Sunday, May 19, 2024
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संपादकीय – फ़्रांस… हिंसा और उसके बाद…!

फ़्रांस में आज जो स्थिति सामने आ रही है, वह निःस्संदेह गंभीर है। यह यूरोप में सरकारों द्वारा अपनाए गये दृष्टिकोण के बारे में कुछ महत्वपूर्ण सवाल भी उठाता है। यदि कोई देश खुले मन से शरणार्थियों को अपने देश में पनाह देता है तो उनकी संवेदनाओं का भी ख़्याल रखना होगा। वहीं यह स्थिति शरणार्थियों पर भी यह ज़िम्मेदारी डालती है कि अपने अपनाए हुए देश को अपना देश समझना शुरू करें।

17 वर्ष के नाहेल की पुलिस के हाथों हुई हत्या के बाद लगभग पूरे सप्ताह भर फ़्रांस हिंसा की आग में जलता रहा – वहां आगज़नी, लूटपाट तो हुई ही, इन सबके बीच फ़्रांस की ऐतिहिसिक मार्सेले लाइब्रेरी को भी फूंक दिया गया। बताया जाता है कि एक हज़ार से अधिक दंगाइयों को गिरफ़्तार किया जा चुका है और दो सौ से अधिक पुलिसकर्मी घायल हुए हैं। नाहेल अल्जीरियाई मूल का मुसलमान था। इसीलिये यह जुर्म और कानून से जुड़ी घटना से कहीं आगे बढ़ कर सांप्रदायिक दंगे में परिवर्तित हो गई।
जिस प्रकार नाहेल की हत्या हुई उसकी फ़्रांस और उसके बाहर भरपूर निंदा हुई। राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रां को अपना जर्मनी दौरा रद्द करना पड़ा जबकि 23 साल के बाद पहली बार कोई फ़्रांसीसी राष्ट्रपति जर्मनी के दौरे पर जा रहा था।
नाहेल के बारे में आमतौर पर उसके परिवार और जानने वालों ने अच्छी बातें ही कहीं। उनके अनुसार वह एक विनम्र बच्चा था और नशे या किसी प्रकार की आपराधिक गतिविधियों से नहीं जुड़ा था। उसकी माँ ज़ाहिर है कि बुरी तरह से टूट गई थी और प्रशासन से बुरी तरह नाराज़ है। नाहेल की मां का कहना है कि जिस पुलिसवाले ने गोली मारी, उसने एक अरब चेहरा देखा, एक छोटा बच्‍चा देखा और उसकी जान लेना चाहता था।’ फ्रांस 5 टीवी से बात करते हुए मां ने सिर्फ एक व्यक्ति को दोषी ठहराया, जिसने उनके बेटे पर गोली चलाई, पुलिस को नहीं। मौनिया ने कहा, ‘मेरे कई दोस्त (पुलिस) ऑफिसर्स हैं – वे पूरे दिल से मेरे साथ हैं।’
नाहेल की मां के अनुसार, उनके बेटे को सब प्यार करते थे। वह रग्बी खेलता था और भोजन डिलीवरी का काम करता था। वैसे पढ़ाई में नाहेल का मन नहीं लगता था। उसने इलेक्ट्रिशियन बनने के लिए कॉलेज में एडमिशन लिया था। वहां भी उसका अटेंडेंस का रिकॉर्ड काफ़ी खराब है।
मगर वहीं पुलिस का दावा है कि इससे पहले भी नाहेल को पांच बार ग़ैर-कानूनी ढंग से कार चलाने के अपराध में रोका गया। वह रुकने के आदेश को बार-बार नज़रअंदाज़ करता आया था। जब पुलिस ने मंगलवार को उसे रोका तो जिस कार में वह मौजूद था था, उसपर पोलैंड की नंबर-प्लेट थी और दो यात्री भी थे। 17 साल की उम्र में ड्राइविंग लाइसेंस नहीं मिलता। पिछले हफ्ते भी उसे कुछ वक्त के लिए हिरासत में लिया गया था क्योंकि वह सितंबर 2022 में जुवेनाइल कोर्ट के सामने पेश नहीं हुआ था।
फ़्रांस की सोशलिस्ट पार्टी की नेता ओलिविएर फॉरे ने कहा कि ‘रुकने से इन्कार करने पर पुलिस को हत्या का लाइसेंस नहीं मिल जाता। देश के सभी बच्‍चों को न्याय का अधिकार है।’​ वहीं नाहेल की मां मौनिया ने पूरी पुलिस फ़ोर्स पर निशाना नहीं साधा। उसे शिकायत उसी अधिकारी से है जिसने एक अरबी युवा चेहरा देखा और उस पर गोली चला दी। उन्होंने आगे कहा कि मेरे कई दोस्त पुलिस अफ़सर हैं। वे पूरे दिल से मेरे साथ हैं।
फ़्रांस के उपनगरीय क्षेत्रों पर मीडिया का ध्यान तभी जाता है जब वो आग की लपटों में घिरे हों। मुल्क़ में भड़की हिंसा की मौजूदा आग भी इसका अपवाद नहीं है। दरअसल इस हिंसा ने स्कूलों और पुलिस स्टेशनों तक को आग की लपटों के हवाले कर दिया।
नाहेल की हत्या के विरोध में फ्रांस जल उठा। पैरिस के कई हिस्सों में आगज़नी और हिंसा की घटनाएं हुईं। कुछ जगह शांतिपूर्ण प्रदर्शन भी हुए। हिंसा की आग अन्य शहरों में भी फैल गई। अब तो इसकी लपटें युरोप तक पहुंचने लगी हैं। फ्रांस में भड़के विवाद पर सबसे महत्वपूर्ण बात नाहेल के परिवार के वकील, यासीन बुजरू ने कही है। उनका कहना है कि घटना को केवल नस्लवाद के चश्मे से देखने के बजाय न्याय मांगने पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए। एक ज़िम्मेदार वकील और नागरिक ही ऐसी दृष्टि से मसले को देख सकता है।
फ़्रांस में 40,000 पुलिसकर्मियों को कानून-व्यवस्था काबू में करने के लिए लगाया गया। 600 से भी अधिक पुलिसकर्मी घायल हुए हैं। लगभग 2000 दंगाइयों को गिरफ्तार किया गया। सोशल मीडिया पर लोग कह रहे हैं कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को वहाँ भेज दिया जाए, वो 24 घंटे के भीतर दंगों को नियंत्रित कर सकते हैं।
नाहेल की मौत के बाद लोगों के मन में पुलिस के खिलाफ नफरत पनपने लगी और सोशल मीडिया ने ‘आग में घी’ डालने का काम किया। वहीं, राष्ट्रपति मैक्रों ने देश में बेकाबू हालात के लिए सोशल मीडिया को काफी हद तक जिम्मेदार ठहराया है। नाहेल की हत्या की तुलना अमेरिका में जॉर्ज फ्लॉयड की हत्या से की गई है।
हिंसाग्रस्त फ्रांस के फुटबॉल स्टार किलियन एम्बाप्पे सहित कई अन्य शख्सियतों ने शांति की अपील की है और कहा कि हिंसा से कोई समाधान नहीं निकलता। हालांकि, इस अपील का कोई खास असर दिखाई नहीं दे रहा है। ऐसे में सरकार ने उपद्रवियों को रोकने के लिए सुरक्षाबलों की तैनाती बढ़ाकर 45 हजार कर दी।
भारतीय सोशल मीडिया में फ़्रांस की हिंसा अचानक वायरल हो उठी जब वहां ख़बर पहुंची की फ़्रांस की ऐतिहिसिक मार्सेले लाइब्रेरी को भी जला दिया गया। उन्हें अचानक याद आ गया बख़्तियार खिलजी जिसने नालंदा विश्वविद्यालय को जला दिया था।
भारत में सोशल मीडिया पर सवाल पूछे जाने लगे कि आख़िर वो कौन-सी मानसिकता है, जो विद्या के मंदिरों को भी फूँक देती है। विद्यालयों और पुस्तकालयों को जलाने वाले ये लोग कौन होते हैं? वे बात करने लगे 830 वर्ष पहले सन् 1193 की जब इस्लामी आक्रांता बख़्तियार खिलजी ने पूरे नालंदा विश्वविद्यालय को तबाह कर दिया था। साथ ही उसके नौ-मंज़िला पुस्तकालय को आग के हवाले कर दिया था। कहते हैं, वहाँ दुर्लभ प्राचीन पांडुलिपियों समेत लाखों पुस्तकें थीं जो धू-धू कर ऐसी जली कि महीनों तक जलती रही।
ट्विटर पर बहुत से भारतीयों ने इस विषय पर अपने-अपने ट्वीट में दुख ज़ाहिर किया। मगर पूरे युरोप में इस हिंसा के बाद शरणार्थियों को लेकर बहुत से सवाल किये जाने लगे हैं।
ऐसा सोचा जाने लगा है कि यदि फ़्रांस ने शरणार्थियों का दिल खोल कर स्वागत न किया होता तो आज फ़्रांस को ये दिन नहीं देखने पड़ते। फ़्रांसीसी कानून राज्यको जातीयता के आधार पर जनगणना करने से रोक लगाते हैं। वैसे कुछे ऐसे संकेत मिलते हैं कि सात करोड़ की आबादी वाले फ़्रांस में 15% लोग विदेशी मूल के हैं। फ़्रांस में आने वाले आप्रवासियों की संख्या में लगातार वृद्धि हुई है। इसमें से वर्तमान आबादी का लगभग 10% विदेश में जन्मे लोग हैं। इनमें से अधिकांश प्रवासी अफ़्रीका और एशिया से आए हैं।
जातीय विविधता, धार्मिक अल्पसंख्यक वर्ग, अवैध प्रवास और कुछ स्थानीय नीतिगत निर्णयों को फ़्रांस में लंबे अरसे से चली आ रही हिंसा के विस्फोट के लिये उत्तरादायी ठहराया गया है। बहुत से पर्यवेक्षकों ने इस बारे में फ़्रांसीसी कानूनों को दोषी ठहराया है। इन कानूनों के कारण ऐसा माना जाता है कि अल्पसंख्यक समूह को भेदभाव और अपमान का अहसास होता है। वहीं यह भी सच है कि प्रवर्तन एजेंसियां निरंतर चुनौतीपूर्ण माहौल और ज़बरदस्त तनाव में काम करती हैं।
फ़्रांस में आज जो स्थिति सामने आ रही है, वह निःस्संदेह गंभीर है। यह युरोप में सरकारों द्वारा अपनाए गये दृष्टिकोण के बारे में कुछ महत्वपूर्ण सवाल भी उठाता है। यदि कोई देश खुले मन से शरणार्थियों को अपने देश में पनाह देता है तो उनकी संवेदनाओं का भी ख़्याल रखना होगा। वहीं यह स्थिति शरणार्थियों पर भी यह ज़िम्मेदारी डालती है कि अपने अपनाए हुए देश को अपना देश समझना शुरू करें।
तेजेन्द्र शर्मा
तेजेन्द्र शर्मा
लेखक वरिष्ठ साहित्यकार, कथा यूके के महासचिव और पुरवाई के संपादक हैं. लंदन में रहते हैं.
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47 टिप्पणी

  1. पुरवाई संपादक श्री तेजेंद्र शर्मा के संपादकीय का इंतज़ार बड़ी बेसब्री से रहता है।फ्रांस सरकार की मुसीबत उसका उजला और स्याह दोनों पक्षों को सहज भाषा में बंया किया गया है। परंतु साथ ही साथ समाधान भी बड़ी ही साफगोइ से सीधे सपाट शब्दों में लिखा गया है।जो फ्रांस ही नहीं वरण विश्व के अन्य देशों में इसी प्रकार की चल रही गतिविधियों का भी प्रतिबिंब इस संपादकीय में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से किया गया है और यही खूबी होती है एक अनुभवी और संवेदनशील लेखक या सही अर्थों में मीडिया कर्मी की। एक जिम्मेदार आलेख को पढ़ कर बहुत अच्छा महसूस हुआ।

  2. You have raised a significant issue. Both sides should be sensitive and sensible. Responsible community leaders are the need of the day who can help in normalizing the situation and maintaining harmony among people. Such large scale violence is not welcome in any country . If this kind of inexplicable violence continues, then that day is not far off when all countries will be closing their doors to all refugees !

  3. पोलैंड के राजनैतिक का एक वीडियो वायरल है जिसमे कहा गया है कि वहां कोई साम्प्रदायिक दंगा नहीं होता कारण वहां शरणार्थियों को शरण की मंजूरी नहीं कल कुछ यूक्रेन शरणार्थी को लिया, इस्लामिस्ट शरणार्थी तो कभी न लें दंगे की जड़ वे हैं।
    आज समय आ गया है न केवल राजनेता न केवस्ल मीडिया बल्कि सभी को यह ताकत लानी होगी कि वे सफेद को सफेद और काले को काला कह सकें। मानवता अपनी जगह सही है। भारत का इतिहास् इस प्रकार की मानवता दिखाने के प्रतिफल से भरा पड़ा है। पाश्चात्य जगत भारत को कोई अहमियत नहीं देता और यहां के इतिहास् में भी हिंदुत्व देखता है जब अब फ्रांस भुगत रहा है तो उनकी आंखें खुल रही हैं। समय आ गया है इस प्रकार के अतिवाद को दृढ़ता से सुलझाया जाय।

  4. आदरणीय संपादक महोदय ,आज के संपादकीय का विषय अत्यंत संवेदनशील है और इस पर आपने जितने सर्वांगीण विचार और विवेचना प्रस्तुत की है वह अत्यंत प्रशंसनीय है। भारत की संस्कृति में ही शरणागत को शरण ना देने वाले को निंदनीय समझा जाता है ,राजा शिवि का उदाहरण और श्रीराम का कथन :
    शरणागत कां जे तजहिं, तिनहिं बिलोकत हानि,
    हमारे मार्गदर्शक हैं। परंतु इस संवेदनशीलता का ऐसा खामियाजा भुगतना पड़े तो कोई भी देश शरणार्थियों को अपने देश में शरण कैसे देगा? कुछ शरणार्थी आश्रय दाता देश को अपना समझ, उसकी समृद्धि ,उसकी उन्नति में अपना योगदान देते हैं और दूसरी तरफ कुछ कृतघ्न मानसिकता वाले लोग सदैव अपने तथाकथित अधिकारों की मांग करके आश्रय दाता को ही हानि पहुंचाते हैं।
    फ्रांस की इस लोमहर्षक दुर्घटना के बाद सभी शरण देने वाले देशों को अपनी नीतियों पर पुनर्विचार करना अति आवश्यक है।
    विवेचनात्मक संपादकीय के लिए धन्यवाद

  5. अत्यंत विचारणीय…. ये सब देखने के पश्चात् बुद्धि उदय हो जाना आवश्यक है

  6. आदरणीय श्री तेजेन्द्र शर्मा जी ‘पुरवाई’ के संपादकीय में हमेशा ज्वलंत और जरूरी मुद्दों को उठाते हैं और बेबाकी से अपनी बात को रखकर उसका समाधान भी प्रस्तुत करते हैं।आज के संपादकीय में जलते हुए फ्रांस पर एक जरूरी आलेख में वहां की सरकार की नीति एवं जनता की संवेदनाओं,साथ ही रंगभेद, जातिभेद एवं शरणार्थियों की संवेदनाओं पर बहुत ही महत्वपूर्ण आलेख लिखा है जो एक जिम्मेदार व्यक्ति ही कर सकता है। इस मसले पर भारतवर्ष से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री माननीय आदित्य नाथ योगी जी का नाम आना सुखद भी लगता है कि हमारे देश में एक प्रतिनिधि ऐसे भी हैं जो ऐसी स्थितियों को काबू करने की क्षमता रखते हैं।
    फ्रांस में ज्ञानालयों को आग के हवाले करना बहुत दुखद है।यह याद दिलाता है भारतवर्ष के उस क्रूर इतिहास की जिसमें पूर्व इस्लामी आक्रांता खिलजी द्वारा नालन्दा विश्वविद्यालय को आग के हवाले कर दिया गया था (जिसकी सम्पत्ति महीनों तक जलती रही)। विद्यालयों, पुस्तकालयों को आग के हवाले करना विकृत मानसिकता का पर्याय है। नालंदा विश्वविद्यालय को जलाने के पीछे खिलजी की बहुत सोची-समझी रणनीति थी, बीमारी हालत और उससे उबरने के पश्चात वह जान गया था कि भारतवर्ष के आचार्य एवं यहां के ज्ञानालय सर्वोत्कृष्ट हैं; जिनका ज्ञान मात्र ही पूरे विश्व पर राज करने में सक्षम है। जो वह कदापि नहीं चाहता था सो उस आक्रांता ने हमारे ज्ञान के अचूक भंडार को आग के हवाले कर दिया। लेकिन जो आगजनी फ्रांस में हो रही है वह सोची-समझी चाल नहीं क्षणिक आवेग मात्र है जिसका पछतावा उन्हें निकट भविष्य में जरूर होगा।
    इतिहास, राजनीति, कूटनीति , सामाजिक संवेदनाओं को समेटते हुए महत्वपूर्ण संपादकीय लेख हेतु साधुवाद आपको। ये आप ही कर सकते हैं।

  7. कोई माने या ना माने लेकिन सत्य यही है कि मुस्लिम उस देश के नहीं होते जहां उन्हे शरण मिलती है या दाना पानी मिलता है। वे केवल अपने इस्लाम के होते हैं और अपराध को जन्म जात हक़ मानते हैं इसलिए किसी भी मां बाप के लिए उसका अपराधी बच्चा बिलकुल सज्जन लगता है और इसे कोई कह दे तो वो सांप्रदायिक हो जाता है।

  8. आपने बहुत ही संतुलित रूप सही इस गंभीर विषय को उठाया है। फ्रांस में 7-8 दिनों अल्पसंख्यक समुदाय के शरणार्थी वर्ग ने जो तांडव किया उससे योरोप के सभी देशों शरणार्थियों को लेकर नये सिरे सोचना होगा।

  9. तलवार की धार पर सम्भल कर चले हैं आप। ऐसे मुद्दे पर पक्षपात पूर्ण दृष्टिकोण होना बड़ा सहज था। लेकिन सधे हुए नट की तरह आप सन्तुलन बनाये रहे। आपके संपादक धर्म की जितनी भी प्रशंसा की जाये कम है।
    विश्व में 26 देश घोषित इस्लामिक हैं। 30 देश ऐसे हैं जहांँ 90% से अधिक हैं। विश्व के कुल 195 देशों में यह संख्या पर्याप्त है, की अपने सजतीय को शरण दे सकें। फिर यह लोग अन्य देशों में क्यों जाते हैं? धर्म के नाम पर मर मिटने वाले लोग परायों के बीच अपने महात्माओं को क्यों शरण लेने देते हैं? शरण देने वाले देश, अपने द्वार खोलने से पहले ये क्यों नहीं सोचते? क्यों इतिहास से नहीं सीखते हैं?
    अल्बानिया में 60%, और बोरस्निया हर्सेगोविना में 51% तक यह जनसंख्या पहुँच गयी है। रूस में 17% ऐसे ही बहुतेरे देश हैं। ऐसे में जो देश इस प्रकार के लोगों को शरण देते हैं, उनके तर्कों पर भावनायें भारी हैं। इसी अतार्किक निर्णय का नतीज़ा फ्रांस भुगत रहा है। बहुत से अन्य देश भी इसी स्थिति में हैं, बस अभी वहांँ से लपटें नहीं उठी हैं। भारत तो स्वतंत्रता से पहले से ही कराह रहा है।
    अब यह समस्या वैश्विक हो गई है। संयुक्त राष्ट्र संघ को इस विषय पर संज्ञान लेकर इसका कुछ हल निकालना चाहिए। कब तक अन्य मतावलम्बी भाइचारे और मानवता की दुहाई देते हुए, सफ़ेद को सफ़ेद और काले को काला नहीं कहेंगे?

    • शैली जी आपने शरणार्थी समस्या को इस्लाम से जोड़ कर देखा है। यह भी एक महत्वपूर्ण दृष्टिकोण है। हमें समस्या का हल हर कोण से ढूंढना होगा।

  10. तेजेन्द्र शर्मा जी आपको मैं विदेश में बसे भारतीय विद्वानों में सर्वोपरि लोगों में गिनता हूं। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि आप सोची और छोटी मानसिकता से ग्रस्त नहीं है और किसी भी मामले में आपका सनातन धर्म, भारतीयता और हिंदी विद्वान होना आड़े नहीं आता। आप हमेशा संवेदना और मानवीयता के धरातल पर तर्कसंगत और पूर्णता न्याय संगत बात करते हैं। यूरोप में हिंसा के वर्तमान दौर को लेकर आपका यह आलेख हालांकि बहुत नपा तुला और सही है परंतु शायद आपकी अच्छाई ने, इस्लाम के रेडिकलाइजेशन से संबंधित तेजाबी, क्रूर और आदिम कबीलाई मानसिकता वाले पक्ष को न जाने क्यों नजरअंदाज कर दिया है।
    मेरी नजर में तो किसी भी मामले में नाहेल ना तो बेकसूर था और ना उसे मारे जाने पर इतना बवाल होना चाहिए था कि फ्रांस की सबसे शानदार लाइब्रेरी को फूंक दिया जाए और पूरे फ्रांस को आग के हवाले कर दिया जाए। बहुत हैरानी वाली बात है कि फूड कुरियर के तौर पर काम करने वाला एक मजदूर टाइप का बच्चा मर्सिडीज गाड़ी का मालिक है। वह इतना बेशर्म है कि अदालतों में बुलाए जाने पर भी वहां जाने की परवाह नहीं करता और इस तरह से फ्रांस की न्याय व्यवस्था को अपने जूते की नोक पर रखता है। नाहेल के खिलाफ पुलिस को भी कई मामलों में कार्रवाई करनी है मगर उन्होंने नहीं की है। स्कूल में वह जाता नहीं है। अटेंडेंस उसकी शार्ट है। सवाल यह पैदा होता है कि फिर उसके खर्चे और शानो शौकत का इंतजाम किस तरह से चलता था? उसके जिन रिश्तेदारों को आफ फ्रांस के जल फूंक जाने पर मानवता याद आ रही है जब तक यह सब कुछ मंगाना चल रहा था तब वह क्यों नहीं बोल रहे थे?
    आतंकवादी किसी के सगे नहीं होते और बेशक आतंकवाद का धर्म भी होता है और क्या होता है सब जानते हैं। यही कारण है कि आज ऐसी स्थिति पैदा हो गई है कि पूरे विश्व में लगभग 160 देश सिर्फ एक धर्म को अपनी समस्या मानते हैं।
    दुख की बात यह है कि इस्लाम की बुनियादी शिक्षा में ऐसा कुछ भी नहीं कहा गया है कि कोई व्यक्ति जिस देश में पैदा हो और दफन किया जाए उस देश के विरुद्ध कुछ भी करने को स्वतंत्र होगा। पवित्र कुरान के सूरह अल मायदा में कहा गया है कि तुम जिस भी मुल्क में रहते हो जिस जमीन पर पनाह लेते हो जहां से रोटी खाते हो जहां से रोज़ी पाते हो, उस मुल्क का निजाम अर्थात कानून तुम्हारे लिए अल्लाह के हुकुम के बराबर होना चाहिए और जो इंसान ऐसा नहीं मानता उसके हाथ पांव काट कर अलग-अलग दिशाओं में फेंक देना चाहिए।
    इस्लाम के पवित्र पैगंबर मोहम्मद साहब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम, ने एक हदीस में फरमाया है कि “सब कुछ अल्लाह की मर्जी से होता है” तो इसका मतलब यह भी है कि मुल्कों का निजाम भी अल्लाह ही तय करता है। वहां कौन राजा होगा कौन प्रधानमंत्री होगा कौन मुख्यमंत्री होगा यह सब भी शैतान तो तय करता नहीं है। इसका मतलब यह है कि किसी भी देश की व्यवस्था और कानून ईश्वर की देन है और उसका सम्मान करना हर नागरिक का कर्तव्य है। किसी भी देश में रहने वाले लोगों को इसका ध्यान रखना पड़ेगा कि वह अपने मजहब अपने विश्वास और अपने अंधी आस्था के आधार पर उस मुल्क को जलाकर राख नहीं कर सकते।
    यूरोप एक ऐसा दहकता हुआ ज्वालामुखी है, जिसे मानवता की सोचने बहुत सदियों से एक ठंडे बर्फ के पहाड़ में तब्दील कर दिया है। सहनशीलता और लोगों को शरण देना यूरोपीय लोगों के स्वभाव में जन्मजात नहीं है। यह गुण उन्होंने पिछले कुछ शताब्दियों में विकसित किया है लेकिन बुनियादी तौर पर वे लड़ाकू योद्धा हैं जिन्होंने पूरी दुनिया को अपनी तलवार से झुकाया था। यह किसी भी धर्म के मानने वालों को भूलना नहीं चाहिए की हिंदुस्तान की तरह यूरोप में अशांति होने पर आग उगलने वाले हथियारों के लाइसेंस जमा नहीं कराए जाते वहां पर मूंगफली और रेवड़ी की तरह से लोग हथियार खरीद सकते हैं और उनका इस्तेमाल भी कर सकते हैं। और धर्म के आधार पर हिंसा करने वालों के बुरे दिन केवल यूरोप में ही नहीं शुरू हुए हैं यह आग बहुत दूर तक जाएगी।
    अभी कुछ दिन पहले नास्त्रेदमस की भविष्यवाणी ऊपर मेरी नई किताब आई थी उसमें मैंने स्पष्ट तौर पर विश्लेषण किया था कि यूरोप में हिंसा शुरू होगी और उसकी लपट पहले रूस में महसूस की जाएगी इसके बाद में चीन उसका शिकार होगा और सबसे बाद में अमेरिका उसकी चपेट में आएगा। भारत को सांप्रदायिकता की चपेट में लाने के सपने देखने वाले किसी भी तरह से यहां पर सिर नहीं उठा पाएंगे क्योंकि जब तक पूरे विश्व में सांप्रदायिक लोगों का विनाश चालू होगा तब तक भारत में कुछ नहीं होने वाला और उसके बाद का समय सिर्फ एक ही कौम के लिए बुरा होने वाला है।
    यह जमाना गूगल का है और आप भी इस हदीस को ढूंढ सकते हैं कि उनकी मृत्यु से कुछ समय पहले पैगंबर मोहम्मद साहब के पास ईश्वर का दूत जिब्रील आया। जिब्रील ने मोहम्मद साहब से कहा कि अल्लाह तुम्हें याद कर रहे हैं और अब आपके अल्लाह के पास चलने का वक्त हो गया है। इस पर उदार दयालु और बेहद समझदार मोहम्मद साहब ने यह कहा कि आप अल्लाह के पास वापस जाकर एक सवाल कीजिए कि क्या वह मेरी उम्मत के आजकल और आने वाले कल के गुनाहों को माफ कर देंगे अगर वह माफ कर देंगे तो मैं उनके पास में आने को तैयार हूं। सोचने वाली बात यह है कि उन्होंने ऐसा क्यों कहा था? उन्होंने क्या महसूस किया था कि ऐसा उन्हें बोलना पड़ा? ऐसी बेशुमार हदीसे हैं जिसमें मोहम्मद साहब ने इस्लाम के बुरे दिनों का इशारा किया है और यहां तक कहा है कि वह वक्त भी आएगा जब इस्लाम दो बिलों के बीच रहने वाले सांप की तरह से दो शहरों के बीच सिमट कर रह जाएगा। यह वक्त कब आएगा जब मुसलमानों में औरों के लिए बेइंतहा नफरत होगी। खुद के लिए बेइंतहा लालच होगा। जब वे मस्जिदे बनाने के लिए दूसरों की जमीनों पर कब्जा करेंगे। जब इस्लाम के नाम पर दौलत जमा करने वाले इमाम व्यापारियों की तरह से काम करेंगे और जब लोग दूसरे लोगों के लिए मन में दया नहीं रखेंगे।
    आखिरी बात यह है कि इस्लाम कतई बुरा मजहब नहीं है और ना इसकी परवरिश और विकास बुराई के आधार पर हुआ है यह अल्लाह का धर्म है और यह केवल एक ही बात सिखाता है कि संसार को बनाने वाला सिर्फ एक ईश्वर है इसके अलावा कोई भी व्यक्ति कोई भी शक्ति ईश्वर के निकट नहीं मानी जा सकती। कलमा शरीफ का मतलब भी यही है ईश्वर सर्वशक्तिमान ईश्वर सिर्फ एक है और महात्मा मोहम्मद उसके दूत है। इस कलमा से दुनिया का कोई भी धर्म इंकार नहीं करता कि ईश्वर एक ही है और मोहम्मद साहब इस्लाम के पैगंबर हैं। तार्किक दृष्टि से यदि सोचा जाए तो इस तरह से तो पूरी दुनिया का हर इंसान जो इस कलमा को जानता है वह मुसलमान है। मुसलमान मतलब जिसका ईमान सलामत हो मुसल्लम हो। फिर जब हम सभी मुसलमान हैं हमारा बनाने वाला भी एक ही है और हम में से किसी को भी पैगंबर साहब के पैगंबर होने पर कोई एतराज नहीं है तो यह मूल्ला लोग क्यों सोचते हैं कि पूरी दुनिया को नष्ट करके इस्लाम कोई इज्जत दिला सकते हैं। दिला तो दी है इज्ज़त।

    • अशोक भाई, आपने तो एक समानांतर संपादकीय लिख डाला। मुझे लगता है कि किसी भी संपादकीय की सबसे बड़ी सफलता यही होती है कि पाठक को सोचने पर और प्रतिक्रिया देने पर मजबूर कर दे। इस विस्तृत टिप्पणी के लिये हार्दिक आभार।

  11. नमस्कार
    सम्पादकीय मनन योग्य विषय पर है ।हम सभी ऐसे समय में जी रहे हैं जब एक देश में होने वाली घटना पूरी दुनिया को प्रभावित करती है ।
    कारण और प्रभाव का विश्लेषण सब अपने दायरे में करते हैं ।
    आपके विश्लेषण वैश्विक होते हैं उनपर शीघ्र टिप्पणी सम्भव नहीं ,सोचने के लिए बहुत कुछ है साधुवाद
    Dr Prabha mishra

  12. नाहेल की हत्या निंदनीय है परन्तु अब फ्रांस जल रहा है तब कितने मरे, इसका कोई रिकार्ड।
    धू धू कर जलती गाड़ी, इमारते, इतना नुकसान, क्या फ्रांस के निवासियो की जान की कोई कीमत नही।
    दरअसल समस्या विचाधारा और इनकी एकमात्र पुस्तक मे है।
    जरा जरा सी बात पर खून खराबा करने वाली कौम को नाहेल की हत्या का बढ़िया बहाना मिल गया।
    आप पूरे विश्व मे कही भी देखिए जहाँ भी शरणार्थी अधिक संख्या मे अधिक समय तक रहने लगे वही वह वहा के मूल निवासियो का सफाया करके अपनी संख्या बढाने लगते है।
    फ्रांस इकलौता उदाहरण नही है। भारत कितने दशको से यह दंश झेलता आ रहा है। कठोर कदम उठाने होगे।
    कोई भी देश धर्मशाला नही है जहाँ जबरदस्ती आये खाये और बिगाड कर चल दिए।
    तेजेन्द्र सर! ने अपने संपादकीय मे फ्रांस के मुद्दे को प्रमुखता से स्थान दिया है। वर्तमान की परिस्थितियो पर जानकारी देता महत्वपूर्ण लेख।

    • संगीता आप निरंतर संपादकीय पर टिप्पणी लिखती हैं। आपकी टिप्पणी हमेशा सारगर्भित होती है। हार्दिक आभार।

  13. While focussing your attention to the turmoil that France is going through in recent times,your Editorial of the day rightly speaks of the irony that takes place when the issues of the migrants to a country assume an importance of huge dimensions and bring the government to a standstill.
    It is indeed very unfortunate.
    Warm regards
    Deepak Sharma

  14. सादर प्रणाम.
    बहुत सुंदर. सार्थक और सारगर्भित संपादकीय हमेशा की तरह..हिंसा की कोई जाति.नहीं होती .वर्ग और विचार थाना भी कुछ पथ भटके लोगो की विकृत मानसिकता का परिणाम है. आपका संपादकीय हमेशा सजगता पूर्वक तथ्यों की पड़ताल कर सही बात सामने लाता है.सचमुच हम लोग मीडिया के लोक लुभावन. विवाद ग्रस्त मुद्दो में उलझकर गलत राय बनाते हैं और गलत दिशा में सोचते हैं..आभार भाई..बहुत सही सटीक और विचारणीय लिखा आपने .हार्दिक बधाई और आभार…पद्मा मिश्रा.जमशेदपुर

    • धन्यवाद पद्मा। मेरा प्रयास रहता है कि पाठकों को स्थिति का पूरा आभास करवा दूं। आप सब उसे पसंद करते हैं। बहुत धन्यवाद।

  15. श्री तेजेंद्र शर्मा जी
    फ्रांस हिंसा से सम्बद्ध आपका सम्पादकीय पढ़ा अछा लगा आपने बहुत कुछ स्पष्ट किया लेकिन क्या यह दर्द हर सत्यप्रिय न्याय प्रिय बुद्धीजीवी को नहीं होना चाहिए था की एक पुलिस अधिकारी की विवादित कार्यशैली के कारण हुई एक मौत की कितनी कीमत देना पडी है एक देश को ? जिस मुद्दे पर सम्पूर्ण विश्व की सरकारों को एक मत से ऐसे हिंसात्मक प्रतिक्रया की आलोचना की जाना थी इसे रोकने के तत्काल उपाय किये जाना थे ऐसा कुछ भी नहीं हुआ यानी हम अभी भी गलत को पुरी ताकत से पुरे आक्रोश से गलत ना कह सके | एक माँ एक के बेटे की मौत वास्तव में दुखद है लेकिन पुरी दुनिया में बहुत कुछ ऐसा हो रहा है जो नहीं होना चाहिए था तो क्या सारी दुनिया को आग लगा दी जाए ? बाजार लूट लिये जाएँ ? ज्ञान के संस्थान जला दिए जाएँ ? वो भी उस देश के जिसने आपको रहने को स्थान दिया है रोजी रोटी दी है ? गुस्सा जताने का यह कौन सा अमानविय तरिका है ? क्या इसके बाद दुनिया के किसी भी देश को ऐसे शरणार्थी समूह को अपने देश में घुसने की इजाजत देना भी गवारा करना चाहिए ? यहाँ वही सिद्धांत काम कर रहा है की आग तो फ्रांस में लगी है मुझे क्या करना जब मेरे घर लगेगी तब सोचूंगा | सम्पूर्ण मानवता के लिए ये दुखद और भविष्य के लिए खतरे की घंटी है

  16. संवेदनशील मुद्दे पर आपने बहुत ही सहजता से अत्यंत विचारणीय लेख लिखा है आपको बहुत-बहुत हार्दिक बधाई

  17. The Editotial is a careful enumeration of all the happenings that seem like an erupting volcano.

    This is just the beginning… France is ⅓rd the size and population of Uttar Pradesh… has a robust defence system in place and is burning !!!!

    Now to the trigger-
    How can we judge a person in a flash of time by his looks. What if the innocent looking boy was the face of a more dangerous agenda ….. what if he was carrying arsenals in his car, what if he was a suicide bomber?

    Police men are trained for their job and while on duty they have to follow their code of conduct. I am not denying that there is no possibility of error but for that law has the power to punish the accused . That should have been the bottom line !

    How the hell broke lose after a freak accident which was NOT a point blank encounter. No officer will go for an encounter till all possible allies are shackled.

    Even if the boy was innocent the avengers were not. Were they tutored to unleash an assault in a predetermined format ? The episode points to a more sinister programming. If they had such guts, why they did not stay in their own country to fight for their rights ? They knew they would have been shot dead and buried en masse….

    This time their message is loud and clear … ‘We have nothing to lose…. and we will not let you sleep in peace, hereafter !’

    The whole of Europe is held at ransom …. and damn, they can do nothing about it….!!!!

  18. बहुत संवेदनशील मुद्दे पर गंभीर लेखन
    यदि कोई देश खुले मन से शरणार्थियों को अपने देश में पनाह देता है तो उनकी संवेदनाओं का भी ख़्याल रखना होगा। वहीं यह स्थिति शरणार्थियों पर भी यह ज़िम्मेदारी डालती है कि अपने अपनाए हुए देश को अपना देश समझना शुरू करें।

  19. तेजेंद्र जी आपका हर संपादकीय ज्वलंत विषय पर आधारित होता है, इस बार भी ऐसा ही है। फ्रांस या अन्य कहीं भी हो रही हिंसा मन को व्यथित तो करती ही है साथ में यह सोचने को भी विवश करती है कि सार्वजानिक सम्पतियों को नुकसान पहुँचाने से क्या पीड़ित व्यक्ति या परिवार को न्याय मिल पायेगा? मेरे विचार से ऐसा करने से किसी देश के नागरिक तो दहशत में आते ही हैं, देश की प्रगति में भी व्यवधान आता है। सच तो यह है कि ऐसा वही कर सकते हैं जिन्हें देश से प्यार नहीं होता। क्या कोई व्यक्ति स्वयं अपने घर को जला सकता है?

    मैं आपके इस कथन से पूर्णतया सहमत हूँ कि कोई देश खुले मन से शरणर्थियों को अपने देश में पनाह देता है तो उनकी संवेदनाओं का भी ख्याल रखना होगा। इसके साथ ही पनाह लेने वालों को भी उस देश के कायदे क़ानून को मानना होगा। जैसे कि आपके आलेख से पता चलता है कि उस युवक ने, जो एक नाबालिग था, नियम विरुद्ध कार चला रहा था। जिसके कारण यह हादसा हुआ।

    • सुधा जी आपको संपादकीय का मुख्य मुद्दा पसन्द आया, इसके लिये हार्दिक आभार।

  20. तेजेन्द्र जी!
    सदा की भाँति ज्वलंत समस्या को समक्ष रखता है आपका यह संपादकीय भी।
    चिंगारी कहीं होती है लेकिन जब भड़कती है तब उसका रुख हवा के साथ ही जाता है।
    हमारा देश तो वैसे ही दरियादिल है व सबको पनाह देने के लिए सदा से जाना जाता है किंतु क्या इसके सभी पहलुओं पर विचार होना उचित नहीं है?
    आपका चिंतनशील संपादकीय सदा सिक्के के दोनों पक्षों पर विचार करने के लिए बाध्य करता है जो आवश्यक है।
    विवेकशील संपादकीय हेतु साधुवाद आपको ।

  21. बहुत सधा हुआ आलेख। तलवार की धार पर चलकर निकलने जैसा।
    ये केवल फ्रांस की समस्या नहीं है, ये तो विश्व के तमाम देशों की समस्या है। आज फ्रांस जल रहा है, कल और भी जलेंगे। आखिर आग ढेर पर बैठ कर कब खैर मनाएंगे। भारत तो सदियों अपनी इसी उदारता का परिणाम भोग रहा है। और जबान खोलने का मतलब साम्प्रदायिकता का ठप्पा।
    समय आ गया है कि अब इस मुद्दे पर खुल कर बहस होनी चाहिए।
    आज के समय के बहुत ज्वलंत और जरूरी सवाल उठाता बहुत अच्छा आलेख!

  22. विचारोत्तेजक संपादकीय है ; पाठकों की प्रतिक्रियाएं भी एक आम सोच का प्रतिनिधित्व करती हैं ।
    समय रहते सम्हलना होगा अन्यथा यह उग्रवादी प्रवृत्ति थमने वाली नहीं है ।
    सामयिक संपादकीय के लिए साधुवाद!

  23. अत्यंत सारगर्भित लेख हेतु साधुवाद बड़े भैया,
    किसी भी जाति, धर्म, संप्रदाय का होने से पहले प्रत्येक व्यक्ति एक मानव होता, यदि उसके भीतर मानवीय मूल्यों, संवेदनाओं की गरिमा न हो, भावनात्मक रूप से शून्य हो, तो कुछ भी हो सकता है । जब अधिकारों की बात होती है, तो कर्तव्यों की ओर से विमुख हो जाएं, यह भी संभव नहीं,आपने बहुत ही सुंदर तथ्य प्रस्तुत किया है । आगंतुक को भी यह नहीं भूलना चाहिए कि उसके लिए किसी ने सहर्ष अपने द्वार खोल दिए, दोनों को ही एक दूसरे की परवाह होनी चाहिए ।
    जिसने शरण दी उसने तो अपना रोल निभा ही दिया, इस बात को भूलकर अपने स्वभाव संस्कार में आ जाना अनुचित है ।
    साधुवाद, साधुवाद आपको

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