सांकेतिक चित्र

भारत में बड़े पैमाने पर गेहूं का इस्तेमाल किया जाता है। गेहूं से बनी रोटी, परांठे, पूड़ी और कई तरह के पकवान रोजाना बड़े पैमाने पर बनते हैं और खाए जाते हैं। हम ने भी बचपन में माँ के हाथ के परांठे पूरियां खाई हैं। बड़े होकर तरह-तरह की डबल रोटियां और फ़ास्ट फ़ूड खाये… पिज्ज़ा और बर्गर उड़ाए। ब्लड प्रेशर, कोलेस्ट्रॉल और शुगर लेवल बढ़ाए… अब खा रहे हैं गोलियां और ग्लूटेन फ़्री अनाज…

एक पुरानी कहावत है कि “मौलवी जी गये तो थे रोज़े बख़्शवाने, और नमाज़ गले पड़ गई!” कुछ ऐसा ही हादसा मेरे साथ भी गुज़रा है। मैं जब भारत दौरे पर था उससे पहले मुझे वायरस ने अपने लपेटे में ले लिया था। लंदन में एंटीबॉयोटिक का कोर्स किया। कोई ख़ास लाभ नहीं हुआ। भारत में एक बार फिर वायरस ने अपने होने का अहसास पूरी शिद्दत से करवा दिया। निरंतर खांसी और बुख़ार जैसा कुछ चल रहा था। वहां एक कंपाउण्ड एंटिबॉयोटिक दी गई क्योंकि वायरस के वर्तमान वेरिएंट पर सिंगल एंटी बॉयोटिक असर नहीं करती। पता चला कि वर्तमान वायरस कोरोना का सग़ा रिश्तेदार लगता है। 
लंदन आकर अपने जी.पी. (जनरल प्रेक्टीशनर, यानी कि मेरा निजी डॉक्टर) से चेक करवाया तो उन्होंने कहा कि इस वायरस के लिये आजकल हम कोई दवा नहीं दे रहे। आप ख़ुद-ब-बख़ुद ही ठीक हो जाएंगे। मेरे दबाव डालने पर उन्होंने मेरा ब्लड टेस्ट करवाने का आदेश दे दिया। 
एक सप्ताह बाद मेरी रिपोर्ट आई तो डॉक्टर की सर्जरी से एस.एम.एस. आया कि “ब्लड रिपोर्ट आ गई है, सर्जरी में आकर डॉक्टर से सलाह मश्विरा कर लीजिये।” मैं सोच रहा था कि मुझे किस चीज़ का इन्फ़ेक्शन है, शायद ब्लड रिपोर्ट से पता चल जाए।
सोमवार की शाम 16.45 पर जब अपने डॉक्टर से मिलने गया तो उसने सीधा बंब फोड़ दिया, “मिस्टर शर्मा आपका ब्लड शुगर लेवल बढ़ गया है। अब हम कह सकते हैं कि आप डायबेटिक हैं।” डॉक्टर मुझे कुछ इस अंदाज़ में बता रहा था जैसे मैंने कोई किला फ़तह कर लिया हो। वह कहते गये, “आपको एक दवा का नुस्ख़ा लिख कर दे रहा हूं – मेटाफ़ॉर्मिन 500mg. पहले सप्ताह एक गोली सुबह नाश्ते के बाद और उसके बाद एक गोली सुबह और एक रात को डिनर के बाद। और हां याद रहे, इस दवा के कुछ साइड इफ़ेक्ट भी हैं… उल्डी की फ़ीलिंग हो सकती है, चक्कर  सकते हैं… पेट में गड़बड़ी महसूस हो सकती है, शरीर को थकान महसूस हो सकती है। मगर यह सब जल्दी हे सैटल हो जाता है।”
“उल्टी की फ़ीलिंग और चक्कर!”… मेरा घबराना बनता था।  मेरे मुंह से निकला, “डॉक्टर साहब मैं रहूंगा तो तेजिन्द्र कुमार ही ना… कहीं तेजिन्दर कौर तो नहीं बन जाऊंगा!”
मेरे तो दिमाग़ का फ़्यूज़ ही उड़ गया। ठीक है कि मेरे दादा जी और बाऊजी दोनों को डायबिटीज़ की बीमारी थी। मगर मैं तो अपने आप को ख़ासा एक्टिव रख रहा था। दिन में सात से दस हज़ार कदम चल भी रहा था। फिर मुझे क्यों? हर क्यों का जवाब भला जीवन में कहां मिल पाता है जो आज मिल जाता। 
जब अपने कुछ करीबी मित्रों को सूचित किया तो उनकी प्रतिक्रिया कुछ ग़ज़ब की थी… लगभग सबने एक सुर में घोषित कर दिया कि अब मैं सही मायने में मॉडर्न इन्सान बना हूं। मॉडर्न कहलाने कि लिये इन्सान को डायबिटीज़, हाई ब्लड प्रेशर और कोलेस्ट्रॉल जैसी बीमारियां होना अति आवश्यक है। जब तक आप इन त्रिदेवों की दवा नहीं ले रहे हैं आप पिछड़े हुए ग्रामीण हो सकते हैं… शहरी मॉडर्न इन्सान नहीं। अब मैं पूरी तरह से मॉडर्न हो चुका हूं – डायबिटीज़ के लिये मैटाफ़ार्मिन 500mg; उच्च रक्तचाप के लिये एमलीडोपाइन 10mg और कोलेस्ट्रॉल के लिये विविटार 10mg का सेवन कर रहा हूं। ऊपर से चिरयुवा दिखने का प्रेशर!… यही सबसे बड़ी समस्या है!
इतनी सारी मुफ़्त की सलाहें मिलने लगीं कि हकीम हरिकिशन लाल बीए की अस्थियां भी आसमान में भरतनाट्यम कर रही होंगी। सबसे बढ़िया रही – “तुसी ना ज्यादा न सोचो… शामी दो ड्रिंक लवो ते ऐश करो… डाक्टरां दी बकवास ना सुणो!” मित्रो आपको मेरी फ़िक्र है तो मेरे लिए भी फ़र्ज़ बनता है कि मैं भी आपकी फ़िक्र करूं। तो मैं अब आपको मुफ़्त की सलाहें देना शुरू करने वाला हूं। मैंने ढूंढ निकाला है ग्लूटेन-फ़्री भोजन! 
अब आप पूछेंगे कि इसकी आवश्यकता क्यों पड़ी। तो बता दूं कि डॉक्टर ने पहले तो गंभीरता से कहा, “मिस्टर शर्मा, किसी भी डायबिटीज़ के मरीज़ के लिये चार सफ़ेद चीज़ें किसी दुश्मन से कम नहीं हैं। चीनी, चावल, गेहूं का आटा और केला!” केले के नाम पर पहले मैं चौंका, फिर ध्यान आया कि छिलके के भीतर से तो केला सफ़ेद ही निकलता है। डॉक्टर ने मेरे चेहरे पर आए भावों को अपने हिसाब से पढ़ा और कहा, “नहीं, नहीं, अगर आपकी पत्नी सफ़द है तो कोई डरने की बात नहीं है!”
तो मित्रो, मेरे लिये यह आवश्यक था कि मैं ढूंढूं कि यदि मुझे रोटी और चावल नहीं खाना तो उसके बदले में क्या खाया जा सकता है। चाय में चीनी तो मैं कई वर्षों से नहीं ले रहा। तो पता चला कि गेहूं और कुछ अन्य अनाजों में एक प्रोटीन होता है ‘ग्लूटन’ जो उनके आटे में लोच पैदा करता है। यह एक तरह का लसलसा पदार्थ है जो खाद्य पदार्थ को एकसाथ बांधे रखता है जिससे उनके आकार को बनाने में सहायता मिलती है।  जैसे गेहूं की रोटी बनाते समय उसके कोने फटते नहीं जबकि रागी, मकई और कुछ अन्य आटों की रोटियां पूरी तरह से गोल बनानी आसान नहीं होतीं। मकई और रागी में ग्लूटन नहीं होता। ग्लूटन पेट के की रोगों और आर्थराइट्स वगैरह में नुक्सान पहुंचाता है।
ग्लूटन से एक विशेष रोग उत्पन्न होता है जिसका नाम है – सीलिएक। सीलिएक रोग एक ऑटोइम्यून डिसऑर्डर है जो ग्लूटेन के सेवन से प्रेरित होता है। अगर आपको गेहूं (ग्लूटन) से एलर्जी है और आप कुछ ऐसा खाएं जिसमें गेहूं हो, तो आपको आंखों में खुजली या पानी आने या सांस लेने में कठिनाई का अनुभव हो सकता है।
यदि आपको ‘सीलिएक रोग‘ है और ग़लती से ग्लूटेन का सेवन कर लेते हैं, तो आप कुछ ऐसे लक्षण महसूस कर सकते हैं: पेट में दर्द, खून की कमी, सूजन, हड्डी या जोड़ों का दर्द, कब्ज़, दस्त, गैस, नाराज़गी, खुजली, फफोलेदार दाने (डॉक्टर इसे डर्मेटाइटिस हर्पेटिफोर्मिस कहते हैं), सिरदर्द  एवं  थकान, मुंह के अल्सर, मतली, वज़न में कमी।
जिन पांच अनाजों में ग्लूटेन नहीं पाया जाता है उनका सेवन सेहत के लिये अच्छा हो सकता है। मकई या मक्का, क्विनोआ, जई (ओट्स), सोया और साबूदाना। 
गेहूं या चावल के मुकाबले ग्लूटेन फ्री अनाज को पचाना थोड़ा आसान होता है। ग्लूटेन फ्री आटे का सेवन करने से पेट फूलना, गैस, कब्ज और पेट में दर्द जैसी समस्याओं से राहत मिल सकती है।
ग्लूटेन फ्री आटे का सेवन करने से शरीर के एनर्जी लेवल को बढ़ाने में मदद मिलती है। ग्लूटेन फ्री अनाज में पर्याप्त मात्रा में प्रोटीन पाया जाता है, जो शरीर की एनर्जी को बढ़ाने में मदद करती है।
ग्लूटेन फ्री आटे का सेवन करने से हड्डियों और शरीर के ज्वाइंट्स के दर्द को खत्म करने में मदद मिलती है। जिन लोगों को घुटनों में दर्द, पीठ में दर्द की समस्या होती है उन्हें नियमित तौर पर ग्लूटेन फ्री अनाज का सेवन करने की सलाह दी जाती है।
ग्लूटेन युक्त अनाज में कई ऐसे तत्व पाए जाते हैं, जो स्किन संबंधी परेशानियों को बढ़ा सकते हैं। ग्लूटेन फ्री आटे का सेवन करने से स्किन प्रॉब्लम से राहत दिलाने में मदद मिलती है। कई रिसर्च में ये बात सामने आई है कि ग्लूटेन फ्री अनाज का सेवन करने से चेहरे के पिंपल्स, दाग और धब्बों से राहत पाई जा सकती है।
फल और हरी सब्ज़ियों में भी ग्लूटेन नहीं पाया जाता। जो लोग मांसाहारी हैं वे आसानी से अंडा, चिकन, मछली वगैरह खा सकते हैं। और हां शाकाहारियों के लिये दालें मौजूद हैं। 
भारत में बड़े पैमाने पर गेहूं का इस्तेमाल किया जाता है। गेहूं से बनी रोटी, परांठे, पूड़ी और कई तरह के पकवान रोजाना बड़े पैमाने पर बनते हैं और खाए जाते हैं। हम ने भी बचपन में माँ के हाथ के परांठे पूरियां खाई हैं। बड़े होकर तरह-तरह की डबल रोटियां और फ़ास्ट फ़ूड खाये… पिज्ज़ा और बर्गर उड़ाए। ब्लड प्रेशर, कोलेस्ट्रॉल और शुगर लेवल बढ़ाए… अब खा रहे हैं गोलियां और ग्लूटेन फ़्री अनाज… 
लेखक वरिष्ठ साहित्यकार, कथा यूके के महासचिव और पुरवाई के संपादक हैं. लंदन में रहते हैं.

62 टिप्पणी

  1. वाह तेजेन्द्र जी….आप तेजिंदर कौर नहीं है…. यह बहुत बहुत ही अच्छी बात है। और यह ग्लूटेन सही में बहुत नुकसान दायक है कई तरह के रोगों को निमंत्रण दे रहा है आपने इतनी परेशानी सही वो भी बहुत मुश्किल का समय रहा होगा.. और आपने अब सभी को इस एक नये और बहुत ही अद्भुत विषय पर संपादकीय को बहुत ही विस्तार से लिखकर सभी के लिए बहुत ही अच्छा काम किया है और सभी को सचेत भी कर दिया। आपका तहे दिल❤ से शुक्रिया और आभार… जय हो।

  2. ग्लूटेन की सारी खामियां गिना दी अच्छाई क्या है अगर नहीं है तो लोग खा क्यों रहे हैं। फिर अमेरिका इंग्लैंड में तो ज्यादातर लोग बेकरी का कहते हैं वे मिलेट मतलब मोटा अनाज तो नहीं होते उनको यह रोग नहीं होते क्या? हम तो एक चीज जानते है सब खाना चाहिए पर लिमिट में । अति सर्वत्र वर्ज्यते।

    • भाई साहब आपकी सोच भी सही है। मगर मैंने ग्लूटेन फ़्री की ख़ामियां तो नहीं बताई हैं। शायद कुछ गड़बड़ हुई है। पढ़ता हूं।

  3. ग्लूटेन फ्री का नया चोचला शुरू हुआ ,जब लोगो ने मोटे अनाज के बदले मैदे को अपने भोजन मे सम्मिलित किया। अधिक महीन पिसा हुआ अनाज ग्लूटेन का स्रोत होता है। हमारे दादी के जमाने मे कोई ग्लूटेन के बारे मे जानता भी न था। क्योकि सब घर के पास की चक्की का पिसा आटा उपयोग मे लेते और अधिक से अधिक यह आटा 20- 25 दिन चलता और फिर नया आटा।
    अब छ छ महीने का पैकेट बंद आटा खाओ।

  4. ग्लूटिन फ्री अनाज़ की कई खूबिया बताता ये संपादकीय पाठकों के लिए अनोखा है, क्योंकि ये दिमागी और भनात्मक संतुष्टि वाले संपादकीय के स्थान पर शारीरिक सेहत कि बात करता है l हालांकि परहेज बहुत मुश्किल ह , क्योंकि रोटी, पूरी, पराठे की आदतें पड़ी हुई हैं, पर आपकी सलाह सही है, ध्यान रखना चाहिए l सेहत है तो सब है l बाकी आप भी अपना ध्यान रखिए सर l

  5. पहला सुख निरोगी काया ,तो इसके लिए सब
    करना ही होगा ।
    रोग लग ही गए तो डॉक्टर की सलाह सर्वोपरी है ।
    जीवन वर्धक ज्ञान के लिए साधुवाद
    Dr Prabha mishra

  6. बहुत अच्छा लिखा है सर। पहला सुख निरोगी काया कहावत को चरितार्थ करता लेख ग्लूटन फ्री अनाज सेहत के लिए अच्छा है ।
    मुझे तो बहुत पसंद भी है गेहूं की रोटी के जगह रागी, ज्वार,बाजरा की मिक्स रोटी स्वाद और सेहत दोनो के हिसाब से अच्छी है … मक्के के आटे की रोटी का स्वाद अपने आप में अनोखा है। आप अपना ख्याल रखिए सर।

    • हार्दिक आभार राधा। जान कर अच्छा लगा कि तुम्हें रागी, ज्वार,बाजरा की मिक्स रोटी और मक्के के आटे की रोटी अधिक पसन्द है। सेहत अच्छी बनी रहे।

  7. आज की आधुनिक जीवन शैली की भेंट ,मधुमेह और हम भारतवंशी तो इस से अछूते नहीं हैं।यूं भी हमारा देश अब डायबिटिक कैपिटल है।काश हमारी पब्लिक हेल्थ नीतियां इसे पहचान कर सही समय पर लोगों को जागृत कर पाती। खैर ग्लूटेन फ्री और पांच अन्य अनाजों का सहज मिलान ,सभी पाठकों को सेहत सुधार की ओर मोटिवेट करता हैं।व्यंग्य का पुट देकर आपने इन दुखद बीमारियों की भयावहता को कम करने की कोशिश भी की है। क्योंकि हम भारतवासी अपने और दूसरों के दुखों को कम करने में दुनिया में अनूठे तो है ही।
    एक सार्थक संपादकीय हेतु बधाई और स्वस्थ रहें और हमारे साथ रहें।
    सादर

    • भाई सूर्य कांत जी आपकी शुभकामनाओं के लिये हार्दिक आभार। प्रयास किया है कि सभी पुरवाई सदस्यों को ग्लूटेन फ़्री भोजन से परिचय करवा सकूं।

  8. सादर नमस्कार सर स्वास्थ्य संबंधित यह संपादकीय युग परिवर्तन का एक प्रमाण है।
    जीवन शैली में जो परिवर्तन आया है,शरीर का व्याधिग्रस्त होना अब असंभव नहीं रहा। अत्यंत सराहनीय लेख तथा मधुमेह एवं अन्य रोगों के बारे में अमूल्य तथ्य प्रदान करने हेतु पाठक वर्ग
    को निसंदेह नव्य दिशा प्राप्त हुई होगी। यह संपादकीय भी सदैव की भाँती मार्गदर्शक बन लेखनी को अविस्मरणीय बनाया है। साधुवाद….

  9. एक अच्छी जानकारी मिली। मेरी मम्मी बेझड की रोटी बनाती थी चना और जौ मिक्स करके। आज बाजार में कई आप्शन है। आपने बेहद जरूरी जानकारी दी है आज की आधुनिक जीवनशैली को देखते हुए यह जरूरी हो जाता है कि हम खान पान पर ध्यान देऔर संतुलित आहार ले।

  10. अपनी बीमारी पर हंसना अच्छी बात है पर अब थोड़ा ध्यान रखें, ये आपको पैतृक रूप से विरासत में मिला हुआ है, इससे परेशान हो कर कुछ नहीं कर सकेंगे

    • आपकी चिन्ता क पूरा ख़्याल रखूंगा। जल्दी ही पूरी तरह से स्वस्थ होने की सूचना दूंगा।

  11. तेजेन्द्र जी!
    बहुत मज़ेदार भी है लेख और सूचनात्मक भी। अब बताइए, माडर्न बनने के लिए डायबिटीज़ और मिलते जुलते अन्य रोगों का होना कितना आवश्यक हो गया!!?
    आशा है, आप अब स्वस्थ होंगे। मुझे लगता है हर चीज़ सीमा में खाने से बात बिगड़ने की संभावना ज़रा कम रहेगी।
    यहाँ तो हर प्रकार का अनाज इस उम्र में भी लक्कड हज़म।नज़र न लगे! शेष, भविष्य में क्या होगा, राम जाने।
    यह जानकर तस्सली हुई आप ‘कौर’ तक नहीं पहुंचे।
    आप सदा स्वस्थ वआनंदित रहकर नवीन विषयों पर चर्चा करते रहें।
    तथास्तु!!

  12. मतलब मैं भी मॉडर्न हूँ!
    पिछले बीस साल से आनुवांशिक डायबिटीज़ और कोरोना के समय में बीपी की गिरफ्त में हूँ। परहेज़ करते-करते यही जीवन शैली बन गई है। इसलिए अभी भी सुबह नाश्ते से पहले एक गोली डायबिटीज की और 5 mg की दवा बीपी पर ही टिकी हुई हूँ।
    लेख तो बहुत पढ़े इस विषय पर लेकिन संपादकीय पढ़ना पहली बार हुआ और वो भी इस सरस, सरल हास्य के साथ!
    एक ज़रूरी विषय पर जानकारी देता और जागरूक करता संपादकीय निश्चित रूप से अपने उद्देश्य में सफल होगा।
    साधुवाद आपको

    • शिवानी आप भी जल्दी ही इस चक्र से बाहर निकल सकें, यही कामना है। आपको संपादकीय पसंद आया इसके लिये हार्दिक आभार।

  13. Your Editorial of today presents the present state of diagnosis of blood tests and the multitude of precautions that are meted out to the patient and the declaration of a chronic disease like that of diabetes in your case.
    It is very sad n frightening
    I myself am a victim of such diagnosis.
    Warm regards
    Deepak Sharma

    • Deepak ji, you have not been keeping well yourself. Yet you took pains to not only read the editorial, but also leave a comment. We are grateful and thankful. We all pray for your good health.

  14. सर्वप्रथम आपके बेहतर स्वास्थ्य की हार्दिक कामना तेजेन्द्र जी। भाई जी वैसे तो आधुनिक जीवन शैली की ये बीमारी सहज ही परिवारिक वंश की बीमारी कैटेगरी से बाहर आ कर कॉमन होती जा रही है, फिर भी इस बीमारी से बचाव के साथ सेफ्टी की बहुत जरूरत है, जिसका आपको भी ध्यान रखना ही चाहिए। बहरहाल आपने इसके संदर्भ में ग्लूटेन फ्री को अपने आलेख का विषय बनाकर बहुत अच्छा किया। भले ही आपने इसे एंटरटेनर शब्दों के साथ व्यंग्य का पुट लेते अपनी बात रखी है लेकिन बहुत से लोग ऐसे है जो अभी तक इन बातों से अंजान है, अवश्य ही अपनी आँखें खोलेंगे और जागरूक होंगे। सादर शुभकामनाओं के साथ।

    • भाई विरेंदर जी हमारा प्रयास यही था कि बिना डराये अपने पाठकों को इस बीमारी और ग्लूटेन फ़्री भोजन से परिचय करवा दिया जाए।

  15. बहुत अच्छा। यह है लोगों को अपने स्वास्थ के प्रति जागरूक करने का अच्छा तरीका। खाओ मगर सोच समझ कर, देख सुनकर, ताकि मन मॉडर्न रहे तन नहीं।

  16. तेजेंद्र जी नमस्कार
    संपादकीय को पढ़कर लग रहा है आपको भी उम्र में नहीं छोड़ा, ‘मुफ्त की सलाह’ से पूरा ‘संपादकीय’ बना लिया और कमाल यह कि किसी को पता भी न चला कि यह ‘उपदेश’ है !
    बहुत-बहुत बधाई इस उपदेशात्मक संपादकीय के लिए!!
    जिंदगी के लिए सबसे जरूरी है मस्ती, बस मस्त
    रहिए, स्वस्थ अपने आप हो जाएंगे!!
    नमस्कार

    • मैं तो साहित्य में भी उपदेश के विरुद्ध हूं सरोजिनी जी। बस हंसते-हंसते अपने दिल की बात कह दी जाए और फिर मस्त रहा जाए। आपकी शुभकामनाओं के लिये हार्दिक आभार।

  17. संकलन योग्य संपादकीय।
    इतना स्पष्ट शब्दों में डाॅक्टर या डायटीशियन नहीं समझा सकता। स्वास्थ्य सावधानी संबंधी इसी तरह के कुछ और संपादकीय आ जाए तो लेखकों पाठकों का भला होगा।
    सादर

    • भाई राजनन्दन जी इतनी प्यारी टिप्पणी के लिये धन्यवाद या आभार जैसे छोटे शब्द नहीं इस्तेमाल करूंगा। अपना स्नेह बनाए रखें।

  18. बहुत खूब सर अपनी पीड़ा को भी आनंदमय बना देना वास्तव में जहां न पहुंचे रवि, वहां पहुंचे कवि। अब जब आप भारत आए मैं आपको मक्के की रोटी खिलाना चाहूंगी। भगवान से मै मंगल कामना करती हूं कि आप स्वस्थ रहें, परेशानियों रहित रहें और इसी तरह हम आपके संपादकीय का आनंद लेते रहें

  19. आज के ज्वलंत विषय पर ज्ञानवर्धक और मज़ेदार टिप्पणी। यानी हमारे पूर्वज भी इस ग्लूटन फ़्री से जूझे होंगे बिना यह जाने कि कौन सी बला साथ लग गई है, या उनकी जीवन शैली ने इस आफ़त को पछाड़ दिया होगा?

  20. बहुत ही रोचक लेख ऐसे पढ़ते रहते हैं परंतु इतनी रोचकता नहीं होती जितनी इस आपके संपादकीय में है । ऐसा लिखते रहिए हम पढ़ते रहेंगे। धन्यवाद

  21. आप जब भारत आए थे और आपकी तबीयत खराब हुई थी यह बात जानकर दुख हुआ। पर सच कहते हैं तेजेन्द्र जी!इस बार की संपादकीय ने भारी करेंट दिया।इसे कहते हैं सही मायने में शॉक्ड होना।
    रिपोर्ट आने के बाद की घटना को आपने कितनी सहजता व सरलता से हँसी में लिया है यह आप जैसा कोई बिरला ही कर सकता है। पर सच्ची , हमें बिल्कुल हँसी नहीं आई। शुगर बेहद बेकार बीमारी है। हमारे पिताजी ब्लड शुगर से दो वर्ष बिस्तर पर पड़े हुए मृत्यु को प्राप्त हुए। सभी भाई बहन बहुत छोटे-छोटे थे।
    हम तो उन सभी के लिये दुखी होते हैं जिनके बारे में शुगर की जानकारी मिलती है। जब हमने पहली बार एक शादी में रिलेटिव के यहांँ एक मांँ को देखा कि वह अपने सात महीने के बच्चे को इंजेक्शन लगा रही है तो हम नाराज हुए उसके ऊपर कि,” अरे आप क्यों इंजेक्शन लगा रही हैं ?डॉक्टर के पास क्यों नहीं जा रहीं हैं ?”तब पता चला कि बच्चे को जन्म से शुगर है और उसे रोज इंजेक्शन लगते हैं इंसुलिन के।” हमारे दिमाग से यह बात बहुत दिनों तक नहीं निकली।
    फिलहाल हम पर ईश्वर की इनायत है ,बी पी,शुगर के मामले में और ईश्वर से सबके लिये प्रार्थना करते हैं ऐसी ही।
    सर्वे भवन्तु सुखिन:, सर्वे सन्तु निरामया:।
    सर्वे भद्राणि पश्यन्तु ,मा कश्चित् दुख भाग्भवेत्।।
    आपके दोस्तों की बलिहारी है जिनके माध्यम से मॉडल होने के नए तरीके का पता चला।
    वैसे मुफ्त की सलाह बुरी नहीं होती तेजेन्द्र जी।हाँ चिढ़ जरूर होती है अगर कोई बार-बार कहता है तो लेकिन यह भी सोचना चाहिए कि सामने वाले बंदे को आपकी चिंता है, उसे फिक्र है आपकी कि आप ऐसी किसी भी स्थिति से बचें जो बीमारी में आपके लिए नुकसानदेह साबित हो सकती है।
    अब देखिए; आपके संपादकीय में आपने जो मुफ्त की जानकारियाँ दीं, ग्लूटेन पर भी और ग्लूटेन फ्री चीजों के बारे में भी ,उसके फायदे और नुकसान भी बताए;इसीलिए ना कि जो भी आपके संपादकीय को पढ़ें वह सतर्क हो जाए ,संभल जाए ,समझ जाए और सिर्फ आपके पाठक ही नहीं उनके माध्यम से दूसरे लोग भी इसका लाभ प्राप्त कर सकें।
    आपका हर संपादकीय वास्तव में मुफ्त की सलाह, सतर्कता और फिक्रमंदी ही की तरह ही होता है इसीलिए सभी इसे पसंद करते हैं और इसे पढ़ते भी हैं।
    मक्के का आटा थोड़ा हैवी होता है। ठंड के दिनों में मक्का, ज्वार ,बाजरे इत्यादि की रोटी खाते हैं हम लोगों को ठंड में हॉस्टल में मक्के, बाजरे और ज्वार की रोटी मिलती थी। मक्के की रोटी के साथ गुड़ मिलता था । किसी के साथ मही भी मिलता था। याद नहीं।बाजरे में प्रोटीन बहुत होता है। यह हमें हमारी प्राकृतिक चिकित्सक डॉक्टर फ्रेंड ने बताया था।
    बीमारियाँ भी ढेर सारी हैं और उसके इलाज भी तीनों ही चिकित्सा पद्धति में मिलते हैं, बस जिस पर जिसका विश्वास हो वह वही कर ले। फिर भी एक बात है की होम्योपैथी के साइड इफेक्ट नहीं होते।

    हमने बड़ी-बड़ी गंभीर बीमारियों के मरीजों को होशंगाबाद में हमारे होम्योपैथिक डॉक्टर पाटिल से ठीक होते हुए देखा है। पर आपको विश्वास होना चाहिए और जाहिर है कि थोड़े धैर्य की जरूरत होती है क्योंकि होम्योपैथी में थोड़ा वक्त लगता है।
    1 साल से जो लेडी कोमा में थी और डॉक्टरों ने उसे घर भेज दिया था, उस औरत को भी हमने ठीक होते हुए देखा है, भले ही तीन साढ़े तीन साल लगे।यहाँ तक कि उसकी खोई हुई याददाश्त भी डॉक्टर साहब वापस लेकर आए।

    हमारे पड़ोसी की ही लड़की की सास की एक किडनी ऑपरेट हो चुकी थी और दूसरे किडनी में भी कैंसर हो गया था। सप्ताह में तीन बार डायलिसिस होता था। यूरिन में ब्लड जाने लगा था। सारे डॉक्टरों ने जवाब दे दिया। कहाँ-कहाँ नहीं दिखाया। अंत में डॉक्टरों ने घर ही भेज दिया और तब किसी ने उन्हें डॉक्टर पाटिल का बताया था तो उन्होंने उनसे मशवरा किया। उन्होंने कहा कि मैं कोशिश कर सकता हूँ।
    जब दामाद जी हमारे घर आए थे तब उन्होंने किस्सा हमें सुनाया कि उनकी मांँ को 3 साल हो गए बिल्कुल अच्छी हो गई हैं।
    हमारे घुटने के लिए तो डॉक्टर ने बोल ही दिया था ऑपरेशन का लेकिन उन्होंने हमें चैलेंज किया था और उन्होंने हमें बिल्कुल ठीक किया ।भले ही डेढ़ साल लगे। बस हमारी लापरवाही रही कि उन्होंने कहा था कि अच्छे हो जाने के बाद भी दवाई एक साल तक खाएँगे तो फिर जीवन भर नहीं देखना पड़ेगा ,पर अच्छा होते ही हम लापरवाह हो गए।
    सर्दी खांँसी के लिए तो होम्योपैथी सबसे अच्छा ट्रीटमेंट है।
    बहरहाल अपन तो स्थिति के हिसाब से तीनों ही तरह की दवाइयाँ ले लेते हैं, एलोपैथिक भी, होम्योपैथिक भी और आयुर्वेदिक भी।
    बस स्वस्थ रहना है
    पहले ₹50 की दवाई 10 दिन की मिलती थी अब ₹300 की 10 दिन की दवा मिलती है। डॉक्टर की अपनी कोई फीस नहीं और एलोपैथिक डॉक्टर के पास जाओ 700 से 1800/, 2000 फीस का रेट है, दवाई अलग।
    होम्योपैथी वाले के यहाँ इतनी भीड़ रहती है जितनी एलोपैथी वाले डॉक्टर के यहाँ नहीं रहती।
    बात भरोसे की है।
    और यह हम अपनी बात बता रहे हैं विश्वास की दृष्टि से,आप सलाह भी मान सकते हैं मुफ्त की। उन्होंने तो कोरियर सेवा भी चालू कर दी। अगर आप उन्हें फोन पर बात कर ले, सब बता दें और व्हाट्सएप में रिपोर्ट भेज दें तो वे व्हाट्सएप पर भी दवा भेज देते हैं। अगर उन्हें ऐसा लगता है कि किसी बीमारी का इलाज वह नहीं कर सकते तो वह स्पष्ट बता देते हैं।
    यह हमने सब इसलिए बताया कि महंगाई के जमाने में यह सस्ता इलाज है आयुर्वेदिक दवाइयां की खूबी है यह दवाइयां बहुत महंगे आती हैं एलोपैथिक की ही तरह।
    ईश्वर करे कि आप हमेशा स्वस्थ रहें और जो बीमारियाँ आपको लग गईं हैं वह कंट्रोल में रहें।
    अभी तो हमारी एक नातिन आयुर्वैदिक डॉक्टर बनी है उसने आग्रह किया है किया घुटने व कंधे के दर्द के लिए आप मेरी दवाइयाँ लीजिए। उसने जो लिखकर भेजी थीं हम ले रहे हैं ।और काफी आराम भी है
    उसने हमें बताया कि मुनगे की फली और मुनगे की भाजी में बहुत अधिक विटामिन होते हैं और सबको यह रोज खाना चाहिए ।उसने हमसे कहा है कि हम रोज रोज खाएँ और कम से कम दो-तीन चम्मच घी डेली खाने में प्रयोग करें ।अगर खाने में नहीं खा सकते हैं तो दूध में डाल कर लें लोग गलत कहते हैं कि घी नहीं खाना चाहिए।
    मुझे तो हम कहते हैं भले ही रोज ना खाएं क्योंकि हमारी बहुत प्रिय सब्जी है बाकी दूध और घी अभी नहीं ले रहे।पर लेंगे जरूर।
    डॉक्टर के मामले में हम अमीर हैं चाहे वह किसी भी पद्धति वाले डॉक्टर हों।
    अंत में आपके लिए ईश्वर से प्रार्थना करते हैं और तहेदिल से इन सब जानकारियों के लिए आपका शुक्रिया अदा करते हैं ।आप संपादकीय में नया-नया लिखते रहिए और हम लोग जीवन में उसका लाभ उठाते रहेंगे।

    • आदरणीय नीलिमा जी, आपने तो संपादकीय पर इतने विस्तार से लिखा है कि मुझे यह अहसास होने लगा है कि मुझे दोबारा लिखना चाहिये। आपका बहुत बहुत आभार।

  22. ग्लूटन फ्री भोजन, सुना था इसके विषय में पर गहराई समझा अब….वैसे सर आप अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखिए

  23. संपादकीय का स्वाद अच्छा लगा . यह शीघ्र पाचन योग्य दिमाग़ को भी तरो ताज़ा साबित करने वाला हुआ . रूपा सिंह कह लो या रूपा कौर … आपकी तालिका अनुसरण करने से वो स्वस्थ रह कर बस अपने परिवार और दोस्तों की दुलारी बनी रहे . सुपाच्य संपादकीय .

  24. इतने गंभीर विषय को अआपनी कितने हल्के-फुल्के अंदाज में पेश किया है कई जगह तो मैं हंसते-हंसते लोटपोट हो गई
    बहुत बढ़िया जानकारी अच्छा लेख शुभकामनाएं

    • हार्दिक आभार संगीता। यदि बहुत गंभीर होता तो शायद पढ़ना मुश्किल हो जाता।

  25. जैसा मैंने सोचा था आज के संपादकीय में आपने ग्लूटन से बचने के साथ ग्लूटन से होने वाले एक विशेष रोग सीलिएक के बारे में बताया है जो एक ऑटोइम्यून डिसऑर्डर है जो ग्लूटेन के सेवन से होता है।
    पहले मोटा अनाज जिसे मिलेट कहते हैं, खाया जाता था किन्तु आज आधुनिकता के चक्कर में गेंहू मैदा से बनी चीजें खाने लगे हैं जो सेहत के लिए अच्छी नहीं हैं।
    जागरूक करने वाला आलेख। आप अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखें।

    • सुधा जी आपकी टिप्पणी से महसूस होता है कि संपादकीय अपने उद्देश्य में सफल रहा। आभार।

  26. मेरा घबराना बनता था। मेरे मुंह से निकला, “डॉक्टर साहब मैं रहूंगा तो तेजिन्द्र कुमार ही ना… कहीं तेजिन्दर कौर तो नहीं बन जाऊंगा!” hahahaha मजेदार था ये। वैसे पूरा संपादकीय फटाफट पढ़ डाला। एक तरह से कोर्स की किताब जैसा है। और हां बीमारी होना कोई मॉर्डन होना नहीं है यह समाज पता नहीं कब समझेगा। आप निरंतर स्वस्थ रहें यही कामना है। शरीर है तो बीमारी आना निश्चित है बस कुछ दवाओं से अपने आप को और ठीक करके इंसान बेहतर बना रहता है।

  27. अपनी परेशानी को भी आपने रोचक ढंग से प्रस्तुत किया है । वास्तव स्वास्थ्य संबंधित समस्याओं से
    जूझना बहुत मुश्किल है। आप शीघ्रातिशीघ्र स्वास्थ्य लाभ प्राप्त करें। शुभकामनाएं

  28. आपका आलेख बहुत अच्छा लगा। थोड़ा सा हास्य रस जैसा भी। परंतु यह बात सच है कि ग्लूटेन वाकई बहुत नुकसान करता है। एक तो गेहूं हम भारतीयों के लिए बना ही नहीं था। बाहर से आया हुआ उत्पाद है तो शरीर को सूट नहीं करता। मोटा अनाज हमारे शरीर के लिए बना था, हम हमेशा से वही खाते थे और अब पुनः उसी पर आ रहे हैं क्योंकि ग्लूटेन ने वाकई बहुत नुकसान पहुंचाता है। मेरा खुद का अनुभव है।मैंने ऐसे भी केस देखे हैं, जिनमें ग्लूटेन की वजह से मानसिक असंतुलन आ गया। बात सुनने में तो विचित्र लगी थी परंतु थी सच।
    आजकल तो मैं भी ग्लूटेन फ्री ही अनाज खा रही हूं। जब से मैंने ऐसा आरंभ किया है तब से मेरा डाइजेशन बहुत अच्छा हो गया है। सब ठीक चल रहा है तब से।
    अफसोस है कि आपको आधुनिक और शहरी बीमारियां लग गई हैं जो नहीं लगनी चाहिए थीं। परंतु ठीक है एक उम्र पर आते-आते हम लोग कुछ-कुछ तो बीमारियां ग्रहण करते ही हैं या कुछ कमियां तो हमारे शरीर में आती ही हैं, भले ही हम चिर युवा दिखते हों। लेकिन शरीर की प्रक्रिया तो प्राकृतिक रूप से ही चलती है। अच्छा लिखा आपने। बहुत बधाई

    • निधि जी, आपकी टिप्पणी में आप के निजी अनुभव शामिल हैं। ज़ाहिर है कि संपादकीय के लिये आपकी टिप्पणी महत्वपूर्ण है। आभार।

  29. नमस्ते सभी के प्यारे डाक्टर साहब…. इस संपादकीय ने आपको सभी के दिल का डाक्टर ही बना दिया। आंतरिक मन से कितने लोगों को इससे सहानुभूति मिली है की वह अपने दिल के साथ अपने स्वास्थ्य संबंधी सभी समस्याओं को एक खुले मन से तथा आपके साथ अपनापन रखकर अपनी बातों को साझा कर रहें हैं वाह मतलब एक सप्ताह होने को है और अभी भी लोग कुछ ना कुछ एक अच्छी टिप्पणी कर ही रहें हैं वाह तेजेन्द्र जी अब आप एक सफल साहित्यकार के साथ एक अद्भुत डाक्टर, डायटिशियन भी बन गए हैं बहुत बहुत ही आभार…

  30. नमस्ते सभी के प्यारे डाक्टर साहब…. इस संपादकीय ने आपको सभी के दिल का डाक्टर ही बना दिया। आंतरिक मन से कितने लोगों को इससे सहानुभूति मिली है की वह अपने दिल के साथ अपने स्वास्थ्य संबंधी सभी समस्याओं को एक खुले मन से तथा आपके साथ अपनापन रखकर अपनी बातों को साझा कर रहें हैं वाह मतलब एक सप्ताह होने को है और अभी भी लोग कुछ ना कुछ एक अच्छी टिप्पणी कर ही रहें हैं वाह तेजेन्द्र जी अब आप एक सफल साहित्यकार के साथ एक अद्भुत डाक्टर, डायटिशियन भी बन गए हैं बहुत बहुत ही आभार…. .

  31. आपने बहुत परोपकारी सम्पादकीय प्रस्तुत किया है। हर सुधी पाठक को आपका आभारी होना चाहिए। मोटे अनाज पर ही हम भी लौट फिर कर आ गये हैं, आपने उस पर मोहर लगा दी।
    स्वास्थ्य के लिए इतनी महत्त्वपूर्ण चर्चा , और वह भी हास्य रस की चाशनी में पगी हुई। आनन्दम् आनन्दम् । एक साँस में ही मैं पूरा सम्पादकीय हँसते-मुस्कुराते हुए पढ़ गई। आप तो बस, आप हैं। इतनी लाभकारी सलाह के लिए डाॅक्टर हमसे तगड़ी फ़ीस ले लेता। आपके प्रति ईमानदार आभार तो बनता ही है।

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.