Friday, October 4, 2024
होमलघुकथाआभा अदीब राज़दान की लघुकथा - ठंडे पैर

आभा अदीब राज़दान की लघुकथा – ठंडे पैर

राधा मोज़े पहन लो ठंड लग जाएगी न तब फिर सबसे पहले तुम्हारी नाक बहना शुरू होगी और फिर तुम सारे घर को सिर पर उठा लोगी ।” मोहन जी बोले । 
हाँ-हाँ पहन रही हूँ आज तो ठंड भी बहुत बढ गयी है निगोड़ी हड्डियों तक ही घुसी जा रही है।” राधा जी ने कहा और रस्सी पर से मोज़े उठा कर पैर में पहनने लगी । 
जब तक मैं न कहूँ तब तक तुम्हारा कोई काम नहीं होता है बड़ी बुरी आदत है। कल जब न रहूँगा तो बस ऐसे ही डोलती रहोगी कोई भी इतना ध्यान न रखेगा।” मोहन जी ने कहा। 
हाँ सो तो है तुम्हारे जितना ध्यान तो कोई भी न रखेगा।” राधा जी हंसते हुए बोलीं। 
आज सुबह से ठंडक बहुत थी और बादल भी थे सो धूप भी नहीं थी। राधा जी बिना मोजों के ही फिर रही थीं लेकिन किसी ने भी उनसे नहीं कहा कि वह मोजे पहन लें। खाना खाने के बाद सभी बिस्तर पर लेट चुके थे। राधा जी के पैर तो मानो बर्फ़ हो रहे थे। 
झपकी सी आ गयी थी तभी लगा मोहन जी उनके पैरों में मोज़े पहना रहे हैं। चौंक कर देखा वह खुद ही नींद में मोज़े पहन रही थीं। मोहन जी तो सामने दीवार पर लगी तस्वीर में मुसकुरा रहे थे। 
तुम वहां से भी मेरा कितना ख्याल रखते हो जी।” राधा जी ने मन ही मन कहा। उनके ठंडे बर्फ़ जैसे पैर अब धीमे-धीमे गर्म हो रहे थे। 
RELATED ARTICLES

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

Most Popular

Latest