फ़िल्म समीक्षा – श्वेता तिवारी

ऐ दिल है मुश्किल। निर्देशक – करण जौहर, कलाकारः  रणबीर कपूर, अनुष्का शर्मा, एश्वर्या राय बच्चन। संगीत – प्रीतम

तो आखिरकार एक लम्बी कंट्रोवर्सी के बाद बॉक्स ऑफ़िस पर करण जौहर की फ़िल्म ‘ऐ दिल है मुश्किल’ आ ही गई। फ़िल्म में ऐश्वर्या राय बच्चन, अनुष्का शर्मा, रणबीर कपूर लीड रोल में हैं। फ़वाद ख़ान, जिनको लेकर सबसे ज़्यादा हंगामा हुआ, मुश्किल से 3-4 सीन में हैं। अब चुकी फ़िल्म करण की है, तो शाहरुख़ ने भी फ़िल्म में आकर शायरी बोलते हुए अपना चेहरा दिखाया है। आलिया भट्ट भी कुछ सेकेंड के लिए दिखी हैं। लीज़ा हेडन ने भी इस फ़िल्म में एक छोटा सा किरदार निभाया है।

कहानी है प्यार और दोस्ती की, उसमें होने वाले कंफ्यूज़न की, दिल टूटने की…कहने का ये मतलब कि एक ऐसी कहानी है फ़िल्म की, जिसे हम पहले भी देख चुके हैं, जिसे देखकर लगता है कि ये करण की ही 2-3 फ़िल्मों का कॉकटेल है पर स्टारकास्ट की परफॉर्मेंस कहिए या करण जौहर का डायरेक्शना, या फिर कहानी में आने वाले कुछ ट्विस्ट, कि कहानी बोरिंग नहीं लगती। अयान यानी रणबीर कपूर, अलीज़ा यानि अनुष्का शर्मा, सबा उर्फ़ ऐश्वर्या और अली यानी फ़वाद ख़ान- कहानी इन्हीं के बीच चलती है। फ़र्स्ट हाफ़ में रणबीर और अनुष्का की जोड़ी अपनी मस्ती से हंसाने का काम करती है, तो सेकेंड हाफ़ में अलग अलग इमोशंस आ जाते हैं, जो रुलाते भी हैं और गुदगुदाते भी हैं।

रणबीर कपूर एक ऐसे ऐक्टर हैं, जो प्यार में पनपे पागलपन को, उसमें मिली हार को काफ़ी अच्छे तरीक़े से परदे पर दिखा पाते हैं। इस फ़िल्म में भी उनकी मुहब्बत, उनकी पागलपांति, उनकी परेशानी, उलझन, आँसू….किसी भी चीज़ से आप बच नहीं सकते। आप भी उनके साथ उनके दर्द में डूबने लगते हैं। एक लम्बे अरसे से उनकी कोई फ़िल्म बॉक्स ऑफ़िस के हिसाब से चल नहीं पा रही, पर इस फ़िल्म से उम्मीद है कि उनकी दिशा बदलेगी। ‘रॉकस्टार’ में एक सिंगर और लवर के रूप में हम उन्हें देख चुके हैं, इस फ़िल्म में भी इनके ये दोनों रुप देखने को मिलेंगे, पर ज़रा अलग अंदाज़ में। अनुष्का के साथ उनकी कैमेस्ट्री बहुत अमेज़िंग लगती है। दोनों के बीच करण ने जो अंडरस्टैंडिंग दिखाई है, वो बहुत अच्छे से समझ में आती है। अनुष्का ने अपने रोल को काफ़ी मजबूती के साथ निभाया है और अपनी छाप छोड़ी है। ऐश्वर्या की एंट्री काफी लेट है, तो ज़ाहिर सी बात है कि रोल भी छोटा ही है, पर उसमें भी वो खुद को बखूबी साबित करती हैं। ये पहली फ़िल्म है, जिसमें उन्होंने सिडक्टिव एक्सप्रेशन दिए हैं और इतनी उत्तेजक लगी हैं। शाहरुख के साथ उनकी ज़रा सी शायरी भी चलती है, जो शायरी को पसंद करने वालों को पसंद आ सकती है। हां, बवाल को देखकर लगा था कि रणबीर और ऐश्वर्या के बीच ‘बहुत कुछ’ वाले सीन्स होंगे, पर शायद वो सब सिर्फ सेंसर बोर्ड वालों को ही देखने नसीब हुए होंगे, क्योंकि फ़िल्म में वैसा कुछ भी नज़र नहीं आता। फ़वाद को देखकर लड़कियां पागल होंगी, पर पर्दे पर उनकी इतनी कम उपस्थिति देखकर वो पागलपन बढ़ सकता है। डीजे के रोल में वो जम रहे हैं।

करण जौहर का डायरेक्शन है तो ये बात सब पहले से ही जानते हैं कि इमोशंस का फुल तड़का तो होगा ही। रोने का मन करेगा, हंसी भी आएगी, दर्द भी होगा और दर्द से निकलने की हिम्मत भी मिलेगी। करण ने प्यार में भटकते, उसको खोजते अयान की कहानी को बहुत अच्छे तरीके से तो दिखाया ही है, साथ ही उन्होंने ये भी समझा दिया है कि दोस्ती और प्यार में ए बारीक लाइन का अंतर होता है और ये हरगिज़ ज़रुरी नहीं कि आपका सबसे अच्छा दोस्त आपका आशिक भी हो जाए। कहानी यूथ को ध्यान में रखकर बनाई गई है और करण जौहर इसमें काफी हद तक सफल भी दिखते हैं।

फ़िल्म के डायलॉग्स सुनने में कई बार बहुत अच्छे लगते हैं। ‘प्यार में जुनून है, दोस्ती में सुकून है’, मैं किसी की ज़रुरत नहीं, ख़्वाहिश बनना चाहती हूं’ जैसे डायलॉग्स पर तालियां बज सकती हैं। शायरियां हैं फ़िल्म में, जो सुनने में अच्छी लगती हैं। हां, कैंसर जैसी बीमारी फ़िल्म के अंत को नासपीटा बना देती है। इतने ज़्यादा ड्रामे की ज़रुरत नहीं थी। उसे सिंपल भी रखा जा सकता था।

फ़िल्म का म्यूज़िक कमाल का है। रिलीज़ से पहले ही इसके सारे गाने दर्शकों के होठों पर आ चुके थे, और फ़िल्म देखते समय कहानी से जुड़कर वो और ज़्यादा अच्छे लगते हैं। फ़िल्म का टाइटिल ट्रैक ‘ऐ दिल है मुश्किल’ तो लाजवाब है ही, इसके अलावा ‘ब्रेकअप सॉंग’ और दुआओं में याद रखना’ काफी अच्छा लगता है।

करण जौहर का डायरेक्शन, बेहतरीन स्टारकास्ट, आपकी ही ज़िंदगी से जुड़ी कहानी, बहुत अच्छा संगीत, खूबसूरत लोकेशंस, अच्छे वॉर्डरोब के आइडियाज़…ये सारी वजह काफी है इस फ़िल्म के साथ दिवाली मनाने के लिए।

इस फ़िल्म को मिलते हैं 3.5 स्टार्स।

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फ़िल्म – पिंक। निर्माता – शूजित सरकार, रश्मि शर्मा। निर्देशक – शूजित सरकार। कलाकार – अमिताभ बच्चन, तापसी पन्नु, कीर्ति कुल्हारी, आन्द्रिया तैरियांग। संगीत – शांतनु मोयत्रा।

तापसी पन्नु, कीर्ति कुल्हारी, आन्द्रिया तैरियांग। संगीत – शांतनु मोयत्रा।पिंक रंग कोमल तो हो सकता है पर वो कच्चा या कमज़ोर नहीं और किसी भी लड़की के ‘नो’ का मतलब ‘नो’ ही होता है, इसके अतिरिक्त कुछ और नहीं, इसी भाव के साथ बॉक्स ऑफ़िस पर आ चुकी है अनिरुद्ध रॉय चौधरी की ‘पिंक’ । अमिताभ बच्चन, तापसी पन्नू, कीर्ति कुल्हाड़ी, एंड्रिया तेरियांग,अंगद बेदी और पीयूष मिश्रा मुख्य भूमिका में हैं। डायरेक्टर के रुप में ये अनिरुद्ध की पहली बॉलीवुड फ़िल्म है। शुजीत सरकार हैं फ़िल्म के प्रोड्यूर, तो किसी गफ़लत में मत रहिएगा कि फ़िल्म उन्होंने डायरेक्ट की है।

कहानी दिल्ली की तीन लड़कियों की है। मीनल अरोड़ा (तापसी पन्नू), फ़लक अली (कीर्ती कुल्हाड़ी), और एंड्रिया(एंड्रिया तेरियांग) रेन्ट पर एक फ्लैट लेकर रहती हैं। मीनल दिल्ली के करोलबाग की रहने वाली हैं, फ़लक लखनऊ से हैं और एंड्रिया मेघालय से हैं। एक रात उनके साथ होता है एक हादसा जिसमें मीनल राजवीर (अंगद) के सर पर बोतल मारती है और मामला पहुंचता है कोर्ट तक। तीनों लड़कियों का केस लड़ते हैं दीपक सहगल यानि अमिताभ बच्चन और लड़कों की तरफ से वकील बनते हैं पीयूष मिश्रा। आखिर उस रात हुआ क्या था, ये जानने के लिए फ़िल्म देखिए।

फ़िल्म के राइटर रितेश शाह ने कहानी बहुत कसी हुई लिखी है। समाज में लड़के और लड़कियों के बीच जो दकियानुसी दीवार है, उसे गिराने की कोशिश की गई है। समाज में हर कोई एक लड़की को उसका कैरेक्टर सर्टिफिकेट देकर चला जाता है। कभी कुछ हो जाए तो सुनने में आता है कि ‘ऐसी लड़कियों’ के साथ तो ये होता ही है। लड़कों द्वारा लड़कियों के किसी भी व्यवहार को देखकर खुद ही कुछ अज़्यूम कर लेना और उसके बाद अपनी मनचाहे भाव को अंजाम देने की कोशिश करना, इस बदसूरत सोच को रितेश ने बखूबी अपने कलम से उकेरा है।

एक्टिंग में सभी ने कमाल किया है। अमिताभ ने इस फ़िल्म के लिए 5 मिनट में हां की थी और बताने की ज़रुरत नहीं कि वो उम्र के इस पड़ाव पर भी नए नए एक्सपेरिमेंट के लिए तैयार हैं। अपने किरदार को उन्होंने अपने एक्शन और अपनी आवाज़ से एक नए मुकाम तक पहुंचाया है। कोर्ट सीन में उनके तर्कों को सुनना काफी अच्छा लगता है। पीयूष मिश्रा की एक्टिंग भी जोरदार है। एक वकील के रोल में आप उनसे नफरत करेंगे और यही उनकी की ख़ासियत भी है। तापसी पन्नू का काम भी अच्छा है। इस फ़िल्म से उन्हें एक अलग ऊंचाई ज़रुर मिलेगी। तापसी ने डर और गुस्से को काफी अच्छे तरीके से दिखाया है। कीर्ति और एंड्रिया भी अपने रोल में जमे हैं। अंगद ने अपने किरदार के हिसाब से बहुत ही अच्छे हावभाव दिए हैं।

अनिरुद्ध का डायरेक्शन बहुत अच्छा है। बांग्ला में उन्होंने ‘अनुरणन’ और ‘अंतहीन’ जैसी फ़िल्में डायरेक्ट की हैं और इसके लिए नेशनल अवॉर्ड भी पाया है। ‘पिंक’ फ़िल्म के माध्यम से उन्होंने समाज की बरसों से जमी घटिया सोच को दिखाने की कोशिश की है, जिसमें वो कामयाब भी हुए हैं। कहानी भले ही दिल्ली की है, पर ऐसी वर्किंग वुमन को हम हर शहर में देख सकते हैं, जो ऐसी सोच और ऐसे हालात का सामना करती हैं। पहनने, ओढ़ने, हंसने, पार्टी में जाने से लड़कियों का कैरेक्टर सर्टिफिकेट बन जाता है और अनिरुद्ध ने अपनी फ़िल्म में इसके प्रति अपना विरोध दर्ज करवाया है और वो भी काफी सटीक तरीके से। अमिताभ के माध्यम से तंजिया लहज़े में लड़कियों के लिए सेफ्टी रुल्स बताकर अनिरुद्ध ने अपनी बात कह दी है। ‘नॉर्थ ईस्ट’ की लड़कियों के साथ हो रहे अभद्र व्यवहार की तरफ भी बहुत अच्छे से इशारा किया गया है। रात में हुई घटना का सस्पेंस अनिरुद्ध ने फ़िल्म के अंत तक बनाकर रखा है।

फ़िल्म का म्यूज़िक भी अच्छा है, जिसे शांतनु मोइत्रा ने दिया है। सारे गाने अच्छे हैं, ख़ासकर ‘कारी कारी’ वाला गाना, जो फ़िल्म के सीन्स को मजबूत बनाता है।

अब सवाल कि क्यों देखें, तो कहानी सीधी सरल है और समाज की सोच पर एक तमाचा है। आस पास की कहानी ही है, जिसे हम हर रोज़ देखते हैं, बस समझते नहीं हैं। ‘ना सिर्फ एक शब्द’ नहीं है, एक पूरा वाक्य है अपने आप में, इसे किसी व्याख्या की ज़रुरत नहीं है। ‘No’Means No, चाहे वो आपकी गर्लफ्रेंड हो, आपकी पत्नी हो या फिर कोई सेक्स वर्कर हो’- इस सोच को समझने के लिए फ़िल्म ज़रुर देखिए।

इस फ़िल्म को मिलते हैं 4 स्टार्स।

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फ़िल्म – शिवाय, निर्मताता, निर्देशक एवं लेखकः अजय देवगण। कलाकार – अजय देवगण, सयेशा सैगल, अली काज़मी। संगीत – मिथुन।

जिस फ़िल्म ने अजय देवगन को एक एक्टर के साथ साथ प्रोड्यूसर, डायरेक्टर और राइटर भी बना दिया, वो फ़िल्म ‘शिवाय’ बॉक्सऑफिस पर रिलीज़ हो चुकी है। अजय देवगन का ड्रीम प्रोजेक्ट, सबसे बड़ा सपना, अजय ने जिसके लिए दिन-रात एक कर दिए, वो फ़िल्म ‘शिवाय’ ही है। कह सकते हैं कि अब तक अजय को अपनी जिस फ़िल्म से सबसे ज़्यादा लगाव रहा, जिसके लिए उन्होंने वो तमाम कोशिशें कर डाली, जो इससे पहले उन्होंने कभी नहीं की थी, यहां तक कि किस करते हुए भी अजय को पर्दे पर देख ही लिया गया, जिस फ़िल्म के लिए उन्होंने पैसे को पानी की तरह बहाया, ‘शिवाय’ वही फ़िल्म है।
कहानी है शिवाय यानि अजय देवगन की, जो हिमालय पर ट्रैकिंग का काम करता है और उसकी 8 साल की बेटी की। कुछ परिस्थितियों में पड़कर दोनों बुल्गारिया जाते हैं और वहां होता है एक हादसा, जिसको जानने के लिए आपको देखनी पड़ेगी फ़िल्म।
अगर आपने भी ऐसा कुछ सुना था कि ‘शिवाय’ की कहानी ‘मेलुहा’ या शिव के जीवन पर आधारित है, तो बता दूं कि ये ग़लत बात आपके कानों में पड़ी। कहानी एक पिता और बेटी की है, उनके इमोशन्स की है और इसके साथ ही चाइल्ड ट्रैफिकिंग के मुद्दे को भी फ़िल्म में उठाया गया है। पहले पार्ट में काफी देर तक कहानी बांध नहीं पाती। दूसरा पार्ट फिर भी इंट्रेस्टिंग लगता है। डायलॉग्स कुछ ख़ास नहीं हैं। अगर किसी किसी डायलॉग पर आपको हंसी भी आ जाए तो कोई हैरानी की बात नहीं होगी। संदीप श्रीवास्तव ने कहीं कहीं कहानी को बोझिल सा बना दिया है, जो फ़िल्म देखते हुए काफी अखरता है।
इस फ़िल्म में अजय ने अपने आप को इतने हिस्सों में बांट लिया था कि कहीं कहीं उनकी एक्टिंग भी ऐवीं सी लगती है, पर फिर भी एक्टिंग के नाम पर सिर्फ उनको ही देखा जा सकता है। अच्छे एक्शन्स किए हैं उन्होंने। उनकी आंखें बेहद खूबसूरत हैं और इस फ़िल्म में उन्होंने उसका बखूबी इस्तेमाल भी किया है। गिरीश कर्नाड का काम भी अच्छा है, पर उनका पार्ट इतना कम है कि उनके टैलेंट को बहुत अच्छे से भुनाया नहीं गया। बेटी के रोल में गौरा यानि एबिगेल एम्स का काम भी अच्छा है। साएशा सहगल को फ़िल्म में स्पेस मिला है, पर वो बहुत कुछ जादू नहीं चला पाई हैं। वोल्गा उर्फ एरिका कार ने सिर्फ खूबसूरत दिखने का ही काम किया है। वीरदास छोटे से रोल में ठीक लगे हैं।
‘राजू चाचा’, ‘यू मी और हम’ के बाद अजय देवगन ने इस फ़िल्म से डायरेक्शन की तरफ फिर से कदाम बढ़ाया है। फ़िल्म के स्टंट, लोकेशन्स और सिनेमेटोग्राफी काफी अच्छी है। कई सीन्स में मुंह से ‘wow’ भी निकलता है। अजय ने खुद को एक्शन हीरो के रुप में फिर से स्थापित भी किया है, पर काश एक अच्छी फ़िल्म के लिए सिर्फ ये सब ही ज़रुरी होता। कई जगह फ़िल्म खींची हुई सी लगती है, जैसे जबरदस्ती स्ट्रैच किया हो। ‘ तेरे नाल इश्क़’ गाने में साएशा को बाथ टब में नहाते दिखाया गया है, और वो क्यों दिखाया गया है, नहीं पता। अगर फ़िल्म को म्यूट करके देखा जाए तो वो बहुत ही खूबसूरत दिखेगी, पर आवाज़ आते के साथ ही वो भावहीन संवाद और कमज़ोर कहानी आपका मूड ऑफ कर सकती है।
फ़िल्म का टाइटिल ट्रैक ‘बोलो हर हर’ सुनने में अच्छा है। इसके अलावा ‘दरख़ास्त’ भी अच्छा गाना है। अगर आपको एक्शन पसंद है, अगर आप भी अजय देवगन की इस मेहनत को देखना चाहते हैं या आप उन्हें पसंद करते हैं, अगर आप असीम बजाज की टैलेंटेड सिनेमेटोग्राफी को देखना चाहते हैं तो फ़िल्म देखी जा सकती है, पर हां, फ़िल्म में दिमाग या ज़्यादा उम्मीद लगाएंगे तो दुखी होंगे।

इस फ़िल्म को मिलते हैं 2.5 स्टार्स।

 

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फ़िल्म – अकीरा। कलाकार – सोनाक्षी सिन्हा, कोंकणा सेन शर्मा, अनुराग कश्यप। निर्देशकः ए.आर मुरुगादॉस, संगीतः विशाल शेखर।

ना ही वो ख़ान हैं, ना ही कुमार… जी हाँ, वो हैं सोनाक्षी सिन्हा जो अपनी फ़िल्म ‘अकीरा’ के साथ बॉक्स ऑफिस पर तहलका मचाने आ चुकी हैं. फ़िल्म के डायरेक्टर हैं ए आर मुरुगदॉस, जिन्होंने इससे पहले ‘गजनी’ और ‘हॉलिडे’ जैसी बेहतरीन फिल्में बॉक्स ऑफिस को दी हैं. ए आर मुरुगदॉस ने इस बार दबंग गर्ल सोनाक्षी सिन्हा को हीरो के रोल में लिया है. फ़िल्म हॉलीडे में सोनाक्षी के एक्शन्स देखने के बाद मुरुगदॉस को पता चल गया था कि उन्हें अपनी फ़िल्म अकीरा के लिए सोनाक्षी के रूप में फ़िल्म का हीरो मिल गया है. ‘अकीरा’ यानी शालीनता से भरी शक्ति और ए आर मुरुगदॉस ने अपनी इस फ़िल्म में यही दिखाने की कोशिश की है. तमिल में भी यह फ़िल्म इसी नाम से बन चुकी है.

कहानी है जोधपुर में रहने वाली अकीरा यानी सोनाक्षी की जो बचपन से ही समाज की बुराइयों के खिलाफ़ आवाज़ उठती है, और इन सबमें उसका साथ देते हैं उसके पिता यानी अतुल कुलकर्णी. अकीरा की ज़िन्दगी में आते हैं कुछ ट्विस्ट एंड टर्न्स, जिसके बाद उसको अपनी पढाई पूरी करने के लिए मुम्बई जाना पड़ता है. वहां वो रहती है एक हॉस्टल में, जहाँ वो एक मुसीबत में फंस जाती है. इन सबसे बचने के लिए अकीरा क्या करती है और वो बच भी पाती है या नहीं, इसके लिए फ़िल्म देखिये.

कहानी काफी अच्छी है, कसी हुई है. फ़िल्म देखते हुए हम पूरी तरह उसमें खुद को डुबो पाते हैं. एक ग़लत सिस्टम में फंसने के बाद एक लड़की की क्या हालात होती है, इसको फ़िल्म में बखूबी दिखाया गया है. इसके साथ ही भारत की सुस्त गति से चलने वाली कोर्ट की प्रक्रिया की तरफ भी इशारा किया गया है कि कई बार एक निर्दोष इंसान भी इसमें बस फंस कर रह जाता है और कई दफ़ा तो उसकी पूरी ज़िन्दगी ही बर्बाद हो जाती है.

एक्टिंग कि बात करूँ तो चुलबुली, शरारती सोना इस फ़िल्म में अपना अलग ही अंदाज़ दिखती हैं. वो इसमें शांत, सयंत, अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाने वाली लड़की के रूप में हम सबके सामने आई हैं. उनको बड़े परदे पर एक्शन करते देख आपको भी मार्शल आर्ट्स सीखने का मन करेगा. लड़कियां कोमल हैं पर वे कमज़ोर नहीं, सोनाक्षी को इस फ़िल्म में देखने के बाद यही बात महसूस होता है. सोना के स्टंट्स अच्छे हैं और सबसे बड़ी बात यह कि वे रियल लगते हैं. अगर आपको नहीं पता तो बता दूँ कि इस फ़िल्म में सोनाक्षी ने अपने स्टन्ट्स खुद किए हैं और वह भी बिना किसी डुप्लीकेट की मदद के. इमोशनल सीन्स में भी सोनाक्षी कि एक्टिंग कि तारीफ़ करनी होगी. अनुराग कश्यप ने निभाया है एसीपी राणे का किरदार और एक भ्रष्ट पुलिस वाले के रोल में अनुराग कश्यप ने कमाल किया है. यूँ कह लीजिए कि फ़िल्म के ब्राउनी पॉइंट अनुराग के हिस्से चले गए हैं. उनके हाव भाव, उनकी डायलॉग डिलीवरी कमाल की है. भले ही इस फ़िल्म में आप उनके किरदार से नफ़रत करें, पर उनकी एक्टिंग से आपको प्यार हो ही जायेगा. एक प्रेग्नेंट पुलिस महिला अधिकारी के रोल में कोंकणा सेन भी सही लगी हैं. इसके अलावा अमित साद और अमित कुलकर्णी की एक्टिंग भी अच्छी रही है.

ए आर मुरुगदॉस का डायरेक्शन अच्छा है. भ्रष्टाचार में समाज कि मिलीभगत से लेकर एसिड अटैक जैसे मुद्दे को भी एक इंसिडेंट के माध्यम से उन्होंने बखूबी दिखाया है. एक लड़की कमज़ोर नहीं होती और वह भी समाज से लड़ सकती है, इसे फ़िल्म देखने के बाद बहुत ही स्पष्ट रूप से महसूस किया जा सकता है. फर्स्ट हाफ़ काफी इंटरस्टिंग है, पर सेकंड हाफ़ में ऐसा लगता है कि कहानी थोड़ी भटक गई है. क्लाइमेक्स भी थोड़ा अलग किया जा सकता था.

फ़िल्म में संगीत है विशाल शेखर का. फ़िल्म कि कहानी के अनुसार ही संगीत है, जो सुनने में अच्छा लगता है. कुमार और मनोज मुंतज़ार ने फ़िल्म के गाने अच्छे लिखे हैं.

इस फ़िल्म को मिलते हैं 3 स्टार्स.

 

 

 

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