वतन का खाकर जवाँ हुए हैं वतन की खातिर कटेगी गर्दन।
है कर्ज हम पर वतन का जितना अदा करेंगे लुटा के जाँ तन।।
हर एक क़तरा निचोड़ डालो  बदल दो रंगत वतन की यारो।
जहाँ  गिरेगा   लहू   हमारा   वहीं   उगेगा   हसीन  गुलशन।।
सभी ने हम पर किए हैं हमले किसी ने खुलकर किसी ने मिलकर।
खिला है जब-जब चमन हमारा हुए हैं इसके हजारो दुश्मन।।
दिखाएं किसको ये ज़ख्म दिल के खड़े हैं क़ातिल बदल के चेहरे।
जिन्होंने लूटा था  आबरू  को  वही  बने  हैं अज़ीज़े दुल्हन।।
हमारा बाज़ू कटा जो  तन  से  वो  तेग़  लेकर हमी पे झपटा।
समझ न आया ‘निज़ाम’ हमको अजब हक़ीकत हुई है रौशन।।

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.