फल का नाम सुनते ही पेड़ों पर लगे फलों की ओर ध्यान जाता है। भोजन से तृप्त मन की अगली चाह परिश्रम के परिणामस्वरूप मिलने वाले फल पर जाना स्वाभाविक है। इसमें परीक्षा का परिणाम सबसे उपर आता है। वर्ष भर की मेहनत के बाद विद्यार्थियों को जब अपनी मेहनत का फल मिलता है, कुछ उसे देखकर खुश होते हैं तो कुछ असंतुष्ट भी होते हैं। यदि आपको फल अपनी पसंद का चाहिए तब आपको मेहनत भी उसी के अनुरूप करनी होगी। 
इसी तरह रिश्ते होते हैं। किसी रिश्ते में रहकर एक उम्र बिताने के बाद उसके परिणाम बीते समय में आपके द्वारा करी गई इन्वेस्टमेंट पर निर्भर करते हैं। बड़ी उम्र में जो माँ-बाप या घर के अन्य सदस्य चाहते हैं कि बच्चे उनके साथ समय बिताएं, तब उन्हें देखना होगा कि जब यह पीढ़ी खुद समर्थ थी, तब इन्होंने अपने बच्चों के साथ कितना समय बिताया? किस प्रकार के भावनात्मक रिश्ते बनाए? यानी रिश्तों में भावनाएं महत्वपूर्ण होती हैं। उन्हें सींचने के लिए हर दिन प्रयास करने होते हैं। 
जिस तरह बीज से अंकुर फूटता है, फिर पौधा बनता है। समय बीतने पर पौधा, पेड़ का आकार लेता है तब कहीं जाकर फल की आस जागती है। यदि आपको हर दिन ताजे, मीठे और स्वादिष्ट फल खाने का मन करता है, तब आप हर दिन एक बीज लगाइये। इसी तरह रिश्तों में भी अपनेपन और प्यार की उष्मा की ज़रूरत महसूस होती है, तो आज से ही उन्हें सींचना शुरू कर दें। जीवन भर यह प्रोसेस चलता रहना चाहिए।
बातचीत के, प्यार-मनुहार के, कुछ लाड-प्यार के तो कुछ खट्टे-मीठे लम्हों के बीज आप हर दिन रिश्तों में रोपने का काम करते रहें। अब जीवन भर रिश्तों में रोपे गए यही बीज, आपका भविष्य छायादार और फलदार बनाने में जुट जाएंगे। कुछ बीज धरती में अंकुर फूटने की प्रक्रिया में होंगे। उसी समय कुछ नन्हें पौधे बनने की ओर अग्रसर हो रहे होंगे। कुछ पौधे, आगे बढ़कर वृक्ष बन रहे होंगे तो कुछ फल देने की यात्रा की ओर कदम बढ़ा चुके होंगे। 
सार यह है कि जिस प्रकार भोजन के लिए फल चाहना, पेड़ लगाने की प्रक्रिया का पहला कदम होता है, उसी तरह पढ़ाई या काम-नौकरी में अच्छा परिणाम पूरे समय की मेहनत का नतीजा होता है। अब यही फार्मूला रिश्तों पर भी लागू होता है। 
आपको बातचीत के, एक-दूसरे की इज्जत करने के, प्रेम-प्यार के बीज रिश्तों में हर दिन रोपने होते हैं। जिससे बीज से नन्हा पौधा, पौधों से बढ़ते हुए हरियाले पौधों के समूह और इससे आगे, पेड़ बनने की श्रंखला निरंतर चलती रहे। इसका परिणाम यह होगा कि आपको जीवन के हर मौसम में रिश्तों की लहलहाती फ़सल देखने को मिलेगी। आप जब चाहें, जिस मौसम में चाहें, आपको फल तैयार मिलेंगे।

2 टिप्पणी

  1. Thanks Vandana Ji for so beautifully analysing the emotions among relations… It is indeed the need of hour to nurture the relational aspects, may be in family or among friends.

  2. इसमें कोई दो मत नहीं वन्दना जी कि रिश्तों को पौधों की तरह सहेजना पड़ता है।
    संयुक्त परिवारों में यह सब करना नहीं पड़ता था ,स्वत: होता था।आज भी देखने को मिलता है ;पर फिर भी संवेदनाएँ छीज रही हैं और रिश्तों में दरार पड़ रही है। यह चिंता जनक है।
    पर हम इसमें संस्कारों का विलोपन, आधुनिकता की अंधी दौड़ का प्रभाव व वैयक्तिकता से भरी एकल सोच ही मानते हैं।
    कभी-कभी समय व स्थितियाँ भी कारक बन जाती हैं।
    फिर भी यह सत्य है कि- जो बोएगा वहीं पाएगा।
    हर बार की तरह पुख्ता दस्तावेज है मन का।

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