Tuesday, October 8, 2024
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डॉ पद्मावती की लघुकथा – अंतिम मिलन

वसुधा का अप्रतिम लावण्य !  पूरे साज सिंगार से वह चली थी । कितनी मिन्नतों के बाद चंदर ने आज आने का वादा किया था । प्रियतम से मिलने की प्रगाढ़ आकुलता पूरे वातावरण को मादक बना रही थी । क्षणभंगुर गगन के राही से धरा का मिलन । और आज तो अनहोनी हो गई थी । आज चाँद ज़मीन पर उतर आने वाला था उसके आग़ोश में। वसुधा की ख़ुशी का पारावार न रहा ।

“वसु मैं तुमसे बहुत ज़रूरी बात बताने आया हूँ कि मेरी पोस्टिंग ऐसे स्थान पर हो गई है जहां कभी भी कुछ भी हो सकता है । और इसीलिए शायद यह हमारा अंतिम मिलन हो”!

चंदर भारतीय सेना का जवान था । बड़ी मुश्किल से वह वसु से मिलने की इजाज़त लेकर आया था ।

“तो आओ न इस मिलन को यादगार बना लें । आज हम प्रणय के बंधन में बंध जाएं । प्रकृति के सब नियम तोड़ एक हो जाएँ । क्या पता कल हो ना हो “। “ वसुधा अपने चाँद को उससे माँग लेना चाहती थी । उसकी एक किरण… जिसकी रोशनी में बाकी का मार्ग आसानी से काटा जा सकता था । जानती थी यह समुचित नहीं पर मोह संवरण असंभव प्रतीत हो रहा था ।

चंदर आश्चर्यचकित हो गया अपनी अभिसारिका के आग्रह पर ।

उन्मादी पूर्णमासी के चाँद ने अपने उजास से वसुधा को आद्यांत भिगो दिया । ओस की बरसात होने लगी । झींगुरों की शहनाइयाँ बजने लगी । तारों की बारात में जुगनुओं ने लड़ियाँ पिरो दी । चंपा चमेली के बिछौने में नव दंपत्ति ने एक दूसरे का संबल बनने की क़समें खाईं ।
पर हाय! निर्मोही समय ! समय पर किसका वश ? अभी आस पूरी न हुई थी कि नभ पर उभरी हल्की लालिमा से चाँद की उजास फीकी पड़ गई ।

मिलन के बंधन शिथिल पड़ गए । एक बार फिर चाँद अदृश्य हो गया लेकिन इस बार हमेशा के लिये । और वसुधा …वसुधा तृप्त नेत्रों से गगन को ताकती निश्चेष्ट रह गई ।

डॉ पद्मावती
डॉ पद्मावती
सहायक आचार्य, हिंदी विभाग, आसन मेमोरियल कॉलेज, जलदम पेट , चेन्नई, 600100 . तमिलनाडु. विभिन्न राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पत्र -पत्रिकाओं में शोध आलेखों का प्रकाशन, जन कृति, अंतर्राष्ट्रीय पत्रिका साहित्य कुंज जैसी सुप्रसिद्ध साहित्यिक पत्रिकाओं में नियमित लेखन कार्य , कहानी , स्मृति लेख , साहित्यिक आलेख ,पुस्तक समीक्षा ,सिनेमा और साहित्य समीक्षा इत्यादि का प्रकाशन. राष्ट्रीय स्तर पर सी डेक पुने द्वारा आयोजित भाषाई अनुवाद प्रतियोगिता में पुरस्कृत. संपर्क - padma.pandyaram@ gmail.com
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