पूरे विश्व में केवल नरेन्द्र मोदी ही ऐसे कद्दावर नेता दिखाई देते हैं जिनकी अमरीकी राष्ट्रपति जो बाइदेन और रूसी राष्ट्र्पति व्लादिमीर पूतिन के साथ बराबर की दोस्ती है। आज यदि भारत रूस से एस-400 मिसाइल सिस्टम ख़रीद रहा है तो अमरीका से हथियारों की ख़रीद में पाँच गुना बढ़ोतरी हुई है। भारत न तो अमरीका के सामने दबता है और न ही रूस के सामने।  क्या नरेन्द्र मोदी इतने बड़े राजनेता के रूप में उभर कर विश्व पटल पर आ सकते हैं कि विश्व को इस महायुद्ध से बचा सकें?

विश्व की निगाहें दक्षिण चीन सागर की ओर लगी हैं। चर्चा हो रही है कि ताइवान, को हड़पने की तैयारी में है चीन। ऑस्ट्रेलिया, जापान, अमरीका और भारत चीन के विरुद्ध मोर्चा बना रहे हैं। मगर असली तनाव का क्षेत्र बना हुआ है यूक्रेन जिसकी सीमा पर रूस ने अपने लगभग एक लाख सैनिक तैनात कर रखे हैं। 
सोवियत संघ के विघटन से पहले यूक्रेन और रूस एक ही देश का हिस्सा थे। 2014 में वर्तमान रूस ने क्रीमिया पर हमला कर कब्ज़ा कर लिया था। तभी से रूस और यूक्रेन के बीच तनाव बढ़ गया है। उधर यूक्रेन ने भी अपनी सीमा पर भारी संख्या में फ़ौजी तैनात कर दिये हैं। तनाव इतना है कि लगता है जैसे एक ‘फ़्लैश पाइंट’बन गया है। 
उधर रूस का कहना है कि यूक्रेन ने 1 लाख 20 हजार सैनिकों को सीमा पर तैनात कर रखा है और वह पूर्वी यूक्रेन में रूस समर्थित विद्रोहियों के कब्जे वाले क्षेत्र को दोबारा हासिल करने में लगा हुआ है। यूक्रेन ने इस आरोप को गलत ठहराया है। 
इस मामले की गंभीरता को इस तरह भी समझा जा सकता है कि अमरीका और रूस स्वीडन की राजधानी स्टॉकहोम में अमरीका के विदेश सचिव एंटोनी ब्लिंकेन ने रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव को साफ़ शब्दों में बता दिया कि रूस को यूक्रेन के साथ लगती पश्चिमी सीमा से अपनी सेनाओं को वापिस बुलाना होगा। 
सच तो यह है कि यूक्रेन और रूस का विवाद अब चरम सीमा तक पहुंच चुका है। ब्रिटेन के समाचार पत्र दि सन में प्रकाशित समाचार  के अनुसार, रूस ने अपने सैनिकों को आदेश दे दिया है कि वे अपने परिवार को बता दें कि अब 9 महीने तक वे घर से दूर रहेंगेरूसी सेना अब यूक्रेन से केवल बीस मील की दूरी पर मौजूद है जहां वह अपने सहयोगी देश बेलारूस की सेना के साथ संयुक्त अभ्यास कर रही है। मगर मामला केवल इकतरफा नहीं है। दूसरी तरफ़ यूक्रेन  के समर्थन में नाटो सेना ने भी हरकत शुरू कर दी है।
पेंच कुछ ऐसा फंसा है कि यूरोप के नाटो देशों को गैस मिलती है रूस से। यदि अमरीका और रूस में युद्ध छिड़ता है तो नाटो देशों को रूस गैस की सप्लाई बंद कर सकता है। मगर जैसे ही नाटो देशों को गैस की सप्लाई बंद होती है तो युरोप का बंटाधार तो होगा ही, रूस की अर्थव्यवस्था का भी भट्ठा बैठ जाएगा। 
सोवियत संघ के ज़माने में रूस के महान नेता निकिता ख़्रुश्चेव का जन्म भी वर्तमान यूक्रेन में ही हुआ था। रूस वहां पर अपना प्रभाव बनाए रखना चाहता है।
अमेर‍िकी राष्‍ट्रपत‍ि जो बाईदेन ने रूसी राष्‍ट्रपत‍ि पुत‍िन के बारे में कहा है कि, “मेरा अनुमान है कि वे यूक्रेन के अंदर तक चले जाएंगे, इस वजह से उन्हें कुछ करना होगा… यदि ऐसा होता है तो मुझे लगता कि उन्‍हें ऐसा करने पर पछतावा होगा।” 
अमरीकी सरकार के प्रवक्ता के मुताबिक, विदेश सचिव ब्लिंकेन ने यह बात  साफ़ कर दी है कि अगर रूस अपनी सैन्य क्षमता को बढ़ाता है तो उसे इसकी कीमत चुकानी होगी। अभी तक यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि कीमत चुकाने का सही अर्थ है क्या। 
हमें याद रखना होगा कि यूरोप में रूस के बाद सबसे बड़ा देश यूक्रेन ही है। यूक्रेन की आबादी करीब सवा चार करोड़ है। यूक्रेन पिछले कुछ समय से नाटो देशों के साथ बेहतर संबंध बनाने के प्रयास कर रहा है। रूस के शिकंजे से दस देश पहले ही बाहर निकल चुके हैं। अब यूक्रेन भी वही प्रयास कर रहा है। यूक्रेन ने युरोपीय संघ के बहुत से संगठनों के साथ कई समझौते पहले ही कर लिये हैं। रूस को डर इस बात का है कि कहीं यूक्रेन नाटो का सदस्य न बन जाए। 
अमरीका जानता है कि रूस पर आर्थिक दबाव डालने से शायद बेहतर नतीजे निकलें। रूस के पास हथियार तो हैं मगर अपनी जनता को सुखी रखने के लिये अर्थव्यवस्था नहीं है। रूस की मुद्रा का भी बुरा हाल है। सरकारी दरों पर एक डॉलर में 77.59 रूबल आते हैं। ब्लैक मार्केट में तो रूबल की हालत और भी पतली होगी। 
रूस के साथ बढ़ते तनाव के बीच अमेरिका ने यूक्रेन की मदद करने का फैसला किया है। अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन के यूक्रेन दौरे के बीच बाइडन प्रशासन ने बुधवार को कहा कि वह रूसी के बढ़ते खतरे के मद्देनजर यूक्रेन को 20 करोड़ डॉलर की अतिरिक्त सैन्य सहायता प्रदान करेगा।
यूक्रेन ने रूस पर आरोप लगाया है कि वह यूक्रेन में अलगाववादी क्षेत्रों में हथियारों, गोला-बारूद और अन्य सैन्य उपकर्णों की आपूर्ति बढ़ा रहा है। यह भी कहा गया है कि रूस भाड़े के सैनिकों की भरती कर रहा है। 
सच तो यह है कि अमरीका के विदेश सचिव ने चेतावनी दी है कि रूस के विदेश मंत्री के साथ वार्ता बिना किसी फ़ैसले के पूरी तरह असफल हो गयी है। यदि रूस यूक्रेन पर हमला करता है तो उसे ‘तेज़, गंभीर और एकजुट प्रतिक्रिया’ का सामना करना पड़ेगा। 
इस बीच ब्रिटेन के प्रमुख विपक्षी दल के नेता कीयर स्टार्मर ने दावा किया है की, “यूक्रेन सीमा पर वर्तमान स्थिति को देख कर लगता है कि पूतिन द्वारा यूरोप के कुछ हिस्सों पर प्रभुत्व जमाने के लिये रूसी सेना का इस्तेमाल किया जा रहा है।” “और यह साम्राज्यवाद विरोधी सिद्धांत के लिये एक धमकी है कि संप्रभु राष्ट्र अपने साथी और सहयोगियों का चुनाव करने को स्वतंत्र हैं। 
नाटो के सदस्यों रोमानिया और बुल्गारिया ने रूस की इस मांग को ठुकरा दिया है कि दोनों देश अपने यहां से गठबंधन के सैनिकों को हटा दें। उनका मानना है कि यह रूस द्वारा एक स्वतंत्र देश के  निजी मामलों में सीधा दख़ल है।  
मगर हैरानी की बात यह भी है कि यूक्रेन में रहने वाले हमारे हिन्दी साहित्यकारों ने रूस और यूक्रेन के बीच बढ़ते तनाव पर कभी कोई चर्चा ही नहीं की। वे अन्य विषयों पर अपनी कलम चला रहे हैं।  क्या वहां के आम आदमी की इस विषय में ऐसी ही प्रतिक्रिया रहेगी?
तनाव कम करने के प्रयास किये जा रहे हैं। यदि युद्ध होता है तो पूरे विश्व पर इसका असर पड़ने वाला है। इसलिये हर समझदार व्यक्ति या नेता का प्रयास यही रहेगा कि अमरीका और रूस इस विषय में आपस में टकराएं नहीं। 
शीतयुद्ध के ज़माने में एक तरफ़ अमरीका था तो दूसरी तरफ़ था सोवियत संघ। मगर एक तीसरा धड़ा भी होता था जिसे गुट-निर्पेक्ष  देश कहा जाता था। उस गुट के महत्वपूर्ण नेता हुआ करते थे युगोस्लाविया के मार्शल टीटो, मिस्त्र के अब्दुल गमाल नासिर और भारत के जवाहर लाल नेहरू। इन तीनों नेताओं का कद वैश्विक स्तर पर इतना ऊंचा था कि वे दोनों दलों को नियंत्रण में रख पाते थे।
आज जब हम निगाह डालते हैं तो पाते हैं कि पूरे विश्व में केवल नरेन्द्र मोदी ही ऐसे कदावर नेता दिखाई देते हैं जिनकी अमरीकी राष्ट्रपति जो बाइदेन और रूसी राष्ट्र्पति व्लादिमीर पूतिन के साथ बराबर की दोस्ती है। आज यदि भारत रूस से एस-400 मिसाइल सिस्टम ख़रीद रहा है तो अमरीका से हथियारों की ख़रीद में पाँच गुना बढ़ोतरी हुई है। भारत न तो अमरीका के सामने दबता है और न ही रूस के सामने।  क्या नरेन्द्र मोदी इतने बड़े राजनेता के रूप में उभर कर विश्व पटल पर आ सकते हैं कि विश्व को इस महायुद्ध से बचा सकें?
लेखक वरिष्ठ साहित्यकार, कथा यूके के महासचिव और पुरवाई के संपादक हैं. लंदन में रहते हैं.

14 टिप्पणी

  1. Thank you,Tejendra ji,for your highly informative Editorial.
    Ukraine is a hot topic these days discussed everywhere.
    We trust your grasp and understanding of international affairs as it is always based on your wide reading and exposure to various foreign newspapers and news channels. Your political views are very forthright and impressive.
    Please accept my congratulations and regards.
    Deepak Sharma

  2. युद्ध के मुहाने पर खड़ीं विश्व शक्तियों के समीकरण पर विस्तृत सम्पादकीय प्रभावपूर्ण है।युद्ध के परिणामों की सोच हो तो भय से युद्ध भी न हों ।निश्चित ही भारत तीसरी दुनिया की महाशक्ति के रूप में आज है। आंतरिक और बाह्य नीतियों ने प्रधानमंत्री की छवि को विश्वव्यापी बना दिया है,।महायुद्ध होने की स्थित में भारत की भूमिका पर गौरवशाली विचारों का स्वागत है।
    तथा -कथित साहित्यकार के अपने देश के प्रति उदासीन आचरण पर उम्दा टिप्पणी है।
    बहुआयामी चिंतन हेतु साधुवाद
    DrPrabha mishra

  3. एक सांगोपांग वैश्विक परिदृश्य को बताने वाले सम्पादकीय के लिए बधाई एवं धन्यवाद।जो दिख रहा है, भयावह है, भारत की भूमिका की महत्ता एवं आवश्यकता के बारे में पढ़ कर अच्छा लगा कि भारत का कद अंतर्राष्ट्रीय पटल पर बढ़ा है. विश्व युद्ध जो हो चुके वह हो चुके, अब विश्व युद्ध होने की संभावना बहुत क्षीण है. सभी देश अर्थतंत्र की महत्ता जानते हैं, युद्ध और शान्ति मात्र आर्थिक कारणों से निश्चित होती है, बाकी बस शीत युद्ध तक ही रहता है. कोई देश अपने व्यापार को बर्बाद नहीं करना चाहता, विश्व के तनाव बहुत क्षेत्रों में हुआ, अज़रबेजान और आर्मेनिया में युद्ध चला पर टर्की के अलावा कोई युद्ध में नहीं कूदा, भारत चीन में ठनी रही, पर एक गोली नहीं चली। भविष्य इतना बुरा नहीं है, सभी देश समझदार हैं. अपनी शक्ति के प्रदर्शन से कोई नहीं चूकता, यह मूल प्रवृत्ति है. आगत को सोच कर वर्तमान को क्या बिगाड़ें, यूँ ही omicron बहुत है.

  4. वैश्विक स्तर पर हो रही उठापटक के विषय में गूढ़ विश्लेषण करता
    हुआ और उसमें भारत की सकारात्मक भूमिका का उल्लेख
    करता हुआ उत्कृष्ट सम्पादकीय ।

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