एक बात हैरान कर देने वाली है कि मायावती और बसपा का तो मतदाताओं ने फ़ातिहा ही पढ़ दिया लगता है। लगता है कि उनके लिये कम-बैक करना आसान नहीं होगा। कल तक राष्ट्रीय राजनीति में एक अहम् नाम – ‘मायावती’ जैसे पूरी तरह से ध्वस्त हो गया। उनकी डॉक्टर अंबेडकर की बपौती भी केजरीवाल ने हथिया ली है। उसने आदेश दे दिया है कि पंजाब सरकार के दफ़्तरों में भगत सिंह एवं डॉ अंबेडकर की फ़ोटो लगाई जाएगी और मुख्यमंत्री की नहीं। यानी कि भगत सिंह की भी भारतीय राजनीति में ऑफ़िशियल एंट्री हो ही गयी।

भारत में उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में चुनाव संपन्न हुए और नतीजे भी सामने आ गये। पंजाब को छोड़ कर सभी चार राज्यों में भारतीय जनता पार्टी ने दोबारा जन-समर्थन हासिल किया है और वहां अपनी सरकार बनाने जा रही है। 
पंजाब में आम आदमी पार्टी ने करिश्मा कर दिखाया और सभी पार्टियों पर झाड़ू की जगह वैक्यूम क्लीनर चला दिया। 
मेरा एक मित्र अमृतसर में चुनावी ड्यूटी पर था। उसने मतदान की शाम मुझे यह संदेश भोजा, “तेजेन्द्र जी, मैंने चुनावी ड्यूटी के दौरान एक कटु सत्य का साक्षात्कार किया… 77 % मतदान में 90% अंगूठे के निशान लगे। 5%से ज्यादा के हस्ताक्षर सही नहीं थे। पहली बार वोट डालने आए सात युवाओं में से तीन लड़कियां और एक लड़का कोरे अशिक्षित… केवल एक लड़की मैट्रिक पास थी और एक लड़का बी. एससी. एग्रीकल्चर कर रहा था।”
पंजाब के सबसे बड़े शहर अमृतसर का यदि यह हाल है तो यू.पी. और पंजाब के गाँवों की क्या स्थिति रही होगी? प्रश्न तो उठता ही है कि क्या भारत आज भी सही मायने में लोकतंत्रीय प्रणाली के लिये तैयार है? हमारे अंग्रेज़ीदां पत्रकार क्या ऐसे वोटरों के साथ भी बातचीत करते होंगे? 
पंजाब में तो कमाल ही हो गया। लगा जैसे एक राजनीतिक सुनामी आ गयी है। प्रकाश सिंह बादल, कैप्टन अमरिंदर सिंह, नवजोत सिंह सिद्धु, चरणजीत चन्नी, विक्रम मजीठिया, सुखबीर बादल, राजिन्दर भट्टल, जागीर कौर जैसे बड़े-बड़े नाम खेत रहे। अब तो लगने लगा है कि जैसे राहुल गान्धी जानबूझ कर कांग्रेस पार्टी की नैया डुबाने की मुहिम चलाए हैं।
पहले कैप्टन अमरिंदर सिंह के पीछे नवजोत सिंह सिद्धु को छोड़ दिया और सिद्धु को लगाम लगाने के चक्कर में तथाकथित दलित चरणजीत चन्नी को मुख्यमंत्री बना दिया। तीनों धराशाई हो गये और कांग्रस पार्टी के विधान सभा सदस्यों की संख्या 77 से कम हो कर केवल 17 रह गयी। 
वर्तमान चुनावों के बाद कांग्रेस के बाद आम आदमी पार्टी पहली ऐसी राजनीतिक पार्टी बन गयी है जिसने अपने जन्म के दस साल के भीतर ही देश के दो राज्यों में सत्ता हासिल कर ली है। यानी कि केजरीवाल की राष्ट्रीय नेता बनने की आकांक्षा ने उड़ान भर ली है। सच तो यह भी है कि इस समय कांग्रेस और आम आदमी पार्टी की दो दो राज्यों में सरकारें हैं। हां कांग्रेस की एक तिहाई सरकार महाराष्ट्र में भी चल रही है। मगर वो मामला मजबूरी का है। 
केजरीवाल के विरुद्ध कवि-नेता कुमार विश्वास के गंभीर आरोपों पर भी पंजाब की जनता ने विश्वास नहीं किया। हालांकि कुमार विश्वास ने केजरीवाल को खुली चुनौती दी थी और केजरीवाल ने उन आरोपों को नकारा नहीं था, फिर भी जनता ने यह मानने से इन्कार कर दिया कि केजरीवाल के आतंकवादियों के साथ रिश्ते हैं। वैसे भी केजरीवाल ने तो घोषणा कर ही दी थी कि वह ‘मासूम आतंकवादी’ है।  
अरविंद केजरीवाल की राष्ट्रीय आकांक्षाओं के बढ़ते कदमों से जिस नेता के भविष्य पर सवालियां निशान लगाए हैं – वह हैं पश्चिम बंगाल की नेता ममता बनर्जी। केजरीवाल ने उनकी सपनों की चादर में छेद कर दिये हैं। 
इन चुनावों ने कुछ ख़ास तरह के पत्रकारों को बेनकाब कर दिया है। लाखों रुपये की पगार पा चुके बेरोज़गार यूट्यूब पत्रकार, पूरा एन.डी.टी.वी. और राजदीप सरदेसाई जैसे तथाकथित एंकरों ने अखिलेश यादव को उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बना ही दिया था। ठीक वैसे ही जैसे डॉनल्ड ट्रंप के विरुद्ध हिलेरी क्लिंटन को। ये लोग ज़मीनी हकीकत से इतनी दूर होते हैं कि आम आदमी क्या सोचता है, इन्हें कोई ख़बर नहीं रहती।
इन चुनावों में यदि किसी का बहुत बड़ा नुक़्सान हुआ है तो वो हैं राकेश टिकैत, योगेन्द्र यादव और तथाकथित किसान आंदोलन का दोहन करने वाले नेता जयंत चौधरी जैसे नेताओं का। जो लोग अंतिम समय में भाजपा छोड़ सपा में शामिल हुए, वे भी लुटे-पिटे दिखाई दे रहे हैं। ध्यान देने लायक बात यह है कि भारतीय जनता पार्टी का वोट-शेयर तो उत्तर प्रदेश में 5% बढ़ा है। 2017 में बीजेपी को 39.6 फीसदी वोट मिले थे जो कि 2022 में यानी पांच साल में पांच प्रतिशत बढ़कर 44.6 फीसदी हो गया है। मगर सीटों के मामले में भाजपा को 60 सीटें कम मिली हैं। 
उत्तर प्रदेश में मुस्लिम बहुल की 71 सीटों में से  67 पर बीजेपी बड़े अंतर से हारी है। पिछले चुनावों में बीजेपी को यहां से 47 सीटें मिली थी। इस सब के बावजूद अखिलेश यादव बहुमत हासिल नहीं कर पाए। 
एक बात हैरान कर देने वाली है कि मायावती और बसपा का तो मतदाताओं ने फ़ातिहा ही पढ़ दिया लगता है। लगता है कि उनके लिये कम-बैक करना आसान नहीं होगा। कल तक राष्ट्रीय राजनीति में एक अहम् नाम – मायावती जैसे पूरी तरह से ध्वस्त हो गया। उनकी डॉक्टर अंबेडकर की बपौती भी केजरीवाल ने हथिया ली है। उसने आदेश दे दिया है कि पंजाब सरकार के दफ़्तरों में भगत सिंह एवं डॉ अंबेडकर की फ़ोटो लगाई जाएगी और मुख्यमंत्री की नहीं। यानी कि भगत सिंह की भी भारतीय राजनीति में ऑफ़िशियल एंट्री हो ही गयी।
कुछ ऐसा ही हाल हुआ असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम का भी हुआ। उसे राज्य की जनता ने पूरी तरह नकार दिया है। खासतौर से मुस्लिम मतदाताओं ने एआईएमआईएम के प्रति ठंडा रवैया बनाए रखा और समाजवादी पार्टी में अपना विश्वास व्यक्त किया। ओवैसी की पार्टी को मात्र 0.45 फीसदी वोट हासिल हुए हैं, जोकि नोटा से भी कम है। यूपी में इस बार करीब 0.69 फीसदी जनता ने NOTA का विकल्प चुना है। इसका अर्थ है कि उन्हें उपलब्ध उम्मीदवारों में से कोई पसंद नहीं आया। 
उत्तराखंड में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी एवं कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत दोनों चुनाव हार गये हैं। मगर भारतीय जनता पार्टी ने राज्य में पूर्ण बहुमत हासिल कर लिया है। सभी पाँच राज्यों में मुख्य दलों की स्थिति कुछ इस प्रकार है – उत्तर प्रदेशः भाजपा 265 सीट, सपा 132 सीट, बसपा 2 और कांग्रेस 2। मणिपुरः भाजपा 28, कांग्रेस 6। पंजाबः आम आदमी पार्टीः 92, कांग्रेस 18, अकाली दलः 4 और भाजपाः 2। गोवाः भाजपाः20, कांग्रेस 12, अन्य 8। उत्तराखण्डः भाजपा 48, कांग्रेस 18, अन्य 4। 
उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ; पंजाब में आम आदमी पार्टी के भगवंत मान, उत्तराखंड में पुष्कर धामी, मणिपुर के मौजूदा मुख्यमंत्री और बीजेपी नेता एन बीरेन सिंह ही नये मुख्यमंत्री होंगे। गोवा में अभी तय नहीं हो पाया है कि नये मुख्यमंत्री का चेहरा कौन बनेगा। 
इन चुनावों में मतदाता ने एक बात तय कर दी है कि वंशवाद से जुड़े तमाम राजनीतिक दलों का बंटाधार करना है। …और कर भी डाला है। माँ-बेटे की पार्टी कांग्रेस का तो अस्तित्व ही ख़तरे में पड़ गया है… अखिलेश यादव के सपने धराशाई हो चुके हैं… अकाली दल के सिरमौर प्रकाश सिंह बादल को इस उम्र में पराजय का हार अपने गले में डालना पड़ा… टी.एम.सी. की ममता बनर्जी कलकत्ता से विशेष तौर से यूपी आईं… और बस… वापिस चली गयीं।
उत्तर प्रदेश में कांग्रेस पार्टी तो पूरी तरह से मटियामेट हो गयी। वहां कांग्रेस प्रियंका गान्धी के नेतृत्व में चुनाव लड़ रही थी। मगर नतीजे निकले तो पता चला कि कांग्रेस पार्टी के 399 में से 387 उम्मीदवारों की ज़मानत ज़ब्त हो गई। क्या यही कांग्रेस-मुक्त भारत की कल्पना रही होगी? मायावती की बहुजन समाज पार्टी भी इस प्रतियोगिता में बहुत पीछे नहीं रही। उसके 403 प्रत्याशियों में से 290 की ज़मानत ज़ब्त हो गयी। कांग्रेस को तो महज़ 2.4% वोट शेयर मिला जबकि 33 सीटों पर चुनाव लड़ने वाली राष्ट्रीय लोकदल के हिस्से 2.7% वोट शेयर आया।
कांग्रेस पार्टी को इस घोर पराजय के लिये ज़िम्मेदारी तय करते हुए नेतृत्व परिवर्तन के बारे में गंभीरता से विचार करना होगा। प्रियंका गान्धी इससे बच नहीं सकती। राहुल गांधी को कैप्टन-चन्नी-सिद्धु खेल की ज़िम्मेदारी लेते हुए राजनीति से सन्यास ले लेना चाहिये। राजनीति उनके बस की बात नहीं है। वैसे कांग्रेस के जी-23 कहे जाने वाले वरिष्ठ नेताओं ने एक बैठक की है और सोनिया गांधी के साथ नेतृत्व परिवर्तन के बारे में बातचीत करने वाले हैं।
लेखक वरिष्ठ साहित्यकार, कथा यूके के महासचिव और पुरवाई के संपादक हैं. लंदन में रहते हैं.

25 टिप्पणी

  1. Congratulations Tejendra ji for this totally non- biased and detailed analysis of the election results of our country.
    The changes that you have enumerated in the choice of leaders among the very poor and illiterate voters of Punjab are indeed noteworthy n speak of new patterns of leadership too.
    Your editorial sums it all up in a most admirable manner.
    Deepak Sharma

    • सर जी । आपने बड़ा critical और unbiased analysis किया है । मुबारक ! एक बात और उभर कर सामने आई है वो ये कि भाजपा को केजरीवाल आने वाले समय में बड़ी कड़ी टक्कर दे सकता है ।

  2. प्रणाम सर
    सर मुझे बहुत बेसब्री से इंतजार था आपके इस आर्टिकल का। बिल्कुल सभी को यही लग रहा था इस बार सत्ता परिवर्तन होगा क्योंकि इस बार कांटे की टक्कर थी। मैं जहां खुद मुरादाबाद से हूं यूसुफ अंसारी शाम पांच बजे तक आगे चल रहे थे कि अन्तिम दो ईवीएम ने बीजेपी के रितेश गुप्ता को 721 वोट से विजय घोषित कर दिया और बद्रीनाथ में तो बीजेपी सिर्फ एक वोट से ही हारी है। सही कहा आपने कि कांग्रेस और आप पार्टी के पास दो-दो सीट है पर देखने वाली बात यह है कि आप पार्टी का ग्राफ बढ़ता हुआ है जबकि कांग्रेस का गिरता हुआ।

    • अंजु, आप संपादकीय की प्रतीक्षा करती हैं, यह जान कर बहुत अच्छा लगा। इस सार्थक टिप्पणी के लिए धन्यवाद।

  3. चुनाव का समंकीय विश्लेषण अद्भुत है, पंजाब में अशिक्षा का आंकड़ा चौकाने वाला है वहाँ सत्ता में तो अर्से तक कांग्रेस रही।
    सम्पादकीय पढ़कर लगता है BJP का’सबका साथ, सबका विकास सबका विश्वास एक नारा ही नहीं वरन संकल्प है जिससे जनाधार मिला ।आपका संकेत सही है कि बाकी पार्टियों का विकल्प जनता को आम आदमी पार्टी में नज़र आ रहा है।कांग्रेस के (जी-32)नया उपमान रेखाँकित करने योग्य है।
    साधुवाद
    Dr Prabha mishra

    • प्रभा जी आप निरंतर पुरवाई संपादकीय पर सारगर्भित टिप्पणी देती हैं। आपका बहुत बहुत शुक्रिया।

  4. कल से इस विश्लेषण का इंतज़ार था कि आपकीं कलम इन नतीजों पर क्या कहती है ।आपने सटीक आकलन किया है ।

  5. आपका चुनावी विश्लेषण इतना सटीक है कि मुझ जैसे को भी विभिन्न दलों की राजनीतिक स्थितियों की जानकारी और समझ आ गई। वर्तमान चुनाव नतीजों से स्पष्ट है कि जनता जागरूक हो रही है।

  6. संपादकीय बहुत शोधपरक है, चुनाव अपने में बेहद रोमांचक रहा विशेषतः उत्तर प्रदेश में, मीडिया अखिलेश को राजगद्दी सौंपने को उतारू थी, जनता BJP को, सामन्य व्यक्ति होते हुए हमें यह पता था, पर मीडिया जानती नहीं थी, या अखिलेश का प्रचार कर रही थी। कॉंग्रेस मुक्त तो भारत हो ही रहा है, बस गाँधी मुक्त हो जाये तो, नया भारत बन जाये। राहुल गांधी वायनाड में आइसक्रीम खा कर चुनाव जीत रहे थे, अखिलेश 4 महीने के प्रचार से up जीत रहे थे। आज जनता ऐसों को उनकी जगह बताना जानती है। स्कूली शिक्षा के बिना भी डिजिटल साधनों ने जनता को जागरूक बना दिया है, ऐसा मुझे लगता है। चुनाव के नतीजों से और आपके संपादकीय से तबियत खुश हुई, तेजेन्द्र जी आपको बधाई और शुभकामनाएं।

    • धन्यवाद शैली जी। आपने स्थिति को सही ढंग से पकड़ा है। इस सारगर्भित टिप्पणी के लिये धन्यवाद।

  7. पांच राज्यों के चुनाव परिणाम पर आपका ये संपादकीय बहुत ही विस्तृत रूप से विवेचना करता है। इस परिणाम से निकले संदेश न केवल बहुत गहरे अर्थ रखते हैं बल्कि इसके संकेत भी दूरगामी हैं। आप ने बिंदु दर बिंदु हर राज्य से आने वाले संदेशों पर अपनी बात रखी और साथ ही इस चुनाव में सक्रिय पार्टियों के भविष्य पर भी सही टिप्पणी की है। कहना नहीं होगा कि आने वाले समय में राष्ट्रीय पार्टियों में से वही आगे सफल होगी जो बदलते समय की चाल को भांप लेगी।
    सम्पादकीय पर आपके विचारों से चुनाव परिणामों की तस्वीर और उनसे निकले संदेश, दोनों ही स्पष्ट समझ आ रहे हैं।
    सुंदर विवेचना के लिए साधुवाद तेजेन्द्र सर।

    • विरेन्द्र आप लगातार पुरवाई संपादकीय पढ़ते हैं और सार्थक टिप्पणी भेजते हैं। धन्यवाद।

  8. अति सराहनीय
    विषय का गहन अध्धय्यन , आज राजनीति साम दाम दण्ड भेद से सत्ता पर अधिकार के लिए अफरातफरी, कौन है सच्चा कौन है झूठा हर चेहरे पे नक़ाब है । इन सब पर आशचर्य जनक बात शिक्षित मतदाताओं का प्रतिशत ! आपके मित्र द्वारा रिपोर्ट आंकड़े ! अमृत महोत्सव के वर्ष में ! कितना प्रजातन्त्र के लायक !
    ये सम्विधान क्या होता है !!
    अब तो राम ही जान बचाय, बेड़ा पार लगाए !!!

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