‘बंद गली का आखिरी मकान ‘’शीर्षक कहानी संग्रह धर्मवीर भारती के कहानी संग्रह ‘बंद गली का आखिरी मकान‘ की अंतिम कहानी है। इस कहानी का संपूर्ण घटना चक्र गली के अंत में स्थित एक कच्चा मकान है इस मकान की स्थिति के समकक्ष ही मुंशी जी की सामाजिक स्थिति है। वे बहुत कम लोगों से मिलते जुलते हैं। डॉ सुरेश कुमार केसवानी के मतानुसार -“जिस बिटौनी के पालन पोषण के लिए वे अविवाहित रहे उसके चले जाने के बाद से वे अकेले हैं। इसी बिटौनी ने जब चित्रकूट मंदिर की मीटिंग में जनकवत बड़े भैया को ‘नीच ‘कह दिया तो मुंशी जी को भारी आघात पहुंचा।वे और भी अधिक अकेले हो गए ।संबंधों की गलियों से गुजरने वाला उनका व्यक्तित्व गतिहीन सा हो उठा। व्यक्तित्व को संबंध के माध्यम से किसी अन्य तक पहुंचाने वाली स्थिति समाप्त सी हो गई।“(1) उपन्यासिका की प्रतीति कराती यह कहानी पचपन पृष्ठों की लंबी रचना है जिसे बीस खंड़ों में पिरोया गया है । “यह कहानी भारती की सभी कहानियों मे सबसे अधिक लम्बी है। पचपन पृष्ठों की यह कहानी वस्तुत: उपन्यासिका है। कहानी की इकाई की अपेक्षा उपन्यास की विविधांगिता की ओर उसका ध्यान अधिक है।“(2) इन खंडों में से केवल तीन खंडों में कहानी कहीं गई है । शेष पुनर्दीप्ति की प्रविधि में वर्णित हैं। कथा मुंशी जी की लंबी बीमारी की सूचना देते हुए और नए खपरैलों व राघोराम के विवाह प्रसंग द्वारा दूसरे खंड में विकसित होती है । मुंशी जी द्वारा बिरजा को हनुमान चौरे पर तेल और सिंदूर भेजने के आदेश से स्पष्ट होता है कि मुंशी जी ने अपनी आश्रिता बिरजा को पत्नी पद दे दिया है। आगे के तीन खंडों में अनेक छोटे–छोटे प्रसंग हैं जो अत्यंत सामान्य होते हुए भी कथानक का विस्तार करते हैं यथा बिटौनी के शैशव ,समृद्धि, बिरजा का उसके प्रति ईर्ष्या भाव इत्यादि। उपर्युक्त प्रसंगों को वहीं छोड़ लेखक ने राघोराम के विवाह में मुंशी जी को पृथक रखने के निर्णय , उन्हें ‘नक़ली बाप ‘बताकर उनके तीर्थ यात्रा पर जाने के निश्चय का वर्णन इत्यादि सातवें से ग्यारहवें खंड में किया है। बिरजा का अपने भाई बिशन को आड़े हाथों लेना,पात्रों के वाद– प्रतिवाद से बढ़ते तनाव के कारण मुंशी जी का पुनः अस्वस्थ होना बारहवें खंड की कथा निर्मित करता है। पंद्रह से सत्रह खंड बिरजा के छोटी बहू के कंधों पर सिर टिका कर रोने, हरिया के सारंगी वादन और मेहरिया के चक्कर में फंसने, बिटौनी के मरणासन्न पितृतुल्य भाई को देखने आने, बिरजा के पति का देहांत और बिरजा राघो का वहां जाना मुंशी जी की मृत्यु से संबद्ध है।
कथानक विस्त्तृत होते हुए भी व्यवस्थित है। अविवाहित, वृद्ध,एकाकी मुंशीजी मध्यवर्गीय समाज में प्रचलित रुढ़ियों जर्जर परंपराओं में जकड़े हैं । ब्राह्मण बिरजा, नशा खोर पति द्वारा राघो और हरिया के साथ परित्यक्त की जाती है। उनके सहारे अपने एकाकी जीवन को काट देने की लालसा से मुंशीजी उन्हें और बिरजा कि मां हरदेई को आश्रय देते हैं । बिरादरी का विरोध सहते हैं किंतु जैसी उनकी आकांक्षा थी वैसा सुख उन्हें नहीं मिलता । उनकी करुण मानसिकता का अंकन करने में लेखक सफल रहे हैं। बदलते जीवन मूल्य , व्यक्ति की समाजिक संवेदनाओं, चेतनाओं को परिवर्तित कर देते हैं। कुशाग्र बुद्धि राघो मुंशी जी के शिक्षा प्रेम के प्रभाव स्वरूप एफ. ए करके स्वाबलंबी बनता है किंतु हरिया की मनोवृति उससे नितांत भिन्न रहती है। वह शिक्षा छोड़ भीखा बापू के शिष्यत्व में सारंगी वादन में निपुणता प्राप्त करता है । अपने मिश्रा ( ब्राह्मण) होने का उसे अभिमान है। वह मुंशी जी को पिता तुल्य नहीं मानता । वह उद्दंड एवं कृतघ्न है। वह मुंशी जी के लिए किए गए ‘नकली बाप ‘ संबोधन से प्रसन्न होता है । इन सबसे मुंशी जी आहत हो तीर्थ यात्रा की योजना बनाने लगते हैं जो अंततः स्थगित हो जाती है । इसके पश्चात कथानक की विकास गति तीव्र हो जाती है । हरदोई का नैनी प्रस्थान , बिरजा का वैधव्य और राघो के साथ पति गृह जाना , पुत्रीवत पालित पोषित बहन बिटौनी का अमर्यादित अहंकार पूर्ण व्यवहार , मुंशी जी की रुग्णावस्था और उचित परिचर्या का अभाव एवं मृत्यु तेज़ी से एक के बाद एक घटित घटनाएं हैं । कथानक में निहित प्रेम तत्व मध्यवर्गीय मूल्य बोध तथा पात्रों के परस्पर भिन्न दृष्टिकोणों के अनुरूप विकसित हुआ है । पति परित्यक्ता बिरजा को उसके दोनों पुत्रों राघो और हरिया सहित उसका सगा भाई केशव भाई के हाथ बेचना चाहता है। मुंशी जी जाति बिरादरी द्वारा किए गए तिरस्कार, पुत्री सदृश बिटौनी के विरोध और भर्त्सना सहकर भी उन्हें आश्रय प्रदान करते हैं । प्रारंभ में बिरजा भी उनका अनुग्रह स्वीकार करती है। “मुंशी जी तो देवता हैं।यही भवनाथ और इसाक ने उनका दिमाग बिगाड़ दिया। मुंशी जी तो बिरजा में जीते, बिरजा में मरते हैं….रोम रोम से निछावर रहते हैं।“(3) अपने पुत्र राघो के स्वावलंबी होते ही उसके तेवर बदल जाते हैं। वह अपनी बिरादरी का साथ देने लगती है। मुंशी जी की भर्त्सना ही नहीं करती बल्कि उन्हें तीव्र ज्वर में छोड़कर पति के निधन की सूचना मिलते ही राघो को लेकर वहां चली जाती है। मुंशी जी के मन में बिरजा के व्यक्ति प्रेम की सारंगी बजती रहती है। वे राघो का नाम जपते स्वर्ग सिधार जाते हैं। मुंशी जी का प्रेम आदर्शवादी है। वे सबका तिरस्कार व विरोध सहकर भी बिरजा और उसके पुत्रों को अपनाता है। बिटौनी की भर्त्सना पर उसका उत्तर होता है -“…यह देहरी तो अब बिरजा की है,रागों की है।अब तो इस देहरी के बाहर जीते जी ने मुंशी जी जायेंगे न बिरजा। जयराज बुलावेगा तभी जायेंगे। चाहें सारी दुनिया की ताकत लगा जाये।“(4) वे स्वाभिमानी हैं।बिशन के यहां से आए पंचमेवा को राघो को खिलाना उन्हें अपना अपमान लगता है -“बिशन मामा?कौन जरुरत थी उनके यहां से मेवा लेने की? किसने कहा था?हम कोई भिखमंगें हैं कि लड़के के लिए मेवे की भीख मांगें?घर में होगा तो सोने से लाद के,दूध मलाई खिलाकर रखेंगे, नहीं तो सूखा चबैना खिलायेंगे। उनका मेवा खिला के नहीं पाला है।वो होते कौन हैं?”(5) बिरजा पुत्र मोह में तथा बिशन के राघो को घेरे रहने से मुंशीजी के प्रति कठोर और उपेक्षापूर्वक व्यवहार करने लगती है। मुंशीजी को उसका व्यवहार इतना खल जाता है कि उनका व्यवहार अभद्र हो जाता है -” बिरजा, कमबख्त!बदजात….ले जा!ले जा ! यह सब मुझे नहीं चाहिए।“(6)
उनके प्रेम में रोमांटिक तत्व भी सम्मिलित है।वे वृद्धावस्था में भी बिरजा से पत्नीवत व्यवहार करते हैं। बिरजा भी उन्हें अपनी नई अंगिया दिखाने और छोटी बहू तथा उसके ससुर के अवैध संबंधों के विषय में बताने में संकुचित नहीं होती। वस्तुत:यह प्रेम का अयथार्थवादी रुप है। मुंशी जी अपना अकेलापन दूर करना चाहते हैं तथा बिरजा अपने और पुत्रों के लिए आश्रय प्राप्त करना चाहती हैं। मुंशी जी ने स्वयं अविवाहित रहते हुए अपनी अबोध बहन का पालन पोषण किया और उसका एक समृद्ध घर में विवाह कराया किंतु वही बिटौनी खुलेआम निर्धनता के कारण उनका तिरस्कार करती है तथा बिरजा को अपनाने का विरोध करती है । शेष पात्रों के व्यवहार भी अमानवीय हैं। बिरजा का भाई विशन अपनी पुत्री को बड़े खान साहब के आरामगाह में भेजने में संकुचित नहीं होता और अपनी बेसहारा बहन को केसोबाई के हाथ बेचने की भी सम्मति दे देता है तथा मुंशी जी को औरत भगाने के झूठे आरोप में फंसाकर थाना कोतवाली पहुंचाना चाहता है। मथुरा बाबू की छोटी बहू पति की अनुपस्थिति में ससुर के साथ ठेठर नौटंकी खेलती है पर मुंशी जी और बिरजा के संबंधों की धज्जी उड़ाने से बाज नहीं आती। कच्ची शराब के धंधे में लिप्त बेगिन की किशोरी पुत्री मेहरिया के हरिया और पुलिस से संबंध रहते हैं । मुंशी जी के निरंतर समीप रहने वाले ममेरे भाई भवनाथ और मित्र इसाक मियां का व्यवहार आद्यंत मानवीय बना रहता है।
लेखक ने मध्यवर्गीय परिवार में व्यक्ति के जीवन को आंकने के लिए परंपरागत कथा के ढांचे को ना अपना कर वैचारिकता समन्वित प्रसंगों का नियोजन किया है। मुंशी जी की हनुमान जी के प्रति अटूट आस्था है। माघ मेले के अवसर पर परिवार सहित माहभर कल्पवास करने की उनकी इच्छा रहती है । वे बिरादरी द्वारा तिरस्कृत होने पर तीर्थ यात्रा की योजना बनाते हैं। गया में पिंडदान कर पुत्र द्वारा पिता के मुक्ति में उनका विश्वास है। वे छोटी बहन को रोग मुक्त करने के लिए सभी प्रकार के कर्मकांड करने से भी पीछे नहीं रहते । पाताल में नाग वासुकी, तक्षक, शेषनाग, अर्दली नाग के निवास करने की मान्यता पर भी उनका विश्वास है। भारती जी का युवावस्था तक का काल इलाहाबाद में व्यतीत हुआ था । वहां के अधिकांश स्थानों, मंदिरों आदि से वे परिचित थे।‘ बंद गली का आखिरी मकान‘ के अतिरिक्त मथुरा बाबू, बिशन मामा का घर ,इसाक मियां की टाल , चित्रगुप्त कल्याणी मंदिर , बजरंग स्वामी का मंदिर, गऊ घाट की ड्योढ़ी, गोपीगंज, रामबाग स्टेशन, यमुनाजी, कचहरी कोतवाली, बंधवा हनुमान जी, नैनी, झूंसी के अतिरिक्त बद्रीनाथ , केदारनाथ, गया ,कानपुर इत्यादि का उल्लेख भी विवेच्य कहानी में हुआ है। मुंशी जी के घर के समीप प्रातः काल का वर्णन यथार्थवादी है।” बहुत सुबह,पौ फटने से पहले खेत के कुएं पर की गड़ारी बोलने लगती थी। कभी–कभी अगर हवा इधर की हो तो जमुना के पुल पर से चरबज्जी (चार बजेवाली) डाक गाड़ी के गुजरने की आवाज आती थी । फिर गली में से बदलू कुम्हार खच्चर पर सकोरे लादकर हट्टी ले जाता था । खेत में एक खास वक्त पर टिटिहरी बोलती थी और दोपहर को तोते ।“(7) हरदेई तथा बिरजा को गंगा– जमुना पर अधिक आस्था है। हरिया जात– पात को प्राथमिकता देता है ।उसे स्वयं के ब्राह्मण मिश्र होने पर अभिमान है तथा मुंशी जी के कायस्थ होने के कारण उन्हें हीन दृष्टि से देखता है । ” बड़ी मुंशियाइन बनी है तो बन । हमारे तो बाप दादा सारंगी बजाते रहे हैं। हम तो वही करेंगे । इलम हुनर सीखेंगे, जूती किसी की नहीं चाटेगें! और कान खोल कर सुन ले, तेरी जूती भी नहीं चाटेंगें और मुंशी जी की भी नहीं।“(8) तथा ” बुआ ना पुआ। काहे की बुआ! हमारी कोई बुआ उआ नहीं। हम ठहरे पंडित हरिराम मिश्र ….वो कायस्थ ।“(9)
चरित्रोद्घाटन के लिए भारती जी ने स्वयं उनकी रूपरेखा प्रस्तुत करने के साथ उनके संवादों का भी अवलंब लिया है। बिरजा की रुपरेखा दृष्टव्य है– “शतरंजी पाड़ की धोती पहने,मांग के पास कई पके बाल , आंखों के नीचे झुर्रियां, काफी ढला हुआ– सा बदन, बड़े बेडौल से हाथ के पंजे, बरतन मांजने से अंगूठा फटा हुआ और कत्थे –चूने से फटी हुई तर्जनी और चेहरे पर एक बुढ़ाता हुआ रूखापन। “(10) हरिया का स्वभाव , राघो की विनम्रता और कृतज्ञता , मुंशी जी का बिरजा के प्रति बढ़ता लगाव उनके संवादों से ही स्पष्ट हो जाता है । यही मध्यवर्ग जब चाहे परंपरा से अलग हटकर मन माना आचरण करता है । मुंशी जी विवाह किए बिना बिरजा को पत्नीवत स्वीकार कर लेते हैं । पति के कानपुर रहते हुए छोटी बहू ससुर से काम तृप्ति करती है । बिशन की लड़की बड़े खान साहब की आरामगाह की शान बढ़ाती है तथा मेहरिया बेड़िन हरिया और पुलिसवालों और अनवर अफीमची सब को अपनी मुट्ठी में रखती है।
भारती जी ने अर्थ की महत्ता को भी अपनी अनेकानेक रचनाओं में बार–बार प्रस्तुत किया है । अर्थाभाव का कष्ट उनका जीवनानुभूति यथार्थ था। समृद्ध परिवार में पहुंचने के बाद बिटौनी अपने निर्धन भाई का तिरस्कार करने से संकुचित नहीं होती । वह कहती है-” हमारा सगा भाई क्या है, हमारा दुश्मन है। हम लोगों की शहर में मान– मर्यादा है । स्वराज भवन लो तो, यूनिवर्सिटी लो तो, मीटिंग जलूस लो तो,सब जगह हमारी इज्जत ली है। हमारे भाई ने तो हमारे मुंह पर कालिख लगा दी। ……हम तो उन नीचों के दरवाजे भी ना जाएं हमारी इज्जत नहीं है क्या!”(11) अपनों द्वारा पहुंचाई गई पीड़ा की अभिव्यक्ति इस कहानी में बहुत मार्मिक रुप से हुई है। लेखक का प्रखर युगबोध भी स्पष्ट है। प्राचीन मान्यताओं , रूढ़ियों और अंधविश्वासों में जकड़ी मानवता के उद्धार की भावना भी इस कहानी में निहित है।
कहानी में सहज, सरल भाषा का प्रयोग भारती जी ने किया है । कहानी मध्यवर्गीय गली मोहल्ले में रहने वालों की है अतः भाषा भी उसके अनुकूल है । ढिबरी, गठरी,खटाय , उठाए,छिगुनिया इत्यादि। कुछ शब्द विकृत रूप में प्रयुक्त हुए हैं– अन्याव ( अन्याय), भाखा (भाषा)चरबज्जी (चार बजे वाली) किंतु यह वहां के लोगों के लिए सहज ग्राह्य है । दरपन, ल्हास (लाश) , लिथड़ने , मूरख, साच्छात, पतुरिया जैसे शब्द पात्रानुकूल है। इसाक मियां, अनवर आदि मुस्लिम पात्रों की बोली में उर्दू के शब्दों का होना स्वाभाविक है जैसे अदालत,ग़ैर, तासीर, तामील,वजीफा,दवाफरोश, फसाद, रियाज़, अदालत, रंजिश। अंग्रेजी के शब्दों का भी नितांत अभाव नहीं है– लाउडस्पीकर , कंपनी, रिजल्ट, रोल नंबर ,नोटिस,बाइस्कोप, क्रीम, मीटिंग , वारंट । गाली– गलौज,धुक्का – फजीहत,रोटी– रोजगार,इलम– हुनर , मीन –मेख , इगड़ तिगड़, उखड़े पुखड़े, कांखते कहराते, झोल–झाल इत्यादि शब्द युग्मों के प्रयोग ने भाषा को सजीव बनाया है । मुहावरों का प्रयोग गली मोहल्लों की भाषा में हमेशा से होता रहा है । कहानी की भाषा में भी यथास्थान मुहावरों का प्रयोग मिलता है यथा–सिल लोढ़ा जन्मना, जूती चाटना, मुंह से आवाज न निकलना,अधजल गगरी छलकत जाए,पिटे कुत्ते की तरह, धज्जियां उड़वा, सिर चढ़ाई डोमनी गाते ताल बेताला । वाक्यों में सूक्तियों को इस तरह पिरोया गया है कि उनका सौंदर्य और निखर कर सामने आया है। जूती चाटना , अधजल गगरी छलकत जाए, पिटे कुत्ते की तरह, सिर चढ़ाई डोमनी गावे ताल बेताल का प्रयोग मिलता है । सूक्तियों का प्रयोग पृथक रूप से नहीं किया गया है वे वाक्य में इस तरह प्रयुक्त हुई है कि सौन्दर्य द्विगुणित हो गया है। ” बहुत विश्वास, बहुत साहस, बहुत चुनौती के स्वर में कही गई हर निर्भीक बात अपने पीछे एक प्रतिध्वनि छोड़ जाती है– कमज़ोर पीले भय की।“(12) तथा ” कैसा होता है मन ! जिससे चोट खाता है, उसी से सहारा ढूंढता है और फिर दुगनी चोट खाता है । टूटता भी है और जोड़ता भी है और पूरी तरह से टूटता ही है ना जुड़ता ही है।“(13) कहानी में उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा आदि अलंकार सहज रूप में प्रयुक्त हुए हैं। प्रकरणगत अर्थान्तरन्यास का उदाहरण अवलोकन है-‘ अंधेरे में बाहर की आंख ना देखें लेकिन मन की आंख ज्यादा साफ देख लेती है ।‘ तथा ‘स्वीकृति का तमगा‘ जैसे रूपकात्मक प्रयोगों से भाषा में जीवंतता आई है । मुंशी जी, हरदेई , बिरजा सभी पात्रों में हनुमान जी, गंगा जी, यमुना जी, बद्रीनाथ– केदारनाथ आदि मंदिरों, पिंडदान, स्वर्ग– पाताल आदि के प्रति अंधविश्वास युक्त आस्था मिलती है। मुंशी जी यह मानते थे कि तीर्थ यात्रा करना अच्छा होता है। विशेष रूप से वृद्धावस्था में किंतु “बद्री हो आओ चाहे केदार, लेकिन अगर गया में अपना बेटा पिंडदान ना दे, पितरपक्ष में तर्पण ना करें तो नरक से छुटकारा नहीं मिलता।“(14) उन्होंने अंत समय में मुंह में डाले जाने के लिए गंगाजल और तुलसी के पत्ते की लुटिया भी अपनी खाट के पास रख ली थी । मुंशी जी द्वारा लाई पंडित रामबुझावन की गीता के हिंदी अनुवाद की प्रति से राघो प्रतिदिन माता–पिता को पढ़कर सुनाता है। “न इसको अस्त्र काटेंगे,न इसको शस्त्र बांटेंगे!सभी पीड़ा सहैगी यह,न आगी से दहैगी यह…।“(15) तथा“मरता है वो मरता नहीं, जीता है वो जीता नहीं। अर्जुन,तू समझ कि हारने वाला हारता नहीं, जीतने वाला जीतता नहीं। टूटता है वह कभी नहीं टूटता, जुड़ा है सो जुड़ा नहीं है।यह सब तो मैं लीला करता हूं।“(16) ऐसे प्रसंगों में मुंशी जी का मानसिक मंथन उभरा है। गीता की पंक्तियों -“रात आई सो गए सब, नींद में जड़ हो गए सब, एक जो सब कुछ सरेखे,वहीं जागे और देखें।“(17) पंक्तियों के नीचे उसी तात्पर्य को व्यक्त करने वाली कबीर की वाणी भी दी गई है-“सुखिया सब संसार है खावे और सोवे,दुखिया दास कबीर है जागे और रोवे।“(18) ये पंक्तियां वस्तुतः सोई बिरजा और मुंशी जी पर सटीक बैठती हैं जिनके शरीर खाए बांस की भांति खोखले हो चुके हैं । इसी प्रकार लकड़ी ले जाती मेहरिया का गाना उसकी जाति और जीवन विधि के अनुरूप है ।
विवेच्य कहानी भारती जी की विकसित कला चेतना की परिपक्वता का श्रेष्ठ निदर्शन है। उन्होंने एक व्यापक कैनवस पर इस चित्र को अंकित किया है। उनसे कुछ भी छूटा नहीं है । “पात्रों का घना बसा संसार ,जीवन के प्रति उनकी ललक और उत्साह , उनके अभाव और जीवन के छोटे–छोटे सुखों के लिए उनका संघर्ष , आदि सारी चीजें मिलकर इस कहानी की पृष्ठभूमि को जीवन्त एवं आकर्षक बनाती हैं लेकिन लेखक की रोमानी और भावुक दृष्टि एवं संस्कार इन कहानियों के प्रभाव और सार्थकता के आगे हमेशा ही प्रश्नचिन्ह लगाते दिखाई देते हैं और आधुनिक कहानी रचना के संदर्भ में इन्हें मात्र इतिहास की वस्तु बना कर छोड़ देते हैं ।“(19) प्रस्तुत कहानी सिद्धांतवादिता की अतिरेकता से मुक्त होने के कारण सरस , रोचक और जिज्ञासा पूर्ण है।
सन्दर्भ :
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धर्मवीर भारती का रचना संसार, डॉ सुरेश कुमार केसवानी,विधा प्रकाशन, पृष्ठ 118
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धर्मवीर भारती का साहित्य: सृजन के विविध रंग, डॉ चंद्रभानु सोनवने पृष्ठ 149
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धर्मवीर भारती की लोकप्रिय कहानियां संपादक पुष्पा भारती पृष्ठ 64
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धर्मवीर भारती की लोकप्रिय कहानियां संपादक पुष्पा भारती पृष्ठ 36
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धर्मवीर भारती की लोकप्रिय कहानियां ,संपादक पुष्पा भारती, पृष्ठ 60
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धर्मवीर भारती की लोकप्रिय कहानियां ,संपादक पुष्पा भारती, पृष्ठ 60
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धर्मवीर भारती की लोकप्रिय कहानियां, संपादक पुष्पा भारती, पृष्ठ 64-65
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धर्मवीर भारती की लोकप्रिय कहानियां, संपादक पुष्पा भारती, पृष्ठ 33
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धर्मवीर भारती की लोकप्रिय कहानियां ,संपादक पुष्पा भारती, पृष्ठ 40
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धर्मवीर भारती की लोकप्रिय कहानियां, संपादक पुष्पा भारती, पृष्ठ 37-38
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धर्मवीर भारती की लोकप्रिय कहानियां, संपादक पुष्पा भारती ,पृष्ठ 36
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धर्मवीर भारती की लोकप्रिय कहानियां संपादक पुष्पा भारती पृष्ठ 55
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धर्मवीर भारती की लोकप्रिय कहानियां संपादक पुष्पा भारती प्रशिक्षण पृष्ठ 56
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धर्मवीर भारती के लोकप्रिय कहानियां, संपादक पुष्पा भारती ,पृष्ठ 51
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धर्मवीर भारती के लोकप्रिय कहानियां, संपादक पुष्पा भारती , पृष्ठ 35
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धर्मवीर भारती के लोकप्रिय कहानियां, संपादक पुष्पा भारती , पृष्ठ 55
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धर्मवीर भारती के लोकप्रिय कहानियां, संपादक पुष्पा भारती , पृष्ठ 49
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धर्मवीर भारती के लोकप्रिय कहानियां, संपादक पुष्पा भारती , पृष्ठ50
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धर्मवीर भारती ,संपादक प्रभाकर श्रोत्रिय, पृष्ठ 150