समस्त राग-रागिनियाँ भी मानो इस भजन गायन से उस परमब्रह्म में लीन होने को तत्पर हो जाती हैं | पता नहीं गुरु नानक देवजी के शब्दों की महिमा है कि भैरवी राग की या आदरणीय पंडित जसराज जी के गायन की, यह भजन सुनते ही अध्यात्म के प्रांगण में सभी प्रयास दत्तचित्त होकर परम आनंद की स्थिति में पहुँच जाया करते हैं | ‘काम-क्रोध-मद-लोभ निवारो, छाड़ दे सब संत जना, कहे नानक शाह, सुनो भगवंता, या जग में नही, कोई अपना” पंक्तियां इतने मार्मिक ढंग से गाते थे, कि सहज ही इस संसार की निस्सारता का बोध हो जाता है |
शास्त्रीय संगीत के गायन के द्वारा सहृदय को सभी सरहदों के पार परमलोक तक ले जाना या स्वयं से जोड़ देना, यही संगीत सरताज पंडित जसराज के गायन का व्यापक प्रभाव है जो सुनने वाले को यह तक भुला देता है कि वह ‘कृष्ण, कृष्ण, कृष्ण, भोर ही मुख खोलो’ सुनकर कृष्ण में मगन हो गया है या स्वयं कृष्ण उनमें उतर आये हैं या हम स्वयं कृष्ण हो गए हैं | भगवान् कृष्ण के अनन्य भक्त पंडित जसराज शास्त्रीय संगीत के साथ अपने कृष्ण भजनों के लिए सम्पूर्ण संसार में प्रसिद्ध हुए | उन्हें इन भजनों के कारण अधिक प्रसिद्धि मिली और रसिक समाज के प्रिय बने | ‘वृन्दावन’ संकलन के सभी भजन एक से बढ़ कर उत्कृष्ट हैं | सूरदास और अन्य कवियों के कृष्ण भजनों को उन्होंने स्वरबद्ध किया और भक्ति रस से सभी को आनंदित किया |
![](https://www.thepurvai.com/wp-content/uploads/2020/08/jasrajjpeg-300x187.jpg)
पद्मविभूषण पं. जसराज वस्तुत: जस (यश) पर राज करते थे। “यथा नाम तथा गुण:” की साक्षात् प्रतिमूर्ति थे। यश तो उनकी स्वर-सम्पदा का अनुगामी था। उनकी उपस्थिति सुरीले दिव्य वातावरण को सृजित कर देती थी। कई कार्यक्रमों में मंच पर उनके साथ तानपूरा बजाने का मुझे सौभाग्य मिला था, वे अप्रतिम क्षण मेरे जीवन की अनमोल धरोहर हैं।
भावभीनी श्रद्धांजलि।