पृथ्वी गोल है, एकदम गोल। कहीं कोई किनारा नहीं। जहाँ से भी शुरू करो जीवन यात्रा, कहीं भी थमती नहीं। जब तक जान में जान है, शरीर में प्राण है, चलते रहो… चलते रहो और चल-चलकर आख़िर में पहुँचोगे वहीं, जहाँ से चलना शुरू किया था। यदि यात्रा पूरी होने से पहले प्राण ना छूटे तब!
सीता – धरती पुत्री ! धरती से पैदा हुई, राजकुमारियों-सा जीवन जीया, राजवधु बनीं, वनों में भटकीं और पुनः राजसुख पा सकतीं, इससे पहले ही चिर-वियोग मिल गया। शिशुओं को पाला-पोसा, वनों में ठीक से जीवन जिया भी नहीं कि पुन: धरती की कोख में समा गई। जहाँ से शुरू किया, वहीं अंतिम समाधि।
झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई, साधारण परिवार की बेटी, रानी बनी! सुख भोग तो कहाँ था नसीब में, देश की आन के लिए लड़ते-लड़ते जब प्राण छूटे, तब ना ही राजप्रासाद था, ना सेवक, ना हाथी-घोड़े और ना ही राजसी ठाठ-बाट। जंगल में मिली मौत! भला हो उस तपस्वी का, और महान आत्मा वह सेवक-सम सैनिक, जिसने दुश्मनों के पहुँचने से पहले ही भूसे-चारे की चिता में तेजस्विनी के शरीर को अर्पण कर उस तपस्विनी का मोक्ष मार्ग प्रशस्त किया। शुरू जहाँ से हुआ था जीवन-रथ, वहीं पर आ कर रूक भी गया।
और कितने उदाहरण, कितनी मिसालें दी जाएं? सारे धर्मग्रंथ, उपनिषद, वेद-पुराण भरे मिल जाएंगे ऐसी ही कथाओं से कि जहाँ से शुरू हुए, वहीं पहुँच कर चिर यात्रा के यात्री बने।
स्त्रियों में विशिष्ठ वह पार्वती थी, जो शिव भक्ति में अनेक जन्मों तक पति रूप में शिव को पाने के प्रयास में ही साधना पूर्ण होने से पहले, वहीं आ कर जीवन यात्रा में थम गई जहाँ से जीवन ज्योति का आह्वान किया था।
श्रीकृष्ण के जीवन की कथा और अंतिम समाधि वृतांत भी एक जैसा ही है। सभी देवी-देवता, इतिहास एवं प्रकृति साक्षी हैं कि जीवन चाहे जिस रूप में जी लें, किसी भी उँचाई तक पहुँच जाएं, परन्तु अंतिम पड़ाव प्राय: प्रारंभिक किरण उदित होते समय जो लालिमा युक्त आकाश पुन्ज पर बैठा वह आदिशक्ति हमें देख रहा है, वह उस क्षण की जीवन में पुनरावृत्ति आवश्य करता है। एक बार ही सही परन्तु अधिकांशत: जब यात्री, यात्रा पर समाप्ति की ओर अग्रसर होता है, तभी वह पुन: अपना इशारा देता है। झलक दिखाता हुआ सांकेतिक भाषा में कहता है – आओ, अब लौट चलें। बहुत देर हुई, तुम थक चुके। आओ मेरे पास, कुछ देर विश्राम कर लो। अगली भीष्म यात्रा का समय निकट है। उससे पहले एक बार मेरी गोद में आराम कर पुन: नव उर्जा का संचार कर, आत्म शुद्धि का प्रयास करो।
मैं पुन: तुम्हें जीवन दूंगा – आदि से अंत तक। वहीं से शुरू और उसी मुकाम पर पहुँच कर मोक्ष तक का। आओ, मेरे समीप आओ। कुछ देर विश्राम करलो। तुम थक चुके हो, नव उर्जा का संचार कर लो। मैं तुम्हारी यात्रा का समय और दिशा निश्चित कर चुका हूँ, तुम नितांत निर्जन, अदृश्य और अनजान मार्ग पर कदम बढ़ाने से पहले कुछ क्षण आराम कर लो!

2 टिप्पणी

  1. सत्य वचन। तार्किक चर्चा है।
    जीवन की सच्चाई को समझना व स्वीकार करना ही जीवन का उद्देश्य है

  2. फूल पौधों से भी दोस्ती कीजिए
    होती है इस तरह रोशनी, कीजिए।

    सीखने में ग़लत काम होते भी हैं,
    इसलिए सीख कर तो सही कीजिए।

    सूबे सिंह सुजान

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