नारी हूँ नारी ही कहलाऊंगी
चाहे युग कोई भी आये
मैं जननी ही कहलाऊंगी
नारी हूँ——–
पर मेरे भी हैं रूप अनेक
नहीं बनूँगी इस समाज की कठपुतली
मान और सम्मान से रहकर
मैं अपना परचम लहराउंगी
नारी हूँ——
हे नारी – इस परिवर्तित समाज की
आज नहीं तुम अबला हो
सहम न जाना किसी मोड़ पर
तुम इस समाज की सबला हो
संभालो अपने अस्तित्व को नारी
माना डगर कठिन है  आगे
फिर भी डटकर चलने वाली
तुम हर मंजिल पर विजय करो
अपने इतिहास को पहचानो
नारी ने क्या क्या रूप दिखाए थे
आज अपने मान और सम्मान की खातिर
तुमने अपनी एक नई पहचान बनाई है
इस नवीन समाज तुम नई परिभाषा हो
अपने कर्त्तव्य से कभी डोर नहीं भागी हो
ऐसी तुम मां ,बहन और पत्नी हो
हर रिश्ते की तुम कमान हो
अपनी शक्ति की पहचान हो
रूढ़िवादिता की बेड़ी तोड़ो
हर मंजिल को पार करो
अपने मन के भय का नाश करो
नई मंजिल पर पांव धरो
माना मुशिकल बहुत बड़ी है
फिर भी मन में संकल्प धरो
बेधड़क चलकर समाज में
अपनी ख्वाहिश  पूर्ण करो
तोड़ो डर की उस बेड़ी को
जो पैरों में पड़ी हुई
नारी हो तुम, सबल हो तुम
नव अवतार धरो तुम अपना
आज समाज को शिक्षित नारी की अभिलाषा है
क्योंकि
नई किरण को लाने वाली
तुम समाज की आशा हो

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