ऐसे में यह सवाल अवश्य उठता है कि एक मित्र सरकार के चलते भला बांग्लादेश में दुर्गा पूजा के दौरान हिन्दू मंदिरों पर हिंसात्मक हमले कैसे और क्योंकर हुए। ज़ाहिर है कि सवाल विश्व के अधिकांश देशों और भारत के तथाकथित सेक्युलर नेताओं एवं दलों पर भी उठता है कि इस भयंकर नियोजित और प्रायोजित हिंसा और दंगों पर कोई प्रतिक्रिया क्यों व्यक्त नहीं की? ऐसे हालात में ब्रिटेन की लेबर पार्टी की काउंसलर पुष्पिता गुप्ता की भूख हड़ताल महत्वपूर्ण हो जाती है। वैस शेख हसीना की सरकार इस हिंसा को जमात-ए-इस्लामी द्वारा अपनी सरकार को अस्थिर करने की साज़िश भी मान कर चल रही है। इसलिये बांग्लादेश सरकार मामले की छानबीन गंभीरता से कर रही है।
बांग्लादेश में 13 अक्टूबर को अल्पसंख्यक हिन्दुओं पर हुए हिंसात्मक हमलों के विरोध में लंदन के रेडब्रिज क्षेत्र के सेवन किंग्ज़ वार्ड की लेबर काउंसलर पुॉष्पिता गुप्ता ने बांग्लादेश उच्चायोग के सामने भूख-हड़ताल कर दी। उनकी भूख-हड़ताल पर बैठी एक फ़ोटो सोशल मीडिया में वायरल हो चुकी है। मगर न तो ब्रिटेन में और न ही भारत में इस समाचार को किसी प्रकार का कोई महत्व मिला है।
थोड़ी हैरानी अवश्य हुई कि न तो सत्तारूड़ भारतीय जनता पार्टी ने इस समाचार पर कोई प्रतिक्रिया दी और न हीं तथाकथित सेक्युलर मीडिया अथवा हस्तियों ने। मैंने उनके मोबाइल फ़ोन पर कई बार बात करने का प्रयास किया मगर फ़ोन बन्द मिला।
याद रहे कि बांग्लादेश की वर्तमान हिंसक गतिविधियों में 6 हिन्दुओं की मौत हो गयी, 80 हिन्दू मंदिरों को तोड़ा गया, और लगभग 150 हिन्दू ज़ख़्मी हो गये।
बांग्लादेश के कमिला जिले में 13 अक्टूबर को अत्याचारों का सिलसिला शुरू हुआ, जो कि तेज़ी से चांदपुर, नोआखली, किशोरगंज, चटगांव, फेनी और रंगपुर सहित देश के अन्य हिस्सों में फैल गया। रंगपुर के मछुआरों के एक गाँव बोरो करीमपुर में छियासठ परिवार हिंसा में अपने घरों के नष्ट होने के बाद विस्थापित हो गए हैं। अपराधियों ने क्षेत्र में दो दुकानों और दो मंदिरों में भी तोड़फोड़ की, सभी कीमती सामान और नकदी लूट ली।
हिंसा की घटनाएं हाजीगंज, चांदपुर, नोआखली, कॉक्स बाजार, चट्टोग्राम, चपैनवाबगंज, पबना, मौलवीबाजारा, कुरीग्राम और कई अन्य स्थानों से भी सामने आई हैं।
जब पाकिस्तान से हिन्दुओं के मंदिर तोड़ने के समाचार आते हैं तो क्षोभ और क्रोध तो होता है मगर हैरानी नहीं होती। ऐसा होता आया है… 1947 से आज तक बार-बार होता आया है। मगर जब बांग्लादेश से ऐसा समाचार आता है कि दुर्गा पूजा के दौरान मंदिर में कुरान रख कर हिंसा करने की साज़िश रची गयी तो न जाने क्यों हमें आश्चर्य होता है। दोनों देशों का डी.एन.ए. एक ही है।
याद रखना होगा कि 24 सालों तक बांग्लादेश पाकिस्तान ही था – पूर्वी पाकिस्तान। भारत का जब बंटवारा हुआ तो मूलतः पंजाब और बंगाल का ही बंटवारा हुआ था। यानी कि दोनों अविभाजित प्रांतों में सोच एक ही थी… कि भारत से अलग होना है। 24 साल में पूर्वी पाकिस्तान जवान हो गया और जवानी तो बाग़ी होती ही है। भारत की सैनिक सहायता से पाकिस्तान के दो टुकड़े हो गये और 93,000 पाकिस्तानी सैनिकों के आत्मसमर्पण के बाद बांग्लादेश का जन्म हुआ।
पाकिस्तान में सरकार चाहे अयूब ख़ान की रही या भुट्टो की; परवेज़ मुशर्रफ़ की रही हो या नवाज़ शरीफ़ की, ज़रदारी की रही हो या फिर आज की इमरान ख़ान की नियंत्रण रेखा के उधर से कभी भी दिलख़ुश समाचार नहीं मिलता रहा है। हमेशा टेन्शन, लड़ाई, आतंक। वर्तमान स्थिति में भारत और पाकिस्तान दोनों जानते हैं कि दूसरी तरफ़ का कश्मीर उनको नहीं मिलने वाला, मगर कश्मीर में आतंकवादी गतिविधियों से छुटकारा मिलने की संभावना कोई ख़ास दिखाई नहीं देती। लंदन में इस साल भी भारतीय मूल के ब्रिटिश नागरिकों ने पाकिस्तान उच्चायोग के बाहर प्रदर्शन किया।
दूसरी तरफ़ बांग्लादेश में कभी भारत से मित्रता दिखाने वाली सरकार होती है जैसे कि शेख़ हसीना की वर्तमान सरकार या फिर ख़ालिदा ज़िया की सरकार जो भारत को मित्र नहीं मानती थी। ख़ालिदा ज़िया इस समय जेल में हैं। उन पर अनाथ बच्चों के लिए दुनिया भर से जमा किए गए एक करोड़ इकसठ लाख रुपये के दुरुपयोग का मामला चल रहा था… जिसमें अदालत ने उन्हें दोषी क़रार दिया। 2018 में उन्हें जेल जाने की सज़ा मिली।
2 अक्तूबर 2021 को जब भारतीय उच्चायोग लंदन में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का जन्मदिवस मनाया गया तो वहां मुख्य अतिथि बांग्लादेश की लंदन में उच्चायुक्त सईदा मुन्ना तसनीम थीं जिन्होंने महात्मा गांधी की दिल खोल कर तारीफ़ भी की थी।
ऐसे में यह सवाल अवश्य उठता है कि एक मित्र सरकार के चलते भला बांग्लादेश में दुर्गा पूजा के दौरान हिन्दू मंदिरों पर हिंसात्मक हमले कैसे और क्योंकर हुए। ज़ाहिर है कि सवाल विश्व के अधिकांश देशों और भारत के तथाकथित सेक्युलर नेताओं एवं दलों पर भी उठता है कि इस भयंकर नियोजित और प्रायोजित हिंसा और दंगों पर कोई प्रतिक्रिया क्यों व्यक्त नहीं की? ऐसे हालात में ब्रिटेन की लेबर पार्टी की काउंसलर पुष्पिता गुप्ता की भूख हड़ताल महत्वपूर्ण हो जाती है। वैस शेख हसीना की सरकार इस हिंसा को जमात-ए-इस्लामी द्वारा अपनी सरकार को अस्थिर करने की साज़िश भी मान कर चल रही है। इसलिये बांग्लादेश सरकार मामले की छानबीन गंभीरता से कर रही है।
सी.सी.टी.वी. कैमरों की मदद से मंदिर में कुरान रखने वाले का पता कर लिया गया है। इसकी पहचान शहर के ही सुजाननगर एरिया के इकबाल हुसैन (35 साल) के तौर पर की गई है। हुसैन का साथ देने वाले दो साथियों की भी पहचान की गई है। इनके नाम फयाज और इकराम हुसैन बताए गए हैं। ये दोनों हिरासत में ले लिए गए हैं। पुलिस ने कुल 41 संदिग्धों को हिरासत में लिया है। आशा की जानी चाहिये कि दोषियों को समय रहते सज़ा दी जाएगी और भारत व बांग्लादेश के संबन्धों पर इस हिंसा की काली छाया नहीं पड़ेगी।
वाम साथी तो केवल भाजपा के विरोध में ही प्रतिक्रिया देते हैं उनके लिए हिंदू के प्रति ऐसी किसी भी हिंसा या हत्या के प्रति कोई संवेदना होगी इसमें शक है लेकिन बीजेपी की प्रतिक्रिया को बहुत उत्साह वाली नहीं कह सकते हैं जो वाकई अचरज में डालती है
सम्पादकीय में अभिव्यक्त बांग्लादेश की हिंसात्मक गतिविधियों के समाचार चिंतनीय हैं । भारत के तथाकथित सेक्युलर नेता चुप हैं यह सचमुच आश्चर्य की बात है सम्भवतः उनका चिंतन सिर्फ भारतीय है वे वैश्विक सोच नहीं रखते ,बीजेपी चुप है यह भारत के हित में है ,क्योकि वह बोलने वाली नहीं करने वाली पार्टी है ।
दुनिया किसी बहुत बड़े परिवर्तन की ओर बढ़ रही है, सम्पादकीय से ऐसा ही अनुभव हो रहा है ।
Dr Prabha mishra
सचमुच, ब्रिटेन में इस भूख हड़ताल के विषय मे भारतीय मीडिया का रवैया उदासीन है और सरकार ने भी कुछ नहीं बोला।
आपका सम्पादकीय हमेशा की तरह समाज को दिशा देने के लिए
महत्त्वपूर्ण है।
भारतीयों की वैश्विक एकता देख कर प्रसन्न्ता हुई, यदि चोट बांग्लादेश में लगी, दर्द ब्रिटेन तक पहुँचा, तो दो ओर से कट्टरपंथी देशों और देशी सेक्युलर आबादी से पीड़ित, भारत और हिन्दुओं के लिए आशा बाकी है।
प्रतिक्रिया सत्तारूढ़ दल से न दिया जाना, विस्मित करता है.. ।आपके लेख घटनाओं का वैश्विक कोण दिखाकर, हम लोगों का दृष्टिकोण विकसित करते हैं, इसके लिए आभार एवं बधाईयाँ।
एक सवाल उठता है
उठ के बैठ जाता है
बैठा हुआ बदनाम सवाल
कुछ नही कर पाता है
अगला सवाल उठता है
और पहले के बग़ल में
चुपचाप बैठ जाता है
हरेक सवाल
पूछता है
उसे क्यों उठाया जाता है
क्यों बैठाया जाता है
जबकि जानते हैं सवाल उठाने वाले
के बदनाम सवाल
कुछ नही कर पाते हैं!
साधुवाद,
निखिल
इस संदर्भ विशेष पर हुई घटना या इससे पूर्व हुई घटनाओं पर आपका संपादकीय सटीक विवेचना के साथ एक विशेष बिंदु पर भी ध्यान आकर्षित करता है, वह है ऐसी किसी भी घटना पर भारतीय हिंदू समर्थक समाज या भारतीय राजनीतिक समूह का विरोध न करना। ये एक ऐसस कटु सत्य है जो हमेशा सामने आता रहा है और शायद यहीं ऐसी घटनाओं की पुनरावर्ती का एक कारण भी।
ऐसे संवेदनशील बिंदु पर आपकी स्पष्ट बात कहते संपादकीय के लिए साधुवाद सर।
यही धार्मिक और राजनीतिक स्थिति है हिन्दुओं की
परेशान करने वाली स्थितियां
विचारणीय टिप्पणी!
धन्यवाद भाई हरिहर जी।
वाम साथी तो केवल भाजपा के विरोध में ही प्रतिक्रिया देते हैं उनके लिए हिंदू के प्रति ऐसी किसी भी हिंसा या हत्या के प्रति कोई संवेदना होगी इसमें शक है लेकिन बीजेपी की प्रतिक्रिया को बहुत उत्साह वाली नहीं कह सकते हैं जो वाकई अचरज में डालती है
आलोक भाई सवाल तो उठेंगे ही।
सम्पादकीय में अभिव्यक्त बांग्लादेश की हिंसात्मक गतिविधियों के समाचार चिंतनीय हैं । भारत के तथाकथित सेक्युलर नेता चुप हैं यह सचमुच आश्चर्य की बात है सम्भवतः उनका चिंतन सिर्फ भारतीय है वे वैश्विक सोच नहीं रखते ,बीजेपी चुप है यह भारत के हित में है ,क्योकि वह बोलने वाली नहीं करने वाली पार्टी है ।
दुनिया किसी बहुत बड़े परिवर्तन की ओर बढ़ रही है, सम्पादकीय से ऐसा ही अनुभव हो रहा है ।
Dr Prabha mishra
आपकी परिपक्व टिप्पणी का स्वागत है।
प्रभा जी सार्थक टिप्पणी के लिए धन्यवाद।
सचमुच, ब्रिटेन में इस भूख हड़ताल के विषय मे भारतीय मीडिया का रवैया उदासीन है और सरकार ने भी कुछ नहीं बोला।
आपका सम्पादकीय हमेशा की तरह समाज को दिशा देने के लिए
महत्त्वपूर्ण है।
धन्यवाद जया।
बेहतरीन विचारणीय अभिव्यक्ति
धन्यवाद भावना
भारतीयों की वैश्विक एकता देख कर प्रसन्न्ता हुई, यदि चोट बांग्लादेश में लगी, दर्द ब्रिटेन तक पहुँचा, तो दो ओर से कट्टरपंथी देशों और देशी सेक्युलर आबादी से पीड़ित, भारत और हिन्दुओं के लिए आशा बाकी है।
प्रतिक्रिया सत्तारूढ़ दल से न दिया जाना, विस्मित करता है.. ।आपके लेख घटनाओं का वैश्विक कोण दिखाकर, हम लोगों का दृष्टिकोण विकसित करते हैं, इसके लिए आभार एवं बधाईयाँ।
आपने स्थिति को समझा.है शैली जी।
एक सवाल उठता है
उठ के बैठ जाता है
बैठा हुआ बदनाम सवाल
कुछ नही कर पाता है
अगला सवाल उठता है
और पहले के बग़ल में
चुपचाप बैठ जाता है
हरेक सवाल
पूछता है
उसे क्यों उठाया जाता है
क्यों बैठाया जाता है
जबकि जानते हैं सवाल उठाने वाले
के बदनाम सवाल
कुछ नही कर पाते हैं!
साधुवाद,
निखिल
निखिल भाई जय हो
हम सब तक यह खबर पहुँचाने के लिए संपादक महोदय का हार्दिक आभार। बहुत बहुत साधुवाद । आशा है भाजपा सरकार कुछ करे।
धन्यवाद आशुतोष।
इस संदर्भ विशेष पर हुई घटना या इससे पूर्व हुई घटनाओं पर आपका संपादकीय सटीक विवेचना के साथ एक विशेष बिंदु पर भी ध्यान आकर्षित करता है, वह है ऐसी किसी भी घटना पर भारतीय हिंदू समर्थक समाज या भारतीय राजनीतिक समूह का विरोध न करना। ये एक ऐसस कटु सत्य है जो हमेशा सामने आता रहा है और शायद यहीं ऐसी घटनाओं की पुनरावर्ती का एक कारण भी।
ऐसे संवेदनशील बिंदु पर आपकी स्पष्ट बात कहते संपादकीय के लिए साधुवाद सर।
विरेन्द्र भाई आप पुरवाई के संपादकीय पर रेगुलर टिप्पणी कर रहे हैं। आपकी आज की टिप्पणी सार्थक है।