अभी कुछ ही दिन पहले मैंने भाभी के चैट बॉक्स से ‘क्लियर चैट’ को छूकर सारी चैट डिलीट कर दी। उस समय मैं यही बड़बड़ा रही थी कि ये बड़ी भाभी भी बस्स्स… इनको तो इस उम्र में कोई काम धाम है नहीं। घर बहू ने संभाल रखा है और यह बैठे-बैठे बस व्हाट्सएप पर सुप्रभात सुविचार जय राम जी, भगवानों के फोटो यह सब भेजती रहती हैं।‘
मेरे पास तो बहुत काम हैं, जिनसे जुड़े कई–कई व्हाट्सएप समूह हैं। कभी कोई एक्टिविटी, कभी कोई सूचना, कभी कोई विमर्श। अब ये सब तो जरूरी हैं ना?’
ऐसे में भाभी के भेजे गैरजरूरी फोटो और विचार पोस्टर मुझे अक्सर खटकते रहते हैं। एक तो हमारे इतने थोक के भाव त्योहार और छोटे से छोटे त्योहार पर अन्य सबसे ज्यादा बड़ी भाभी के पोस्टर मैसेज…और तो और कभी सोमावती अमावस्या की तो कभी सिद्धि दा चतुर्थी की शुभकामनाएं?
एकादशी तो इनके पास जाने कितनी है। जब पता है, मैं नौकरी के चलते बस मुख्य पाँच छः त्योहारों को छोड़कर और कोई नही मनाती। हां किसी मुख्य तिथि पर कुछ दान सा कर देती हूं। लेकिन इनके पास तो 350 त्योहार है। कोई इनसे पूछे भला! अमावस्या सोमवार पर पड़ गई तो इसमें शुभकामना वाली क्या बात हो गयी? सिद्धि मेहनत से मिलेगी या सिद्धिदा चतुर्थी को शुभकामनाएं भेजने से?
कभी संयोग से किसी दिन इन्हें कोई शुभकामना का पोस्टर ना मिले तो तो शुभरात्रि ही सही।
चलो भेजें तो भेजें उस पर इन सबका जवाब भी चाहिए इन्हें। भले ही हाथ जोड़ने की कोई इमोजी ही भेजूं। नहीं तो फोन कर लेंगी, “अरे कैसी है? सब ठीक तो है ना? वह तेरा कोई जवाब ना मिला ना, तो चिंता हो गई।” बताओ भला यह भी कोई चिंता की बात है?
चैट डिलीट करने के दो दिन बाद ही भाभी का अचानक देहावसान हो गया। पूरे परिवार में शोक की लहार दौड़ गयी। भाभी की तेरहवीं पर उन्हें दुखी मन से अंतिम विदाई देकर मैं लौट आई थी।
अब भाभी का चैट बॉक्स ख़ाली पड़ा है, मगर मेरा मन भरा–भरा सा क्यों है…?
देखूं, कोई डिलीटेड चैट को रिकवर करवा सके तो…।
हम कभी शुभ प्रभात या शुभरात्रि को बेजरूरत का संदेश मानते हैं लेकिन कभी सोचा कोई रोज फोन करके समाचार नहीं लेता है। बस यही तो है जिसका आना अगले के सकुशल होने का संदेश देता है।
अच्छी लघुकथा, बधाई हो।
इस लघुकथा ने हमें गंभीर कर दिया। अपन रोज-रोज अपनों से बात नहीं कर पाते हैं लेकिन इस तरह के संदेश यह जताते हैं कि हमें अपनों की फिक्र है और हम उनका शुभ चाहते हैं। अभी-अभी कुछ महीनों से हमने भी बहन -भाई अपने बच्चे और इन सब के बच्चों का, जिन-जिन के पास मोबाइल है ,साथ ही नंद और भांजे, भांजी , बहुएँ, दामाद ,अपनी सारी फ्रेंड्स और कुछ साहित्यिक मित्र जो खास है, सबको एक साथ एक प्रेरणास्पद मॉर्निंग संदेश जरूर भेजते हैं। देने वाले रिस्पांस देते भी हैं और कभी-कभी कोई -कोई नहीं भी देते लेकिन यह है कि अपने को संतोष रहता है कि अपन ने सभी अपनों को याद किया। कुछ लोग नियमित जवाब देते हैं। नहीं भी देते हैं लेकिन हमको संतोष रहता है। हमारे मन में भी कहीं ना कहीं यह बात तो थी कि आज नहीं तो जब हम नहीं रहेंगे तब बच्चे और सब याद करेंगे। समझेंगे की फिक्र क्या चीज होती है।
मार्मिक लघु कथा है कई बार आवेश में जिन चीजों को हम लोग नजर अंदाज कर देते हैं वह बाद में दुख देती हैं और ऐसी स्थिति में और भी ज्यादा जब उन यादों को वापस लाना असंभव हो।
अच्छी लघु कथा। बधाई आपको।
एकदम से कहानी बड़ी बात कह देती है। बहुत बधाई शोभना जी।
कई बार हम मिलते स्नेह की परवाह नहीं करते उसे हल्के
में ले लेते हैं पर जब उस रिश्ते को देते हैं तो उसकी अहमियत पता चलती है। ये संदेश इस बात का गवाह होते हैं कि आप उनके लिये विशेष हैं।