ग्राम्य जीवन भारत के एक विशिष्ट पहचान है। ग्राम्य जीवन की सरलता, सहजता, जीवन यापन की सरल पद्धति, बनावटी एवं खोखले जीवन से एकदम अलग है। फणीश्वर नाथ रेणु के रचना संसार में ग्राम्य जीवन की सटीक यथार्थ झलक मिलती है।
ग्राम्य जीवन की कठिनाइयों एवं विषमताओं का सुन्दर चित्रण इनके साहित्य में मिलता है। ग्राम्य जीवन सच कहा जाये तो छोटे तौर पर एक बड़े भारत का प्रतिनिधित्व है। ब्राम्हण, कायस्थ, ठाकुर, अहीर, तेली सभी लोग एक साथ, एक गाँव में रहते हैं, कई विषमताओं के बाद भी आपस में भाईचारा बना रहता है। इस प्रकार ग्राम्य- जीवन अखंडता तथा एकता का उदाहरण है।
लोक उपन्यासकार फणीश्वर नाथ रेणु के साहित्य में ग्राम्य-जीवन की सर्वांग झलक देकने को मिलती है। ‘मैला आँचल’ की रचना का केंद्र ग्राम्य परिवेश ही है। ‘पूर्णिया’ जिले के मेरीगंज नामक गाँव का जो बिहार में है, रचनाकार ने ग्रामीण परिवेश का सुन्दर चित्र खीचा है। सामंतवादी प्रथा, गरीबी से मजबूर किसान, ग्रामीण महिलाओं की दुर्दसा सभी कवि की दृष्टि में समाहित है।
ग्राम्य जीवन के बदलते सन्दर्भ को भी रेणु जी ने दिखाया है। राजनीतिक चेतना से भी ग्राम्य जीवन अछूता नहीं है। रेणुजी ने यथार्थ जीवन की सुन्दर अभिव्यक्तियाँ की हैं। गाँव को सरल, सहज, भोले लोगों का निवास स्थली न दिखाकर, रचनाकार ने बदलते समय के अनुसार ग्रामीण बालाओं, युवकों के मनोभावों का भी सुन्दर ढंग से मनोवैज्ञानिक वर्णन किया है।
मेरी गंज के लोग राजनीतिक विचारधारा से ओत-प्रोत हैं। गाँव में फसल होने के बाद भी सूदखोरी एवं कर्ज से ग्रामीण बेहाल हैं। गाँव के खेतिहर मजदूरों की दशा दयनीय है- “खम्घर में जितना धान होगा, उससे तो चौगुना कर्ज है…. सब काट लिया जायेगा… और इस बार तो लगता है कि गाँव में गुजर नहीं चलेगा… गाँव के घर-घर में हे भगवान्! की पुकार मची है।”
लेकिन किसानों के मन में एक विश्वास भी है कि एकदिन उनकी आर्थिक स्थिति ठीक होगी। ग्राम्य जीवन में उल्लास भी है, विषमताओं का दंश भी है। रेणु जी ने ग्राम्य जीवन के एक संतुलित यथार्थ का चित्रण अपने साहित्य में किया है। गाँव में सुविधाएँ नहीं हैं, फिर भी जागरूकता है। सभी राजनीतिक, सामाजिक सरोकारों में दखल रखते हैं। ख़बरों से भी गाँव जागरूक है। कई तरह की परेशानियों के बावजूद सभी लोग हर्षौल्लास पूर्वक पर्व मनाने में भी अग्रणी हैं।
अपनी रचना ‘मैला आँचल’ में रेणु जी ने समाज की कई विद्रूपताओं की और भी ध्यान खींचा है। ग्राम्य- जीवन में पनपने वाली आर्थिक, समाजिक तथा राजनीतिक चेतना की और भी ध्यान खींचा है। ‘कालीचरण’, ‘प्रशांत’ आदि पात्रों के माध्यम से बदलाव की और भी इशारा किया है, ग्राम्य- जीवन में हो रहे परिवर्तन आशावादी तथा सकारात्मकता है। इस प्रकार रेणुजी प्रगतिशीलता के समर्थक हैं। उनके द्वारा वर्णित ग्राम्य जीवन प्रगतिशील चेतना का संवाहक है।
उनके ग्राम्य जीवन में लोक संस्कृति, गीत तथा लोक कलाओं का भी सुन्दर चित्रण है। सन्थालों के जीवन-वर्णन में कवि ने ग्राम्य जीवन में इनके महत्व को भी दिखाया है, तथा सभी वर्गों का मिला-जुला जीवन यापन ग्राम्य संस्कृति की मुलभूत विशेषता है, इसे रेणुजी ने बड़े सहज और सुन्दर ढंग से अपने साहित्य में निरूपण किया है। उनके ग्राम्य- जीवन वर्णन में उत्तर भारत के प्रायः सभी गाँवों की झलक है, रहन-सहन, वेशभूषा, आचार-विचार सभी का चित्रण बिम्बात्मक है।
इस प्रकार रेणुजी के साहित्य में ग्राम्य- जीवन का बहुत ही सजीव चित्रण किया गया है। उत्तर-भारत के प्राय सभी गाँवों का ये वर्णन प्रतिनिधित्व करते हैं। रेणुजी के ग्रामीण, सचेतस परिस्थिति के साथ ताल-मेल बैठा कर आगे बढ़ते हैं, अतः आदर्शवाद न होकर यथार्थ चित्रण बहुत ही सुन्दर तथा सटीक है।