मेरा एक घर था
तुम्हारे अन्दर
तुम्हारा एक घर था
मेरे अन्दर
समय बीता
खून-पसीने-मूत्र
के बहाव में जंगज़दा
ईंटों ने ढ़हना शुरू कर दिया
हम व्याकुल होकर हाथ मारते रहे
मलबे में
खोजते ठौर, कुछ रातें गुजारने को
खम्भे, टिकाने को अपने
शोर भरे सर और उम्मीदें
एक उल्कापिंड हमारे अस्त-व्यस्त ग्रह से
टकराने वाला है
कुछ दशकों में
हम चाहते हैं उससे पहले
मुहब्बत के आशियानों में
जी भर नींद ले लें
अंगड़ाई लेने में भी बर्बाद न हो समय
समय और मृत्यु
अपनी पटरियों पर
भड़भड़ाते हुए आ रहें हैं शायद
पर उससे बहुत पहले
हमारे घरों का गलना
हमारे प्रेम का अपघटन
भुला देगा
कि था इस
दलदल में कोई महल
पहाड़ की कोख में एक गुफा
इतिहास में कहीं इंसान
पहाड़ का मर्म
भू-स्खलन के धीमे, क्रूर बहाव
में बाहर आता है
उल्कापिंड टकराता है ढ़लान से
कई किलोमीटर तक विश्व ढक जाता है
नमी में
पुराने पहाड़ गिरेंगे
नए पहाड़ उठेंगे
तुम नहीं रोक सकते
बहना
तुम्हारे स्पर्श से
जहर फैला
तुम्हारे कुरेदने से हुए
नासूर
विखंडन की प्रलयंकारी शक्ति
का स्रोत तुम थे
ढहती इमारतों की नींव से दरकती मिटटी
तुम्हारी थी
चित्रगुप्त ने पूछा तुमसे
तुम्हारी ग़लतियों के बारे में
तुमने बवंडर की तरह सर हिलाया
और कहा
“नहीं, नहीं, नहीं!”
रेडक्लिफ रेख खेंच दी गयी एक बार फिर
एक कलाई पर
धरती की कोख से उफ़नकर लावा रेंगा
सब ओर
जलते माँस को देखकर
हमें प्यार करने वाले भर गए घिन्न से
विभाजन गोदा प्यार के सर में हमने मिलकर
थक्कों के कीचड़ से लथपथ
घर-बाज़ार, माल-असबाब,
ताले-चाबियाँ;
जीवन के पुलिंदे
मृत्यु सिर्फ़ तुम्हारे हिस्से ही क्यों आई?
स्वप्नों में गुदे फंतांसी परिदृश्य
के समक्ष ये गुफाएँ,
जैसे कोकेन के समक्ष
ख़ुशी
स्टेलेक्टाइट के खम्भों के विन्यास को हमने समझ लिया
किसी प्रासाद का खंडहर
झींगुर के हाथ मलने की आवाज़ों को
मान लिया रात की लटों में उमड़ता
नाद
आंख-नाक-कान के रस्ते आये उद्दीपनों
को मनमाने तरीकों से जमा कर
ढूंढ लिया अपना अपना सत्य
विचारों से प्रेम किया
और बना लिए हाड़-मांस के पुतले उनके चारों ओर
यहाँ नीरव अन्धकार के कम्बल में ढके हम
और कर भी क्या सकते थे
बोरियत के मारे
हम जानते थे कि कोई रास्ता
नहीं था
तो हमने नाखूनों से
हमारे पैरों तले की जमीन खुरच ली
हमने खोदीं अपनी ही कब्रें
ताकि कोई और न कर पाता हमें
नेस्तनाबूद
या कि हम नहीं जानते थे
कि क्या होता है
प्रेम
क्या होता है जीवित रहना
मृतकों की प्रतिमाओं से भरी इस दुनिया में
क्या होता है होना
न होने के बीहड़ों में