लघुकथा – कमल कपूर

1. ऐ मेरे बिछड़े वतन….
विश्व के सर्वाधिक समृद्ध देश अमेरिका के सुंदर -से शहर फोन्टाना की चिकनी सड़क पर गाड़ी दौड़ रही थी।14 अगस्त की सांझ थी वह और भारत में थी 15 अगस्त की भोर••• मैं सोच रही थी कि  कितना उत्साह होगा आज जन-जन के मन में स्वतंत्रता-दिवस को ले कर।मैंने तो इतना भर किया था कि सफेद चिकन के सलवार-कुर्ते पर तिरंगा दुपट्टा ओढ़ लिया था। सहसा बिटिया मेघना ने पुलकित स्वर में कहा,” अरे मम्मा! देखिए पूर्वा की गाड़ी•••मैंने आपको बताया था न?”
   और मैंने हमारी गाड़ी के आगे जाती उस उजली होंडा सिविक को देखा, जिस पर हिन्दी में ‘ पूर्वा ‘ लिखा था और नीचे अंग्रेजी में ‘ लव यू इंडिया ‘ और साथ ही था तिरंगे का स्टिकर।गाड़ी केसरिया टाॅप वाली एक लड़की चला रही थी।मेरा मन फूल सा खिल उठा और मैंने मेघना से पूछा, ” हम कैसे मिल सकते हैं इस लड़की से?”
    ” क्यों मिलना है आपको उससे?” मेघना ने तल्खी से पूछा तो मैं खामोश हो गयी और मायूस भी लेकिन ‘ मेसी स्टोर ‘ की पार्किंग में उसकी गाड़ी खड़ी देख कर खुशी से चहक उटी मैं और  मेघना से बोली ,” तुम जाओ बेटा ! मैं यहीं उसकी गाड़ी के पास खड़ी हो कर उसका इंतज़ार करूगी।”
   ” ओ कमऑन मम्मा ,” मेरा हाथ पकड़ कर वह मुझे स्टोर में ले गई और यह क्या ? सामने ही स्कर्टस के काउंटर पर खड़ी थी वह ।” पूर्वा ” मैंने हुलस कर पुकारा तो वह मुड़ी और हमारे निकट चली आई , ” जी ? “
  ” मम्मा आपसे मिलना और बात करना चाहती हैं।अपने देश के लोग इनकी कमजोरी हैं,”मेघना ने कहा तो वह मुस्कुराई ,” कमजोरी नहीं ताकत कहें जी।”
   अब फूड-कोर्ट की एक टेबल पर आमने सामने बैठे थे हम। पूर्वा ने बताया कि उसके दादू स्वतंत्रता-सेनानी थ और पापा कर्नल , जो कारगिल युद्ध में शहीद हो गये। ” कहानी लंबी है आंटी ! फिर कभी मिले तो सुनाऊंगी। रोजी-रोटी मुझे यहाँ ले आई।मम्मी और मैं •••बस हम दो का ही परिवार  है। इंडिया हर पल मेरे मन में बसता है इसीलिए गाड़ी पर•••
  अपनी बात अधूरी छोड़ कर उसने अपना बैग खोला और एक छोटा -सा तिरंगा झंडा निकाल कर मेरे हाथ में थमाते हुए बोली ,” मै खुद ये झंडे बनाती हूँ और सिर्फ उनको ही भेंट करती हूँ, जो इसकी कीमत जानते हैं।”
   मेरी आंखें छलक ऊठीं और भावावेश में अपना तिरंगा दुपट्टा उतार कर मैंने स्कार्फ की तरह उसके गले में लपेट दिया तो उसने मेरा हाथ थाम कर चूम लिया और भीगे स्वर में बोली , ” चूम लूँ मैं उस जुबां को जिस पे आये तेरा नाम•••ऐ मेरे बिछड़े वतन तुझ पे दिल कुर्बान।”
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2. कौन है वह•••
  न्यूजर्सी की बर्फानी आधी रात के सन्नाटे को चीरता एक करुण रोदन-स्वर रिया के कानों से टकराया तो वह चौंक गई और किताब बंद कर और ओवरकोट पहन कर बाहर निकल आई उसने देखा कि रोशनियों षे जगमगाते सामने वाले पार्क की बैंच पर एक मानव आकृति काले कंबल में लिपटी इस ओर पीठ किए बैठी थी। वह दबे पाँव जा कर उसके सामने खड़ी हो गयी।वह एक वृद्ध सिख  सज्जन थे।उनकी आँखों से आँसुओं की धार बह रही थी, जिससे उनकी दाढ़ी तक भीग गई थी।
 ” आप कौन हैं और इत्ती ठंड में इस वक्त यहाँ बैठे रो क्यों रहे हैं? ” रिया ने पूछा तो वह अचकचा कर खड़े हो गये तो उनको घबराहट भांप कर रिया ने स्निगूध स्वर में पूछा,” आप अमनदीप भाई साहब के घर आए हैं न?”
   ” आहो जी ! वो मेरा पुत्तर है।”
   ” बेटे के पास आये हैं आप, फिर रो क्यों रहे हैं , वो भी इस वक्त और यहाँ?”
   ” वो जी , मन उचाट हो रहा था और रोने को जी चाह रहा था। घर पर रोता तो सबकी नींद खराब होती इसलिए••••
  ” और यहाँ रो कर आप पूरी सोसायटी की नींद खराब चर रहे हैं।यह कानूनन जुर्म है।कोई पुलिस म् रिपोर्ट कर दे तो आपको जुर्माना भी है सकता है ” उनकी बात काट कर रिया ने कहा।
   ” अच्छा जी? रोने पर भी जुर्माना? बड़ा अजीब देश है,” हैरत भरे स्वर में बोले वह।
   ” चलें जाने दें और बताएँ कि किसी बेहद अपने को याद कर रो रहे थे  आप, जिसे पीछे छोड़ आये हैं?”
   ” आहो जी !”ठंडी साँस ले कर बोले वह।
  ” आपकी बीवी हैं न वह ?” शोखी से मुस्कुराते हुए  पूछा उसने।
   ” ना जी !वो नसीबों वाली तो कबकी सांचे घर चली गई,” एक आह भरी साँस ले कर बोले वह।
   ” ओह! तो जिस बंदे या चीज को मिस कर रहे हैं , उसे साथ ले आते न!”
” कैसे ले आता कुड़िये! वह मेरे दिल में बसता है धड़कन की तरह•••मेरे रोम-रोम में है पर वो कोई चीज नहीं है जो बक्से में बंद करके ले आता,”  उदासी में लिपटा था उनका स्वर।
    ” प्लीज़ बताएँ न कौन है वह?”
  ” वो मेरा वतन•••मेरा देस है बच्चे!”
   ” ओsssss! हमारा हिन्दुस्तान?” मीठा सा मुस्कुराई मैं।
    ” ना बच्चे ना ! हिन्दुस्तान ना बोल । भारत है वो•••मेरा भारतवर्ष,”कहते हुए उनके होठों पर भी मुस्कान  नाच उठी थी।
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कमल कपूर
2144 / 9सेक्टर
फरीदाबाद-121006
हरियाणा
मोबाइल-09873967455
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