वसुधा का अप्रतिम लावण्य ! पूरे साज सिंगार से वह चली थी । कितनी मिन्नतों के बाद चंदर ने आज आने का वादा किया था । प्रियतम से मिलने की प्रगाढ़ आकुलता पूरे वातावरण को मादक बना रही थी । क्षणभंगुर गगन के राही से धरा का मिलन । और आज तो अनहोनी हो गई थी । आज चाँद ज़मीन पर उतर आने वाला था उसके आग़ोश में। वसुधा की ख़ुशी का पारावार न रहा ।
“वसु मैं तुमसे बहुत ज़रूरी बात बताने आया हूँ कि मेरी पोस्टिंग ऐसे स्थान पर हो गई है जहां कभी भी कुछ भी हो सकता है । और इसीलिए शायद यह हमारा अंतिम मिलन हो”!
चंदर भारतीय सेना का जवान था । बड़ी मुश्किल से वह वसु से मिलने की इजाज़त लेकर आया था ।
“तो आओ न इस मिलन को यादगार बना लें । आज हम प्रणय के बंधन में बंध जाएं । प्रकृति के सब नियम तोड़ एक हो जाएँ । क्या पता कल हो ना हो “। “ वसुधा अपने चाँद को उससे माँग लेना चाहती थी । उसकी एक किरण… जिसकी रोशनी में बाकी का मार्ग आसानी से काटा जा सकता था । जानती थी यह समुचित नहीं पर मोह संवरण असंभव प्रतीत हो रहा था ।
चंदर आश्चर्यचकित हो गया अपनी अभिसारिका के आग्रह पर ।
उन्मादी पूर्णमासी के चाँद ने अपने उजास से वसुधा को आद्यांत भिगो दिया । ओस की बरसात होने लगी । झींगुरों की शहनाइयाँ बजने लगी । तारों की बारात में जुगनुओं ने लड़ियाँ पिरो दी । चंपा चमेली के बिछौने में नव दंपत्ति ने एक दूसरे का संबल बनने की क़समें खाईं ।
पर हाय! निर्मोही समय ! समय पर किसका वश ? अभी आस पूरी न हुई थी कि नभ पर उभरी हल्की लालिमा से चाँद की उजास फीकी पड़ गई ।
मिलन के बंधन शिथिल पड़ गए । एक बार फिर चाँद अदृश्य हो गया लेकिन इस बार हमेशा के लिये । और वसुधा …वसुधा तृप्त नेत्रों से गगन को ताकती निश्चेष्ट रह गई ।
मार्मिक लघुकथा पद्मावती जी!