खान एक ब्रांड से 9 करोड़ रुपए चार्ज करते हैं। रेट लिस्ट में अमिताभ बच्चन तीसरे नंबर पर हैं। वे एक ऐड के लिए 8 करोड़ रुपए लेते हैं। एक प्रमुख अखबार में छपी रिपोर्ट के मुताबिक, अक्षय कुमार -7 करोड़, सलमान खान -7 करोड़, विक्की कौशल – 3 करोड़, टाइगर श्रॉफ -2.5 करोड़, आयुष्मान खुराना- 2.25 करोड़, राजकुमार राव – 1.5 करोड़ रुपये लेते हैं। 
इस सर्वे के अनुसार बॉलीवुड के उभरते नए चेहरों में विक्की कौशल टॉप पर हैं। इस बारे में ऐड गुरु प्रहलाद कक्कड़ के अनुसार, ”विक्की कौशल का शांत, शर्मीला और ज़मीनी स्वभाव है… इसने उसे ऐड इंडस्ट्री का सबसे चहेता चेहरा बना दिया है।
वैसे तो कोई सितारा स्वयं नहीं बताएगा कि वह एक दिन काम करने के कितने करोड़ रुपये चार्ज करता है। मगर हम उन सितारों को यह बताना चाहेंगे कि जब वे दूध की मलाई चाट चुके होते हैं तो विज्ञापन के अन्य कलाकारों को पांच हज़ार से बीस हज़ार के बीच मेहनताना दिया जाता है। विज्ञापन निर्माता जितना बड़े सितारों के लिये बिछते जाते हैं उतना ही अन्य कलाकारों के प्रति निर्मम होते जाते हैं। यहां भी यदि किसी बड़े सितारे को महसूस होता है कि कोई अन्य छोटा कलाकार उन से बेहतर काम कर रहा है तो या तो उस कलाकार की छुट्टी हो जाती है या फिर विज्ञापन ही कैंसिल हो जाता है। 
 
लेखक वरिष्ठ साहित्यकार, कथा यूके के महासचिव और पुरवाई के संपादक हैं. लंदन में रहते हैं.

26 टिप्पणी

  1. आज के संपादकीय को बहुत कोशिश करके व्यावहारिक और व्यापारिक भाषा में पूरे चुटीले अंदाज में लिखे जाने के भरसक प्रयास के बावजूद संपादक महोदय के अन्तरमन की कोमल संवेदना और छोटे कलाकार के लिए सहानुभूति को पाठक सहज ही अनुभव कर लेता है। संपादकीय में प्रस्तुत संदर्भ पूरे वज़न, तर्क और तथ्य के साथ पढने को मिला है और बॉलीवुड के सितारों के सिनेमा में टूटते और विज्ञापन में बढते तिलिस्म को भी पाठक अनुभव करता है और यहाँ रोचक बात जो संपादक महोदय ने कही वह वास्तव में हम उपभोक्ता को समझनी अनिवार्य है कि यह सितारे तो केवल *अमित जी लव्स बीका जी* का मंत्र आप पर फूंक कर हट जाएँगे और दोबारा उधर ताकेंगे भी नहीं पर आप की जेब और मति दोनों पर सेंध लग ही जाती है…. मसाले बेचते भाईजान को नमक तेल का भाव कहाँ मालूम… यह तो वह ही जाने और भुगते जो भाई जान की खातिर वह मसाला खरीदे और अपने पैसे से कंपनी और भाईजान की जेब गरम कर खुद ठंडा हो जाने… व्यंग्य का स्पर्श लिए समाज सापेक्ष संपादकीय… बढिया और बहुत बढ़िया।।

    • डॉक्टर किरण आप अपनी सार्थक एवं सार्गर्भित टिप्पणी पोस्ट कर पाईं, हम भाग्यशाली हैं। आज ख़ासी तकनीकी समस्या से जूझ रही है पुरवाई!

      • मै अचम्भित हूँ कि मेरे फोन पर सब लिंक बहुत अच्छे से खुल रहे थे ( मेरा सौभाग्य) जबकि बाकी बुद्धि जीवी वर्ग के साथ यह संभव नहीं हो पा रहा था… सब की व्याकुलता ने हमारी पत्रिका पुरवाईक्सेष हम सब के सशक्त लगाव ( बांड) को सिद्ध किया। तकनीकी समस्या तो अभी समय के साथ सही हो जाएगी पर जो इस समस्या के लिए सक्रिय हैं उन को करारा और कुरकुरा जवाब मिले। यह अनिवार्य है।

        • आदरणीय तेजेन्द्र जी ! सम्पादकीय लिखते समय हर बार आपके ज़ेहन में इतने अनोखे व आवश्यक विषय कैसे आ जाते हैं !!! आप निराले ढंग से लिखते हैं और ख़ूब लिखते हैं ; और वो भी शोधपूर्ण तरीक़े से। इससे आपका विचार और प्रस्तुतीकरण प्रामाणिक व रोचक भी बन जाता है। फ़िल्मी कलाकारों को ऐड करते देख कर ये विचार हमारे मन में भी उठते हैं, लेकिन आपने उन विचारों को अभिव्यक्ति दे दी। साधुवाद।

  2. पुराने ज़माने के सितारे अपने इर्द-गिर्द एक ऐसा आवरण बनाये रखते थे कि उनको लेकर लोगों का कौतुहल बना रहे। समय बदल गया है और साथ ही बदले हैं प्रचलन भी।
    आज ” out of sight-out of mind” वाली सोच को गंभीरता से लिया जा रहा है और इसीलिए फिल्मों के सितारे हर जगह नज़र आने की कोशिश में रहते हैं। न सिर्फ़ इतना, वे ” मैं तो आप जैसा साधारण इंसान हूं” वाली इमेज भी बनाने की कोशिश में रहते हैं, ताकि आम आदमी उनसे रिलेट कर पाये।
    Marketing gimmicks हैं,जो strategically तैयार किये जाते हैं।
    एक बात और, आज हम सोचें कि अमिताभ बच्चन आदर्शों के परचम लहराते हुए दूसरों के पथ प्रदर्शक होंगे ( जैसा हम बचपन से सोचते आये थे) ,तो ग़लत होगा। वे पैसा बनाने आये हैं, वहीं कर रहे हैं। समाज को सुधारने या संवारने का दायित्व उनका नहीं है। यह दायित्व स्वयं समाज का है और इन सितारों को अर्श पर बिठायें या फर्श पर, यह समाज के सामर्थ्य में है।
    एक सामयिक विषय को उठाने के लिए आपका साधुवाद!

    • रचना आपने संपादकीय को सही परिप्रेक्ष्य में देखा है। आपने सही कहा… सिताने पथ प्रदर्शक बनने नहीं… पैसे बनाने आए हैं…

  3. कलाकार जो कला को आकार दे और समाज को दिशा देकर एक बेहतर समाज को आकार दे।बस यही फलसफा रहा पुराने और नामचीन फिल्मी सितारों का। पर बाद में यानी कुछ प्रसिद्ध जिनमें महानायक बादशाह,मोस्ट अवेटेड कुंवारे या फिर कुछ और बस लोगों की भावनाओं से खेलना और पैसे लेकर मन ही मन हंसना।सही समस्या और मनोरोग की ओर ध्यान आकर्षित किया है।
    यूं भी जिस दिन हमारे देश के नागरिक विकसित देशों की तर्ज़ पर चल पड़ेंगे उसी दिन हम ऐसे कलाकारों को आईना दिखा कर भगा देंगे।
    बहुत ही मनोयोग से लिखा है आज का संपादकीय।

    • आभार भाई सूर्यकान्त जी। पुरवाई का प्रयास रहता है कि नये मुद्दों पर पाठकों का ध्यान दिलाया जाए।

  4. आज का सम्पादकीय बहुत बढ़िया ढंग से प्रस्तुत किया गया है।
    तेजेंद्र शर्मा सर आप एक अच्छे व्यंग्यकार है।

    साधुवाद

  5. अत्यंत विचारणीय.. लेख है सर….। ऐसे ही क्रिकेटर भी कई विज्ञापन में आते हैं। उनकी परफॉरमेंस पर न जाकर पैसा कमाना ही व्यवसाय है सोचकर दर्शक भी मान जाते हैं।…आजका संपादकीय सत्यता पर आधारित संवेदनशील अभिव्यक्ति है। साधुवाद सर

  6. फिल्मी सितारे पैसे के लिए कुछ भी कर सकते हैं। इस मायने में वह भी एक बिकाऊ प्रोडक्ट से ज्यादा कुछ नहीं। मुझे तो इन फिल्मी सितारों से कोफ्ते होने लगती है जब वह पानी मसाला आदि का विज्ञापन करते हैं ऐसा लगता है वह अपनी चिकनी चुपड़ी शक्ल और भाषा में लोगों में विशेष रूप से युवाओं में मौत बेच रहे होते है। जब अमिताभ बच्चन खाद्य पदार्थ जैसी प्रोडक्ट बेचते नजर आते हैं तो बच्चों तक में स्लो पुयासीजनिंग बेच रहे होते हैं। अक्षय कुमार को भी अंडरवियर के बहाने अश्लीलता बेचते देखा जा सकता है। कोरोना काल में वह टीवी पर एक महिला के साथ अश्लीलता परोसते नजर आते । उन दिनों सारे परिवार घर में रहने के लिए बाध्य था और टी वी पर यह सितारे अश्लीलता परोसते, नज़र आते। मैंने इस मुद्दे पर शिकायत भी की थी, कुछ दिन वह विज्ञापन बंद हुआ। कुछ समय बाद उसी प्रोडक्ट का बदला रुख नजर आने लगा।
    आपने एक बहुत जरूरी मुद्दा उठाया है। आप साधुवाद के पात्र हैं। ऐसे विज्ञापनों पर कानून और अधिक सख्त बनाये जाने की जरूरत है।

  7. आज का सम्पादकीय पढ़ने के लिए बहुत मेहनत की। सुबह से साइट खुल ही नहीं रही थी। पता नहीं उसके allow करने का नतीज़ा था या कुछ और मुझे लाखों डॉलर जीतने के कम से कम 10 नोटिफिकेशन आए। जब की मैसेज, मेल या मैसेंजर पर वो मैसेज नहीं थे, लेकिन नोटिफिकेशन थे। खैर एक बार सेफ़्टी, प्राइवेसी और परमिशन सभी की सेटिंग ठीक की।
    तब तक पुरवाई की समस्या ठीक हो चुकी थी। सम्पादकीय पढ़ा, आनन्द आया। धन्यवाद संपादक जी, सितारों की चमक फीकी करके उनका असली चेहरा दिखाने के लिए।
    गरीब देश को सपने बेंच कर पुराने जमाने से लेकर कुछ साल पहले तक सितारों ने खूब पैसा बनाया और भगवान का सा ओहदा भी पाया।
    भला हो भारतीय सस्ते इंटरनेट का और ott का। बॉलीवुड के बड़े सितारों का भरम टूटा। अब किसी हीरो के नाम पर कोई फिल्म चलती नहीं। जानता का सितारों के प्रति मोहभंग ख़ुद उन्हें भी पता है।
    इस समय होड़ इस बात की है कि जब तक कुछ कीमत मिल रही है पैसा बना लिया जाय उसके बाद सभी की दुकानें बन्द होने वाली हैं।
    ईमान, आदर्श और दायित्व बोध जब नेता में नहीं तो अभिनेता में कहां से आ जायेगा। सभी पैसे कमाने आये हैं, वो पान मसाले से आयें या ज़हर बेचने से आयेँ उन्हें क्या फ़र्क पड़ता है।
    छोटे कलाकारों के प्रति आपका दर्द वाजिब है। उनके भी दिन सुधरेंगे। आभार

    • शैली जी आपने सही फ़रमाया कि आज वैबसाइट खोलने में मुश्किल हो रही थी। फिर भी आप सबके सहयोग से स्थिति नियंत्रण में आ पाई। आपकी टिप्पणी संपादकीय को समझने में भरपूर सहायता करती है। आभार।

  8. हमेशा की तरह इस बार का संपादकीय कुछ कहता है और कुछ समाज से पूछता है? आज भारत के सिने स्टार बच्चों के मन पर बहुत प्रभाव डालते हैं जैसा की संपादक महोदय ने एक जगह उल्लेख किया है कि उनके दोस्त का पोता अपने दादा जी से सवाल करता है कि दो सिंघम है वो पान मसाला और जोड़ो के दर्द की दवा बेच रहा है तो वह इतने गुंडों से कैसे लड़ता होगा। मुझे प्रसन्नता है कि आज हमारे बच्चे हर बात के लिए तर्क करते हैं । कोई भी बात आप उन पर थोप नहीं सकते फिर चाहें वह लाखों करोड़ों रुपये के भ्रांति फैलाने प्रचार ही क्यों न हो। आज का युग तथ्य पर आधारित है । छोटे कलाकारों पर जनता विश्वास करती है क्योंकि वह उन्हें अपने करीब पाती है। अब सवाल यह है कि जो प्रोजेक्ट बड़े स्टार टी वी पर बेच रहे हैं क्या वह खुद उन्हें उपयोग करते है? यदि नहीं तो भोली भाली जनता पर क्यों प्रभाव बना रहे हैं? यही सवाल मुझे इस संपादकीय में दिखाई देता है। एक अच्छे संपादकीय के लिए संपादक महोदय को बहुत बहुत शुभकामनाएँ ।

  9. Your Editorial of today rightly points out how the old male film stars never lent their name or face to any product except female actresses who used to sell Lux.
    It is heartening to see you reprimanding the top filmstars of the day for advertising cheap and even harmful( like paan masala) products and losing their credibility among their fans.
    Not only this you also mention how they charge huge amounts from the manufacturers of these products at the risk of losing even their charm.
    A very interesting read.
    Warm regards
    Deepak Sharma

  10. आदरणीय तेजेंद्र जी! आज के संपादकीय का विषय एक लंबे समय से हमारे जेहन में था। यह बात सही है कि पहले जो कलाकार हुआ करते थे वे विज्ञापनों में नहीं आते थे। विज्ञापन के कलाकार अलग ही रहते थे, किंतु आज इन बड़े-बड़े कलाकारों ने इन छोटे कलाकारों का भी आय का साधन छीन लिया है।
    संपादकीय का पहला अंश बहुत महत्वपूर्ण लगा जहाँ एक पोता अपने दादाजी से सिंघम के बारे में चर्चा करता है। यह एक गंभीर विषय है तंबाखू और पान मसाले के बारे में बच्चे सिर्फ इतना ही जानते हैं कि यह स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है ।अभी तो उन्हें उस गंभीर हानी का अंदाज ही नहीं है जो इनसे जुड़ी हुई है। इसे पढ़ते हुए हमें याद आया कि हमारा एक स्टूडेंट था। उसका पान मसाले का थोक का बिजनेस था। एक बार यूँ ही क्लास में चर्चा निकलने पर हमने उससे पूछा कि,” तुम भी खाते हो ना ?”तो उसने कहा कि वह कभी नहीं खाएगा। फिर उसने एक ऐसी बात बताई जिसे सुनकर हमारे होश उड़ गए थे।
    उसने बताया था कि छिपकलियों को भी पकड़ कर, सुखाकर पान मसाले में मिक्स किया जाता है नशे के लिये।और भी कुछ नशीले कीड़े मकोड़ों के नाम बताए उसने, वह यह सब बनते हुए देख कर आया था। हमने उससे कहा था कि पढ़ लिखकर तुम इस धंधे को जरूर छोड़ देना। और उसमें हाँ भी कहा था। अब यह नहीं पता उसने छोड़ा या नहीं।पर हमारी बेचैनी देर से गई।
    सालों बाद आज फिर यह बात याद आई।
    इन नुकसान दायक बारीकियों से अभिनेताओं को कोई फर्क नहीं पड़ता ,न ही कुछ लेना देना।इसी तरह एक बार डिटेल में दैनिक भास्कर में कोकोकोला के संबंध में भी आया था कि वह किस पानी से बनता है और कितना नुकसान दायक है, पर इनका काम सिर्फ पैसे बनाना है और उन्हें सिर्फ पैसे से ही मतलब है फिर उनके विज्ञापन से किसी का जो भी नुकसान होता है तो हुआ करे।
    अपने चहेते सितारों को इस तरह से हल्के विज्ञापन करते हुए देखकर बहुत तकलीफ होती है। आश्चर्य तो इस बात पर है कि जब अमित जी ने पहली बार करोड़पति के लिए साइन किया तो जया बच्चन ने इसका विरोध किया था ।उन्हें ऐसा लग रहा था कि यह प्रतिष्ठा की बात है ,किंतु इस तरह की हल्की चीजों का विज्ञापन करते हुए पति को न रोक पाईं जहाँ वास्तव में प्रतिष्ठा दाँव पर लग रही थी।
    एक बात आपकी 100% सही लगी कि सितारों के प्रति रहस्यमयता समाप्त हो गई और फिर ऐसे प्रोडक्ट जो स्वास्थ्य के लिए नुकसानदायक हैं उनके विज्ञापन करते हुए देखकर तो बेहद ही तकलीफ होती है। उनके आदर्शों का स्तर इतना अधिक निम्न है कि विज्ञापन करते हुए उसके परिणाम के बारे में नहीं सोचते।, जबकि पिक्चर स्वीकारते समय स्क्रिप्ट पर पहले विचार करते हैं।
    विज्ञापन के लिये, लिये जाने वाले पैसों के आँकड़ों को पढ़कर आँखें खुली की खुली रह गईं।
    ऐसा तो बिल्कुल भी नहीं है कि पिक्चर का सामाजिकता से कोई सम्बन्ध नहीं है। नायक- नायिकाओ की जीवन शैली लोगों को प्रभावित करती है।अत: विज्ञापन भी उतना ही प्रभाव डालते होंगे। अगर एक पर भी डालते हैं तो भी वह मायने रखता है किंतु पैसों के आगे आजकल किसी को कुछ नहीं दिखाई देता। एक होड़ सी लगी है कि किस अभिनेता या अभिनेत्री के पास सबसे अधिक पैसा है!
    संपादकीय की विशिष्टता के लिये पुनः बधाइयाँ आपको।

  11. नामी फ़िल्मी सितारों के द्वारा नमक, तेल, साबुन के साथ पान मसाला का विज्ञापन करते देखकर इंसान यह सोचने को मजबूर हो जाता है कि क्या नामी गिरामी सितारे पैसों के लिए ये अपना जमीर भी बेच सकते हैं?
    पान मसाला का विज्ञापन करते हुए ये यह भी नहीं सोचते कि इसका आम आदमी पर कितना बुरा असर पड़ रहा होगा।
    यह एक अच्छी बात है कि अब आम आदमी इन विज्ञापनों को सीरियसली नहीं लेता। सच तो यह है कि इन विज्ञापनों के आने पर व्यक्ति अपने काम निबटाने लग जाता है। काश! ये सेलिब्रिटी समझ पाएं पर इन्हें तो लोगों कि भावनाओं की नहीं, अपनी गर्म होती जेब की परवाह है।

    आँखें खोल देने वाला संपादकीय।
    बधाई स्वीकार करें।

  12. इतनी ज्यादा विज्ञापन देखने की इच्छा नहीं करती! पता नहीं इनकी पैसे की भूख मिटती नहीं! बहुत बढ़िया लेख आपका। बहुत-बहुत बधाई

  13. सितारे आज केवल पैसा कमाने की मशीन भर हैं.
    वे अपनी जिम्मेदारी तनिक नहीं समझते. वे कितनों के रोल मॉडल होते हैं पर विज्ञापनों से शराब, गुटखा आदि को बढ़ावा देते हैं.
    हीरोइनों की बात और निराली.
    अब आम आदमी को ही विरोध करना चाहिए.

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