टूटा है आज कोई तारा जो मेरा आँचल जला गया थे अरमानों के कुछ मोती उसमें… जो ख़ाक में मिला गया। दौड़ता है रगों में ख़ून हर सू तूफ़ान बन कर इस तरह… बहता है शबो-रोज़ नमक सीने का नैनों से सैलाब की तरह। तू क्यूं मिटा गया जो लिखा था लहू से मैंने… तू क्यूं लकीरें चेहरे पे बना गया।
2- दस्तक
ये क्या बदलता है मुझ में, जो दस्तक भी नहीं देता ये कानों के बीच की कोई खाई है या फिर धड़कनों से गुज़रता कोई रास्ता ये क्या है जो सोच को क़ैद कर लेता है… और रिहा हो जाता है जज़्बात का रास्ता… ये क्या है जो गुज़र जाने पर ही अनमोल सा लगता है… क्यों थाम नहीं पाती उस आँचल को जो अब आम चुनर-सा दिखता है ये क्या बदलता है जो मुझ को मेरे माज़ी से बेगाना दिखता है ये क्या सुलगता है भीतर कहीं जो मेरा मख़ौल उड़ाता है ये क्या बदलता है मुझ में जो दस्तक भी नहीं देता…
3- ख़्वाब
जिन नैनों को ख़्वाब सजाने की आदत है अक्सर उन्हें तेरी यादों में क़ैद पाया है। जिन साँसों को धड़कनों के साज़ की आदत है अक्सर उन्हें तेरी महफ़िल का गुनहगार पाया है। तू सफ़ेद चादर-सी सिमटती है बाहों में मेरी मैं ख़ामोश समंदर-सा, सब सीने में दबाए तुझे देखता हूं। ये कौन सी मंज़िल है जो मुझे पानी है हर राज़ को तेरे होंठों में दबा पाया है। जिन नैनों को ख़्वाब सजाने की आदत है अक्सर उनको तेरी याद में क़ैद पाया है।