सगाई का उत्सव चल रहा था| भावी दूल्हा और दुल्हन एक दूसरे को अंगूठियाँ पहना चुके थे| अब बारी थी नृत्य की| पहले घर के सदस्यों और निकटतम रिश्तेदारों ने पहले से तैयार किये गए नृत्य प्रस्तुत किये| इसके बाद शुरू हुआ निकट-दूर के रिश्तेदारों को नृत्य के लिए मनुहार से या थोड़ा सा खींच-खांच कर स्टेज तक लाना | जिनका मन नृत्य के लिए मचल रहा था मगर बुलाये जाने की प्रतीक्षा में थे| वे जरा सी मनुहार या मात्र हाथ पकड़ने पर चल देते और जाकर डीजे वाले को अपनी पसंद का गाना बता कर ठुमकना शुरू कर देते | कुछ थोड़ी सी नानुकर के बाद जाते और फिर जम कर नृत्य करते| जिन्हें नाचना नहीं आता था वे जरा मुश्किल से मंच पर जाते और थोड़ा सा हाथ-पैर हिला कर नीचे उतर जाते |
किसी युवा के मनोहारी नृत्य पर ताली बज रहीं थी तो किसी तन्वंगी के मेकअप आर्टिस्ट द्वारा तराशे गए सौंदर्य तो किसी के बेशकीमती परिधान से दिप- दिप करते व्यक्तित्व पर लोग न्योछावर हुए जा रहे थे| कुछ तालियाँ बुजुर्गो की उम्र और रिश्ते के सम्मान में भी बज रही थी|
वह बड़ी देर से स्वयं को मंच पर बुलाये जाने की अथक प्रतीक्षा कर रही थी| हर तरह के संगीत और हर गाने पर उसके पैर अपनी ही जगह पर खड़े-खड़े थिरक रहे थे| उसकी शिराओं में बहता नृत्य बाहर आने को मचल रहा था| अब लगभग सभी नृत्य कर चुके थे लेकिन नाचने वालों का जोश अभी भी ठंडा नहीं हुआ था| वो एक दूसरे को खींचते समूह में स्टेज पर चढ़ गए और एक घेरा बनाकर जिसको जैसा आता था वह वैसे ही हाथ पैर चलाने लगे, कुछ लय और ताल में थिरक रहे थे तो कुछ जबरदस्ती मटकने की कोशिश कर रहे थे| जिनके वश में यह भी नहीं था, वे बस घेरे में खड़े ताली बजा रहे थे|
आखिरकार उसे अपनी प्रतीक्षा पूरी होती लगी, एक गाने से दूसरे गाने के बजने के अंतराल में उपजे मौन में एक स्वर सुनाई दिया, “अरे गीता को तो बुलाओ| सबसे बढ़िया डांस तो वही करती है| उसका मन उमंग से हुलस उठा| उसने चोर नजरों से अपनी ओर बढ़ते हाथ को टोहा, तभी एक फुसफुसाहट उभरी, रहने दो न. उसके कपड़े और जेवर तो देखो| बुलाना तो रिश्ते की वि…..| आगे के स्वर फिर शुरू हो गए तेज संगीत में दब गए | उसे बुलाना चाहने वाली और मना करने वाली दोनों अब मंच पर थीं। एक पल को सन्न सी खड़ी रह गयी गीता , जरा सी झिझकी और फिर…
स्टेज पर सादगी नृत्य कर रही थी, चारों तरफ अभिभूत सा खड़ा ऐश्वर्य तालियाँ बजा रहा था ।
बहुत सुन्दर लघुकथा
अच्छी लघुकथा है शोभना जी आपकी!
आजकल दिखावा इतना ज्यादा हो गया है कि वास्तविक कला सबको रुचिकर नहीं लगती।
और फिर भी कल पसंद की गई।
जहां तक ऐश्वर्य की बात है, उसे भी समझ में आता है कि सब लोग एक से नहीं होते।
इसको तो हमने पढ़ा है और इस पर लिखा भी है। शीर्षक पर ध्यान नहीं गया। वाकई हैसियत बहुत महत्व रखती है। सच कहा जाए तो हैसियत ही आजकल सबसे ज्यादा महत्व रखती है और आपकी इस लघु कथा से यह सिद्ध हुआ। यह शीर्षक आपकी लघु कथा से सार्थक हुआ ।