जीवित रहने के संघर्ष में जिसने जी-जान लगा दी, वही खुशियों का वास्तविक हक़दार होगा। जिसने दिन भर सूरज की चिलचिलाती धूप सही, मेहनत-मजदूरी की, वही ठंडी छांव के सुखभोग का हक़दार हुआ। 
जो सर्द रातों की परवाह ना करते हुए अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करने के लिए डटा रहा। जिसने सही समय पर काम/नौकरी पर पहुंचने के लिए आधी रात के ढलते ही गर्म रजाई छोड़ दी। सुख छोड़कर जिसने दिन भर मेहनत की, वही अगली सुबह उठकर फिर से काम में जुटने के लिए नव ऊर्जा की चाहत में सुकून के कुछ पल तलाशता है। वही ठिठुरती रातों में बिस्तर पर आराम करने का असली आनंद उठाता है।
ऐसे जाबांज जिन्होंने देश-समाज और तारीख़ को बनाने में, बनाए रखने में और उसे बुलंदियों तक पहुंचाने में अपनी जवानी लगा दी, जिन्होंने वक्त को नई करवट लेने को मजबूर कर दिया। जिसने विपरीत हालात में भी अपनी सोच सकारात्मक रखी, ऐसे मज़बूत इरादे वालों को हमारा सलाम।
जिन्होंने अपनी सूझबूझ और विवेक के दम पर बड़े-बड़े व्यवसाय खड़े किए, सैंकड़ों लोगों को रोजगार दिया। जो ना जाने कितने घरों के चूल्हों पर पकते भोजन का जरिया बने, ऐसी अनगिनत प्रतिभाएं, सम्मान की हक़दार हैं। 
अपनी मेहनत के बल पर जिसने सम्मान अर्जित किए, उन मतवालों को सलाम। ऐसे प्रेम-प्यार के हक़दार लोगों, समाज के गुमनाम नायकों को नमन जिन्होंने तारीखें अपने नाम कीं, और बदलाव का चेहरा बने। वही बदलते वक्त की मिसाल कायम करने में सफल रहे।
अपने-अपने क्षेत्र के ऐसे अलबेलों को, सफलता का पर्याय बन चुके नायक/नायिकाओं को हमारा सलाम। उन महिलाओं के हौसले को, जानते-बूझते गुमनामी में खो जाने के जज़्बे को प्रणाम जिन्होंने बिना छुट्टी लिए हर दिन घर-गृहस्थी का मोर्चा सम्हाले रखा। जो सिर्फ घर-परिवार का ही नहीं बल्कि पूरी इंसानी कौम को भोजन करवाने, उनकी सुख-सुविधाओं का ध्यान रखने की जिम्मेदारी उठाती रहीं और बदले में उन्होंने कुछ पाने की उम्मीद भी नहीं रखी। अपने परिवार की पहचान पुख़्ता करने की क़ीमत, जिन्होंने अपनी पहचान मिटा दी।
सुख देने की कड़ी में जिन्होंने अपने हिस्से कुछ भी नहीं रखा। वही जो घर के बाहर लगी नेमप्लेट पर स्थान ना पा सकीं, जो पुरूष की बेटी, पत्नी और माँ के नाम से जानी जाती रही, उसकी गुमनामी को सलाम। जो परिवार को समाज में स्थापित करने की धुन में ख़ुद की पहचान भूल गईं, घर-परिवार और समाज भी जिनके त्याग से “अनजान” बना रहा, वही “अनजानी” आने वाली नस्लों के नायक बनीं। बुलंद इमारतों की वह नींव जो हमेशा-हमेशा के लिए गुमनामी की गर्त में खो गई, हर युग में उनके भुला दिए गए त्याग को नमन।
बीत चुके समय को प्रणाम। आने वाले कल की तैयारी में जुटे वर्तमान को नमन जो बदलते समय की नई तस्वीर बनाने में जुटा है। बदलाव के हौसले को बार-बार नमन। देश की तरक्की के लिए जी-जान लगा देने वालों को नमन। देश की आन-बान और शान की खातिर अपना सर्वस्व लुटा देने को तैयार मतवालों को मेरा सलाम। 
गणतंत्र दिवस के अवसर पर हर उस व्यक्ति को नमन जिसने घर-परिवार, देश और समाज के लिए कार्य किए। मेरे देश को, हमारे भारत को, हर भारतीय को गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं। 

4 टिप्पणी

  1. आप एक आदर्श कार्य के लिए ही प्रभु ने इस धरातल पर भेजा है और पूरी तन्मयता से उस काम में लगी हुई हैं हम आपके जज्बे को सैल्युट करते हैं।

  2. डॉ, कृष्ण कांत मिश्र प्रोफेसर हिन्दी विभाग।।

    आपने लेखनी के माध्यम से जीवटता,जीवंतता,जुझारूपन,समर्पण,अन्तर्द्वन्द,शोषित अन्तर्भाव एवम् दैनंदिन संवाद,संप्रेषण संवेदना को व्यक्त किया है। वर्तमान दशा मानव का दर्द,व्यथा की कथा,अथक प्रयास, कठिन परिश्रम,दूर दृष्टि, पक्का इरादा, आदि का आपने बहुत ही अच्छे सलीके,तरीके समग्रता,सुरम्यता,ओज,एवम् नई व्यवस्था को नया आयाम सोपानों को प्रदान किया है।।

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