जब सभी सोच रहे थे कि कल सुबह उद्धव ठाकरे महाराष्ट्र के नये मुख्यमन्त्री के रूप में शपथ लेंगे, एकाएक एक धमाका हुआ। पता चला कि रातों रात राजनीति एक नयी चाल चल गयी और महाराष्ट्र के मुख्यमन्त्री के रूप में देवेन्द्र फड़नवीस और उप मुख्यमन्त्री के रूप में अजित पवार को शपथ दिलवा दी गयी।
पूरा भारत हैरानी से महाराष्ट्र की ओर ताक रहा है। कुछ समझ नहीं आ रहा है। आख़िर क्या है वहां की राजनीति? हमें इस पूरे खेल को ठण्डे दिमाग़ से समझने का प्रयास करना होगा…
- भाजपा और शिवसेना ने मिलकर विधान सभा का चुनाव लड़ा।
- वहीं कांग्रेस एवं एन.सी.पी. ने मिलकर विधानसभा का चुनाव लड़ा।
- चुनाव के दौरान भाजपा और शिवसेना ने खुलकर कांग्रेस गठबन्धना पर निशाने साधे तो कांग्रेस और एन.सी.पी. भी इस मामले में पीछे नहीं रहे।
अब मामला कुछ यूं बना कि भाजपा और शिवसेना गठबन्धन ने मिलकर साफ़ बहुमत हासिल कर लिया। समस्या तब खड़ी हुई जब शिवसेना ने 50:50 की अपनी माँग रखते हुए अढ़ाई वर्ष के लिये शिवसेना का मुख्यमन्त्री बनाने की माँग रखी।
भाजपा ने शिवसेना को उप-मुख्यमन्त्री का पद पाँच साल के लिये देने की पेशकश की। मगर शिवसेना इसके लिये तैयार नहीं हुई और उन्होंने भाजपा से रिश्ता तोड़ कर एन.सी.पी. और कांग्रेस के साथ बातचीत शुरू कर दी। तीनों दलों में इतने अधिक सैद्धांतिक और राजनीतिक मतभेद रहे हैं कि चुनाव बाद का गठबन्धन बनाना आसान काम नहीं था। इसीलिये बस तीनों दल अलग अलग एक दूसरे से बात करते रहे मगर तीनों ने एकमत हो कर कोई बातचीत पूरी नहीं की मगर सूत्रधार शरद पवार को बनाए रखा।
शरद पवार ही सोनिया गान्धी से बात कर रहे थे औऱ वही उद्धव ठाकरे से मिल रहे थे। कभी कभी तो रात बारह बजे भी उद्धव और शरद पवार की मीटिंग हुई। मगर नतीजा अभी तक कुछ नहीं लिकला था। अजित पवार (शरद पवार के भतीजे) विधायक दल के नेता के रूप में इन सभी बैठकों में भाग ले रहे थे।
जब सभी सोच रहे थे कि कल सुबह उद्धव ठाकरे महाराष्ट्र के नये मुख्यमन्त्री के रूप में शपथ लेंगे, एकाएक एक धमाका हुआ। पता चला कि रातों रात राजनीति एक नयी चाल चल गयी और महाराष्ट्र के मुख्यमन्त्री के रूप में देवेन्द्र फड़नवीस और उप मुख्यमन्त्री के रूप में अजित पवार को शपथ दिलवा दी गयी।
कुछ हैरानी होना स्वाभाविक था कि महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन हटाने के लिये मंत्रिमण्डल की मंज़ूरी नहीं ली गयी और रातों रात राष्ट्रपति ने आदेश भी जारी कर दिये और सुबह सवेरे 08.00 बजे राज्यपाल ने दोनों नेताओं को शपथ भी दिलवा दी।
हर भारतीय सोच रहा था कि इसके पीछे शरद पवार का हाथ है और वे पीठ पीछे प्रधानमन्त्री मोदी के साथ कोई प्लान बनाए हुए हैं। मगर सच तो यह है कि पहली बार किसी ने शरद पवार को ठगने का प्रयास किया और वो भी उनके अपने ही ख़ून अपने भतीजे अजित पवार ने।
घायल शरद पवार ने आव देखा ना ताव अजित पवार को कुचलने के लिये सबसे पहले एक बैठक बुला कर अजित को विधायक दल के नेता से हटाया और सभी विधायकों की परेड करवा दी जो उनके साथ हैं। उनका कहना है कि अजित पवार ने झूठी सूची राज्यपाल को दी। यह पत्र उद्धव ठाकरे के लिये बनाया गया था। वहां धोखे से देवेन्द्र फड़नवीस का नाम लिख दिया।
यानि कि अजित पवार पर सीधे सीधे दफ़ा 420 का मामला बनता है। मगर शरद पवार अजित पवार को पार्टी से निष्कासित करने के स्थान पर उसे मनाने का प्रयास कर रहे हैं। कारण किसी को समझ नहीं आ रहा।
सुप्रीम कोर्ट ने पहली बार रविवार को महाराष्ट्र के राजनीतिक दलों – शिवसेना, एन.सी.पी. और कांग्रेस की याचिका सुनी। सभी दलों को नोटिस जारी कर दिया गया है। सभी डॉक्युमेण्ट मंगवाए जा रहे हैं।
मनु सिंधवी सुप्रीम कोर्ट में मांग कर रहे थे कि स्पीकर का चुनाव, विधायकों का शपथ ग्रहण, और शक्ति परीक्षण सभी 24 घन्टों में हो जाए। वहीं मुकुल रोहतगी का कहना है कि अदालत विधान सभा की कार्यवाही में दख़ल नहीं दे सकती।
राजनीतिक नंगेपन का नाच हो रहा है महाराष्ट्र में। सभी को एक ही फ़िक्र है कि उसे कितनी मलाई खाने को मिलेगी। जनता गयी भाड़ में; किसान मरते हैं तो मरें; हमें तो बस सत्ता चाहिये। सिद्धान्तों का ख़ून हो रहा है। भारतीय राजनीति पूरी तरह से सिद्धान्तविहीन हो चुकी है। अब सत्ता किसी के भी हाथ लगे, सब अपने नंगेपन को दूसरे के नंगेपन से बेहतर बताने में लगे हैं।
आख़िरी दो लाइन ऊपर का निष्कर्ष निकालते हुए बहुत सटीक लिखी है। बधाई
बढ़िया पड़ताल की है, हार्दिक शुभकामनाएं।