समझदार लोग कहते हैं कि अपना जीवन आप ख़ुद प्लान करें। यह एक हद तक सही भी है क्योंकि यह जीवन आपका है। इससे आप क्या चाहते हैं, आपने अपने लिए कौन-सी मंज़िल सोच रखी है, यह सब सिर्फ आप जानते हैं। ऐसे में जो सपने आपने देखे हैं, जो अभिलाषाएं पाली हैं, वे आपकी हैं तो उन्हें पूरा करने की जिम्मेदारी भी आपकी ही हुई। परिवार और समाज इसमें आपके साथी रहेंगे, लेकिन प्लानिंग से लेकर मेहनत तक की यात्रा आपको खुद तय करनी है। इस यात्रा में आप जितने संजीदा रहेंगे, मंज़िल पर पहुँच उतनी ही गहरी होगी। मगर क्या हो कि जब ऐसा नहीं हो रहा हो?
यह परिस्थिती उस स्थिती से बिल्कुल उलट है जो आपने सोच रखी है। जिस दिशा में आप कदम बढ़ाते हैं, आगे बढ़ने को मेहनत करते हैं, हालात साथ नहीं देते। तमाम मेहनत के बावजूद आपके कदम, आपकी सोची हुई मंज़िल तक नहीं पहुँचते हैं। ऐसे में क्या किया जाए? क्या हताशा ओढ़कर बैठ जाएं? क्या हार मान लें? क्या थक कर बैठ जाएं? मेरा जवाब होगा – बिल्कुल नहीं।
एक बात हमेशा याद रखें कि हालात आपके बस में कभी नहीं होते। आपके हिस्से में मेहनत करना, तैयारी करना और लगातार ख़ुदको सकारात्मक बनाए रखना होता है। आप अपने हिस्से की जिम्मेदारी मुस्तैदी से निभाते रहिए। शेष सब कुछ समय और परिस्थितियों पर छोड़ दें। इस बात का यकीन रखें कि हर बार वह नहीं होता जो आप चाहते हैं। कई बार आपको अपनी सोच से अलग रास्ते पर चलना पड़ता है क्योंकि प्रकृति ने आपके लिए कुछ अलग सोच रखा है। यहीं से आपका इम्तिहान शुरू होता है। आपके आज तक के अनुभव का, हौसले का, जितना ज्ञान आपने हासिल किया है, यह उसकी परीक्षा का समय है।
आप जिस प्लान ‘ए’ पर पूरे जोश से जुटे हुए हैं, बहुत मुमकिन है कि प्रकृति ने आपके लिए कोई प्लान “बी” बना रखा हो। आपको सिर्फ इतना करना है कि जो स्थितियाँ आपके सामने आ रही हैं, खुदको निष्क्रिय किए बिना, अपने आप को मोटीवेट करते रहें। हालात के अनुसार अपने प्लान में बदलाव करते हुए आगे बढ़ते रहें। बहुत संभव है कि यह यात्रा आपको तुरंत अपनी मंज़िल पर ना पहुंचा रही हो। यह भी संभव हो सकता है कि फिलहाल आप मेहनत करते हुए अपने मनपसंद परिणाम तक ना पहुंचे, मगर याद रखिए कि मेहनत कभी बर्बाद नहीं जाती।
मेहनत हर बार कोई ना कोई परिणाम ज़रूर देती है। थोड़ी समझदारी और सूझबूझ से उठते कदम कहीं ना कहीं पहुंचाते ज़रूर हैं। स्मरण रखिए कि जंगल में भटक जाने पर एक जगह बैठ जाने से रास्ता नहीं मिलता। भटकाव से बाहर निकलने के लिए आपको रास्ता तलाशना होगा और यदि रास्ता ना मिले तो पगडंडी तलाशिए। वह भी ना मिले तो अपनी पगडंडी खुद बनाइए। अपने लिए रास्ता खुद बनाईए। बदली परिस्थिती में अपने आप को बचाए रखने का यही एकमात्र उपाय है।
तमाम मेहनत कै बावजूद जब थकाने लगें, तब एक फिल्मी गीत गुनगुनाएं जो आपको हौसला भी देगा और सकारात्मक भी रखेगा – ‘जीवन चलने का नाम, चलते रहो सुब्ह-शाम…’ और आप देखेंगे कि आख़िरकार आप एक नई मंज़िल पर पहुँचने वाले हैं।
यह सत्य है हम अपनी अभिलाषाएं और महत्वाकांक्षा को स्वयं अच्छे से समझते हैं लेकिन इस पॉजिटिव सोच में अगर किसी का थोड़ा सहारा और अनुभव मिल जाए तो वास्तव में मंजिल आसान हो जाती है। इस यात्रा में आने वाले दुरूह मोड़ को भी सकारात्मकता और अनुभवी व्यक्ति का समर्थन सरल और समर्थ बना देता है।
आपका आशीर्वाद सदा बना रहे…
आदरणीय मैम और तेजेंद्र सर