Sunday, May 19, 2024
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संपादकीय – कोई साथी है तो मेरा साया, अकेला हूं मैं…!

आज इमरान ख़ान अकेले पड़ गये हैं। वे देश छोड़ कर कहीं नहीं जा सकते। वो रोज़ एक वीडियो संदेश जारी करते हैं जिनमें साफ़ झलकता है कि वे हारे हुए खिलाड़ी हैं। इमरान ख़ान क्रिकेट समझते थे… उनको सही खिलाड़ी मिले थे… टीम के तौर पर वे सफलता की चोटी तक पहुंच गये। मगर इमरान ख़ान सियासत को नहीं समझते थे… ग़लत निर्णय लिये, ग़लत बातें बोली। वे समझते रहे कि उनका ख़ूबसूरत होना और ऑक्सफ़र्ड में पढ़ा होना उनकी सफलता के लिये काफ़ी है… वे ग़लत साबित हुए… और आज उनका कोई साथी है तो बस उनका साया।

भारत के पड़ोसी देश पाकिस्तान के पचहत्तर वर्षों का इतिहास रहा है कि कोई भी राजनीतिक नेता या दल वहां की सेना को हरा नहीं पाया। वहां की असली सत्ता हमेशा सेना के हाथ में रही है। इमरान ख़ान को यह मुग़ालता हो गया था कि वे सेना को हरा सकते हैं, मगर 9 मई की हिंसात्मक घटनाओं ने पाँसा पलट के रख दिया।
10 मई, 2022 को इमरान ख़ान ने घोषणा की थी कि सत्ता से निकाले जाने के बाद वे और भी अधिक ख़तरनाक हो जाएंगे। ऐसा हुआ भी। लगभग एक वर्ष तक इमरान ख़ान ने पूरे पाकिस्तान को हिला कर रखा हुआ था। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शाहबाज़ शरीफ़ बार-बार इमरान ख़ान के सामने बातचीत का प्रस्ताव रख रहे थे मगर इमरान ख़ान उस समय सातवें आसमान पर उड़ रहे थे।
इमरान ख़ान 1992 की क्रिकेट विश्व कप विजेता के ख़ुमार से कभी बाहर नहीं आ पाए। उनको यह ग़लतफ़हमी रही कि वे अपने बल पर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बने हैं। जबकि अंदर की बात यह थी कि पाकिस्तानी सेना ने ही उन्हें गद्दी पर बिठाया था। उनकी सरकार में बहुत से पुराने नेता शामिल थे जिन पर इमरान ख़ान ने स्वयं भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे।
इमरान ख़ान ‘मिस्टर यू-टर्न’ के नाम से भी ख़ासे मशहूर हुए। उन्होंने प्रधानमंत्री बनने से पहले जो-जो कहा, बाद में उससे मुकरते चले गये। अपने तीन वर्ष के कार्यकाल में इमरान ख़ान ने पाकिस्तान की राजनीति में परिवर्तन लाने के दावे तो बहुत किये मगर करते वही रहे जो उनसे पहले वाले लोग कर रहे थे। इस मामले में वे अरविंद केजरीवाल जैसा व्यवहार कर रहे थे। और इसी तरह इमरान ख़ान की तोशाखाने से उपहार बेचने और अल-कादिर ट्रस्ट मामले में गिरफ़्तारी भी हुई।
सच तो यह है कि इमरान ख़ान को संसदीय प्रणाली में काम करने की आदत ही नहीं थी। जब वे विपक्षी पार्टी के सांसद के रूप में संसद का हिस्सा बने थे, उस पूरे कार्यकाल में वे संसद में कभी आए ही नहीं और कहा कि मुझे भ्रष्ट लोगों के साथ नहीं बैठना है। वे शरीफ़ बंधुओं और पीपल्स पार्टी के नेताओं को चोर ही कहते रहे और चोरों के साथ बैठने से इनकार करते रहे। एक मज़ेदार स्थिति यह है कि जब इमरान ख़ान सत्ता में आए तो नवाज़ शरीफ़ और पीपल्स पार्टी ने यही इल्ज़ाम लगाया था कि उनके नेताओं को डरा-धमका कर पार्टी छोड़ने के लिये मजबूर किया जा रहा है और वे सब इमरान ख़ान के साथ मिल रहे हैं।
इमरान ख़ान सत्ता के हस्तांतरण में बिल्कुल विश्वास नहीं रखते। उनका कहना है या तो ‘माई-वे’ नहीं तो ‘हाई-वे!’ यदि इमरान ख़ान ने परिपक्वता का सुबूत दिया होता और पाकिस्तान के हालात बेहतर रहने दिये होते तो चुनावों में बड़ी जीत से वापिस आ सकते थे। मगर उन्हें यह मंज़ूर नहीं था।
इमरान ख़ान की सेना के साथ संबंधों में दरार आनी तब शुरू हुई जब इमरान खान ने आई.एस.आई. प्रमुख के रूप में नदीम अंजुम की नियुक्ति की। यह सीधी-सीधी सेना को चुनौती थी। तो एक समय का सेना का ‘ब्लू-आईड बॉय’ अचानक खलनायक बन गया!
इमरान ख़ान का अपनी ज़बान पर कोई नियंत्रण नहीं था। उन्होंने अमरीका पर बेवक़ूफ़ाना आरोप लगाए कि उन्हें सत्ता से निकलवाने के पीछे अमरीका का हाथ है। उनके कार्यकाल में चीन से भी रिश्ते सर्द होते गये और इकनोमिक कॉरीडोर का काम भी ठण्डे बस्ते में चला गया। कश्मीर में अनुच्छेद-370 हटने के बाद इमरान ख़ान ने भारत से बात न करने की कसम ले ली। सऊदी अरब से पाकिस्तान के रिश्ते ख़राब हो गये। मलेशिया के साथ भी कोई बढ़िया रिश्ते नहीं बचे। यानी कि पाकिस्तान अकेला पड़ने लगा।
भारत और पाकिस्तान के रिश्ते ख़राब होने का एक कारण यह भी था कि इमरान ख़ान बहुत ज़्यादा बोलते थे और मोदी बहुत कम बोलते हैं। इमरान ख़ान ने नरेन्द्र मोदी का नाम लिये बिना तंज़ कसते हुए कहा था, “मैं पूरी जिंदगी छोटे लोगों से मिला हूं, जो ऊंचे पदों पर बैठे हैं, लेकिन इनके पास दूरदर्शी  सोच नहीं होती है।”
इमरान सरकार जनता से किए वादों को पूरा करने में विफल रही और कोविड-19 से निपटने के लिए ढुलमुल रवैये के कारण इमरान खान की कड़ी आलोचना की गई। जनता में इमरान खान के खिलाफ बढ़ते आक्रोश के बाद सेना ने भी धीरे-धीरे उनसे अपना समर्थन वापस लेना शुरू कर दिया। पाकिस्तान पर बाहरी कर्ज़े बढ़ते चले गये और पाकिस्तान वर्ल्ड बैंक और आई.एम.एफ़. के सामने घुटने टेकने को मजबूर होता चला गया।
पाकिस्तान लगातार एफ.ए.टी.एफ़. की ग्रे-लिस्ट में फंसा रहा। अक्तूबर 2022 में पाकिस्तान ग्रे-लिस्ट से बाहर निकला मगर तब तक इमरान ख़ान सत्ता से बाहर हो चुके थे।
इमरान ख़ान को यदि पाकिस्तान का आज तक का सबसे अधिक लोकप्रिय नेता कहा जाए तो ग़लत नहीं होगा। वे ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो से कहीं बड़े नेता के रूप में उभर कर सामने आए। मगर उन्हें राजनीतिक व्यवहार की बिल्कुल भी जानकारी नहीं थी। उनकी अपनी ईगो इतनी बड़ी है कि वह बहुत बार तो टीवी चैनलों के साथ इंटरव्यू में भी बड़ी-बड़ी डींगें हांक देते थे।
9 मई को इमरान ख़ान की गिरफ़्तारी के बाद पाकिस्तान में जैसे भूचाल सा आ गया। कभी कोई सोच भी नहीं सकता था कि पाकिस्तान में सैन्य प्रतिष्ठानों पर भी हमला किया जा सकता है। इसके बाद ही सेना का रवैया इमरान ख़ान के प्रति पूरी तरह से बदल गया। वैसे भी जनरल असीम मुनीर इमरान ख़ान की पत्नी के भ्रष्टाचार से ख़ासे नाराज़ थे। रावलपिंडी में पाकिस्तान सेना के जनरल मुख्यालय (जीएचक्यू) और लाहौर में कोर कमांडर हाउस सहित सैन्य प्रतिष्ठानों पर हमलों के बाद इमरान खान के राजनीतिक जीवन का पटाक्षेप शुरू हो गया था।
कोर कमांडर के घर में केवल आग ही नहीं लगाई गई उसमें से खाने-पीने का सामान और फल आदि भी लूटे गये। इन घटनाओं से पूरे विश्व में पाकिस्तान की ख़ासी जग-हंसाई हुई। पंजाब प्रांत में आपातकाल लागू कर दिया गया और राज्य में कानून-व्यवस्था की स्थिति को नियंत्रित करने के लिए पाकिस्तानी रेंजर्स को बुलाया गया। धारा 144 भी लगाई गई थी।
सेना को एक बात समझ आ गई थी कि इमरान ख़ान को गिरफ़्तार करने पर तो हंगामा हो सकता है, मगर शाह महमूद कुरैशी, फ़वाद ख़ान, असद उमर, शिरीन मजारी आदि को पकड़ने से तो कोई चूं भी नहीं करने वाला। सेना ने यही किया। इमरान ख़ान की पार्टी के तमाम अधिकारियों को गिरफ़्तार करने के बाद उन पर ज़बरदस्त दबाव डाला। एक-एक करके तमाम लोग तहरीक-ए-इन्साफ़ पार्टी से अलग होने लगे। कहा तो यह भी जा रहा है कि इमरान ख़ान की पार्टी पर प्रतिबंध भी लगाया जा सकता है।
पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) के अध्यक्ष और पंजाब प्रांत के पूर्व मुख्यमंत्री परवेज इलाही को पहले तो गिरफ़्तार किया ही गया। फिर उनकी रिहाई के तुरंत बाद उन्हें दोबारा गिरफ्तार कर लिया गया। उन्हें लाहौर की एक जिला अदालत के बाहर फिर से गिरफ्तार किया गया। भ्रष्टाचार रोधी प्रतिष्ठान (एसीई) पंजाब ने गुजरांवाला में उनके खिलाफ दर्ज भ्रष्टाचार के मामले में पीटीआई नेता को फिर से गिरफ्तार कर लिया गया।
जिओ न्यूज के रिपोर्ट के मुताबिक, इलाही को गुजरांवाला ले जाया जा रहा है. जहां उन्हें शनिवार (03 जून) को भ्रष्टाचार निरोधक अदालत में पेश किया जाएगा. रिपोर्ट के मुताबिक, इलाही के खिलाफ गुजरांवाला और गुजरात में अरबों रुपये के भ्रष्टाचार के दो मामले दर्ज हैं।
शहबाज सरकार ने इमरान खान की पार्टी पर बड़ी कार्रवाई की है। उसके नौ नेताओं के डिप्लोमेटिक पासपोर्ट रद्द कर दिए गए हैं। जिन नेताओं के पासपोर्ट रद्द हुए हैं, उनमें पार्टी के बड़े नेता भी शामिल हैं। पीटीआई नेता जरताज गुल, परवेज खट्टक, शाह महमूद कुरैशी, असद उमर, आजम स्वाती, अली अमीन गंडापुर, फारुख हबीब, औन अब्बास, जरताज गुल और अली मोहम्मद के नाम इस सूची में शामिल हैं।  मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, पूर्व आंतरिक राज्य मंत्री शेख राशिद अहमद का राजनयिक पासपोर्ट निलंबित कर दिया गया है। इन पर आरोप है कि 9 मई को पूर्व पीएम इमरान खान की गिरफ्तारी के वक्त इन लोगों ने देशभर में प्रदर्शन किया था जिसने हिंसक रूप ले लिया था।
आज इमरान ख़ान अकेले पड़ गये हैं। वे देश छोड़ कर कहीं नहीं जा सकते। वे रोज़ एक वीडियो संदेश जारी करते हैं जिनमें साफ़ झलकता है कि वे हारे हुए खिलाड़ी हैं। इमरान ख़ान क्रिकेट समझते थे… उनको सही खिलाड़ी मिले थे… टीम के तौर पर वे सफलता की चोटी तक पहुंच गये। मगर इमरान ख़ान सियासत को नहीं समझते थे… ग़लत निर्णय लिये, ग़लत बातें बोली। वे समझते रहे कि उनका ख़ूबसूरत और ऑक्सफ़र्ड में पढ़ा होना उनकी सफलता के लिये काफ़ी है… वे ग़लत साबित हुए… और आज उनका कोई साथी है तो बस उनका साया।
तेजेन्द्र शर्मा
तेजेन्द्र शर्मा
लेखक वरिष्ठ साहित्यकार, कथा यूके के महासचिव और पुरवाई के संपादक हैं. लंदन में रहते हैं.
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30 टिप्पणी

  1. सुभोर तेजेन्द्र जी
    जैसा बोया जाएगा, वैसा ही काटा भी जाएगा, बंदा बबूल बोकर आम कहाँ से पाएगा।
    समसामयिक संपादन हेतु आपका अभिनंदन।

  2. एक आँखें खोलने वाला संपादकीय।
    राजनीति जन नीति साथ हो सकती हैं ।
    परंतु जनूनी और दंभी खिलाड़ी बिना सीखे किसी लोकतांत्रिक पद का वहां मर्यादा पूर्वक नहीं कर सकता।
    तेजेंद्र शर्मा साहाब को बधाई और साधुवाद दोनों।

    • धन्यवाद भाई सूर्यकांत जी। आपकी सारगर्भित टिप्पणी के लिए हार्दिक आभार।

  3. संपादक महोदय ,
    बहुत पुरानी कहावत है जो हमारे देश में पालतू कुत्ते और पालतू गधे के माध्यम से बचपन में सुना दी जाती है , मुझे पक्का याद नहीं है कि वह कथा पंचतंत्र की है या कहीं और की:
    “जिसका काम उसी को साजे और करे तो डंडा बाजे”
    एक खिलाड़ी जब खेल छोड़कर: राजा’ बनेगा तो भिश्ती की तरह चमड़े के सिक्के चलवाएगा और उस पर डंडे बजना स्वाभाविक और आवश्यक है ।
    इमरान खान का पूरा राजनैतिक इतिहास समझाने के लिए धन्यवाद और साधुवाद!!

  4. यह सत्य है कि खेल ,साहित्य और कला ये एक अलग दर्शन है और राजनीति का दर्शन अलहदा है।इमरान खान की असफलता का राज अपने सही कहा है । नाम की प्रसिद्धि और काम की प्रसिद्धि दोनों का अंतर स्पष्ट करती हुई सम्पादकीय के लिए शुक्रिया ।
    Dr Prabha mishra

    • प्रभा जी आप निरंतर पुरवाई संपादकीयों पर सटीक टिप्पणी करती हैं। हार्दिक आभार।

  5. Your Editorial of today is a detailed study of the tribulations facing both Imran Khan and Pakistan.
    Not a happy situation where Imran proved to be an incompetent Prime Minister n is now in deep trouble.
    An objective study of the situation.
    Warm regards
    Deepak Sharma

  6. इमरान का जेल जाना कोई नया हादसा नहीं। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति तो जेल जाते, जलावतन होते, फाँसी पर लटकते रहते ही हैं। लगभग 8 प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति जेल जा चुके या यूँ कहिये जेल जाते-आते रहते हैं। पकड़े जाते हैं, छोड़े जाते हैं, फिर पकड़े जाते हैं। ये खेल-तमाशा तो पाकिस्तान का राष्ट्रीय खेल है।
    एक failed state है पाकिस्तान।वहाँ प्रजातंत्र नहीं चल सकता। सेना ही चला सकती मुस्लिम देश को।
    पाकिस्तान के साथ जो भी हो, कोई फर्क़ नहीं पड़ता। बस उसका कोई भला ना हो।
    विस्तृत जानकारी और गीत से सजे संपादकीय के लिए हार्दिक धन्यावाद।

  7. एकदम ठीक कहा, इमरान खान की हालत हारे हुए खिलाड़ी की तरह ही है। पाकिस्तान की हालत बहुत ही खस्ता है।
    वे जिस प्रकार की हरकतें कर रहे हैं उसके लिए वे स्वयं जिम्मेदार हैं और अपने पैरों पर खुद कुल्हाड़ी मार रहे हैं।
    पाकिस्तान कभी नहीं सुधरने वाला।
    उसका हर्जाना भी खुद ही भर रहा है।
    कहते हैं ना जैसी करनी वैसी भरनी।
    तेजेंद्र शर्मा सर जी धन्यवाद

  8. हमेशा ही संपादकीय पढ़ती हूं ।समसामयिक संपादकीय के लिए बहुत-बहुत बधाई।

  9. पाकिस्तान का निर्माण ही भारत विरोध के आधार पर हुआ है। जिस देश की कोई नीति नहीं, कोई सोच नहीं, उसका यही हश्र होना था जो उसका हो रहा है। वहां प्रधानमंत्री, सेना की कठपुतली मात्र है। उसका कोई वजूद नहीं है। जहाँ तक इमरान खान का प्रश्न है, वह पाकिस्तान की नीति रीति बदलना चाहते थे किन्तु उसके लिए सोच और दूर दृष्टि होनी चाहिए जो उनमें नहीं थी। अच्छा क्रिकेटर अच्छा राजनीतिज्ञ नहीं हो सकता। समसामयिक संपादकीय के लिए साधुवाद।

  10. मराठी में एक कहावत है, “अति तीथ माती ”
    ये पूरी तरह फिट बैठती है खिलाड़ी पर

    बेबाक़ संपादकिय के लिए साधुवाद सर जी

  11. आपका लेख हमेशा ही बहुत सारगर्भित होता है और नई नई जानकारी प्राप्त होती है इनके सभी नेता भेड़ चाल चलते हैं इसलिए इनके नेताओं का जेल से चोली दामन का साथ है पाकिस्तान की शक्ति सेना के हाथ में होने से ही यह बचा हुआ है अति सर्वत्र वर्जयत यही हुआ इमरान खान के साथ।

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