रमेश यादव की तीन लघुकथाएँ
1 - अहिंसावादी पार्टी
जंगल में चुनाव की सरगर्मियां तेज थीं इसलिए प्राणियों का और प्राणी नेताओं का आपसी मेल मिलाप बढ़ गया था। छुटभैये नेता अपनी-अपनी रोटी सेंकने के लिए अचानक सक्रिय होकर मैदान में ताल ठोंक रहे थे। लोगों को लुभाने के लिए...
डॉ. नीलिमा तिग्गा की तीन लघुकथाएँ
1 - मोक्ष के दाने
शादी में आएँ बाराती बड़े प्रेम भाव से टेबल पर सजाएँ अलग-अलग व्यंजनों का आस्वाद लेकर तृप्त हो रहे हैं I प्लेट में भर-भरकर ऐसे ले रहे हैं जैसे कि अभी नहीं लिया तो फिर मिलेगा नहीं I ‘इतनी भीड़...
डॉ. पद्मावती की तीन लघुकथाएँ
1 - मिलन का रंग
“देव रक्षा । पाहिमाम … त्राहिमाम”!
वसुंधरा की करुण पुकार पर वरुण लोक कंपकंपा उठा ।
“प्रभु मेरी विखण्डित काया की पीड़ा समझिए । आपसे बिछोह और सहन नहीं होता । इस तरह यह उपेक्षा, यह विमुखता तो मेरी संतति के विनाश...
रेखा श्रीवास्तव की दो लघुकथाएँ
1 - मैं हूँ न!
नीलाभ ने शुचि को बताया कि उसके मित्र का संदेश आया है , माँ की तबियत बहुत खराब है और उसे फौरन बुलाया है ।
"मुझे ? आपको गलतफहमी हुई है ।"
"नहीं, जल्दी चलो ।" शुचि जल्दी से कुछ सामान उठा...
रश्मि लहर की लघुकथा – विरोध
"अम्मा जी! ननदोई जी के साथ हम होली नहीं खेलेंगे, उनके ढंग ठीक नहीं हैं।वो होली के बहाने इधर–उधर छूने लगते हैं!"
कहते–कहते शिप्रा का चेहरा क्रोध से भर गया ...
"देख बहू! ननदोई बड़े आदमी हैं तुम्हारे.. अगर जरा-बहुत हाथ लग भी जाए , तो...
डॉ. मधु प्रधान की लघुकथा – हीरा हींगवाला
घर के काम निपटा कर मैं बैठी ही थी कि एक फेरी वाले की आवाज " हींग वाला , हीरा हींग वाला " सुन कर मैं बालकनी की तरफ दौड़ कर गई, न तो मुझे हींग खरीदनी थी न वह हींग वाला ही मेरा...