कथा-कविता को समर्पित एक शाम
रिपोर्ट – शिखा वार्ष्णेय
वह अगस्त माह का एक बेहद खुशगवार दिन था जब लंदन में प्रतिष्ठित कहानीकार ज़किया ज़ुबैरी जी के घर पर एक कहानी और कविता की गोष्ठी का आयोजन था.
अधिकतर इस तरह की गोष्ठियां एक ही विधा पर केंद्रित हुआ करती हैं पर इस बार कथा यू.के. एवं एशियन कम्यूनिटी आर्ट्स ने यू के की संवेदनशील कथाकार एवं गज़लकार नीना पॉल की याद में कविता और कहानी दोनों विधाओं में यह गोष्ठी आयोजित की.
नीना पॉल कुछ ही समय पहले कैंसर से लड़ते लड़ते इस दुनिया से चली गईं.
इस आत्मीय गोष्ठी की शुरूआत में कथा यूके के अध्यक्ष कैलाश बुधवार, एशियन कम्यूनिटी आर्ट्स के उपाध्यक्ष शमील चौहान एवं काव्यरंग की अध्यक्ष जय वर्मा ने फूल चढ़ा कर नीना पॉल को श्रद्धांजलि अर्पित की और सभी उपस्थित साहित्यकारों ने नीना के सम्मान में एक मिनट का मौन रख उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना की।
कार्यक्रम कविताओं से आरम्भ हुआ जिसमें कैलाश बुधवार, जय वर्मा, शिखा वार्ष्णेय, तोषी अमृता, ज़किया ज़ुबैरी, हरमिंदर नेगी, शामिल चौहान, सिद्दीकी साहब आदि ने अपनी कविताएं सुनाईं. कवितायें हिन्दी, पंजाबी, उर्दू भाषाओं में सुनाईं गईं और हर तरह के भाव और विषय को अपने में समेटे हुई थीं।
कार्यक्रम के अगले पड़ाव में तेजेन्द्र शर्मा ने अपनी कहानी “मौत – एक मध्यान्तर” का भावपूर्ण पाठ किया। उपस्थित सभी श्रोता उनकी कहानी के कथानक और प्रस्तुतीकरण से प्रभावित हो रहे थे।
कार्यक्रम को अध्यक्ष प्रो. अमीन मुग़ल ने तेजेन्द्र शर्मा की कहानी पर टिप्पणी करते हुए उसकी अलग अलग परतों की व्याख्या की। उन्होंने कहानी को हिन्दी उर्दू कथा साहित्य में एक महत्वपूर्ण कहानी भी घोषित किया।
इस संवेदनशील कहानी के बाद समय था एक दिलकश दावत का जिसे कहा तो हल्का जलपान गया था परन्तु जो था बेहतरीन स्वाद और वैराइटी का नायाब नमूना. इसी दौरान पता चला कि ज़किया ज़ुबैरी जी की बेटी दुबई से लन्दन आई हुई है और इत्तेफ़ाक से उसका जन्मदिन भी है अत: उनके पुत्र और पुत्री द्वारा लाया गया केक काटा गया और सभी ने इस शानदार महफ़िल का आनंद लिया.
इस आयोजन में अन्य लोगों के अतिरिक्त साहिल की संपादिका डॉ. नुज़हत, पूनम देव, विनोदिनी बुधवार, आलमआरा आदि शामिल थे सभी के सानिध्य में आपसी चर्चा और अपनत्व के बीच यह सार्थक और बेहतरीन शाम सम्पूर्ण हुई.
हिन्दी फ़िल्मी देश-प्रेम के गीतों को समर्पित एक शाम
रिपोर्टः अनुपमा कुमारज्योति
कल शाम कथा यू.के. एवं एशियन कम्यूनिटी आर्ट्स ने नेहरू सेन्टर लंदन में एक अनूठा कार्यक्रम प्रस्तुत किया। कथा यू.के. के महासचिव एवं पुरवाई पत्रिका के संपादक तेजेन्द्र शर्मा ने हिंदी गीतकारों द्वारा हिंदी सिनेमा के लिये लिखे गये देश-प्रेम के गीतों के बारे में ना केवल विस्तार से चर्चा की बल्कि उनके वीडियो भी दिखाए।
तेजेन्द्र जी के अनुसार हिंदी फ़िल्मों में चित्रित किये गये देश-प्रेम गीतों को मुख्य तौर पर पांच श्रेणियों में रखा जा सकता है –
- जब भारत ग़ुलाम था, उन दिनों के विदेशी हुक्मरान के विरोध में लिखे गये गीत।
- देश की सुन्दरता और सुदृड़ता के बार में गीत। यह लगभग वैसा ही है जैसे कोई अपनी प्रेमिका की सुन्दरता की तारीफ़ करता हो मग़र अक़ीदत के साथ।
- सैनिकों और सेना का मनोबल बढ़ाने वाले गीत विशेषकर युद्ध के माहौल में।
- सैनिकों द्वारा अपनी मनःस्थिति को दर्शाते गीत।
- सैनिकों की कुरबानी पर श्रद्धांजलि देते गीत….
तेजेन्द्र जी ने अफ़सोस जताया कि हिंदी कविता से देश प्रेम लगभग तीन दशकों से ग़ायब सा हो गया है। जब से कविता एक ख़ास विचारधारा के दबाव में लिखी जाने लगी है और गीत विधा की अवहेलना शुरू हुई है तबसे देश प्रेम भी वहां से ग़ायब हो गया है।
उन्होंने विस्तार से इस क्षेत्र में पण्डित प्रदीप के योगदान की चर्चा करते हुए बताया कि 1943 मे बनी फ़िल्म किस्मत में उन्होंने गीत लिखा था – दूर हटो ऐ दुनियां वालो हिन्दुस्तान हमारा है। वे देश प्रेम के गीतों के पितामह थे। उनके लिखे गीत ऐ मेरे वतन के लोगो… की भी विशेष चर्चा हुई।
जिन गीतकारों के गीतों पर चर्चा करते हुए वीडियो दिखाए गये उनमें शामिल थे – आओ बच्चो तुम्हें दिखाएं…(प्रदीप – जागृति), आवाज़ दो हम एक हैं (जां निसार अख़्तर – ग़ैरफ़िल्मी), ये देश है वीर जवानों का (साहिर – नया दौर), होठों पे सच्चाई रहती है (शैलेन्द्र – जिस देश में गंगा बहती है), ओ पवन वेग से उड़ने वाले घोड़े (भरत व्यास – जय चित्तौड़), अपनी आज़ादी को हम हरगिज़ मिटा सकते नहीं (शकील बदायुनी – लीडर), कर चले हम फ़िदा (कैफ़ी आज़मी – हकीक़त), मेरा रंग दे बसन्ती चोला ( प्रेम धवन – शहीद), जहां डाल डाल पर सोने की चिड़िया करती हैं बसेरा (राजेन्दर कृष्ण – सिकन्दर-ए-आज़म), मेरे देश की धर्ती सोना उगले (गुलशन बावरा – उपकार), जब ज़ीरो दिया भारत ने (इंदीवर – पूरब और पश्चिम), देखो वीर जवानो अपने ख़ून पे ये इल्ज़ाम ना लेना (आनन्द बक्षी – आक्रमण), ताक़त वतन की तुम से है (नीरज – प्रेम पुजारी), संदेसे आते हैं (जावेद अख़्तर – बॉर्डर)।
अपने दो घन्टे चले पॉवर-पाइण्ट प्रेज़ेन्टेशन में तेजेन्द्र शर्मा ने आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा कि आजकल भारत में देश-प्रेम को शक़ की निगाह से देखा जाने लगा है और देश-प्रेमी को ऐसी निगाह से देखा जाता है जैसे कोई चोरी करता हुआ पकड़ा जाए।
1960 और 1970 के दशक में कितनी आसानी से वन्दे मातरम् और भारत माता की जय शब्दों का प्रयोग किया जाता था। प्रदीप ने तो जय हिन्द के नारे को पूर्णता प्रदान करते हुए अपने गीत में जय हिन्द की सेना का नारा दे दिया।
तेजेन्द्र शर्मा ने भारतीय सरकार को लन्दन से यह संदेश भेजा कि हमारे वीर सैनिकों की कुर्बानियां देते हुए उनकी मांगों पर सरकार जल्दी से जल्दी निर्णय ले। यह सैनिकों का हक़ है और सरकार का फ़र्ज़।
उपस्थित श्रोताओं ने तेजेन्द्र शर्मा की बातों पर और बहुत से गीतों के बाद करतल ध्वनि से अपनी प्रतिक्रिया प्रकट की।
(कथा यू.के. की एक और उड़ान)
Touch the Silence – Experience the Sound
(A Musical Evening with a difference)
“Heard melodies are sweet / those unheard are sweeter” (John Keats)
कथा यू.के. एवं एशियन कम्यूनिटी आर्ट्स ने मिल कर एक अनूठी शाम का आयोजन किया जिसमें ध्वनि की ख़ामोशी और सन्नाटे की आवाज़ महसूस करवाने की कोशिश की गई। शाम के नायक और गायक थे अर्पण कुमार। कार्यक्रम का आयोजन लंदन के नेहरू सेन्टर में किया गया था।
एक नई संस्था Sound & Silence ने इस कार्यक्रम की परिकल्पना की है। यह ब्रिटेन की प्रवासी भारतीयों एवं स्थानीय ब्रिटिश कलाकारों की एक संस्था है।
अर्पण ने यजुर्वेद के श्लोकों से लेकर कुन्दन लाल सहगल के बाबुल मोरा नैहर छूटो जाए और पृथ्वि पूजा से शांति पाठ तक क इस्तेमाल अपनी ध्वनियों में किया। एक पूरा आइटम केवल मुंह से सीटी बजा कर पेश करने वाले अर्पण ने श्रोताओं को भी अपने गायन में शामिल किया।
अर्पण ने वाहे गुरू, अल्लाह, शिव सबको एक बताते हुए अपनी लिखी एक सूफ़ी ग़ज़ल भी गा कर सुनाई। कार्यक्रम का संचालन वीरा ने किया।
एशियन कम्यूनिटी आर्ट्स की अध्यक्ष एवं कथा यू.के. की संरक्षक काउंसलर ज़किया ज़ुबैरी ने अपने हिस्से की ज़िम्मेदारी पूरी शिद्दत से निभाई।