“यह लिफ्टनहींचलतीक्या?” वैसेलिफ्टवोशायदहीइस्तेमालकरती।कॉलेजके पाँच फ्लोर वो सीढ़ियों से ही तए किया करती थी।कमालकीफिटनेसथीउसकी और इसी कारण अपनी उम्र से 8-10 साल छोटी लगती थी । उसनेकईबार सुनाथा, ‘लगतानहींहैकि आपकी इतनीबड़ीलड़कीहोगी.’ उसकी बेटी बाहरवीं में थी और बेटे ने हैदराबाद में हाल ही में एक कंपनी में नौकरी शुरू की थी।
शालू ने झूठ बोला था. उसको फ्लैट चाहिए था. परिवार उसका यहीं दिल्ली में ही था लेकिन वो अपने परिवार से अलग हो रही थी. न कोई लड़ाई झगड़ा, न ही कोई कलह कलेश फिर भी अलग हो रही थी
“ठीक! ठीक!. किस डिपार्टमेंट में काम करती हैं आप?” ब्रोकर ने थोड़ी सी जानकारी मकानमालिक के किये बटोर लेना ठीक समझा
“असिस्टेंट प्रोफेसर हूँ दिल्ली यूनिवर्सिटी में. साइकोलॉजी पढ़ाती हूँ पिछले १५ सालों से” बालकनी से बहार की तरफ देखते हुए उसने जवाब दिया।
“तो परिवार कब शिफ्ट हुआ मुंबई. कौन कौन है परिवार में?”
मुड़कर ब्रोकर की तरफ देखकर उसने कहा “परिवार शुरू से ही मुंबई में है. मेरे हस्बैंड जीवन बीमा में हैं. लड़का आजकल हैदराबाद में है और लड़की हस्बैंड के साथ है मुंबई में. पढ़ती है अभी”
“तो आप कब आयीं दिल्ली?”
“मै दिल्ली में ही हूँ शुरू से. जॉब है न यहाँ…”
ब्रोकर को कुछ अटपटा लगा. हजम होने लायक बात भी नहीं थी। कैसा परिवार हुआ भला जहाँ औरत शादी के बाद से ही अलग शहर में रहती हो। लेकिन उसको अपनी ब्रोकरेज की शायद ज्यादा चिंता थी. उसने बात का रुख मोड़ दिया, “मेरी कमीशन १ महीने का रेंट है मैडम”
“१५ दिन” शालू ने दो-टूक उत्तर दिया
“ठीक है जी जैसी आपकी मर्जी. हम लोग तो वैसे भी सेवा का काम करते हैं” ब्रोकर को सौदा पटता दिखाई दिया
“किराया क्या है?”
“सस्ता ही है, १२ हज़ार महीना; ३ महीने का एडवांस लेगा”
“मुझे फ्लैट सिर्फ ६ महीने के लिए चाहिए. एडवांस १ महीने का दे सकती हूँ. ट्रांसफर होने के चांस हैं इसलिए ६ महीने से ज्यादा का वादा नहीं करती”
“मैडम मालिक तो लम्बे समय के लिए किरायेदार ढूंढ रहा है. आप एक काम करो उसको यह सब मत बोलो. खली करना होगा कर देना. अभी से क्यों बोलना है मैडम. और २ महीने का एडवांस के लिए मै मनवा लेता हूँ”
“ठीक है और किराया ११ हज़ार. मै इतवार को शिफ्ट करूंगी”
“वो तो ठीक है मैडम. लेकिन किराया १२ हज़ार. प्लीज. अब आप जिद न करें”
“ठीकहै“
(2)
“मैसंडेकोशिफ्टहोरहीहूँ. यहाँसेथोड़ादूरहै।थोड़ादूरहोनाभीचाहिए; यहाँतोसबजानतेहैं। एक रूमसेटहै. १२हज़ारमहीनेका. ४–६महीनेरहूंगी. ठीकलगातोआगेभीरहूंगीनहींतोहोसकताहैलौटआऊं” शालू ने रातकेखानेकेबादबर्तनसमेटतेहुएकहा
“तुमवापसतोआओगीन?” ऐसानहींथाकीशालूऔरउसकेपतिकेबीचइसबारेमेंपहलेबातनहींहुईथी।कईमहीनोंसेशालूकहरहीथीकीवो४–६महीनेकेलिएअलगरहनाचाहतीहैलेकिनकार्तिककोकभीनहींलगाकि एकदिनशालूसचमुचजाएगी।उसकोपताथाकीअबजबशालू ने फैसलाकरलियाहैऔरघरकिरायेपरलेलियाहैतोकुछनहींबदलनेवाला
“आपको पताहैहमलड़तेनहींहैं। कुछ नहींहुआहैमाँ – सचमें।मैंआतीरहूंगी।औरफिर४–६महीनेकीहीतोबातहै ” शालू नेफ्रिजसेदहीनिकालकर एककटोरीमेंअपनेलिएडालाऔरतवेसेपरांठाउठाकरसामनेहीकुर्सीटेबलपरबैठखानेलगी।
“और तुझेक्याहुआहै?” शालू नेअपनीबेटीकीतरफदेखकरकहा
“क्योंजारहीहोमाँ?” बेटीनेभीवहीसवालकियाजोसबकररहेथे
“आतीरहूंगीबीचबीचमें। क्यों काकोईजवाबनहींहैमेरेपास ” परांठाखातेखातेशालू ने उत्तरदिया “तूकबप्लानकररहीहैभाईकेपासजानेका ? छुट्टियांहोनेवालीहैंतेरी, हो आ महीने भर को “
“मैंने किरायेपर अपने लिए घर लिया है। ४–६महीनेकेलिए?” शालूनेफ़ोनपरकहा
“ओहतेरी! सचमें?” दूसरीतरफसेआवाजआयी
“तूपहलीहैजिसनेयहनहींकहाकीपागलहोगयीहै, क्याहुआ, वगहैर – वगहैर।सीरियसलीबोलरहीहूँ।अदितिसेशुरूकियाथाअल्फाबेटिकलआर्डरमें।औरकनिका तकसेपहले३०नंबरडायलकरचुकीहूँ।मुझेसबसेपहलेतुझेहीकरनाचाहिएथा ” शालू ने कनिका का जवाब सुना तो उत्साह के साथ बोला
“कहाँलियाहैमकान।” कनिका नेपूछा
“यहींइसीशहरमें।घरसे३०–४०किलोमीटरदूरहै।आजशिफ्टहोरहीहूँ। तू आएगी…. आपायेगी ?” उसनेपूछा
“कबआऊं?” कनिका नेजवाबमेंसवालकियाऔरफिरबोली “सुनअगलेफ्राइडेआतीहूँ।एकमिनटरुक, देखतीहूँकि टिकट कब की मिल रही है – सबसे सस्तीवाली “
पहलीरातउसनेकुछनहींपकाया। एकअकेलीकेलिएफिरबनातीभीक्या।नीचेउतरकरअप्पार्टमेन्टकेसामनेवालीदूकानसेएकब्रेडऔरबटर की टिक्की लेआयीथी।चायकेसाथवहीखायाऔरसोगयी।सोनेसेपहलेउसनेजबआखरीबारदेखातोपतिकीमिस्डकॉलकाकाउंट१२था।उसनेसिर्फएकमैसेजकिया “ठीकहूँ।आलसेटल्ड।चिंतामतकरो।मैंफ़ोनकरुँगी – जबभीकरुँगी।” मैसेजकरकेफ़ोनस्विचऑफकियाऔरसोगयी
(5)
कनिका ने कैब में बैठते ही कहा, “सुन तू कॉलेज से कब फ्री होगी?”
“मैंने लेक्चर कैंसिल कर दिया आज। छुट्टी ले ली। कहाँ चलें?” शालू ने पूछा
“घर…. या एक काम करते हैं ब्रेकफास्ट करते हुए चलते हैं ” कनिका ने कहकर ड्राइवर से कहा “एक काम करो सी.पी छोड़ दो ” और फिर शालू से पूछा “किया कैसे ?”
“तू पहली है जो क्यों की जगह कैसे पूछ रही है”
“क्यों का क्या है – और जो भी कारण हो उसका करना क्या है – लेकिन कैसे किया? मैं पिछले ५ साल से कैसे करूँ से जूझ रही हूँ मुझसे तो नहीं हुआ। इसलिए मेरी लिए कैसे ज्यादा बड़ा सवाल है”
शालू और कनिका कॉलेज के दिनों की दोस्त थीं – जब कॉलेज में थीं तो करीब थीं फिर कॉलेज के बाद काफी अरसे तक कांटेक्ट नहीं रहा और फिर फेसबुक ने अचानक दोबारा मिला दिया। दोबारा जब कांटेक्ट हुआ तब तक १५ सालों का फासला पड़ गया था। १५ साल के अरसे ने और चाहे कुछ भी बदला हो दोनों के बीच की मित्रता नहीं बदली थी
शालू जब १५ साल बाद कनिका से मिली थी तो उसने पहला सवाल किया था, “रवि कैसा है?” कनिका और रवि सालों से साथ-साथ थे। इतने सालों से साथ-साथ की जब उनकी शादी हुई तो लोगों को छोड़ो उन दोनों को भी शादी को लेकर कोई उत्साह नहीं था। कनिका ने शालू से कहा था “क्या शादी – वैसे कौन सी शादी नहीं हो रखी। हर वीकेंड तो इसके ही घर होती हूँ। आंटी को तो वीकेंड पर ब्रेकफास्ट के लिए मेरा इंतज़ार होता है। और जब शालू ने बोला की अब तो आंटी कहना छोड़ दे तो कनिका ने हंसकर कहा ठीक है – माँ सही।
कनिका ने “रवि कैसा है?” के उत्तर में कहा था “छोड़ न उसका, वो ठीक है। तेरे शहर दिल्ली में ही है आजकल। पिछले कई सालों से शहर शहर घूम रहा है। उसकी जॉब ही ऐसी है। और मेरी जॉब ने मुझे यहाँ रोक रक्खा है”
“आता रहता है तेरे पास?”
“हाँ! आता है कभी कभी।२-४ महीने में एक आध बार। ऐसा ही चल रहा है। कभी मैं भी चली जाती हूँ।
“तू दिल्ली ही क्यों नहीं आ जाती?”
“नहीं होगा शालू । मुश्किल है। शुरू शुरू में कोशिश की थी; एक नहीं दो-दो शहर बदले थे उसके साथ लेकिन अब लगता है उसको अलग रहना ही ज्यादा अच्छा लगता है। ठीक है न,उसका दिल्ली में चल रहा है – मैं भी अब डिसट्रब नहीं करती ” कनिका की बात सुनकर शालू ने फिर कोई सवाल नहीं किया
आज फिर मिले तो औपचारिकता निभाते हुए उसने फिर रवि का हाल चाल पूछा
“चलतारहताहैउसका – आजकलगिल्टमेंहै”
“किसबातकागिल्ट“
“हमदोनोंकेसाथचलतारहताहैशालू । कभी मुझेलगताहैक्याबिनामतलबकीभसड़डालरक्खीहैलाइफमेंऔरकभीउसकोलगनेलगताहैकीवोअपनीफॅमिलीकोनेग्लेक्टकररहाहै” कनिका नेकहा, “आसाननहींहैसमझपाना।“
माहौलझटकेमेंहीभारीहोगया। दोनों नेखानाखत्मकरकेएककपकॉफ़ीआर्डरकी।शालूनेकनिकाकीबातकाएकसिरापकड़करउसमेअपनासिराबांधतेहुएकहा, “कॉलेजमेंकभीसोचाथाकि ऐसेहोजायेंगे?”
सुनकर शालूने हँसते हुए कहा “आरामसेआरामसे।इतनीभावुकमतहोमेरीजान ” शालूनेपर्ससेअपनाक्रेडिटकार्डनिकालाऔरवेटरकोबिललेआनेकाइशाराकिया। “रविकोपताहैतूआयीहैदिल्लीयाउसकोबतायाहीनहीं ?”
शालू ने बिना किसी हिचकिचाहट के पूछा “पसंद बदलनी गलत है क्या? नहीं बदल सकती ?”
“और कार्तिक ” कनिका ने सहसा पूछ लिया
“कार्तिक क्या? कार्तिक की तो इसमें कोई बात ही नहीं है। बात तो मेरी पसंद बदलने की है न। नहीं हुआ तेरे साथ कभी ? “
इस जवाब के बाद दोनों की बातें पेंडुलम के एक छोर जहाँ नैतिकता, शील और पुण्यशीलता जैसे तर्क होते हैं से झूलकर दूसरे छोर जहाँ स्वछंदता, स्वावलम्बन, सोच और जीने की आजादी जैसी शह होती हैं आती जाती रहीं।
“रवि के साथ तेरा सम्बन्ध भी तो बदला है?”
“बदला तो है शालू। बदला तो है। लेकिन हम अलग नहीं हुए “
“मैं भी नहीं। सिर्फ सबाटिकल पर हूँ। तेरे लिए सबाटिकल आसान था। रवि वैसे ही दूसरे शहर में रहता है। मेरे लिए कोई चारा नहीं था। सबाटिकल ख़तम होगा वापस चली जाउंगी। ”
“और दिब्येंदु?”
“वो भी वापस चला जायेगे। शायद।”
“और इस बीच जो सब बिगड़ जायेगा उसका क्या?”
“तेरे और रवि के बीच जो बिगड़ गया उसका क्या? और तुमने तो कभी सबाटिकल अन्नोउंस भी नहीं किया। फिर भी रिश्ता बदल गया न? रिश्ते बदलने से पहले अनाउंसमेंट नहीं मांगते कनिका। बस बदल जाते हैं। फिर हम रिश्तों को निभाने का तरीका भी बदलते जाते हैं। अब देख पहले कार्तिक की टूर वाली नौकरी नहीं थी, फिर महीने में ५-७ दिन टूर पर रहने लगा। फिर १० दिन। जब टूर शुरू हुए थे तो हम हर शाम लम्बी लम्बी बात करते थे और हर बात के अंत में दोनों एक दूसरे से कहते थे की बस यह टूर ख़तम हो जल्दी से जल्दी। फिर एडजस्ट हो गया। अब वो १० -१० दिन बैंगलोर रहता है और कभी कभी तो एक भी दिन बात नहीं होती। हो गया न सब एडजस्ट ? हो जायेगा। कुछ नहीं बिगड़ेगा”
कनिका चुप रही फिर कुछ देर बाद किसी कड़ी को पकड़कर फिर बातें चल निकलीं। बातों का उतना ही वजन था जितना समय भरने के लिए बातों का होता है।
फिर कुछ देर बाद बातें ऐसी हो गयीं की शालू कुछ कहती तो कनिका अपने दिमाग में जवाब तैयार करती रहती और कनिका जवाब देती तो शालू प्रतिउत्तर तैयार कर रही होती – कोई किसी की सुन नहीं रहा होता। फिर जैसा अमूमन ऐसी स्तिथि में होता है दोनों आखिरकार थक गयीं और तय किया कि अब सो जाना चाहिए।
(7)
शालू की नींद कच्ची थी। हलकी सी आहट से उसकी नींद उचट जाती थी। कनिका के फ़ोन पर एक के बाद एक मैसेज गिर रहे थे और हर मैसेज के साथ एक तीखी आवाज हो रही थी। शालू ने लेटे लेटे ही उसका मोबाइल साइलेंट पर करने को उठाया। कुल ३० मैसेज। और आखरी मैसेज के पहले ५-७ शब्द जो स्क्रीन पर दिख रहे थे, “फिर तुमने कुछ कहा तो नहीं “। नंबर पहचाना था। कार्तिक का। शालू ने फ़ोन पर ऊँगली फेरी , अनलॉक करने के लिए। फ़ोन पर कोई पासकोड नहीं था, फ़ोन खुल गया। कार्तिक के मैसेज थे – कनिका के फ़ोन पर।
“शायद ”
“सो गयीं क्या?”
“जवाब क्यों नहीं दे रही?”
“अब जो दलेही में हो तो क्या रवि से मिलोगी?”
कार्तिक के मैसेज पढ़े। जब समझ नहीं आया तो फिर ऊपर स्क्रॉल करके सिलसिलेवार चैट को पढ़ा
“दिब्येंदु है – उसके साथ कॉलेज में “
“वो हिंदी प्रोफेसर? “
“हम्म “
“वो क्या कर रहा था वहां “
“दोनों में बातचीत है। इंटरेस्टिंग करैक्टर है दिब्येंदु। तुम यूँ ही परेशां थे कार्तिक। हमारे बारे में शालू को कुछ नहीं पता।”
“लेकिन तुमने कहा उसने बैंगलोर के टूर का जिक्र किया था “
“मैंने कुरेदा था उसे, जानने को की कहीं उसको कुछ पता तो नहीं। लेकिन मुझे नहीं लगता उसे पता है “
“और क्या कहा उसने ?”
“वही जो हम हर बार कहते हैं जब मिलते हैं। यही की चालीस के आसपास क्या सबकी पसंद बदल जाती है “
“उसने यह कहा ?”
“ऐसा सा ही कुछ। तुम्हे उससे कभी कोई शिकायत नहीं रही। मुझे रवि से शिकायत नहीं रही। उसको तुमसे शिकायत नहीं रही। लेकिन हम सब अपनी अपनी वजह से एक दूसरे से दूर तो होते ही गए। एक से दूर हुए और उसी पल में किसी एक के पास भी।”
“और ?”
“वो सबाटिकल पर है। वापस आ जाएगी “
“शायद ”
“सो गयीं क्या?”
“जवाब क्यों नहीं दे रही ?”
“अब जो दलेही में हो तो क्या रवि से मिलोगी ?”
शालू ने चुपचाप फ़ोन साइलेंट पर कर दिया और कमरे से बाहर निकलकर बालकनी में आकर बैठ गयीं। ठंडी हवा सबाटिकल की दूसरी सुबह उसको अच्छी लग रही थी।
Sir bohot samay baad ek acchi aur vastvik kahani padi, bohot accha laga, I will wait for your new story……