पूनम पांडेय की बात पर कोई यकीन नहीं करेगा कि उसने अपने मरने का नाटक सर्वाइकल कैंसर के विरुद्ध जागरूकता फैलाने के लिये किया था। सच तो यह है कि ऐसे लोग अपनी विश्वसनीयता अपने ही घटिया व्यवहार के कारण खो देते हैं। यदि पूनम के परिवार में किसी को सर्वाइकल कैंसर हुआ भी था तो उनका फ़र्ज़ बनता था कि वे सर्वाइकल कैंसर की ब्राण्ड एंबैसेडर बन कर एक सकारात्मक मुहिम चलातीं और आम जनता में जागरूकता फैलातीं। मगर फ़िलहाल वे अपने शुभचिंतकों के ग़ुस्से के निशाने पर हैं।

जब मैंने कहानी ‘शवयात्रा’ लिखी थी तो नहीं सोचा था कि मेरी कहानी की नकल कोई फ़िल्म कलाकार इतनी जल्दी कर दिखाएगा। मेरी कहानी का नायक लाइक्स और कमेंट्स का इतना दीवाना हो जाता है कि सोशल मीडिया पर अपनी ही मौत का नाटक करता है। मैंने उस चरित्र की मानसिकता को भीतर तक उकेरने का प्रयास किया। युवा पीढ़ी को कहानी बहुत पसंद आई। हाल ही में बाबा साहब अंबेडकर विश्वविद्यालय, आगरा में जब इस कहानी का पाठ किया तो विद्यार्थियों ने कहानी को इतना पसंद किया कि मुझे सेल्फ़ी और ऑटोग्राफ़ के लिये घेर लिया।
अभी मेरी भारत यात्रा समाप्त भी नहीं हुई और मैं इस समय मुंबई में हूं। टीवी के प्रत्येक चैनल पर समाचार दिखाया गया कि फ़िल्म कलाकार पूनम पांडेय के प्रबंधक ने उनके आधिकारिक इंस्टाग्राम अकाउंट पर एक पोस्ट के माध्यम से बताया कि 32 वर्ष की आयु में 1 फरवरी 2024 को उनकी सर्वाइकल कैंसर से मृत्यु हो गई थी।
यह समाचार देश के हर टीवी चैनल पर प्रमुखता से दिखाया गया और हर व्यक्ति इस युवा मौत पर दुखी महसूस कर रहा था। सर्वाइकल कैंसर पर चैनल कैंसर विशेषज्ञों से बातचीत करते दिखाई दे रहे थे। हम सब एक तरह के श्मशान वैराग्य की सी स्थिति में थे। जीवन निरर्थक सा लगने लगा था। दरअसल हिन्दी फ़िल्म इंडस्ट्री में इतनी अधिक युवा मौतें हुई हैं कि किसी को शक भी नहीं हो सकता था कि पूनम पांडेय अपनी मौत का नाटक कर रही है।
यहां अपने पाठकों को यह बताना ठीक होगा कि पूनम पांडेय बॉलीवुड इंडस्ट्री में अपने बोल्ड लुक्स के लिए जानी जाती थी। इसकी वजह से वह हमेशा विवादों से घिरी रहती थी। 2011 में पूनम पांडे ने कहा था कि अगर टीम इंडिया वर्ल्ड कप जीतती है, तो वो न्यूड पोज करेंगी। इसके बाद उन्हें खूब ट्रोल किया गया था।
वहीं 2016 में टीम इंडिया ने बांग्लादेश को हराकर बड़ी जीत हासिल की थी। टीम के जीतने की खुशी में एक्ट्रेस ने सोशल मीडिया पर सेमी-न्यूड फोटो पोस्ट की थी। वहीं एक बार उन्होंने यू-ट्यूब पर अपने बाथरूम के अंदर का वीडियो शेयर किया था, जिसके बाद उन्हें यू-ट्यूब की तरफ से ब्लॉक कर दिया गया था।
पूनम पांडेय ने गोवा के एक समारोह में भाग लिया था और उनकी मृत्यु के समाचार को लेकर भारत का प्रत्येक समाचारपत्र गंभीरता से प्रकाशित करते हुए सर्वाइकल कैंसर पर भी लेख प्रकाशित कर रहा था।
अख़बारों में लिखा गया, “किसी का भी अचानक दुनिया से चले जाना हर किसी को हैरान कर जाता है. खासकर उनकी मौत की खबर पर यकीन नहीं होता है जिन्हें कुछ ही समय पहले हंसते-खेलते देखा हो। पूनम पांडे का आखिरी पोस्ट 4 दिन पहले की है। लेकिन पूनम से पहले ऐसी कई बॉलीवुड एक्ट्रेसेस रही हैं जिनकी मौत कम उम्र में हुई और फैंस को हैरान कर गई।” इस सूची में शामिल हैं मधुबाला, स्मिता पाटिल, दिव्या भारती, सिल्क स्मिता, जिया ख़ान जैसे नाम।
पूनम पांडेय जैसी फ़िल्म कलाकार पहले से ही बहुत से विवादों में घिरी रही हैं। उनकी हरकतें उन्हें सिने-प्रेमियों की निगाह में एक गंभीर इन्सान या कलाकार नहीं बनने देतीं। पूनम ने किसी भी फ़िल्म में ऐसा कोई किरदार नहीं निभाया जो उन्हें दर्शकों की यादों में स्थाई स्थान दिला सके। दरअसल अधिकांश फ़िल्म प्रेमी तो पूनम को पहचान भी नहीं सकेंगे। राखी सावंत और पूनम जैसे कलाकार विवादों के ज़रिये अपने आप को ज़िंदा रखते हैं।
अपनी मौत की ख़बर सोशल मीडिया पर सार्वजनिक करने के बाद 48 घंटे तक पूनम पांडेय अपनी साँस रोके कहीं अंडरग्राउंड छुपी रही और अपनी मौत पर बड़े छोटे हर इन्सान की प्रतिक्रिया का आनन्द लेती रही। उसे यह अहसास सुख दे रहा था कि बड़े से लेकर छोटे कलाकार तक उसकी मृत्यु पर शोक प्रकट कर रहे हैं। अपने जीवन में ही पूनम को अहसास हो गया था कि उसके मरने के बाद लोग कैसी बातें कहेंगे। अगर उसे अहसास नहीं था तो इस बात का जब सारे भेद खुल जाएंगे तो उस पर क्या बीतेगी। क्या लोग यह नहीं कहेंगे कि वह मर क्यों न गई!
अपरिपक्वता इन्सान से कुछ भी करवा सकती है। हो सकता है कि पूनम भी भाव वेश में ऐसा कदम उठा गई। मगर उसने यह नहीं सोचा कि जब वह घोषित करेगी कि वह जीवित है तो आम आदमी उसके बारे में क्या सोचेगा और उसकी छवि कितनी अधिक धूमिल हो जाएगी। न मालूम वह किन मित्रों के साथ थी और मेरी कहानी ‘शवयात्रा’ के नायक की तरह लाइक, कमेंट्स, समाचार पत्रों की ख़बरों और टीवी समाचार का आनंद उठा रही थी। उसने यह भी नहीं सोचा कि उसके परिवार वालों पर क्या गुज़र रही होगी जब उसकी मृत्यु की ख़बर सभी दिशाओं में सुर्ख़ियों में थी।
पूनम पांडेय की मौत की ख़बर साझा करते हुए कहा गया था, ‘आज की सुबह हमारे लिए कठिन है। आपको यह बताते हुए बहुत दुख हो रहा है कि हमने सर्वाइकल कैंसर के कारण अपनी प्यारी पूनम को खो दिया है। हर जीवित रूप जो कभी भी उनके संपर्क में आया, उसे शुद्ध प्रेम और दयालुता मिली। दुख की इस घड़ी में हम गोपनीयता का अनुरोध करेंगे, जबकि हम उसे हमारे द्वारा साझा की गई हर बात के लिए प्यार से याद करते हैं।’
अपने ग़ैर-ज़िम्मदाराना व्यवहार के दो दिन बाद ही पूनम पांडेय ने सोशल मीडिया पर एक वीडियो संदेश जारी कर दिया। उस संदेश में उसने कहा, “‘मैं आप सभी के साथ कुछ महत्वपूर्ण बात साझा करने के लिए बाध्य महसूस कर रही हूं – मैं यहां हूं और जिंदी हूं। सर्वाइकल कैंसर के कारण मेरी मौत नहीं हुई है, लेकिन दुखद बात यह है कि इसने उन हज़ारों महिलाओं की जान ले ली है जो इस बीमारी से निपटने के बारे में जानती ही नहीं थी। कुछ अन्य कैंसरों के विपरीत, सर्वाइकल कैंसर पूरी तरह से रोकथाम के योग्य है।’
पूनम पांडेय के इस वीडियो ने – कि वह जीवित है – सबको अधिक आहत किया है। एक्स पर लोगों ने लिखा – ये पब्लिसिटी का सबसे घटिया तरीका था। एक अन्य ने लिखा- ‘मौत का मज़ाक बनाया है, अब तुम्हारी असली मौत पर भी कोई यकीन नहीं करेगा’। एक अन्य ने लिखा- ‘ख़ुशी है कि आप ज़िंदा हैं, लेकिन इस घटिया झूठ के लिए गिरफ़्तारी होनी चाहिए’… एक अन्य ने लिखा- ‘जागरुकता के और भी तरीके हो सकते थे, लेकिन ये सबसे घटिया है’।
वीडियो में पूनम पांडेय ने लोगों से माफ़ी मांगने के साथ-साथ ही ये भी स्वीकार किया है कि उन्हें अपनी झूठी मौत की खबरों पर दुख नहीं है, क्योंकि इस खबर ने एक ही दिन में सर्वाइकल कैंसर के बारे में लोगों को जागरूक कर दिया है।
यहां ध्यान देने लायक यह बात भी है कि ऑल इंडिया सिने वर्कर्स एसोसिएशन ने इस बारे में पुलिस को एक पत्र भी लिखा है। लगता है कि पूनम पांडेय अपने इस नाटक के कारण काफ़ी परेशानी में फंसने वाली हैं। एसोसिएशन की तरफ़ से मुंबई के विक्रोली पुलिस स्टेशन के वरिष्ठ पुलिस निरीक्षक को लिखे पत्र में कहा है कि पूनम पांडेय और उनके मैनेजर के विरुद्ध एफ़.आई.आर. दर्ज की जानी चाहिये।
फ़ेक विवाद की एक और एक्सपर्ट उर्फी जावेद ने पूनम के इस पब्लिसिटी स्टंट को लेकर अपने ऑफिशियल इंस्टाग्राम हैंडल पर लेटेस्ट पोस्टर शेयर किया है। इस फोटो में उर्फी बेड पर लेटी हुई नजर आ रही है और उसकी आंखो का काजल चेहरे पर फैला हुआ नजर आ रहा है। फ़ोटो के कैप्शन में उर्फी जावेद ने लिखा है – “हाय दोस्तो, मैं मरी नहीं हूं, बस हैंग-ओवर के ख़िलाफ जागरूकता फैला रही हूं। जब आप शराब पीते हैं, तो आप ख़ुद को बहुत ज़िंदा महसूस करते हैं। हालांकि उसके अगले दिन आप ख़ुद को मरा हुआ महसूस करते हैं, लेकिन हकीकत में आप मरते नहीं हैं।
सर्वाइकल कैंसर के लिये आम लोगों को जागरूक करने के और बहुत से सकारात्मक तरीके हो सकते हैं। पूनम पांडेय की बात पर कोई यकीन नहीं करेगा कि उसने अपने मरने का नाटक सर्वाइकल कैंसर के विरुद्ध जागरूकता फैलाने के लिये किया था। सच तो यह है कि ऐसे लोग अपनी विश्वसनीयता अपने ही घटिया व्यवहार के कारण खो देते हैं। यदि पूनम के परिवार में किसी को सर्वाइकल कैंसर हुआ भी था तो उनका फ़र्ज़ बनता था कि वे सर्वाइकल कैंसर की ब्राण्ड एंबैसेडर बन कर एक सकारात्मक मुहिम चलातीं और आम जनता में जागरूकता फैलातीं। मगर फ़िलहाल वे अपने शुभचिंतकों के ग़ुस्से के निशाने पर हैं।
 
तेजेन्द्र शर्मा –  लेखक एक वरिष्ठ साहित्यकार, कथा यूके के महासचिव और पुरवाई के संपादक हैं. लंदन में रहते हैं.

65 टिप्पणी

  1. आप सदैव महत्वपूर्ण मुद्दों पर प्रमुखता से लिखते हैं। मैं आपका संपादकीय पढ़ता हूं।यह प्रकरण सस्ती लोकप्रियता के लिए बढ़ते जुनून का पटाक्षेप करता है।यह एक घातक प्रवृत्ति है जो हमारे समाज में तेजी से बढ़ रही है।

  2. अच्छा लगा संपादकीय। पूनम पांडे जैसे लोगों पर ध्यान ही नहीं देना चाहिए, जिन्हें सामाजिक नियमों या भावनाओं का कोई ध्यान ही नहीं है। आपने उनकी आलोचना बहुत ही अच्छे तरीके से व्यक्त की।
    हार्दिक शुभकामनाएं

  3. कहानी शवयात्रा तो नहीं पढ़ी है,परंतु आपके संपादकीय के माध्यम से यह समझ में आ गया कि आभासी दुनिया में मूर्खों की कमी नही है।जो अपने तक और अपने शरीर तक सीमित हैं उनका क्या होगा।आपने बहुत ही शालीनता से पूनम को आइना दिखाया है।
    बधाई

    • पूनम पाण्डेय की मीडियायी मौजूदगी उपेक्षा की सीमा के पार तक पहुंच चुकी थी… इस “असहनीय अवस्था” ने पूनम से यह कृत्य करवा दिया, इसमें परिणाम की सामाजिक व मीडियायी प्रतिक्रिया से बेअसर पूनम के लिये यही प्रतिक्रियाएं एक आनंददायी साध्य रहीं, ऐसा प्रतीत होता है। अस्तु।

  4. आपने इस नाटकीय घटना पर सटीक सम्पादकीय लिखा है। ख़बरों में आने के लिए वो हमेशा से ही ऐसा करती रहीं हैं। जीवन व मृत्यु के बीच की दुनिया के सत्य को समझना बहुत ज़रूरी है।

  5. प्रिय भाई तेजेंद्र जी, सच्चे दुख और गुस्से से भरा आपका संपादकीय पढ़ गया हूं।‌ यह बगैर किसी किंतु-परंतु के अपनी बात कहता‌ निर्भय और ईमानदार संपादकीय है, जो सोशल मीडिया पर घटिया प्रोपेगंडा करके किसी तरह खुद को चर्चा में बनाए रखने वाले गैरजिम्मेदार लोगों के ओछेपन और सस्ती ड्रामेबाजी के खिलाफ सही समय पर सही आवाज उठाता है, और उन सबको चेताता भी है, जो पूनम पांडे सरीखी शख्सियतों को जरूरत से ज्यादा महत्त्व देते हैं।

    इस खरे और सामयिक चेतावनी भरे संपादकीय के लिए आपको और ‘पुरवाई’ को साधुवाद!

    स्नेह,
    प्रकाश मनु

  6. बढ़िया संपादकीय। पूनम पाण्डे जैसे व्यक्तित्व देह से ऊपर सोच ही नहीं पाते। वह सिर्फ़ ऐसे ही हथकंडे अपनाकर ऐसे वर्ग को आकर्षित कर सकते हैं, जिसके सोचने का स्तर बहुत स्तही है।

  7. बढ़िया संपादकीय। पूनम पाण्डे जैसे व्यक्तित्व देह से ऊपर सोच ही नहीं पाते। वह सिर्फ़ ऐसे ही हथकंडे अपनाकर उस वर्ग को आकर्षित कर सकते हैं, जिसके सोचने का स्तर बहुत सतही है।

      • सच में बेहद घटिया पब्लिसिटी स्टंट है। कुछ लोग देह से ऊपर कभी उठते ही नहीं उनसे बुद्धिमता की अपेक्षा करना हमें ही दुखी करता है। मौत पर तो बुरे से बुरे व्यक्ति के लिए भी सहानुभूति ही प्रकट की जाती है तो उसे सुनकर कौनसा सुख लेना चाहती थी ? अवेयरनेस के लिए तो सैकड़ों तरीके हैं लेकिन सच में यही पर्पज था तब भी यह अच्छे काम के लिए सबसे घटिया तरीका था। मुझे तो आपका संपादकीय पढ़कर ही ज्ञात हुआ कि वो ज़िंदा है वर्ना मान चुका था कि मर गई है।

  8. आजकल यह आभासी दुनिया वास्तविक दुनिया से भी अधिक प्रिय लगने लगी है… तभी तो ऐसे ऐसे लोग मिलते हैं। आपने अत्यंत सुंदर एवं परिमार्जित शब्दों में यह संपादकीय लिखकर पुनः हम पाठकों को नैतिकता की शिक्षा दी है ….. हार्दिक धन्यवाद सर

  9. मैं वास्तव में पूनम पांडे को नहीं जानती थी लेकिन कल समाचारों में जब उसकी मौत की खबर आई तो मन बहुत आहत हुआ था कि इतनी कम उम्र में सर्वाइकल कैंसर के कारण चले जाना बहुत ही दुखदाई है लेकिन आपके सम्पादकीय के माध्यम से मुझे ज्ञात हुआ कि यह सब एक नाटक था। निश्चय ही इतनी घटिया हरक़त देख बहुत अफसोस होता है ।ये लोग झूठी प्रसिद्धि के लिए किसी भी हद तक गिर सकते हैं।
    समसामयिक विषयों पर आपका सम्पादकीय उल्लेखनीय है।

  10. ऐसे प्रोपेगैंडा करने वालों के खिलाफ कार्यवाही होनी ही चाहिए। बहुत ज़रूरी संपादकीय।

  11. पूनम पाण्डे ऐसी महत्त्वपूर्ण फ़िगर नहीं है कि उसकी इस स्तरहीन हरक़त को इतना तूल दिया जाए। आपने इसी बात को अपने प्रबुद्ध सम्पादकीय के माध्यम से समझा दिया है। आपको हार्दिक साधुवाद। वस्तुतः एसे लोग न अच्छे कलाकार होते हैं, न अच्छे इंसान।

  12. आपको और आपकी लेखनी को साधुवाद
    कथा लेखन में आप अक्सर ‘परकाया प्रवेश’ का उल्लेख किया करते हैं, आपकी कहानी ‘शवयात्रा’ का नायक हो अथवा पूनम पांडे आपके कथन की पुष्टि करते हैं ।
    आपका संपादकीय ‘सोशल मीडिया’ की विश्वसनीयता पर भी बार-बार विचार करने को प्रेरित करता है। लाइक, कमेंट और विशेषकर फारवर्ड करने से पूर्व अपने विवेक का सहारा लेना चाहिए।

    • रक्षा आप को ‘परकाया प्रवेश’ वाली मेरी बात याद है जान कर अच्छा लगा। सार्थक टिप्पणी के लिए हार्दिक आभार।

  13. सम्पादकीय को पढ़कर आपकी चर्चित कहानी”शवयात्रा ” याद आ गई । बस
    कहानी का अंत दुखद था लेकिन यथार्थ संकल्पना का सुख है और पूनम की कहानी सुखांत होते हुए भी झूठ का दुख है ।
    आपके पूर्वाभास को नमन
    Dr Prabha mishra

    • प्रभा जी लेखक समाज की नब्ज़ पहचान कर रचना का सृजन कर देता है। बहुत बार रचना प्रकाशित होने के बाद समाज में घटित होती है।

  14. सही और सटीक बातें कही है। ऐसे लोग ज़िन्दगी को स्टंट जैसा प्रयोग करते हैं। जिन्हें सफलता नही मिलती है वे उकताए हुए लोग हैं। ऊटपटांग हरकतों से ध्यान खींचते हैं। आपका संपादकीय सामयिक भी है और हमेशा की तरह विषय के साथ न्याय करता है।

  15. आदरणीय तेजेंद्र जी का संपादकीय बेहद समीचीन और संवेदनशील अंदाज़ में लिखा गया मानीखेज दस्तावेज बन गया है।औचित्य पूर्ण तथ्य और कथ्य !पूनम पांडे अपने आपको चर्चा में दिखाने हेतु कुछ भी करती हैं जो कहीं से और किसी भी प्रकार से उनके सुसभ्य और सुसंकृत होने का परिचय नहीं देता है। संपादक जी ने सही लिखा कि वे इस बीमारी की ब्रांड एंबेसेडर भी नहीं है और ना ही उनके किसी परिवार के सदस्य को ऐसी बीमारी होने की पुष्ट खबर सामने आई है। कला एक बेहद आदरणीय सोपान है और कलाकार उसके ब्रांड एंबेसडर ? तब ऐसा ,,, नौना ,,,क्कार कृत्य क्यों,,,,वे इस से अपने भविष्य और छवि दोनों को को चुकी हैं।
    एक ज्वलंत परंतु बीमार मानसिकता वाले मुद्दे को संवेदनशीलता से प्रस्तुत करने हेतु ,पुरवाई संपादक को हृदय से बधाई।

  16. संपादकीय बहुत अच्छा और सामयिक है। सिनेमा और राजनीति दोनों का प्रभाव जन साधारण से लेकर धन्नासेठों तक और हर आयु वर्ग की जनता तक रहता है… और ये दोनों में कुछ बहुत अच्छे और जिम्मेदार लोग हैं तो कुछ बहुत ही घटिया सौच के लोग हैं… इन्हीं घटिया लोगों की ऊलजलूल हरकतों से इनकी विश्वसनीयता में कमी आई है… आपने पुरवाई की संपादकीय में अच्छी खबर ली है… यह ज़रूरी भी था…
    -जगदीश व्योम

  17. जिनके लिए “बदनाम हुए तो क्या नाम ना होगा” ही जीवन का मूल मंत्र हो, उनके लिए जीवन, मृत्यु, बीमारी, दुख, शोक सब प्रचार में आने के साधन हैं l कैसे भी करके चर्चा में बने रहें के दांव पेंच तमाम उर्फ़ी जावेद और पूनम पाण्डेय सरीखों के हथियार हैं l इन लोगों से सही तरीकों की उम्मीद नहीं की जा सकती, लेकिन इस बार पूनम पाण्डेय ने आम संवेदना को कैश करने का घृणित काम करने का प्रयास किया है l आज जब हम खबरों पर स्वतः विश्वास नहीं करते, चार बार चेक करते हैं, इस खबर पर विश्वास करना हमारी मानवीयता थी l उम्मीद थी कि कम से कम मृत्यु का तो इस तरह प्रचार में इस्तेमाल नहीं किया जाएगा l हर संवेदनशील व्यक्ति इससे आहत हुआ है l जिन्होंने भी कैसर को करीब से देखा है, किसी अपने को खोया है, “बस 6 महीने पास हैं” कि डॉक्टर द्वारा लटकाई गई इस घड़ी की कानफाड़ू टिकटिक का दर्द झेला है, वो इस खबर पर विश्वास कर बैठा l किसी अपने को खोए मेरे मन ने भी विश्वास किया l पूनम पाण्डेय कोई रिश्ता ना होते हुए भी उसकी कम उम्र की मौत का दुख हुआ l और बाद में खुद को छला हुआ महसूस किया l इससे अवेयरनेस नहीं असंवेदनशीलता बढ़ती है l कल को कोई और पूनम उठेगी ऐसे ही, और धीरे -धीरे हम मौत, दुख की खबरों के प्रति असंवेदनशील होते जाएंगे l अवेयरनेस्स फैलाने के बहुत से साधन हैं जो इस्तेमाल किये जा रहे हैं और मरीजों और उनके परिवार को सकारात्मक दिशा दिखा रहे हैं l ये अवेयरनेस नहीं केवल आत्म प्रचार का निंदनीय तरीका था l मीडिया वाली आपकी कहानी भी याद आई l उस पर लिखा भी था मैंने l मृत्यु का जश्न वाला संपादकीय भी l लाइक और कमेन्ट में जिंदगी सीमित गई है जैसे l प्रशंसा सुनने के लिए अच्छे काम नहीं करने हैं, हथकंडे अपनाने हैं l हमें सोचना ये है कि अगर हम दुख को कैश कराने की संस्कृति की बढ़ चले हैं तो आम भावनाओं को छलने के इन चोरों के प्रति कोई दंड का प्रावधान भी होना चाहिए l
    एक बार फिर आपके बेहतरीन संपादकीय ने सोचने पर विवश किया l समाज में चेतना जगाने का आपका ये प्रयास सराहनीय है l बधाई सर

    • वंदना जी, आपने संपादकीय न केवल पढ़ा बल्कि पुरवाई के पाठकों को एक दृष्टिकोण भी दिया है। हार्दिक आभार।

  18. हम सब एक तरह के श्मशान वैराग्य की सी स्थिति में थे। जीवन निरर्थक सा लगने लगा था। दरअसल हिन्दी फ़िल्म इंडस्ट्री में इतनी अधिक युवा मौतें हुई हैं कि किसी को शक भी नहीं हो सकता था कि पूनम पांडेय अपनी मौत का नाटक कर रही है।

    पूनम पांडेय जैसी फ़िल्म कलाकार पहले से ही बहुत से विवादों में घिरी रही हैं। उनकी हरकतें उन्हें सिने-प्रेमियों की निगाह में एक गंभीर इन्सान या कलाकार नहीं बनने देतीं। पूनम ने किसी भी फ़िल्म में ऐसा कोई किरदार नहीं निभाया जो उन्हें दर्शकों की यादों में स्थाई स्थान दिला सके। दरअसल अधिकांश फ़िल्म प्रेमी तो पूनम को पहचान भी नहीं सकेंगे। राखी सावंत और पूनम जैसे कलाकार विवादों के ज़रिये अपने आप को ज़िंदा रखते हैं।

    सर आपके संपादकीय का यह बिंदु बहुत महत्वपूर्ण है। मुझे भी हैरानी हुई थी एक बारगी। पर फिर सोचा अगर मर भी गई तो क्या हुआ इंसान को एक दिन जाना ही है। वैसे भी इन जैसों को जान भी कितने लोग रहे हैं और जानते भी हैं तो हमें पता है किस रूप में। व्हाट्स एप्प पर मैंने लिखा और पूनम पांडे मर गई तो कुछ लोगों ने कहा वे उसके बड़े फैन थे बचपन से। पर पूनम ने ये जो किया उससे सस्ती लोकप्रियता कुछ समय के लिए हासिल जरूर कर ली और अपने लिए ट्रेंडिंग में आने का अच्छा बहाना मिल गया। पर यह इस तरह के कैंसर से सच में पीड़ित लोगों के साथ क्या मजाक नहीं है?
    आपने हमेशा की तरह समसामयिक संपादकीय लिखा है। और कहानी आपकी शवयात्रा भी अवश्य पढूंगा अभी तक नहीं पढ़ पाया था।

    • तेजस, बहुत दिनों बाद संपादकीय पर आपकी प्रतिक्रिया मिली है। अच्छा लगा। स्नेहाशीष।

  19. खबरों में बने रहने के लिए कुछ बेहतर तरीक़े भी हैं . पूनम पांडे को पहले भी कोई गंभीरता से नहीं लेता था अब तो बची खुची इज्जत का भाई पाला हो गया मित्र

  20. आपका संपादकीय बहुत प्रभावशाली है। हम तो किसी पूनम पांडे को जानते भी नहीं थे। और जब उसके बारे में खबर पढ़ी तो कुछ देर के लिए कैंसर से हुई मौत पर शोक हुआ।लेकिन जब सच्चाई सामने आई तो इस तथाकथित अभिनेत्री की घटिया हरकत और सोच पर रोष आया ।लोगों को मानसिक रूप से ब्लैक मेल करने वाली इस अभनेत्री के खिलाफ कड़ी कार्यवाही होनी चाहिए।

    • नरेंद्र कौर जी आपकी टिप्पणी से साफ़ ज़ाहिर है कि इस कृत्य ने कितने लोगों के दिलों पर असर किया है।

  21. मैंने आपकी कहानी ‘शव यात्रा ‘ पढ़ी है इसमें आपने व्यक्ति में सोशल मिडिया के जूनून का उभारते हुए अपनी बात कही है किन्तु पूनम पांडे के केस में ऐसा नहीं है। उसने स्वयं को सुर्खियों में बनाये रखने के लिए यह कृत्य किया है जो सरासर निंदनीय है।

    उसके इस कृत्य में मिडिया का भी योगदान है। मानसिक रुप से विकृत लोगों को वह भाव ही क्यों देता है।

  22. घटिया पब्लिसिटी पाना , लगातार विवादों में घिरे रहना , लोगों का ध्यानाकर्षण पाना , बेवजह सहानुभूति प्राप्त करना और संवेदनशीलों की भावनाओं से खिलवाड़ –कहीं भी और कभी भी ना ही उचित है और ना ही स्वीकार्य है। इसे दंडनीय अपराध मानना चाहिए।
    डॉ.शर्मा आपने इस ज्वलनशील मुद्दे को अपनी लेखनी द्वारा वाणी प्रदान की इस महत्वपूर्ण श्लाघनीय कार्य के लिए आपको शुभकामनाएं

  23. Your Editorial of today deals with the hollowness and absurdity of the publicity stunt that Poonam Pandey used by making his manager announce her death.
    It is possible she had read your story where your chief character of your popular story Shavyatra had announced his death to read his obituaries.
    Very strange n interesting.
    Warm regards
    Deepak Sharma

  24. जितेन्द्र भाई; झूटी शॉहरत, लोगों की सहानुभति और शौ औफ़ के लिये लोग इतने गिर सकते हैं, कभी सोचा नहीं था। बॉलीवुड की so called ऐक्ट्रैस जिसका नाम लेते हुये भी लज्जा आती है अपनी गन्दी और ओछी हर्कतों से अपने आपको इस level तक गिरा सकती है कि अपनी झ़ूटी मौत दिखाये, अपनी समझ से बाहर है। आपने अपने सम्पादकीय से इसे expose किया, उसके लिये बहुत बहुत साधुवाद।

  25. रुग्ण मानसिकता और कुछ नहीं।
    सोशल मीडिया की मृगतृष्णा में व्याकुल युवा वर्ग के लिए चेतावनी स्वरूप।

    बधाइयां

  26. आदरणीय तेजेन्द्र जी!
    हम तो आजकल पिक्चर व टीवी दोनों ही नहीं देखते अतः पूनम को नहीं जानते थे।
    इस समय हम भोपाल में हैं।गुरुवार के दिन हमारी नातिन मिली ने आश्चर्य से अपनी माँ को पूनम की मौत की खबर सुनाई थी तब पहली बार नाम सुना और दूसरे ही दिन झूठी खबर की सूचना दी।
    सच कहें तो पहली बार में यही ख्याल आया कि, “पागल है क्या? बेवकूफ, जाहिल!”
    जन समूह की भावनाओं को इस तरह से आहत करना भी अपराध की श्रेणी में ही आना चाहिए, और जो कृत्य किया गया उस कृत्य को भी अपराध की श्रेणी में ही गिना जाना चाहिए यह सरासर धोखा है।
    आपके संपादकीय को पढ़ने के बाद पूनम के बारे में विस्तार से जान पाए। जिसका स्वयं का ही कोई स्तर ना हो उसके लिये क्या ही कहा जाए।
    पर हम इसे सामाजिक अपराध मानते हैं। समाज को ग़लत संदेश जाता है।
    अभी कुछ दिन पहले जो हमने मणिपुर की समीक्षा डाली थी उसमें अनीता श्रीवास्तव की कहानी की एक पात्र एक रचना ऐसी भी थी जिसमें एक महिला ने पुरुष ही नहीं निर्वस्त्र घूमकर औरतों को भी उनकी औकात दिखाने की कोशिश की है, किन्तु यह उसके आहत मन का आक्रोश था – मनुष्यता के खिलाफ जाने वाले हर स्त्री और पुरुष के विरुद्ध ।कहानी प्रश्न करती है कि जब स्त्रियाँ स्वयं पुरुषों को प्रेरित करें कि वे उन्हें गिद्ध की भाँति नोंच डालें…… यह पूनम पर चरितार्थ होता है। भावनाओं को उकसाना भी अपराध ही तो है।नीयत मायने रखती है।
    इस झूठ पर बचपन में पढ़ी हुई एक कहानी याद आ गई।
    एक बार एक गाँव में बहुत गरीब एक गडरिया रहता था ।वह रोज बकरी चराने के लिए जंगल में जाया करता था। एक दिन अचानक उसके मन में यह ख्याल आया कि क्यों ना मैं झूठ में चिल्लाऊँ कि ,”शेर आ गया, शेर आ गया, मुझे खा जाएगा , मुझे
    बचाओ! देखता हूँ ये गांँव वाले मुझे बचाने के लिए आते हैं या नहीं!”
    उसने ऐसा ही किया। सारे गाँव वाले जिसके पास जो कुछ था वह लाठी, डंडा साथ लेकर आये और शेर कहाँ है? पूछने लगे सबको इस तरह आते हुए देखकर वह जोर-जोर से हँसने लगा और कहने लगा कि मैंने तो झूठ बोला था यह देखने के लिए कि तुम लोग मुझे बचाने आते हो या नहीं?
    गाँव वाले उस पर बहुत नाराज हुए और उसे डाँटते हुए चले गये।
    6- 7 वर्षीय उस बालक को यह तमाशा खेल सा लगा।
    कुछ समय बाद उसने पुनः वही हरकत की। और बहुत डाँट खाई।
    किंतु तीसरी बार सच में एक शेर आ गया वह बहुत चिल्लाता रहा लेकिन एक भी गाँव वाला उसे बचाने नहीं आया और इस तरह उसकी मौत हो गई।
    जिंदगी के लिये मौत का बहाना कभी सुखकर हो ही नहीं सकता।
    यह ध्यान देना जरूरी है कि विश्वास अगर एक बार टूटता है तो दोबारा असंभव नहीं तो संभव होना भी सहज नहीं होता।
    एक कहावत है, जो अक्सर पुराने लोग कहा करते थे ,”बद अच्छा बदनाम बुरा।”
    ईश्वर भले ही बदकिस्मती दे दे लेकिन बदनामी का भार झेलते नहीं बनता, बदनामी से बचना चाहते हैं। सिर्फ बेशर्म लोग जिनकी खाल मोटी होती है, जिन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता, चाहे उन्हें कहीं भी और कैसी भी मार पड़े। ऐसे ही लोग इसे खेल में लेते हैं।
    जो लोग यह कहते हैं कि मौत की झूठी खबर उड़ाने से उम्र बढ़ जाती है, तो उसका भी एक तरीका होता है। जहाँ जीवन की संभावना कम दिखने लगती है और बिना प्रयास के भ्रमवश जीवित रहते हुए ही किसी अन्य के द्वारा मृत मानकर मौत की खबर स्वत: फैल जाती है तो कहते हैं उम्र बढ़ गई। यह नहीं पता कि वास्तव में ऐसा होता है या नहीं। वह बात अलग है कि हम अति आत्मीयता में ऐसी कामना करें।
    हमें तो बस ऐसा लगा जै से किसी स्टूडेंट ने जान बूझकर कोई गंभीर नाजायज अपराध किया हो उसे तीन चार सपाटे लगाकर प्रिंसिपल के पास अंतिम निर्णय के लिये पहुँचा दिया जाए।हम मारने पर विश्वास मुश्किल से करते हैं, मजबूरी में।सुधारने के रास्ते तलाश करने पर भरोसा रखते हैं।
    इसके लिए पूनम के माता-पिता अधिक दोषी हैं।
    महत्वाकांक्षी होना बुरा नहीं है लेकिन महत्वाकांक्षा की दौड़ में हम अंधे रास्तों पर निकल जाएँ यह समझना और सावधानी रखना बहुत जरूरी है।
    इस संपादकीय को पढ़कर हमारी सोच पहले तो स्थिर ही रही क्योंकि फिल्मालय का आकर्षण जो न करा ले वही थोड़ा। वहाँ कुछ भी होना संभव है।
    पर फिर भी उसे सजा मिलनी चाहिए इस बात पर हम अडिग हैं।
    जहाँ तक बात सर्वाइकल कैंसर की है। तो उसके कारण के प्रति जागरूकता आवश्यक है। कैंसर से जीवन गंवाने वाले लोगों की संख्या चिंताजनक हैं। हमने कहीं पढ़ा था कि बहुत अधिक समय तक लगातार बैठने या बैठकर काम करने से भी सर्वाइकल कैंसर की स्थिति बनती है।
    लेकिन इससे भी ज्यादा चिंताजनक समाचार है जो अभी हमने कुछ दिन पहले पढ़ा था कि 50 से 60 लाख युवाओं की मृत्यु देश में हार्ट अटैक से हो चुकी है।
    इस पर गौर करने की जरूरत है हमारी दैनन्दिनी और खान-पान पर ध्यान देना आवश्यक है।
    माता-पिता का जागरूक होना बहुत जरूरी है। गलत आदतों के लिए पहली बार में ही अंकुश लगाना जरूरी होता है। अगर वह स्वभाव में शामिल होकर आदत बन जाती हैं तो फिर सुधारना मुश्किल होता है।
    पूनम पाण्डे की जानकारी के लिए आपका शुक्रिया तेजेंद्र जी। एक समाचार की तरह संपादकीय पढ़ गए। कुछ प्रसंग मन को आहत गए , जैसे टीम इंडिया की जीत पर पूनम द्वारा की गई घोषणा।यह उसकी अपरिपक्व मानसिकता का प्रतीक है।शुक्रिया आपका मित्र। वैचारिकता में भी वर्धन होता है।
    आभार पुरवाई।

    • नीलिमा जी आप संपादकीय को एक अध्यापक की तरह तमाम पाठकों को समझा देती हैं। आपका आभार।

  27. संवेदनशील संपादकीय । कुछ लोग झूठी पब्लिसिटी पाने के लिए कुछ भी करने के लिए तैयार रहते हैं । पूनम पांडे कोई मशहूर अभिनेत्री भी नहीं है । समाचार पत्र में मृत्यु की खबर पढ़ कर दुख हुआ । आपके संपादकीय से यह जानकार कि यह झूठी खबर फैलाई गई थी ,वह जीवित है बहुत बुरा लगा ।ऐसे लोगों के ख़िलाफ़ कार्यवाही होनी चाहिए ।

  28. इन नाटक करने वालों के‌ लिए मौत भी एक नाटक है।मौत कितनी भयानक और दर्द देने वाली होती है इसका एहसास सिर्फ वही कर सकता है जिसने अपने प्रियजन को खोया हैं आज मेरे पिताजी को इस दुनिया से विदा हुए 30 दिन हो गये दिल में अभी भी टीस उठ रही है बार बार आंखें नम हो जाती है।अभी भी शाश्वत सत्य को स्वीकार नहीं कर पा रही हूं और ये लोग कैसे इतना बड़ा आडम्बर रचा लेते हैं भगवान इन्हें सद्बुद्धि दे

    • अंजु जी आपकी संवेदनाओं से भरी टिप्पणी संपादकीय के विषय को बेहतरीन ढंग से उभारती है। हार्दिक आभार।

  29. खबरों में बने रहने के लिए सिने कलाकार इस तरह की कन्ट्रोवर्सी करते रहते हैं।

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