होम ग़ज़ल एवं गीत निज़ाम फतेहपुरी की ग़ज़ल ग़ज़ल एवं गीत निज़ाम फतेहपुरी की ग़ज़ल द्वारा निज़ाम फ़तेहपुरी - January 23, 2022 65 0 फेसबुक पर शेयर करें ट्विटर पर ट्वीट करें tweet वतन का खाकर जवाँ हुए हैं वतन की खातिर कटेगी गर्दन। है कर्ज हम पर वतन का जितना अदा करेंगे लुटा के जाँ तन।। हर एक क़तरा निचोड़ डालो बदल दो रंगत वतन की यारो। जहाँ गिरेगा लहू हमारा वहीं उगेगा हसीन गुलशन।। सभी ने हम पर किए हैं हमले किसी ने खुलकर किसी ने मिलकर। खिला है जब-जब चमन हमारा हुए हैं इसके हजारो दुश्मन।। दिखाएं किसको ये ज़ख्म दिल के खड़े हैं क़ातिल बदल के चेहरे। जिन्होंने लूटा था आबरू को वही बने हैं अज़ीज़े दुल्हन।। हमारा बाज़ू कटा जो तन से वो तेग़ लेकर हमी पे झपटा। समझ न आया ‘निज़ाम’ हमको अजब हक़ीकत हुई है रौशन।। संबंधित लेखलेखक की और रचनाएं निज़ाम फतेहपुरी की ग़ज़ल – मुझपे नज़रे इनायत मगर कीजिए सुभाष पाठक ‘ज़िया’ की ग़ज़लें डॉ. यासमीन मूमल का गीत – उड़ जाए चुनरिया भी सर से Leave a Reply Cancel reply This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.