भारत में वेबसीरीज, खासकर क्राइम ड्रामा जॉनर की वेबसीरीजों को लेकर आर्या एक उम्मीद जगाती है। उमीद ये कि हमारे वेबसीरीज निर्माता इससे सबक लेकर यह समझेंगे कि बिना माँ-बहनों की इज्जत उतारे, बिना स्त्री-पुरुष की काम-क्रिया के भौंडे प्रदर्शन और बिना वीभत्स हिंसा के भी एक अच्छी व कामयाब वेबसीरीज बनाई जा सकती है।
ये भारत में ओटीटी माध्यमों के उभार का दौर है। कोरोना संकट में हुए लॉकडाउन ने इस उभार की गति को एक नयी ऊर्जा प्रदान की है, क्योंकि अब जब सिनेमा हॉल बंद हैं और धारावाहिकों की शूटिंग लम्बे समय तक ठप्प रही है, तब घर में कैद लोगों का रुझान वेबसीरीज की तरफ स्वाभाविक रूप से हुआ है। ऐसे में, तमाम ओटीटी माध्यम लगातार पहले की शूट हो चुकी नयी-नयी वेबसीरिजें लाने में लगे हैं। आर्या भी इसीकी एक कड़ी है, जो हॉटस्टार पर आई है।
आर्या पर बात करने से पूर्व यह उल्लेखनीय होगा कि वेबसीरीजों के साथ जो सबसे बड़ी समस्या भारत में नजर आती है, वो ये कि विनियमन की व्यवस्था न होने के कारण इनमें कलात्मक आजादी के नामपर नैतिकता और सामाजिक शुचिता की सभी मर्यादाओं को ध्वस्त कर दिया जाता है। बेहिसाब गाली-गलौज, वीभत्स हिंसा, नग्नता की सीमाएं लांघते सेक्स दृश्य और हिन्दू धार्मिक प्रतीकों का अपमान – ये चीजें एक तरह से भारतीय वेबसीरीज की पहचान बन चुकी हैं। लगभग हर नयी सीरीज, किसी न किसी रूप में सामाजिक-नैतिक मर्यादाओं की सीमा तोड़ने का कीर्तिमान बनाने में लगी है।
इन सबके बीच, आर्या जैसी वेबसीरीज का आना सुकून देता है। आर्या के जरिये बॉलीवुड की बेहद खुबसूरत और बेहतरीन अभिनेत्रियों में से एक सुष्मिता सेन ने डिजिटल डेब्यू किया है। इसके अलावा लगभग भुलाए जा चुके अभिनेता चंद्रचूड़ सिंह भी इसमें सीमित किन्तु महत्वपूर्ण किरदार में नजर आए हैं।
कहानी की बात करें तो बस इतना जान लीजिये कि ये उच्चवर्गीय समाज के पारिवारिक ड्रामे के बीच चलती एक रहस्य व रोमांच की कहानी है। आर्या (सुष्मिता) और तेज (चंद्रचूड़) पति-पत्नी हैं। तेज, आर्या के पिता के अफीम का कारोबार संभालता है, जो कि आर्या को पसंद नहीं। फिर एक रोज वे तय करते हैं कि सब छोड़कर विदेश चले जाएंगे और शांति से रहेंगे, तभी रहस्यमय आदमी द्वारा तेज की हत्या हो जाती है। फिर इसके आगे आर्या के सामने क्या चुनौतियाँ आती हैं और हत्यारे का रहस्य कैसे व कब खुलता है, इसके लिए आपको वेबसीरीज देखनी होगी।
इस वेबसीरीज की ख़ास बात यह है कि कहानी में गिनती की गालियाँ आई हैं और वे ऐसे मौकों पर आई हैं, जब उनका आना परिस्थिति के अनुसार स्वाभाविक लगता है। हालांकि कुछ पात्रों का हर दूसरी बात में ‘Fuck..Fuck’ करना अटपटा लगता है, मगर वो इतना ही है कि उसे नजरंदाज कर सकते हैं।
हिंसा है, मगर ऐसे कि उससे वीभत्सता नहीं पैदा होती। अन्तरंग दृश्यों के नामपर कुछेक छोटे-मोटे किस सीन भर हैं। कुल मिलाकर जो अस्वास्थ्यकर मसाले इन दिनों भारतीय वेबसीरीजों की पहचान बने हुए हैं, उनका आर्या में कोई विशेष इस्तेमाल नहीं किया गया है, लेकिन तब भी एकबार शुरू करने के बाद आप अंत तक नौ एपिसोड में बंटी, करीबन इतने ही घंटे लंबी, इस वेबसीरीज को बिना ऊबे देख सकते हैं। साथ ही, श्रीमदभगवद्गीता को जिस तरह इस कहानी का हिस्सा बनाया गया है और अंत में उससे सम्बंधित जो शो होता है, वो मजा और बढ़ा देता है।
अभिनय के मामले में यूँ तो सब कलाकारों ने जरूरत के मुताबिक़ ठीक ही काम किया है, लेकिन सुष्मिता सेन महफ़िल लूट ले जाती हैं। आर्या के चरित्र, जिसमें मृदुता-कठोरता-सरलता-कुटिलता-गंभीरता-भावुकता जैसे परिस्थितिनुसार अनेक ‘शेड’ हैं, उन सबका उम्दा ढंग से सुष्मिता ने निर्वाह किया है। जिस अदा से वे संवाद बोलती हैं, वो बहुत प्रभावशाली लगता है। चंद्रचूड़ सिंह की भूमिका अपेक्षाकृत छोटी है, मगर दर्शक के दिमाग पर अपने अभिनय की छाप छोड़ने में वे भी कामयाब रहते हैं।
समग्रतः यह कहा जा सकता है कि भारत में क्राइम ड्रामा जॉनर की वेबसीरीजों को लेकर आर्या एक उम्मीद जगाती है। उमीद ये कि हमारे वेबसीरीज निर्माता इससे सबक लेकर यह समझेंगे कि बिना माँ-बहनों की इज्जत उतारे, बिना स्त्री-पुरुष की काम-क्रिया के भौंडे प्रदर्शन और बिना वीभत्स हिंसा के भी एक अच्छी व कामयाब वेबसीरीज बनाई जा सकती है।
सुखदजानकारी के लिए पीयूष जी का शुक्रिया ।
“आर्या” की सजग समीक्षा ने वेबसीरीज़ों की सही नस पकड़ी है।
पीयूष जी साधुवाद के पात्र हैं।
“आर्या” की सजग समीक्षा ने वेबसीरीज़ों की सही नस पकड़ी है।