“महीने का किराया क्या होगा?” उसने अपार्टमेंट के गेट पर ही पूछ लिया।
“वो बाद की बात है मैडम, पहले आप घर तो देख लो” ब्रोकर जानता था किराये की बात माल दिखाने के बाद ही करनी चाहिए ।
“यह लिफ्ट नहीं चलती क्या?” वैसे लिफ्ट वो शायद ही इस्तेमाल करती। कॉलेज के पाँच फ्लोर वो सीढ़ियों से ही तए किया करती थी। कमाल की फिटनेस थी उसकी और इसी कारण अपनी उम्र से 8-10 साल छोटी लगती थी । उसने कई बार सुना था, ‘लगता नहीं है कि आपकी इतनी बड़ी लड़की होगी.’ उसकी बेटी बाहरवीं में थी और बेटे ने हैदराबाद में हाल ही में एक कंपनी में नौकरी शुरू की थी।
“चलती क्यों नहीं है मैडम. चलती है. रिपेयर का काम चल रहा है. ८ मंजिला टावर है और इस सोसाइटी मैं १००० फ्लैट हैं. लिफ्ट के बिना क्या चलेगा यहाँ?” ब्रोकर ने सीढ़ियों चढ़ते हुए कहा
“किस मंजिल तक जाना है?”
“तीसरी”
हर मंजिल के लिए २४ सीढ़ियां थीं. कुल मिलकर ५०वीं सीढ़ी तक पहुंची तो शालू ने एक बार रूककर सांस लेना ठीक समझा. ब्रोकर उससे पीछे रह गया था. जैसे ही वो उस तक पहुंचा, शालू ने आगे चलना शुरू कर दिया
“आप चलो मैडम. मैं साँस लेकर आता हूँ. फ्लैट की चाबी है मेरे पास”
ऊपर पहुँचकर उसने फ्लैट का दरवाजा खोला। शालू ने नजर दौड़ाई “बालकनी नहीं है क्या फ्लैट में?“
“क्या बात कर दी मैडम, आपने कहा था बालकनी वाला फ्लैट चाहिए. इधर आईये, इस तरफ, यह एक यहाँ है; सीधे सामने पार्क की तरफ खुलती है. इलाके का सबसे बड़ा पार्क है यह. तीसरी मंजिल से तो क्या दिखेगा. लेकिन अगर आप ७वी मंजिल से देखेंगी तो बहुत खूबसूरत नज़ारा है. लिफ्ट तो है ही मैडम. किराया भी कम होगा. बोलो बात करूँ“
“नहीं, तीसरी ही ठीक है.”
“इस तरफ एक और छोटी बालकनी है. टू साइड ओपनिंग है फ्लैट में.”
“किराया क्या होगा?”
“मैडम किराये की भी बात होती रहेगी, किचन देखिये. किचन में गैस की पाइपलाइन आ रही है. सिलिंडर का चक्कर ही ख़तम मैडम. और बैडरूम के साथ एक अटैच्ड टॉयलेट. वैसे कितना बड़ा परिवार है आपका”
“बड़ा है. लेकिन फ्लैट में मैं अकेले ही रहूंगी“
“क्यों मैडम. बाकी परिवार? “ब्रोकर ने पूछा
“वो लोग नहीं आएंगे. क्यों? कोई परेशानी है?” शालू ने जवाब देते हुए ब्रोकर की आंखों में आँखे डालकर देखा।
“नहीं मैडम, हमको क्या परेशानी होगी. लेकिन मालिक तो पूछेगा न कि अकेले क्यों रहना है आपको. परिवार क्यों नहीं आ रहा?” ब्रोकर ने एक कित्रिम हंसी के साथ पूछा
“वो सब मुंबई में हैं. मेरी सरकारी नौकरी है यहाँ. मैं अकेले ही रहूंगी”
शालू ने झूठ बोला था. उसको फ्लैट चाहिए था. परिवार उसका यहीं दिल्ली में ही था लेकिन वो अपने परिवार से अलग हो रही थी. न कोई लड़ाई झगड़ा, न ही कोई कलह कलेश फिर भी अलग हो रही थी
“ठीक! ठीक!. किस डिपार्टमेंट में काम करती हैं आप?” ब्रोकर ने थोड़ी सी जानकारी मकानमालिक के किये बटोर लेना ठीक समझा
“असिस्टेंट प्रोफेसर हूँ दिल्ली यूनिवर्सिटी में. साइकोलॉजी पढ़ाती हूँ पिछले १५ सालों से” बालकनी से बहार की तरफ देखते हुए उसने जवाब दिया।
“तो परिवार कब शिफ्ट हुआ मुंबई. कौन कौन है परिवार में?”
मुड़कर ब्रोकर की तरफ देखकर उसने कहा “परिवार शुरू से ही मुंबई में है. मेरे हस्बैंड जीवन बीमा में हैं. लड़का आजकल हैदराबाद में है और लड़की हस्बैंड के साथ है मुंबई में. पढ़ती है अभी”
“तो आप कब आयीं दिल्ली?”
“मै दिल्ली में ही हूँ शुरू से. जॉब है न यहाँ…”
ब्रोकर को कुछ अटपटा लगा. हजम होने लायक बात भी नहीं थी। कैसा परिवार हुआ भला जहाँ औरत शादी के बाद से ही अलग शहर में रहती हो। लेकिन उसको अपनी ब्रोकरेज की शायद ज्यादा चिंता थी. उसने बात का रुख मोड़ दिया, “मेरी कमीशन १ महीने का रेंट है मैडम”
“१५ दिन” शालू ने दो-टूक उत्तर दिया
“ठीक है जी जैसी आपकी मर्जी. हम लोग तो वैसे भी सेवा का काम करते हैं” ब्रोकर को सौदा पटता दिखाई दिया
“किराया क्या है?”
“सस्ता ही है, १२ हज़ार महीना; ३ महीने का एडवांस लेगा”
“मुझे फ्लैट सिर्फ ६ महीने के लिए चाहिए. एडवांस १ महीने का दे सकती हूँ. ट्रांसफर होने के चांस हैं इसलिए ६ महीने से ज्यादा का वादा नहीं करती”
“मैडम मालिक तो लम्बे समय के लिए किरायेदार ढूंढ रहा है. आप एक काम करो उसको यह सब मत बोलो. खली करना होगा कर देना. अभी से क्यों बोलना है मैडम. और २ महीने का एडवांस के लिए मै मनवा लेता हूँ”
“ठीक है और किराया ११ हज़ार. मै इतवार को शिफ्ट करूंगी”
“वो तो ठीक है मैडम. लेकिन किराया १२ हज़ार. प्लीज. अब आप जिद न करें”
“ठीक है“
(2)
“मै संडे को शिफ्ट हो रही हूँ. यहाँ से थोड़ा दूर है। थोड़ा दूर होना भी चाहिए; यहाँ तो सब जानते हैं। एक रूम सेट है. १२ हज़ार महीने का. ४–६ महीने रहूंगी. ठीक लगा तो आगे भी रहूंगी नहीं तो हो सकता है लौट आऊं” शालू ने रात के खाने के बाद बर्तन समेटते हुए कहा
“अब यह क्या बचपना है. कुछ बताओगी की यह सब क्यों कर रही हो?” उसके हस्बैंड ने पुछा
“मैंने ब्रोकर को बोला है की मेरा पूरा परिवार मुंबई में रहता है. बेटा हैदराबाद में है और बेटी तुम्हारे साथ मुंबई में. इसलिए भूलकर भी तुम मुझसे मिलने नहीं आ जाना.” शालू उसकी सुने बिना अपनी हिदायतें देती जा रही थी
“मै क्या पूछ रहा हूँ और तुम क्या बोल रही हो. आखिर यह सब क्यों कर रही हो?”
“अच्छा सुनो, मम्मी पापा को तुम बताओगे. और कल सुबह सुबह बता देना. मुझे पता है वो बिना मतलब का इशू क्रिएट करेंगे. उसको संभालना तुम्हारा काम. बोलो क्या बोलोगे?”
“तुम वापस तो आओगी न?” ऐसा नहीं था की शालू और उसके पति के बीच इस बारे में पहले बात नहीं हुई थी। कई महीनों से शालू कह रही थी की वो ४–६ महीने के लिए अलग रहना चाहती है लेकिन कार्तिक को कभी नहीं लगा कि एक दिन शालू सचमुच जाएगी। उसको पता था की अब जब शालू ने फैसला कर लिया है और घर किराये पर ले लिया है तो कुछ नहीं बदलने वाला
“आऊँगी। शायद। ४–६ महीने बाद का अभी से नहीं कह सकती. रहकर देखती हूँ. क्या पता न भी आऊं“
“शालू यह क्या चल रहा है. अगर माँ पापा को कुछ बताना भी है तो पता तो हो कि बताना क्या है. एक काम करते हैं उन्हें कहते हैं कि तुम ऑफिस की पोस्टिंग पर ६ महीने के लिए जा रही हो. इसके इलावा कोई और तरीका मुझे नहीं पता”
“नहीं, झूठ मत बोलो. मुझे नहीं पता कि ४–६ महीने बाद मै लौटूंगी या नहीं. सीधे सीधे बोलो की मै शिफ्ट हो रही हूँ. अकेले”
“और कारन क्या बताऊँ?”
“बोलो कि तुम्हे नहीं पता क्योंकि तुम्हे नहीं पता“
“फिर वो तुमसे नहीं पूछेंगे?”
“हाँ तो उसका जवाब है. मेरा मन नहीं लगता यहाँ. शायद ४–६ महीने अकेली रहूं तो लौट आऊं“
“शालू तुम यह सब क्या कर रही हो? मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा“
“मैंने तुम्हे महीना भर पहले बता दिया था न कि मै अकेले रहना चाहती हूँ, ४–६ महीने. अब हम फिर से यह सब क्यों शुरू कर रहे हैं?”
“यार इतना आसान है क्या? लोग क्या कहेंगे? माँ पापा हैं; बच्चे हैं. अच्छा एक बात बताओ, बच्चों से क्या कहेंगे?”
“यही कि मुझे अकेले रहना है ४–६ महीने. बच्चे बच्चे तो नहीं हैं अब ”
“यह क्या बात हुई. यार सब पूछेंगे हुआ क्या है … समझेंगे की कोई न कोई लड़ाई हुई है. तुम क्या नहीं जानती यह सब?”
“वो सब मैनेज करना तुम्हारा काम है. मै संडे को शिफ्ट हो रही हूँ.”
बातें तो चलती रहीं इसके बाद भी लेकिन निचोड़ इतना ही कि शालू संडे को शिफ्ट होने वाली है. अकेले. किराये के मकान में. उसी शहर में जहाँ उसका अपना एक घर है. परिवार है. कोई कलह कलेश नहीं. कोई लड़ाई नहीं. न सास से परेशानी, न ससुर से कोई खटपट. पति ठीक ठाक कमाता है. घर पर कोई कमी नहीं. बच्चे ठीक हैं. सब कुशल मंगल. लेकिन शालू संडे को शिफ्ट हो रही है।
(3)
“तू पागल हो गयी है बेटा?” माँ को चलने में तकलीफ होती थी; “जा कहाँ रही हो?”
“यहीं इसी शहर में ही हूँ। लेकिन यहाँ से थोड़ा दूर” संडे का दिन, शालू अपना जरूरी सामन पैक कर रही थी।
“पापा पूछ रहे हैं कोई लड़ाई झगड़ा हुआ है क्या?”
“आपको पता है हम लड़ते नहीं हैं। कुछ नहीं हुआ है माँ – सच में। मैं आती रहूंगी। और फिर ४–६ महीने की ही तो बात है ” शालू ने फ्रिज से दही निकालकर एक कटोरी में अपने लिए डाला और तवे से परांठा उठाकर सामने ही कुर्सी टेबल पर बैठ खाने लगी ।
“और तुझे क्या हुआ है?” शालू ने अपनी बेटी की तरफ देखकर कहा
“क्यों जा रही हो माँ?” बेटी ने भी वही सवाल किया जो सब कर रहे थे
“आती रहूंगी बीच बीच में। क्यों का कोई जवाब नहीं है मेरे पास ” परांठा खाते खाते शालू ने उत्तर दिया “तू कब प्लान कर रही है भाई के पास जाने का ? छुट्टियां होने वाली हैं तेरी, हो आ महीने भर को “
“देखूंगी। शायद अगले महीने ”
“बस तो तू जबतक वापस आएगी शायद में भी आ जाऊं ” शालू कोशिश में थी की माहौल जितना कम भारी हो उतना अच्छा। उसको आशा थी की उसके ससुर कुछ कहेंगे। लेकिन उनहोंने कुछ नहीं पूछा। वो चुपचाप सोफे पर बैठे थे और टी वी को म्यूट करके देख रहे थे।
“सुनो गाडी आ गयी है मैं चलती हूँ; एक काम करो जरा यह २–३ अटैचियाँ रखवा दो गाडी में” शालू ने पति की तरफ देखकर कहा –
शालू अटैचियाँ गाड़ी में रखवाकर वहां से निकल गयी।
(4)
“मैंने किराये पर अपने लिए घर लिया है। ४–६ महीने के लिए?” शालू ने फ़ोन पर कहा
“ओह तेरी! सच में?” दूसरी तरफ से आवाज आयी
“तू पहली है जिसने यह नहीं कहा की पागल हो गयी है, क्या हुआ, वगहैर – वगहैर। सीरियसली बोल रही हूँ। अदिति से शुरू किया था अल्फाबेटिकल आर्डर में। और कनिका तक से पहले ३० नंबर डायल कर चुकी हूँ। मुझे सबसे पहले तुझे ही करना चाहिए था ” शालू ने कनिका का जवाब सुना तो उत्साह के साथ बोला
“कहाँ लिया है मकान।” कनिका ने पूछा
“यहीं इसी शहर में।घर से ३०–४० किलोमीटर दूर है। आज शिफ्ट हो रही हूँ। तू आएगी…. आ पायेगी ?” उसने पूछा
“कब आऊं?” कनिका ने जवाब में सवाल किया और फिर बोली “सुन अगले फ्राइडे आती हूँ। एक मिनट रुक, देखती हूँ कि टिकट कब की मिल रही है – सबसे सस्ती वाली “
“और रवि?”
“वो तो वैसे ही नॉएडा में है – सालों से। एक काम करती हूँ थर्सडे आती हूँ – टिकट सस्ती है। आएगी एयरपोर्ट लेने?”
“हाँ…. अच्छा सुन, रखती हूँ। घर आ गया है। सामन है साथ .. सेट होकर बाद में बात करेंगे “
घर के मालिक ने शालू को घर की चाबी देते हुए पूछा “सामान बस इतना ही है?”
“जी, यहाँ हमेशा से पी जी में ही रहती रही हूँ। कभी ज्यादा कुछ सामन बटोरा ही नहीं। आसानी होती है। आपका घर भी फर्निश्ड था इसलिए ज्यादा किराये पर भी ले लिया ” शालू ने जवाब दिया
“नहीं किराया तो ज्यादा नहीं है। ब्रोकर बता रहा था आपके हस्बैंड मुंबई में हैं?”
“जी हाँ। यहाँ आना जाना होता है उनका महीने दो महीने में एक आध बार। अगली बार आएंगे तो मिलवाऊँगी आपसे” शालू ने मालिक मकान को आश्वस्त करने के लिए यूँ ही कह दिया
घर फर्निश्ड था लेकिन फिर भी संडे का बाकी बचा दिन धूल मिटटी झड़ने में ही चला गया। ३–४ घंटे तक यह कार्यकर्म चलता रहा और इस दौरान मेहँदी हसन से जगजीत और जगजीत से जाने कौन कौन यू टूयब पर चलते रहे। बीच में कनिका का फ़ोन आया “टिकट बुक कर लिए हैं मैंने, वीरवार आ रही हूँ सुबह १० बजे लैंड करुँगी। रवि से बात हुई , लेकिन थर्सडे वो बिजी है। तू आएगी लेने ?”
“हाँ। लेकिन फिर मेरा लेक्चर है ११ बजे। छुट्टी नहीं लूंगी ”
“ठीक, कोई हर्ज नहीं। सुन क्या कर रही है अभी?”
“पिछले तीन घंटे से अपने मन के गाने सुन रही हूँ। किसी ने कुछ नहीं कहा, किसी ने कुछ नहीं माँगा, किसी ने एक बार भी नहीं पुकारा, किसी को मेरी चॉइस से कोई तकलीफ नहीं हुई। ” उसने उत्तर दिया
“सही है। चल थर्सडे बात करते हैं ” मुसकुराते हुए कनिका ने फ़ोन रख दिया
पहली रात उसने कुछ नहीं पकाया। एक अकेली के लिए फिर बनाती भी क्या। नीचे उतरकर अप्पार्टमेन्ट के सामने वाली दूकान से एक ब्रेड और बटर की टिक्की ले आयी थी। चाय के साथ वही खाया और सो गयी। सोने से पहले उसने जब आखरी बार देखा तो पति की मिस्ड कॉल का काउंट १२ था। उसने सिर्फ एक मैसेज किया “ठीक हूँ। आल सेटल्ड। चिंता मत करो। मैं फ़ोन करुँगी – जब भी करुँगी।” मैसेज करके फ़ोन स्विच ऑफ किया और सो गयी
(5)
कनिका ने कैब में बैठते ही कहा, “सुन तू कॉलेज से कब फ्री होगी?”
“मैंने लेक्चर कैंसिल कर दिया आज। छुट्टी ले ली। कहाँ चलें?” शालू ने पूछा
“घर…. या एक काम करते हैं ब्रेकफास्ट करते हुए चलते हैं ” कनिका ने कहकर ड्राइवर से कहा “एक काम करो सी.पी छोड़ दो ” और फिर शालू से पूछा “किया कैसे ?”
“तू पहली है जो क्यों की जगह कैसे पूछ रही है”
“क्यों का क्या है – और जो भी कारण हो उसका करना क्या है – लेकिन कैसे किया? मैं पिछले ५ साल से कैसे करूँ से जूझ रही हूँ मुझसे तो नहीं हुआ। इसलिए मेरी लिए कैसे ज्यादा बड़ा सवाल है”
शालू और कनिका कॉलेज के दिनों की दोस्त थीं – जब कॉलेज में थीं तो करीब थीं फिर कॉलेज के बाद काफी अरसे तक कांटेक्ट नहीं रहा और फिर फेसबुक ने अचानक दोबारा मिला दिया। दोबारा जब कांटेक्ट हुआ तब तक १५ सालों का फासला पड़ गया था। १५ साल के अरसे ने और चाहे कुछ भी बदला हो दोनों के बीच की मित्रता नहीं बदली थी
शालू जब १५ साल बाद कनिका से मिली थी तो उसने पहला सवाल किया था, “रवि कैसा है?” कनिका और रवि सालों से साथ-साथ थे। इतने सालों से साथ-साथ की जब उनकी शादी हुई तो लोगों को छोड़ो उन दोनों को भी शादी को लेकर कोई उत्साह नहीं था। कनिका ने शालू से कहा था “क्या शादी – वैसे कौन सी शादी नहीं हो रखी। हर वीकेंड तो इसके ही घर होती हूँ। आंटी को तो वीकेंड पर ब्रेकफास्ट के लिए मेरा इंतज़ार होता है। और जब शालू ने बोला की अब तो आंटी कहना छोड़ दे तो कनिका ने हंसकर कहा ठीक है – माँ सही।
कनिका ने “रवि कैसा है?” के उत्तर में कहा था “छोड़ न उसका, वो ठीक है। तेरे शहर दिल्ली में ही है आजकल। पिछले कई सालों से शहर शहर घूम रहा है। उसकी जॉब ही ऐसी है। और मेरी जॉब ने मुझे यहाँ रोक रक्खा है”
“आता रहता है तेरे पास?”
“हाँ! आता है कभी कभी।२-४ महीने में एक आध बार। ऐसा ही चल रहा है। कभी मैं भी चली जाती हूँ।
“तू दिल्ली ही क्यों नहीं आ जाती?”
“नहीं होगा शालू । मुश्किल है। शुरू शुरू में कोशिश की थी; एक नहीं दो-दो शहर बदले थे उसके साथ लेकिन अब लगता है उसको अलग रहना ही ज्यादा अच्छा लगता है। ठीक है न, उसका दिल्ली में चल रहा है – मैं भी अब डिसट्रब नहीं करती ” कनिका की बात सुनकर शालू ने फिर कोई सवाल नहीं किया
आज फिर मिले तो औपचारिकता निभाते हुए उसने फिर रवि का हाल चाल पूछा
“चलता रहता है उसका – आजकल गिल्ट में है”
“किस बात का गिल्ट“
“हम दोनों के साथ चलता रहता है शालू । कभी मुझे लगता है क्या बिना मतलब की भसड़ डाल रक्खी है लाइफ में और कभी उसको लगने लगता है की वो अपनी फॅमिली को नेग्लेक्ट कर रहा है” कनिका ने कहा, “आसान नहीं है समझ पाना।“
शालू ने महसूस किया कि रवि का जिक्र आते ही कनिका थोड़ी असामान्य हो गयी थी। सामान्य से क्षण भर अधिक चुप्पी रही दोनों के बीच। इतने भर में ही शालू ने भांप लिया था कि रवि को लेकर कनिका वैसी नहीं रही जैसी कॉलेज के दिनों में थी। मित्रता के भाव से प्रेरित ही होगा कि उसने पूछ लिया, “सब ठीक है न कनिका ?”
“लम्बे समय से जो चल रहा हो उन स्थितियों के साथ खुद को घसीटते रहो तो सबकुछ ठीक ही लगने लगता है शालू। यह एहसास नहीं रहता की इससे अलग भी कुछ हो सकता है किया जा सकता है। इसलिए तेरे सवाल का जवाब तो यही है की सबकुछ ठीक है। क्योंकि अगर मैंने कहा की ठीक नहीं तो फिर क्या ठीक नहीं यह बताना होगा और क्या ठीक नहीं यह नहीं बता सकती। जानती ही नहीं कि क्या ठीक नहीं। तू बता तेरे से पूछूँ कि क्या सब ठीक है तो तू क्या यह कहेगी कि नहीं कुछ ठीक नहीं।” फिर अगला निवाला मुहं में डालने से पहले रूककर उसने अपनी बात पूरी की “रवि के बारे में क्या बात करूँ ? ४–६ महीने में एक वीकेंड पर आता है; हफ्ते में ३–४ बार फ़ोन पर बात हो जाती है। ऐसी मुलाकातों और बातों में जितना भर जरूरी है उतना भर ही निपटता है। और रिश्तों की गर्माहट तो जरूरी के निपटने के बाद के पलों, बाद की बातों में होती है। वो सब नहीं है बहुत सालों से। इसलिए मुझे नहीं पता कि वो कैसा है – अब और क्या कहूं इसके सिवा की ठीक ही होगा ? “
माहौल झटके में ही भारी हो गया। दोनों ने खाना खत्म करके एक कप कॉफ़ी आर्डर की। शालू ने कनिका की बात का एक सिरा पकड़कर उसमे अपना सिरा बांधते हुए कहा, “कॉलेज में कभी सोचा था कि ऐसे हो जायेंगे?”
“कैसे?” शालू ने कॉफ़ी का एक सिप खींचते हुए पूछा। वो कॉफ़ी ऐसे पीती थी जैसे सिगरेट का छोटा कश खींच रही हो
“जैसे हैं आजकल। तू सोच कनु यह तमाशा जब शुरू हुआ था तो कैसे रंगबिरंगे कपडे पहनकर स्टेज पर पहुंची थी हम। क्या पता था की कुछ अदृश्य डोरियाँ हैं जो हमको चलाती रहेंगी”
“और सच मान शालू कभी कभी तो लगता है कि अपनी आवाज़ ही नहीं है ; कोई और है जो हमारे अंदर आवाज़ें भरता जा रहा है और हम उगलते जा रहे हैं। मैं तो किसी किसी दिन शाम को खुद को साइड पर खड़ी करके खुद को देखती हूँ तो पूरा जीवन एक कठपुतली का जीवन लगता है; क्यों नाचे और किसके लिए नाचे क्या पता ? और पूरे शो की दौरान यही लगता रहा कि परफेक्ट शो होना चाहिए। ” कनिका ने शालू की बात को पूरा करते हुए कहा
शालू परफेक्ट शो वाली बात पर मुस्कुरा दी। कनिका ने उसकी तरफ देखा तो धीरे से गाली देते हुए कहा, “बड़ी बईमान है जिंदगी यार। और सबको परफेक्ट शो देना है इस एक जिंदगी में; किसका शो? कौन देख रहा है? किसके पास टाइम है मेरा शो देखने का? लेकिन लगे हैं परफेक्ट शो प्रस्तुत करने की लिए…. मराओ फिर ”
सुनकर शालू ने हँसते हुए कहा “आराम से आराम से । इतनी भावुक मत हो मेरी जान ” शालू ने पर्स से अपना क्रेडिट कार्ड निकाला और वेटर को बिल ले आने का इशारा किया। “रवि को पता है तू आयी है दिल्ली या उसको बताया ही नहीं ?”
“बताया तो है। लेकिन आज तो बिजी है – शायद वीकेंड पर उसके पास जाउंगी ” कनिका ने कहा।
शालू ने कैब में बैठकर ड्राइवर को ओ.टी.पी दिया और दोनों कैब में बैठकर घर की ओर चल दीं। “सुबह जल्दी उठी होगी ?” शालू ने पूछा
“हम्म ३ बजे की आसपास। फ्लाइट ५:३० की थी”
“तू घर चलकर थोड़ा आराम कर ले। ”
“हम्म ” कनिका गाडी में ही शीशे पर सर रखकर सो गयी।
(6)
घर पहुँचते पहुँचते दोपहर का १ बज गया था। कनिका जब सोकर उठी तो साढ़े पांच बज रहे थे। शालू ने पूछा, “पहले फ्रेश होगी या चाय पीयेगी ?”
“कॉफ़ी, चाय नहीं पीती अब। टेस्ट बदल लिया है मैंने। तू बना मैं फ्रेश होकर आती हूँ ” कनिका ने अपने बालों का बन बनाते हुए कहा, “शाम का क्या प्रोग्राम है ?”
“अभी तो कुछ नहीं। तू बता, कहीं चलें बाहर?”
“देखते हैं, तू कॉफ़ी बना , फिर बात करते हैं ” कहते हुए कनिका फ्रेश होने चली और जाते जाते बोली , “मौसम कैसा है बाहर?”
“गर्मी है। चहलक़दमी लायक नहीं है। लेकिन किसी मॉल में चल सकते हैं ” शालू ने कॉफ़ी मेकर का स्विच ऑन किया
“घर फर्निश्ड ही लिया या कुछ सामन लायी है अपने साथ ?”
“नहीं कुछ लायी नही। फर्निश्ड है। सब मालिक मकान का है। “
“अच्छा है। ज्यादा झंझट नहीं है। चल आती हूँ १० मिनट में ” कनिका ने बाथरूम का दरवाजा बंद करते हुए कहा
अभी कनिका फ्रेश होकर बाहर आयी ही थी की डोरबेल बजी। शालू किचन में थी इसलिए कनिका ने उठकर दरवाजा खोला
“जी?”
“प्रोफेसर साहिबा हैं ?”
“जी हैं; आप कौन ?” कनिका ने पूछा
“कनु दिब्येंदु है क्या ? ” अंदर से शालू की आवाज़ आयी और दरवाजे पर खड़े व्यक्ति ने कहा, “दिब्येंदु ही हूँ ” धीमे से मुस्कुराते हुए उसने पूछा “अंदर आ जाऊं ?”
“हाँ वही हैं ” कनिका ने फिर दरवाजे से हटते हुए कहा, “आइये “
“अपना परिचय मैं खुद दूँ या मेरा परिचय आपको मिल चुका है?” दिब्येंदु मुस्कुराते हुए बैठक में दाखिल हुआ और पीछे मुड़कर कनिका को अपना परिचय दिया, “पि एस के साथ उनके कॉलेज में हिंदी पढ़ाता हूँ ”
“पी एस कौन ?” कनिका ने अपना सवाल पूरा भी नहीं किया था की शालू ने अंदर से कहा, “कनु मुझे प्रोफेसर साहिबा कहकर बुलाते हैं, पी एस – प्रोफेसर साहिबा ”
“आइये बैठिये। जब तक पी एस चाय बनातीं हैं तब तक हम औपचारिकताएं पूरी कर लेते हैं।“सोफे पर बैठते हुए दिब्येंदु ने कहा
कनिका को दिब्येंदु कुछ अल्हड लगा लेकिन उसकी शख्सियत हलकी नहीं थी। हिंदी का प्रोफेसर सुनकर जैसी छवि बनती है – झोला उठाये कुर्ता पहने हलकी दाढ़ी बढ़ाये – उससे अलग था दिब्येंदु। उसकी आँखें बोलती थीं और उसकी आवाज़ खासी गाढ़ी थी। उसकी हर बात में कविता का मजा था जैसे हर शब्द उसने वर्षों की मेहनत से माँझ कर जुबान पर तरतीब से रखा हुआ हो – न एक शब्द ज्यादा और न एक शब्द कम।
जितनी देर में शालू चाय के साथ बैठक में आयी उतनी देर में दिब्येंदु और कनिका ने संवाद की आरंभिक औपचारिकताएं पूरी कर ली थीं। शालू को मण्डली में शामिल होने के लिए बस इतना भर जोड़ना पड़ा, “दिब्येंदु हौसला नहीं देता तो शायद मैं यह कदम नहीं उठा पाती”
इसके बाद बातों ने एक मोड़ काटकर दूसरा ही रास्ता पकड़ लिया।
“जितने शोर में थीं कहाँ इनको अपना मौन सुनाई देना था। आदमी ३६० डिग्री शोर से घिरा हो तो फिर क्या करे। मैंने कहा आप मौन सुनने को घर से निकल आईये। गलत कहा ?”
कनिका पर दिब्येंदु की बातों का रंग चढ़ने लगा था।
“हम सबने यही करना है आखिर में। सब निकल आएंगे शोर से मौन में और जो नहीं निकल पाएंगे, जिस भी पी एस को दिब्येंदु नहीं मिलेगा वो धीरे धीरे चिड़चिड़ा हो जायेगा। पहले हम चिड़चिड़े होने लगते हैं और फिर यकायक बूढ़े हो जाते हैं। क्यों? मानती हो?”
“हर सवाल का जवाब देने की मत सोचना कनु। इस आदमी की आदत है हर बात के आखिर में सवाल छोड़ने की ” शालू ने चाय की चुस्की लेते हुए कहा
“मौन बूढ़ा नहीं करता?”
“एकाकीपन करता है मौन नहीं करता। पी एस अब मौन में हैं एकाकी नहीं। और फिर मौन से शोर में लौटना तो इनके अपने हाथ में है। जब चाहें लौट जाएँ ”
“इतना आसान होगा लौटना? जब चाहें लौट जाएँ? वक्त ठहरा तो नहीं रहेगा। अब जब लौटेगी तो सबकुछ वहीँ तो नहीं होगा जहाँ छोड़ कर आयी थीं। और फिर जब लौटना ही है तो क्या फायदा। “
“फायदा सिर्फ इतना की जब तक मौन में हैं अपनी मर्ज़ी से जीवन गवायाँ, जब शोर में हैं तो अपनी मर्जी नहीं थी। आखिर में तो सब गंवाना ही है। नहीं क्या?”
“सब गवां देना है? सही में?”
“क्यों तुमने सुना नहीं क्या लेकर आये हो क्या लेकर जाओगे।” और फिर मुस्कुरा दिए “हम सब मक्कार हैं दोस्त। तुम मुझको और मैं तुमको बार बार यह यकीन दिलवाएंगे की हम खर्च नहीं हो रहे बल्कि जोड़ रहे हैं। और दूसरे के इस जोड़ से परेशां होकर फिर खुद को और खर्च करेंगे लेकिन कहते यही रहेंगे की जोड़ रहे हैं। फिर इतना खर्च हो जायेंगे की लगने लगेगा क्या पाया ? तो जब आखिर में खर्च हो जाने का रोना ही है तो अभी ही क्यों सा संभल जाएँ ? क्या कहती हो ?”
शाम देर तक बातें होती रहीं।
“कार्तिक का साथ होना मेरे अकेलेपन का इलाज़ तो नहीं” किसी तर्क के तर्क पर शालू ने कहा
“क्यों?”
“क्योंकि हम कभी एक नहीं होते हम हमेशा दो होते हैं। हमारा एक हम साझा करते हैं और हमारा दूसरा हम दबा लेते हैं। पी एस का कहना है की कार्तिक के होने पर भी उसका दूसरा अकेला है ” कहते हुए दिब्येंदु ने जॉन ऐलिया को कोट किया “तुम तो मेरे साथ रहोगी मैं तनहा रह जाऊँगा “
“तो यह तो हमारी गलती हुई। किसने रोका है की दूसरा दबाये रखते हो ?”
“किसी ने नहीं। लेकिन हम एक नहीं दो हैं यह एहसास कभी भी दोनों को एक साथ नहीं होता। अब पी एस की ही बात देख लो। उनको एहसास हो गया की उनमे कोई एक और भी है लेकिन अभी कार्तिक को नहीं हुआ। जब उसको होगा तब तक हो सकता है मामला ही बिगड़ गया हो। और अभी पी एस कार्तिक को समझाने की कोशिश भी करेगी तो कार्तिक को समझ आने वाला नहीं ” दिब्येंदु ने जवाब दिया और यकायक खड़ा हो गया, “चलता हूँ। अब भी नहीं निकला तो घरवाले कहेंगे रात भर कहाँ थे। रात के ढलने से पहले अगर घर पहुँच जाओ तो बहुत से लांछनों से बच जाते हैं ” और फिर मुस्कुरा दिया
दिब्येंदु को रुखसत कर शालू ने दरवाजा बंद किया और टेबल पर पड़े खाली गिलास उठाकर किचन की तरफ ले जाते हुए कहा, “कॉफ़ी पीयेगी ?”
“हाँ बना ले। तुझे सोने वोने की जल्दी तो नहीं है न ?” कनिका ने पूछा और फिर साथ ही बोली “यह इंटरेस्टिंग आदमी है शालू। किस्सा क्या है यार ?”
“किस्सा तो इतना सा है की मेरी पसंद बदल रही है।”
कनिका को इतने बेबाक जवाब ने अचंभित कर दिया। “पसंद बदल रही है ? मतलब ?”
शालू ने बिना किसी हिचकिचाहट के पूछा “पसंद बदलनी गलत है क्या? नहीं बदल सकती ?”
“और कार्तिक ” कनिका ने सहसा पूछ लिया
“कार्तिक क्या? कार्तिक की तो इसमें कोई बात ही नहीं है। बात तो मेरी पसंद बदलने की है न। नहीं हुआ तेरे साथ कभी ? “
इस जवाब के बाद दोनों की बातें पेंडुलम के एक छोर जहाँ नैतिकता, शील और पुण्यशीलता जैसे तर्क होते हैं से झूलकर दूसरे छोर जहाँ स्वछंदता, स्वावलम्बन, सोच और जीने की आजादी जैसी शह होती हैं आती जाती रहीं।
“रवि के साथ तेरा सम्बन्ध भी तो बदला है?”
“बदला तो है शालू। बदला तो है। लेकिन हम अलग नहीं हुए “
“मैं भी नहीं। सिर्फ सबाटिकल पर हूँ। तेरे लिए सबाटिकल आसान था। रवि वैसे ही दूसरे शहर में रहता है। मेरे लिए कोई चारा नहीं था। सबाटिकल ख़तम होगा वापस चली जाउंगी। ”
“और दिब्येंदु?”
“वो भी वापस चला जायेगे। शायद।”
“और इस बीच जो सब बिगड़ जायेगा उसका क्या?”
“तेरे और रवि के बीच जो बिगड़ गया उसका क्या? और तुमने तो कभी सबाटिकल अन्नोउंस भी नहीं किया। फिर भी रिश्ता बदल गया न? रिश्ते बदलने से पहले अनाउंसमेंट नहीं मांगते कनिका। बस बदल जाते हैं। फिर हम रिश्तों को निभाने का तरीका भी बदलते जाते हैं। अब देख पहले कार्तिक की टूर वाली नौकरी नहीं थी, फिर महीने में ५-७ दिन टूर पर रहने लगा। फिर १० दिन। जब टूर शुरू हुए थे तो हम हर शाम लम्बी लम्बी बात करते थे और हर बात के अंत में दोनों एक दूसरे से कहते थे की बस यह टूर ख़तम हो जल्दी से जल्दी। फिर एडजस्ट हो गया। अब वो १० -१० दिन बैंगलोर रहता है और कभी कभी तो एक भी दिन बात नहीं होती। हो गया न सब एडजस्ट ? हो जायेगा। कुछ नहीं बिगड़ेगा”
कनिका चुप रही फिर कुछ देर बाद किसी कड़ी को पकड़कर फिर बातें चल निकलीं। बातों का उतना ही वजन था जितना समय भरने के लिए बातों का होता है।
फिर कुछ देर बाद बातें ऐसी हो गयीं की शालू कुछ कहती तो कनिका अपने दिमाग में जवाब तैयार करती रहती और कनिका जवाब देती तो शालू प्रतिउत्तर तैयार कर रही होती – कोई किसी की सुन नहीं रहा होता। फिर जैसा अमूमन ऐसी स्तिथि में होता है दोनों आखिरकार थक गयीं और तय किया कि अब सो जाना चाहिए।
(7)
शालू की नींद कच्ची थी। हलकी सी आहट से उसकी नींद उचट जाती थी। कनिका के फ़ोन पर एक के बाद एक मैसेज गिर रहे थे और हर मैसेज के साथ एक तीखी आवाज हो रही थी। शालू ने लेटे लेटे ही उसका मोबाइल साइलेंट पर करने को उठाया। कुल ३० मैसेज। और आखरी मैसेज के पहले ५-७ शब्द जो स्क्रीन पर दिख रहे थे, “फिर तुमने कुछ कहा तो नहीं “। नंबर पहचाना था। कार्तिक का। शालू ने फ़ोन पर ऊँगली फेरी , अनलॉक करने के लिए। फ़ोन पर कोई पासकोड नहीं था, फ़ोन खुल गया। कार्तिक के मैसेज थे – कनिका के फ़ोन पर।
“शायद ”
“सो गयीं क्या?”
“जवाब क्यों नहीं दे रही?”
“अब जो दलेही में हो तो क्या रवि से मिलोगी?”
कार्तिक के मैसेज पढ़े। जब समझ नहीं आया तो फिर ऊपर स्क्रॉल करके सिलसिलेवार चैट को पढ़ा
“दिब्येंदु है – उसके साथ कॉलेज में “
“वो हिंदी प्रोफेसर? “
“हम्म “
“वो क्या कर रहा था वहां “
“दोनों में बातचीत है। इंटरेस्टिंग करैक्टर है दिब्येंदु। तुम यूँ ही परेशां थे कार्तिक। हमारे बारे में शालू को कुछ नहीं पता।”
“लेकिन तुमने कहा उसने बैंगलोर के टूर का जिक्र किया था “
“मैंने कुरेदा था उसे, जानने को की कहीं उसको कुछ पता तो नहीं। लेकिन मुझे नहीं लगता उसे पता है “
“और क्या कहा उसने ?”
“वही जो हम हर बार कहते हैं जब मिलते हैं। यही की चालीस के आसपास क्या सबकी पसंद बदल जाती है “
“उसने यह कहा ?”
“ऐसा सा ही कुछ। तुम्हे उससे कभी कोई शिकायत नहीं रही। मुझे रवि से शिकायत नहीं रही। उसको तुमसे शिकायत नहीं रही। लेकिन हम सब अपनी अपनी वजह से एक दूसरे से दूर तो होते ही गए। एक से दूर हुए और उसी पल में किसी एक के पास भी।”
“और ?”
“वो सबाटिकल पर है। वापस आ जाएगी “
“शायद ”
“सो गयीं क्या?”
“जवाब क्यों नहीं दे रही ?”
“अब जो दलेही में हो तो क्या रवि से मिलोगी ?”
शालू ने चुपचाप फ़ोन साइलेंट पर कर दिया और कमरे से बाहर निकलकर बालकनी में आकर बैठ गयीं। ठंडी हवा सबाटिकल की दूसरी सुबह उसको अच्छी लग रही थी।
Sir bohot samay baad ek acchi aur vastvik kahani padi, bohot accha laga, I will wait for your new story……