Saturday, July 27, 2024
होमअपनी बातसंपादकीय - भारतीय राजनीति का हमाम

संपादकीय – भारतीय राजनीति का हमाम

आज के भारत का राजनीतिक परिदृश्य कुछ अजीब सा है। कहीं कोई ऐसा नेता नहीं दिखाई देता जिसके दिल में देश और देश के नागरिकों की भलाई बसती हो। सभी विपक्षी नेताओं के पास केवल एक ही मुद्दा है कि किस तरह नरेन्द्र मोदी को सत्ता से बाहर किय जाए। विपक्षी दलों ने न तो संसद में और न ही टीवी डिबेट्स पर कभी भाजपा सरकार को  बेरोज़गारी और महंगाई पर घेरा है। किसी मुद्दे पर शरद पवार की राय अलग है तो किसी पर ममता बनर्जी की। पूरा विपक्ष किसी एक चेहरे पर नेता के लिये सहमत नहीं हो पा रहा। दुख है तो बस इस बात का कि भ्रष्टाचार और अनैतिकता के मामले में भारत की हर राजनीतिक पार्टी चाहे पक्ष हो या विपक्ष एक ही मंच पर खड़ी दिखाई देती है।

पिछले दिनों कुछ ऐसे समाचार आते रहे हैं जो किसी भी भारतवंशी को सोचने पर मजबूर कर देते हैं कि क्या भारतीय राजनीति का हमाम इतना गंदा है, इतनी बू मारता है कि नहाते वक्त भी नाक पर रुमाल रखना पड़ता है। देश की सबसे पुरानी पार्टी से लेकर नवजात शिशु जैसी पार्टी तक सब भ्रष्टाचार और अनैतिकता में लिप्त हैं।
सबसे पहले भारतीय महिला पहलवानों की बात करेंगे। भारत को गौरव दिलवाने वाली इन महिलाओं ने कुश्ती संघ के अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह और कोच के विरुद्ध यौन शोषण समेत कई गंभीर आरोप लगाए थे। विनेश फोगाट, बजरंग पूनिया और साक्षी मलिक जैसी दिग्गज खिलाड़ी जनवरी की कड़ाकेदार सर्दी में जंतर मंतर पर धरना देने आ पहुंचे थे। इसके बाद तुरंत ही जांच समिति का गठन कर दिया गया था। जांच समिति ने अपनी रिपोर्ट भी तैयार कर ली, लेकिन उस बारे धरने में शामिल हुए पहलवानों को नहीं बताया गया। तीन महीने बीत जाने के बाद पहलवान निराश हो गए और अब फिर से जंतर-मंतर पर पहुंच गए।
तीन महीने तक बृजभूषण सिंह के विरुद्ध एफ़.आई.आर. तक दर्ज नहीं हो पाई। पहले धरने में पहलवानों ने सही मायने में स्पोर्ट्समैन स्पिरिट दिखाते हुए किसी भी राजनीतिक पार्टी को अपने मंच पर नहीं आने दिया। अंततः जब तीन दिन पहले एफ़.आई.आर. हुई भी तो पहले एक उच्चस्तरीय बैठक बुलाई गई जिसमें यह तय करना था कि कौन-कौन सी धाराओं के तहत एफ़.आई.आर. लिखी जाए। स्थिति की नाज़ुकता को भांपते हुए बृजभूषण सिंह ने एक टीवी चैनल पर कह दिया कि यदि पहलवान उसके इस्तीफ़े के बाद धरना समाप्त करने को तैयार हों तो वे त्यागपत्र देने को तैयार है। जबकि सच यह है कि उसका कार्यकाल पूरा हो चुका है। 
गौतम अडानी के मुद्दे से जूझती भारतीय जनता पार्टी सरकार के लिये पहलवानों का यह मुद्दा और कठिनाइयां उत्पन्न कर रहा है। सरकार को याद रखना होगा कि आम आदमी का समर्थन पहलवानों के साथ है। इस विषय में तुरन्त कार्यवाही करना अति आवश्यक है। 
वहीं दूसरी ओर कांग्रेस पार्टी ने कर्नाटक चुनावों के लिये अपने प्रिय इमरान प्रतापगढ़ी को स्टार प्रचारक बनाया है जो माफ़िया डॉन अतीक अहमद का कट्टर मुरीद है और उसके बारे में अपनी कविता में कह चुका है –  “ये इक शायर का दावा है / कभी भी रद्द नहीं होगा, / तेरे कद के बराबर अब / किसी का कद नहीं होगा, / इलाहाबाद वालों बात मेरी / याद रखना तुम, / कई सदियों तलक कोई / अतीक अहमद नहीं होगा. / बड़ी दुश्वारियां हैं पर / जिसे गाया जरूरी है, / छलक कर दर्द होंठो तक / चला आया जरूरी है, / इलाहाबाद वालों बात मेरी / याद रखना तुम, / तुम्हारे शहर पर इस शख्स का / साया जरूरी है.” ऐसा करके कांग्रेस पार्टी ने अपनी फ़जीहत ही करवाई है। 
काग्रेस की मुसीबतों का ख़ात्मा यहीं नहीं हुआ। कांग्रेस की युवा नेता और असम प्रदेश युवा कांग्रेस अध्यक्ष अंकिता दत्ता ने भारतीय युवा कांग्रेस अध्यक्ष श्रीनिवास बीवी पर मानसिक शोषण का आरोप लगाया था। उन्होंने श्रीनिवास के खिलाफ दिसपुर थाने में शिकायत भी दर्ज कराई थी। अपनी परंपरा कायम रखते हुए कांग्रेस ने अंकिता की शिकायत का कोई संज्ञान नहीं लिया बल्कि उसी को पार्टी से निष्कासित कर दिया है. अंकिता को छह साल के लिए कांग्रेस पार्टी से निष्कासित किया गया है। यही नहीं कांग्रेस ने अंकिता दत्ता को अपनी प्राथमिक सदस्यता से भी निष्कासित कर दिया है। 
राहुल गांधी स्वयं तो विवाद पैदा करते ही रहते हैं, उनकी पार्टी और अध्यक्ष भी इसमें उनका पूरा साथ देते हैं। कांग्रेस के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने एक चुनावी रैली में देश के प्रधानमंत्री को एक ज़हरीला सांप घोषित कर दिया। 
ए.एम.आई.एम. के मुखिया असदुद्दीन ओवैसी तो हर मुद्दे में हिन्दू मुस्लिम का शोर मचाते ही रहते हैं। माफ़िया डॉन अतीक़ अहमद के मामले को लेकर भी उन्होंने यही शोर मचाना शुरू कर दिया। मगर समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव ने ओवैसी को मात देने के लिये बयान जारी कर दिया कि “इस फ़ेक एन्काउंटर के कारण समाज में भाईचारा ख़त्म करने की कोशिश की जा रही है।” यह ग़ज़ब भाईचारा है जो किसी माफ़िया डॉन के वजूद पर टिका हुआ है। 
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने पुलिस से पूछा क्या आपने चूड़ियां पहन रखी हैं। तो उत्तरी दिनाजपुर जिले में एक बीजेपी कार्यकर्ता की हत्या का मामला सामने आया है। बीजेपी का आरोप है कि कालियागंज में बुधवार (26 अप्रैल, 2023) की देर रात मृत्युंजय बर्मन नाम के एक बीजेपी कार्यकर्ता की गोली मारकर हत्या कर दी गई। विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी ने पुलिस पर छापेमारी के दौरान बीजेपी कार्यकर्ता की गोली मारकर हत्या करने का आरोप लगाया है। 
ग़ौरतलब है कि शुक्रवार यानी 21 अप्रैल को कालियागंज में 17 साल की दलित नाबालिग का शव नहर में तैरता मिला था। परिजन का आरोप है कि रेप के बाद उनकी लड़की की हत्या कर दी गई। कालियागंज के साहेबघाटा इलाके में नाबालिग लड़की का शव घसीटने के आरोप में सहायक सब-इंस्पेक्टर रैंक के 4 पुलिस अधिकारियों को सस्पेंड कर दिया गया है।
रायगंज की एस.पी. सना अख्तर ने मंगलवार को यह जानकारी दी। उन्होंने बताया कि विभागीय जांच की गई और रिपोर्ट के आधार पर कार्रवाई की गई। मगर त्रिणमूल कांग्रेस इन सभी मामलों में राजनीतिक खेल खेलने में व्यस्त है। वहीं अंततः कलकत्ता हाई कोर्ट ने रामनवमी पर हुई हिंसा के मामले को एन.आई.ए. को सौंपने का आदेश दिया है। यह आरोप भी लगाया जा रहा है कि ममता बनर्जी के भाषण के बाद हिंसा फैली।
बिहार के जनता दल युनाइटिड का चुनाव चिन्ह ऊंठ होना चाहिये। क्योंकि कोई नहीं जानता कि नितीश कुमार किस करवट बैठेंगे। भारत की सबसे ईमानदार पार्टी राष्ट्रीय जनता दल – जिसके नेता लालू प्रसाद यादव को पशुओं के चारे को खाने के चक्कर में जेल जाना पड़ा था – आजकल नितीश कुमार की साथी है। दोनों ने मिल कर दस दिन पहले जेल मैन्युअल में कुछ परिवर्तन किये ताकि बाहुबली और पूर्व सांसद आनन्द  मोहन सिंह को जेल से रिहा किया जा सके।
याद रहे कि आनन्द मोहन सिंह गोपालगंज के ज़िला मैजिस्ट्रेट रहे जी कृष्णैया की हत्या में उम्रकैद की सज़ा काट रहे था। आनन्द मोहन को रिहा करने के चक्कर 22 अन्य अपराधियों को भी छोड़ना पड़ गया। भारतीय जनता पार्टी भी आधे-अधूरे मन से इस कदम का विरोध कर रही है। देख कर डर लगता है कि बाहुबलियों की राजनीति में कैसी गहरी पैठ है। 
कुछ दिनों से टाइम्स नाऊ नवभारत चैनल ने केजरीवाल के शीशमहल की ब्रेकिंग न्यूज़ बनाई है। वो आदमी जो हमेशा कहता था कि उसे दो बड़ा घर, लाल बत्ती वाली कार और सुरक्षा अधिकारी नहीं चाहियें, वही मुख्यमंत्री अचानक इतना बदल गया है कि अपने घर की मरम्मत के लिये 45 करोड़ रुपये ख़र्च कर देता है। यह भी उस काल में जब डेल्टा वेरिएण्ट के चलते दिल्ली में हज़ारों लोग अपनी जान दे रहे थे, ऑक्सीजन की कमी थी और केजरीवाल बहुत चालाकी से दस करोड़ के बहुत से मद बना कर पैंतालीस करोड़ तक का खर्चा अपने घर पर कर गये।
भारतीय संगमरमर पसन्द नहीं था, इसलिये विएटनाम से ख़ास मार्बल इम्पोर्ट किया गया। पर्दों पर लाखों रुपये ख़र्चे गये हैं तो बच्चों की अल्मारियों पर आठ-आठ लाख। गुसलख़ानों के लिये इटेलियन टाइल्स का इस्तेमाल किया गया है। जिस व्यक्ति ने ये सारे ख़र्चे पास किये वह कही महीनों से तिहाड़ जेल में है और उसका नाम है सतेन्द्र जैन। सुनने में आया है कि केजरीवाल अपने बंगले का विस्तार करना चाह रहे हैं। इसलिए बहुत से अफ़सरों से उनके घर और फ़्लैट खाली करवाए गये हैं। आजकल केजरीवाल और उनके प्यादे  उन दलों के मुख्यमंत्रियों के साथ मुकाबला कर रहे हैं जिन्हें वे हमेशा भ्रष्ट कहते रहे। 
आज के भारत का राजनीतिक परिदृश्य कुछ अजीब सा है। कहीं कोई ऐसा नेता नहीं दिखाई देता जिसके दिल में देश और देश के नागरिकों की भलाई बसती हो। सभी विपक्षी नेताओं के पास केवल एक ही मुद्दा है कि किस तरह नरेन्द्र मोदी को सत्ता से बाहर किय जाए। विपक्षी दलों ने न तो संसद में और न ही टीवी डिबेट्स पर कभी भाजपा सरकार को  बेरोज़गारी और महंगाई पर घेरा है।
किसी मुद्दे पर शरद पवार की राय अलग है तो किसी पर ममता बनर्जी की। पूरा विपक्ष किसी एक चेहरे पर नेता के लिये सहमत नहीं हो पा रहा। दुख है तो बस इस बात का कि भ्रष्टाचार और अनैतिकता के मामले में भारत की हर राजनीतिक पार्टी चाहे पक्ष हो या विपक्ष एक ही मंच पर खड़ी दिखाई देती है। 
तेजेन्द्र शर्मा
तेजेन्द्र शर्मा
लेखक वरिष्ठ साहित्यकार, कथा यूके के महासचिव और पुरवाई के संपादक हैं. लंदन में रहते हैं.
RELATED ARTICLES

27 टिप्पणी

  1. बेबाक विश्लेषण. विपक्ष आज सत्ता पक्ष से अधिक बेईमान और भ्रष्ट है.

  2. सम्पादकीय से स्पष्ट है कि सभी पार्टियां के कई कार्यकर्ता भ्रष्ट,लूटेरे ,स्वार्थी, निकम्मे,देशद्रोही हैं तो चुनाव का क्या औचित्य रह जाता है??
    जिस पार्टी के स्टार प्रचारक आतंकवादी हो तब देश की बर्बादी पक्की है।
    चाकू तरबूज पर गिरे या तरबूज चाकू पर, कटना तो तरबूज को ही है। अब केवल भगवान ही आकर हमारे देश को बचा सकता है।इंसान से आशा बेकार है।

  3. राजनीति पूर्णरूप से एक व्यवसायिक उपक्रम हो चली है। ईमानदारी तो कहीं नहीं। विपक्ष कम से कम इस मामले में साथ है कि सब बेईमान साथ साथ। मैं जमशेदपुर से हूँ उस समय टिस्को सबसे ज्यादा मजदूरों की कम्पनी थी मजदूर यूनियन के अध्यक्ष ही ज्यादातर चुनाव जीतते थे। जिस टिस्को में अब्दुल बारी, रामावतार शर्मा और केदार दास जैसे कोमुनिस्ट नेता थे, मैं केदारदास को अच्छी तरह जानता था, पार्टी कार्यालय में ही एक खटिया पर सोते थे और ठीक मेरे घर के सामने एक मामा होटल थी जिसमे अधिकांश मजदूर मछली झोल और भात खाते थे उनके साथ बैठ कर ही खाते थे। कहने का तात्पर्य है इस तरह का सरल सीधा ईमानदारी वाला जीवन जीने वाले नेता अब कहाँ हैं।इन लोगो ने पूरा जीवन समाज की भलाई के लिए बिना स्वार्थ झोंक दिया। 60 70 के दशक में नेतागण बाहुबलियों का सहारा लेते थे बाद में खासकर 77 के बाद बहुब्लोयों ने सोचा कि इनको जिताने से अच्छा खुद जीतो तब अतीक मोहम्मद, शहाबुद्दीन, आनंद मोहन इत्यादि आये । उस देश की राजनीति का क्या हो सकता है जहां सजायाफ्ता लालू यादव को बिहार की सबसे बड़ी पार्टी बनाया जाता है। यही कारण है जनसंघ जहां करप्सन नगण्य था आगे आने लगी परंतु जबसे संघ के लोग छोड़ अन्य लोग भी भाजपा म् जाने लगे तब से यह भी अछूती नहीं रही।

  4. संपादक महोदय
    राजनीति तो सदा ही गंदी रही है ,परंतु इस समय राजनीति के स्नान गृह में चुनाव का नाला फूट पड़ा है जिससे वह अत्यंत दुर्गंधमय और घिनौना हो गया है। आरोप और प्रत्यारोप के बारे में क्या विचार करें? मस्तिष्क कुंद हो जाता है,! फिर बात मन में यही आती है कि जिस गांव जाना नहीं उस की डगर क्यों पूछना!!!

    • आपका विश्लेषण सही है, सर। देश और नागरिकों की भलाई कोसो दूर की बात है। बस अपना काम बनता, भाड़ में जाय जनता। जब तक बड़े स्तर गतिरोध उत्पन्न न हो, उनकी के कान पर जू तक नहीं रेंगती। भला रेंगे भी क्यों? चिकने घड़े जो ठहरे। मातृभूमि, मानवीयता के प्रति वफादारी का भाव जब हर सरकारी कर्मचारियों में होगा तब कुछ अलग ही कार्यप्रणाली होगी, अलग ही सूरत दिखाई देगी

    • गुलज़ारीलाल नंदा, लाल बहादुर शास्त्री, श्यामा प्रसाद मुखर्जी जैसे लोगों की याद आती है।

  5. ईमानदार और नेता? ऐसा सोचना ही भोलापन है। राजनीति और भ्रष्टाचार पर्यायवाची हैं। आज से नहीं प्रागैतिहासिक काल से। कौटिल्य से लेकर आधुनिकतम राजनीतिक विचारकों को पढ़ कर यही परिणाम सामने आता है कि राजनीति के गलियारे काजल की कोठरी हैं। सिंहासन सदैव लाशों पर स्थित रहते हैं।
    आज यदि यह मुद्दा विचार का विषय है तो मात्र इसलिये कि इन्टरनेट की कृपा से सभी को सूचनायें आसानी से मिल जाती हैं। अन्यथा राजनीत और भ्रष्टाचार में चोली-दामन का रिश्ता है।
    राजनीति कभी भी सर्वजन हिताय नहीं होती, बहुजन हिताय होती है। स्पष्ट है कि जो छोटी संख्या बचती है उसके हितों की बलि चढ़ती, तभी किसी भी देश की राजनीति चलती है।
    भारत में किसी भी दल को सत्ता में आने के लिए चुनाव में बहुमत चाहिये। दुर्भाग्यवश भारत का पढ़ा-लिखा वर्ग मतदान के दिन, वोट देने नहीं जाता बल्कि छुट्टी का आनंद लेता है। दल जीतते हैं उन मतदाताओं के वोट से जिनके लिये एक वक़्त की दावत, एक साड़ी या एक बोतल शराब देश-दुनिया से अधिक मायने रखती है।
    इसी बहुमत के लिए सभी दल साम-दाम-दण्ड-भेद के पैंतरे आज़माती है और राजनीति में बाहुबलियों की अनिवार्यता होती है।
    ‘हमारे प्रतिनिधि हैं सभी नेता’, हम चुनते हैं। नेता हमारे दर्पण के प्रतिबिंब हैं। नेताओं के भ्रष्टाचार की बात करने से पहले, जनता को अपने गिरेबां में झाँकना चाहिये। जनता कैसी है जिसने अपना प्रतिनिधित्व ऐसे हाथों में सौंपा है। नेताओं को सुधारना है तो ख़ुद को सुधरना होगा। हमारे नाकारेपन का परिणाम है ये भ्रष्टाचार। मुफ़्त की बिजली, पानी और इन्टरनेट के लिए ईमान बेंचने वाली जनता के छोटे भ्रष्टाचार का बड़ा सम्मिलित रूप भ्रष्टाचार। इसे आईने के तरह देखने की जरूरत है। जनता सुधर जाये नेता, सत्ता और देश सुधर जायेगा।
    यह विचार-विमर्श कारण पर नहीं हो रहा, उसके परिणाम पर हो रहा है। हमारे अन्दर बैठा भ्रष्ट व्यक्ति, राजनीतिक भ्रष्टाचार का कारण है। हमें जिम्मेदारी लेनी होगी। नेताओं को कठघरे में खड़ा करके हम अपना दामन पाक साफ़ समझने का ढोंग नहीं कर सकते।

    • शैली जी आपने तो लगभग समानांतर संपादकीय लिखा दिया। इस विस्तृत टिप्पणी के लिए हार्दिक आभार।

  6. वर्तमान स्थितियों पर सार्थक विश्लेषण है
    बड़ी अनिश्चितता और निराशा के बीच जन -मानस है इस समय ।
    बस सत्तापक्ष से उमीदों के चराग जल रहे हैं रौशनी अभी धुंधली नहीं है ।
    साधुवाद
    Dr Prabha mishra

  7. Very rightly you have pointed out the loopholes existing in the òpposition where every political party has elements/ members who happen to be grievously undesirable one way or the other.
    A worrisome situation indeed.
    Regards
    Deepak Sharma

  8. आज का आपका संपादकीय भारतीय राजनीतिक परिदृश्य का सटीक एवं यथार्थ परक विश्लेषण कर रहा है। बृजभूषण से लेकर अरविन्द केजरीवाल तक। शरद पवार, ममता बनर्जी राजनीति के पुराने खिलाड़ी हैं। अलग-अलग तरह की राजनीति करते रहे हैं किन्तु कट्टर ईमानदार पार्टी का दावा करने वाली पार्टी के नेता का अपने घर की सजावट पर इतना रुपया खर्च करना, वह भी कोविड काल में असंवेदनशील मानसिकता का द्योत lक है।

    आज का विपक्ष कोई विमर्श पैदा करने में असफल है। वह सिर्फ मोदी सरकार को येनकेन प्रकारेण हटाना चाहता है किन्तु कैसे, वह समझ नहीं पर रहा है। भारत की राजनीति का एक दुःखद पहलू है हर वर्ष चुनाव होना…नित होती जहरीली जबान…लोगों का उचित निर्णय न लेना, पढ़े लिखे लोगों का वोट न देना, अपराधियों का चुनकर आना। सच हम भारतीय सिर्फ मूक दर्शक बन गये हैं।
    भारतीय राजनीति के हर पहलू सद रूबरू कराते आलेख के लिए बधाई आपको।

  9. भारतीय राजनीति का सही आकलन किया आपने। राजनीति अपने निकृष्टतम पायदान पर पहुंच गयी है।
    राजनीति के अलावा अब देश में कुछ बचा भी नहीं।

  10. संपादकीय आज के भारतीय राजनीति का शतप्रतिशत एचडी चित्र है। लगातार नौ वर्षों से सतत रामराज और भारतीय राजनीति की ऐसी पतन स्थिति, दुखद, निराशापूर्ण एवं चिंताजनक है। विशेषकर जब देश की एक बड़ी जनसंख्या ने आगे भी कम से कम पचास वर्षों तक सतत रामराज का मन बनाया हो अथवा कहीं न कहीं से ऐसी संभावना दिखती हो।
    लोकतंत्र में विपक्ष को हीं जनता की आवाज माना जाता है। परंतु वर्तमान भारतीय परिवेश में विपक्ष को हीं सारी समस्याओं व बाधाओं का मूल माना जा रहा है। बहुदलीय प्रणाली में विपक्षी एकजुटता तथा तालमेल का अभाव स्वभाविक है वरना 31% वोट पर प्रचंड बहुमत का चमत्कार नहीं होगा। मिडिया ने लोगों के मन में भर दिया है कि सरकार हीं एकमात्र देश हितैषी है और सारी समस्याओं का जड़ सामूहिक विपक्ष है। सरकार जो नहीं कर पा रही है वह सरकार की कमी नहीं है। उसका कारण विपक्ष द्वारा उत्पन्न बाधा है। और मिडिया भी ऐसा क्यों न करे जब उसके पास आँखें बंदकर उसकी बातें मानने वाले थोक श्रोता हो।
    लोग भी यह कभी नहीं सोचते कि जिस पार्टी को सत्तर वर्षों से देश का लूटेरा कहा जा रहा है पिछले दस वर्षों में उस पार्टी का कोई एक भी नेता जेल क्यों नहीं गया। जिस पार्टी के नेताओं को जेल जाना चाहिए था वे जेल के बजाय सत्ता पक्ष में क्यों और कैसे चले गये? क्या वे सभी ईमानदार थे? समर्थकों के लिए यह सामान्य बात है। दल बदल तो राजनीति का अभिन्न अंग है। बिल्कुल है, परंतु बेईमान पार्टी के नेताओं का ईमानदार पार्टी में शामिल होना सामान्य बात नहीं है। इसका सीधा अर्थ है या तो बेईमान पार्टी में वस्तुतः ईमानदार लोग थे। या फिर ईमानदार पार्टी भी बेईमानों के सहयोग बिना नहीं चल सकती। वरना संपादक महोदय को यह कभी भी नहीं कहना पड़ता
    “.. कि भ्रष्टाचार और अनैतिकता के मामले में भारत की हर राजनीतिक पार्टी चाहे पक्ष हो या विपक्ष एक ही मंच पर खड़ी दिखाई देती है।”

  11. सच तो यह है कि थकान व ऊब होने लगी है ये सब बातें सुन सुनकर।किसी पर कोई सकारात्मक प्रभाव पड़ता नज़र नहीं आता।
    आप बड़ी कुशलता से अपने धर्म का निर्वहन कर रहे हैं।
    साधुवाद आपको

  12. यों तो सबको मालूम ही है कि नेता यानी चोर। जो चोर नहीं वो नेता नहीं। पूरा आँवा का आँवा ही भ्रष्ट है। तेजेन्द्र जी ! आपने कई बातें तो ऐसी उजागर की हैं जो हमें भारत में रह कर भी पता नहीं या उन पर हमारा ध्यान नहीं है ; और आप भारत में न रहते हुए भी राजनीति के हमाम के चप्पे-चप्पे से वाकिफ़ हैं। आपकी सूक्ष्म दृष्टि से कुछ बच नहीं पाता। हार्दिक साधुवाद आपको।

  13. प्राचीन समय में राजनीति नीति पर आधारित होती थी परंतु आजकल का परिदृश्य बिल्कुल बदल गया है। सत्ता पर काबिज रहने के लिए येन केन प्रकारेण का नियम अपनाया जा रहा है। 75 सालों से जो पार्टी देश पर अपना अंध अनुशासन चलाती आ रही है वह विपक्ष के तौर तरीके जानती ही नहीं। वह केवल धार्मिक हिंसा भड़काने में आहुति दे रही है।
    आपने बहुत सही लिखा की सभी विपक्ष केवल एक मुद्दे पर एक हैं कि मोदी सरकार हटनी चाहिए।

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

Most Popular

Latest