प्रो. बीना शर्मा

‘शिक्षक से संवाद’ साक्षात्कार शृंखला की दूसरी कड़ी में आज प्रस्तुत है वरिष्ठ प्राध्यापक, लेखिका एवं केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा की निदेशक प्रो. बीना शर्मा से हमारे प्रतिनिधि पीयूष कुमार दुबे की बातचीत। इस बातचीत में बीना जी के व्यक्तिगत जीवन से लेकर हिंदी की दशा-दिशा को लेकर उनके दृष्टिकोण एवं हिंदी के उत्थान हेतु केंद्रीय हिंदी संस्थान के प्रयासों तक बहुत-सी बातें सम्मिलित हैं।

प्रश्न – नमस्कार बीना जी, पुरवाई से बातचीत में आपका स्वागत है। बातचीत की शुरुआत इसी से करूंगा कि बचपन से लेकर आज केंद्रीय हिंदी संस्थान में निदेशक के मुकाम तक की जीवन यात्रा को किस रूप में देखती हैं ? अबतक के जीवन से क्या आप संतुष्ट महसूस करती हैं ?
प्रो. बीना शर्मा –   पुरवाई पत्रिका के लिए मेरा साक्षात्‍कार लेने के लिए आपका बहुत-बहुत आभार। मुझे खुशी है कि पत्रिका के माध्‍यम से मेरे मन की बात पाठकों तक पहुंच सकेगी। आपका पहला प्रश्‍न बचपन से लेकर अब तक की यात्रा के संबंध में है। एक विद्यार्थी से लेकर अंतरराष्‍ट्रीय स्‍तर के संस्‍थान के नेतृत्‍व का सफर निश्चित ही सुखदायक रहा है। मेरे लिए यह यात्रा बहुत ही सहज, सरल और मस्‍ती भरी रही है। बचपन में ही कहीं रटा दिया गया था कि जितने कष्‍ट-कण्‍टकों में है जिनका जीवन-सुमन खिला, गौरव गन्‍ध उन्‍हें उतना ही यत्र तत्र सर्वत्र मिला। जीवन है तो संघर्ष तो होगा ही लेकिन इस संघर्ष को एक व्‍यक्ति यदि सकारात्‍मक तरीके से लेता है, बात-बात पर रूठता-मटकता, फुनकता और खीझता नहीं है तो निश्‍चित ही यात्रा सुकून भरी होती है। जिस परिवार में आप जन्‍म लेते हैं, जिस विद्यालय में आपकी शिक्षा-दीक्षा होती है, जिस समाज में आप व्‍यवहार करना सीखते हैं। जिन अध्‍यापकों से ज्ञान प्राप्‍त करते हैं और अंतत: अपनी विद्या के सदुपयोग और धनोपार्जन के लिए सेवा के क्षेत्र में प्रवेश करते हैं, उस यात्रा के सभी साथियों का सहयोग आपको निश्‍चित रूप से मिला होता है। तभी आप शीर्ष पर पहुंच पाते हैं। आप कितने योग्‍य हैं, कितने विद्वान हैं इससे इतर यह बहुत आवश्‍यक है कि आप जिन लोगों के मध्‍य कार्य करते हैं वे आपको किस रूप में कितनी स्‍वीकृति देते हैं। मैं इस दृष्टि से बहुत भाग्‍यशाली रही कि मुझे परिवारीजनों, अपने साथी अध्‍यापकों, अपने गुरूओं, सहपाठियों और समाज के विभिन्‍न वर्गों के बीच खूब आदर और प्‍यार मिला है। यही मेरी अब तक की उपलब्धि है और इससे मैं स्‍वयं में बहुत संतुष्‍ट हूं। मेरे जीवन का मोटो है व्‍यस्‍त और मस्‍त।
प्रश्न – हिंदी भाषा को लेकर देश में हर समय एक विमर्श चलता रहता है। कुछ लोग मानते हैं कि दिन प्रतिदिन हिंदी की स्थिति कमजोर हो रही है, वहीं दूसरे कुछ लोगों के मत में हिंदी का विकास और विस्तार हो रहा है। इस विषय में आपकी क्या राय है ?
प्रो. बीना शर्मा – लोगों के मानने से कि हिंदी की स्थितियां कमजोर हो रही है या हिंदी का विकास और विस्‍तार हो रहा है, इस बात का आंकलन नहीं किया जा सकता। मैं जहां बैठकर जिस चश्‍मे से हिंदी के विकास को देखती हूं, मेरी नज़र में हिंदीतर क्षेत्रों और विदेशों में हिंदी खूब फल-फूल रही है। प्रतिवर्ष हिंदी प्रशिक्षुओं, जिज्ञासुओं और हिंदी अध्‍यापक बनने के लिए वि‍द्यार्थियों की बढ़ती संख्‍या इस बात का स्‍पष्‍ट प्रमाण है। हिंदी का निश्‍चित रूप से विकास हो रहा है और वह विस्‍तार पा रही है।

प्रश्न – बीते वर्षों में एक स्थिति देखने को मिली कि यूपी बोर्ड की दसवीं बारहवीं की परीक्षाओं में हिंदी विषय में लाखों की संख्या में बच्चे अनुत्तीर्ण हो गए। एक हिंदी पट्टी राज्य में हिंदी की इस शैक्षिक स्थिति को आप कैसे देखती हैं?
प्रो. बीना शर्मा – सही कहा आपने कि विगत वर्षों में यू.पी. बोर्ड की दसवीं और बारहवीं की परिक्षाओं में हिंदी विषय में लाखों बच्‍चे अनुत्‍तीर्ण हुए हैं। संभवत: इसके पीछे मूल कारण को देखने की कोशिश नहीं की गयी। हिंदी पट्टी राज्‍य में हिंदी को घर की मुर्गी दाल बराबर समझा जाता रहा है। सीखने-सिखाने की दृष्टि से इसे टेकन फॉर ग्रांटेड लिया जाता रहा है। विद्यार्थी पर अन्‍य विषयों अंग्रेज़ी, विज्ञान, गणित और वाणिज्‍य का दबाव इतना अधिक है कि हिंदी की ओर ध्‍यान जाता ही नहीं। आश्‍चर्य की बात यह भी है कि सभी विषय अंग्रेज़ी भाषा में पढ़े-लिखे जाते हैं। हिंदी पर न तो कक्षा में अध्‍यापक ही केंद्रित होते हैं और न घर में परिवारीजन तो ऐसी स्थिति में आप अंदाजा लगा सकते हैं कि जो विद्यार्थी हिंदी की वर्णमाला, व्‍याकरण, लेखन तक स्‍पष्‍ट रूप से नहीं कर पाते तो उनका अनुत्‍तीर्ण होना तो तय ही था लेकिन इसके बाद स्थिति बदली है। सभी अभिभावकों का ध्‍यान इधर गया है और इसका सुखद प्रमाण भी देखने को मिला है।
प्रश्न – हिंदी में शोध की गुणवत्ता पर अक्सर सवाल खड़े किए जाते हैं। ऐसा क्यों है और क्या आप भी इसे सही मानती हैं ?
प्रो. बीना शर्मा – जहां तक हिंदी में शोध और गुणवत्‍ता की बात है, मेरा प्रश्‍न है हिंदी में ही क्‍यों? शोध की गुणवत्‍ता तो हर विषय में प्रभावित हो रही है एक शोधार्थी के लिए जिन विशेषताओं / गुणों का जिक्र किया जाता है, शोध क्षेत्र में प्रवेश देते क्‍या कभी उनकी जांच भी की जाती है। जो शोध निरीक्षक नामित किये जाते हैं क्‍या उन्‍हें अपने-अपने विषय में महारथ हासिल होती है? क्‍या शोध की प्रविधि और प्रकार को (सभी विषयों के लिए) अनिवार्य रूप से सिखाया पढ़ाया जाता है? सच तो यह है कि शोध केवल उपाधि पाने के लिए किये जाते हैं, किसी नये तथ्‍य या सिद्धांत की खोज के लिए नहीं। शोध ग्रंथों की बढ़ती फेहरिस्‍त संख्‍यात्‍मक ही है, गुणात्‍मक नहीं। विषय का चयन, शोधार्थी की जिज्ञासा, तथ्‍य को खोजने की लगन, शोध निरीक्षक का सही मार्गदर्शन सब मिलाकर ही शोध की गुणवत्‍ता को आकार प्रकार दे सकते हैं।
प्रश्न – लगभग साढ़े तीन दशक बाद देश को नई शिक्षा नीति मिली है। इससे देश के शिक्षा तंत्र में आप कैसे बदलाव की संभावना देखती हैं ?
प्रो. बीना शर्मा – साढ़े तीन दशक बाद देश को नई शिक्षा नीति का मसौदा प्राप्‍त हुआ है। निश्चित रूप से शिक्षा तंत्र में बदलाव आएगा ही। कुछ राज्‍यों में इस पर कार्य शुरू हो चुका है। इस शिक्षा नीति में भारतीय भाषाओं को सीखने-सिखाने पर बल दिया गया है। मातृभाषा में लिखने-पढ़ने की बात की गयी है। अध्‍यापक बनने के लिए चार वर्षीय पाठ्यक्रम ढांचें को प्रस्‍तावित किया गया है। कार्य अनुभव को अनिवार्य रूप से सम्मिलित किया गया है। उस सबको देखकर यही लगता है निश्‍चित रूप से शिक्षा तंत्र में बदलाव आयेगा ही। फिर से नालंदा जैसे विश्‍वविद्यालय जो भारतीय संस्‍कृति और सभ्‍यता के स्‍तंभ थे, खड़े हो सकेंगे। उन महापुरूषों के जीवन चरित्र पाठ्यक्रम में सम्मिलित हो सकेंगे जिन्‍होंने भारत के इतिहास को बदलने में महत्‍वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया।
प्रश्न – अक्सर कहा जाता है कि हिंदी में रोजगार नहीं हैं। आपके विचार से यह बात कितनी ठीक है ?
प्रो. बीना शर्मा – कौन कहता है कि हिंदी में रोजगार नहीं है। संस्‍थान से प्रशिक्षित हुए लगभग 80-90 प्रतिशत विद्यार्थी नौकरी पाते ही हैं। हिंदी में रोजगार की कमी का तो कोई प्रश्‍न ही नहीं आता। अनुवाद, प‍त्रकारिता और सभी सरकारी तंत्रों में हिंदी के लिए रोजगार की कमी नहीं है। हां, लोगों का रूझान इस ओर अवश्‍य कम है। वे हिंदी में दक्ष होकर इन क्षेत्रों में नहीं जाते। हिंदी की जितनी मांग आज रोजगार के क्षेत्र में है संभवत: पहले कभी नहीं रही। हां, हिंदी को हम केवल साहित्‍य से जोड़कर देखते हैं तो इसमें परेशानी जरूर है क्योंकि विदेशों में स्थित हिंदी पीठों में केवल साहित्‍य पढ़ाने के लिए ही अध्‍यापकों की रिक्‍ति विज्ञापित नहीं होती। अपितु भाषाविज्ञान, व्‍याकरण, संस्‍कृति जैसे विषयों के अध्‍यापक की अर्हता आवश्‍यक है।

प्रश्न – अभी हाल ही में विश्व हिंदी सम्मेलन संपन्न हुआ। क्या आप हिंदी के विकास और विस्तार में विश्व हिंदी सम्मेलनों का क्या कोई ठोस योगदान देखती हैं ?
प्रो. बीना शर्मा – फिजी के विश्‍व हिंदी सम्‍मेलन के निष्‍कर्ष तो यही कहते हैं कि विश्‍व हिंदी सम्‍मेलन हिंदी के विकास और विस्‍तार में बहुत उपयोगी हैं। सवाल किसी भी हिंदी सम्‍मेलन के आयोजन का नहीं हुआ करता। सवाल होता है उस सम्‍मेलन से प्राप्‍त निष्‍कर्षों को कार्यात्‍मक / व्‍यावहारिक रूप से कितना पालन किया गया। निर्णय अक्‍सर फाइलों में बंद हो जाते हैं। जिन संस्‍थानों को इसका दायित्‍व दिया जाता है, उनके द्वारा पालन में तत्‍परता नहीं बरती जाती। जब अगला विश्‍व हिंदी सम्‍मेलन समीप होता है तब उनकी खोज-खबर ली जाती है। आयोजन से किसी को कोई गुरेज नहीं है लेकिन ये केवल सैर सपाटे के साधन मात्र बनकर ही न रह जाएं। इस पर जो विचार विमर्श होता है उसका क्रियान्‍वयन बहुत और बहुत जरूरी है।
प्रश्न – केंद्रीय हिंदी संस्थान द्वारा विदेश से हिंदी पढ़ने के लिए छात्रों को लाया जाता है। लेकिन विदेशों में हिंदी भाषा का कोई मानक पाठ्यक्रम नहीं दिखता। क्या ऐसा नहीं किया जा सकता कि हिंदी का कोई एक मानक पाठ्यक्रम बने जो ब्रिटेन, अमेरिका, कनाडा आदि सभी देशों में पढ़ाया जाए।
प्रो. बीना शर्मा – केंद्रीय हिंदी संस्‍थान के द्वारा विदेशों में हिंदी प्रचार-प्रसार योजना के अंतर्गत विभिन्‍न देशों के दूतावासों के माध्‍यम से हिंदी सीखने के लिए आवेदन आमंत्रित किये जाते हैं और प्रतिवर्ष 100 स्‍थान मुख्‍यालय में इसके लिए आरक्षित हैं। दिल्‍ली केंद्र पर वित्‍त पोषित योजना के अंतर्गत 100 स्‍थान हैं। ये विद्यार्थी केंद्रीय हिंदी संस्‍थान द्वारा निर्धारित पाठ्यक्रम का अध्‍ययन करते हैं। आपने सही प्रश्‍न उठाया कि विदेशों में हिंदी का कोई मानक पाठ्यक्रम नहीं दिखता। इस संदर्भ में केंद्रीय‍ हिंदी संस्‍थान मानक पाठ्यक्रम बना चुका है। इसका लोकार्पण संस्‍थान की स्‍वर्ण जयंती अवसर पर वर्ष 2011 में किया जा चुका है। बहुत शीघ्र ही केंद्रीय हिंदी संस्‍थान विदेशी विद्यार्थियों के लिए ऑनलाइन पाठ्यक्रम लेकर आ रहा है जिससे जिज्ञासु विद्यार्थी की हिंदी सीखने के जिज्ञासाओं का अध्‍ययन कर सकेंगे और अपनी रूचि के अनुसार स्‍तर का चयन कर सकेंगे।
प्रश्न – संस्थान द्वारा हिंदी से संबंधित विविध कार्यक्रम किए जाते हैं। हिंदी के नाम पर देश में भी लगभग रोज ही अनेक कार्यक्रम दिखते रहते हैं। ये कार्यक्रम हिंदी के विकास में किसी रूप में सहायक भी होते हैं या ये केवल इवेंट मैनेजमेंट ही होकर तो नहीं रह जाते ?
प्रो. बीना शर्मा – जहां तक संस्‍थान द्वारा‍ हिंदी से संबंधित विविध कार्यक्रमों की बात है अथवा हिंदी के नाम पर देश में लगभग रोज ही जो कार्यक्रम किये जाते हैं उनका संदर्भ है, वे अन्‍य संस्‍थानों के लिए भले ही इवेंट मैनेजमेंट हों क्‍योंकि उन्‍हें हिंदी दिवस अथवा ऐसे ही अन्‍य अवसरों पर ये कार्यक्रम करने की बाध्‍यता होगी। लेकिन केंद्रीय हिंदी संस्‍थान वर्ष पर्यंत अपने विद्यार्थियों को हिंदी के चारों कौशलों बोलने, पढ़ने, लिखने और सुनने में दक्ष ही नहीं करता बल्कि विद्यार्थी संस्‍थान और संस्‍थान परिसर के बाहर भी हिंदी का प्रयोग करते हैं। पर्यटन के माध्‍यम से भारतीय संस्‍कृति को जानते हैं और प्रात: और सांध्‍यकालीन कक्षाओं में (नियमित कक्षाओं से इतर) योग और भारतीय कलाओं यथा नृत्‍य, वादन में दक्ष होते हैं। वे हिंदी में हंसते हैं, रोते हैं, जगते हैं और सोते हैं यहां तक कि स्‍वप्‍न भी हिंदी में ही देखते हैं। मुझे यह कहते हुए गर्व है हिंदी के कार्यक्रम हिंदी के विकास में महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। संस्‍थान के लिए इवेंट मैनेजमेंट जैसी कोई संकल्‍पना नहीं।
प्रश्न – मेरी जानकारी में आया हैं कि आप सफर जारी हैनाम से प्रतिदिन एक रचना लिखती हैं जो व्‍हाट्स एप के माध्यम से मित्रों से साझा भी करती हैं। इसे पुस्तकाकार भी ला चुकी हैं। मेरा सवाल है कि रोज लिखने के क्रम में गुणवत्ता के स्तर को बनाए रखना क्या कठिन और चुनौतीपूर्ण नहीं लगता ?
प्रो. बीना शर्मा – हां, मैंने जीवन के साठ वर्ष पूरे होने पर यानी अक्‍टूबर, 2019 से मैंने जीवन अनुभवों को प्रतिदिन लिखने का एक वर्ष का संकल्‍प लिया। यह सफरनामा के रूप में चार भागों में प्रकाशित हुआ। इसकी बढ़ती लोकप्रियता को देख सभी मित्रों ने सुझाया कि आप इसे यहीं समाप्‍त न करें बल्कि इसे यथावत् चलने दें। फिर आगे की यात्रा ‘सफर जारी है’ के नाम से अद्यतन चल रही है। अबतक कुल मिलाकर ग्‍यारह खंड प्रकाशित हैं बारहवे और तेरहवें प्रेस में हैं और 14वें पर कार्य चल रहा है। हां मैं इसे सोशल मीडिया, फेसबुक और व्‍हाट्सएप पर  प्रतिदिन पोस्‍ट करती हूं और अपने पाठकों को पढ़ने के बाद उनकी टि‍प्‍पणियां, उनके सुझावों यानी पाठकनामा के साथ पुस्‍तक रूप में प्रकाशित करती हूं। बड़े मार्कें का प्रश्‍न आपने पूछा है कि रोज लिखने के क्रम में गुणवत्‍ता के स्‍तर को बनाये रखना क्‍या कठिन और चुनौतीपूर्ण नहीं लगता। निश्चित रूप से यह कठिन ही नहीं, बहुत कठिन है और चुनौतीपूर्ण तो है ही। दोहराव की भी एक बड़ी संभावना रहती है लेकिन मैंने पाया चूँकि इसे किसी पुस्‍तक से उद्धृत नहीं किया जाता, कहीं से उतारा नहीं जाता, बस दिनभर जो देखा सुना और पढ़ा जाता है, उसे ज्‍यों का त्‍यों ही भोर में पटल पर अंकित कर दिया जाता है। विचार हमेशा परिवर्तनशील होते हैं, क्षण-क्षण में बदल जाते हैं, इसलिए न विचारों का दोहराव और न शीर्षक का निश्चित ही यह चुनौतीपूर्ण है, होना भी चाहिए क्‍योंकि बिना चुनौती के जिंदगी जीना रोमांचकारी नहीं हुआ करता। दूसरी जो संकल्‍पना स्‍वयं की हो किसी का कोई दबाव न हो, बात सुविधा की हो, सहज हो, स्‍वयं को अभिव्‍यक्‍त करने की हो तो गुणवत्‍ता भी बाधित नहीं होती और चुनौती भी स्‍वीकार कर ली जाती है। हालांकि गुणवत्‍ता का निर्णय पाठकों का है और चुनौती मेरे हिस्‍से में आती है।
पीयूष – हमसे बातचीत के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद।
प्रो. बीना शर्मा – सभी पाठकों तक मेरी बात पहुंचाने के लिए पुरवाई को धन्‍यवाद।
उत्तर प्रदेश के देवरिया जिला स्थित ग्राम सजांव में जन्मे पीयूष कुमार दुबे हिंदी के युवा लेखक एवं समीक्षक हैं। दैनिक जागरण, जनसत्ता, राष्ट्रीय सहारा, अमर उजाला, नवभारत टाइम्स, पाञ्चजन्य, योजना, नया ज्ञानोदय आदि देश के प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में समसामयिक व साहित्यिक विषयों पर इनके पांच सौ से अधिक आलेख और पचास से अधिक पुस्तक समीक्षाएं प्रकाशित हो चुकी हैं। पुरवाई ई-पत्रिका से संपादक मंडल सदस्य के रूप में जुड़े हुए हैं। सम्मान : हिंदी की अग्रणी वेबसाइट प्रवक्ता डॉट कॉम द्वारा 'अटल पत्रकारिता सम्मान' तथा भारतीय राष्ट्रीय साहित्य उत्थान समिति द्वारा श्रेष्ठ लेखन के लिए 'शंखनाद सम्मान' से सम्मानित। संप्रति - शोधार्थी, दिल्ली विश्वविद्यालय। ईमेल एवं मोबाइल - sardarpiyush24@gmail.com एवं 8750960603

4 टिप्पणी

  1. वीना जी ने बहुत बढ़िया ढंग से प्रत्येक प्रश्नों के उत्तर दिये
    ऐसा प्रतीत हो रहा था कि जैसे किस साहित्य की देवी खुद चलकर ज्ञान दे रही है।
    वीना जी का साहित्य के प्रति नजरिया ही अलग है। पुरवाई टीम का यह बहुत अच्छा फैसला था कि उन्होंने इस श्रृंखला में वीना जी को शामिल किया।
    वे युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणा है क्योंकि वह हर रोज कुछ नया लिखती हैं।
    साहित्य के क्षेत्र में इसी तरह अपना परचम लहराती रहे यही हमारी कामना है वे स्वस्थ रहें और खुश रहें।

  2. आदरणीय बीना जी
    ऐसा प्रतित हो रहा था मानो हम सामने बैहकर आपको सुन रहें हैं. बहुत ही बढिया और मार्मिक विचार!!!

    आदरणीय दुबे जी आपका बहुत धन्यवाद ☺️

  3. rinku chatterjeeप्रश्न सटीक हों तो उत्तर भी सार्थक होते हैं। पुरवाई की खासियत है कि बहुत ही अलग और मानीखेज़ विषयों पर विस्तार से चर्चा करती है। इस सराहनीय योगदान के लिए पुरवाई टीम और वीणा जी को साधुवाद

  4. प्रो. बिना शर्मा जी का यह साक्षात्कार अति प्रबुद्ध होने के साथ ही व्यावहारिक भी है। आदरणीय बीना दीदी ने सभी प्रश्नों का सारगर्भित समाधान प्रस्तुत किया है। बन्धुवर श्री दुबे जी के प्रश्न आज के समय और हिन्दी की वास्तविक स्थिति के अनुरूप हैं, जिनसे वैश्विक स्तर पर भी हिन्दी के सभी पक्षों की चुनौतियों के समाधान खोजने के द्वार खुल से गये हैं।

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