निज़ाम फतेहपुरी की ग़ज़ल
वतन का खाकर जवाँ हुए हैं वतन की खातिर कटेगी गर्दन।
हर एक क़तरा निचोड़ डालो बदल दो रंगत वतन की यारो।
सभी ने हम पर किए हैं हमले किसी ने खुलकर किसी ने मिलकर।
दिखाएं किसको ये ज़ख्म दिल के खड़े हैं क़ातिल बदल के चेहरे।
हमारा बाज़ू कटा जो तन से वो तेग़ लेकर हमी पे झपटा।
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