15 अक्टूबर, 2020 को उद्भव मंच पर डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक जी के कहानी संग्रह ‘वाह जिंदगी’ पर अंतरराष्ट्रीय विद्वान, समीक्षक और आलोचक डॉ. सुधांशु कुमार शुक्ला, चेयर हिंदी, आईसीसीआर पोलैंड से सीधी बात की गई। विश्व मंच पर पहली बार रमेश पोखरियाल जी के कहानी संग्रह पर हुई यह सीधी बात अपने आप में बहुत बड़ा महत्व रखती है। यहाँ पर रमेश पोखरियाल जी के राजनीतिक जीवन पर बात ना करते हुए उनके साहित्यिक जीवन पर सीधी बात की गई है।
आपको यहाँ बता दें कि डॉ. सुधांशु कुमार शुक्ला जी ने प्रवासी हिंदी साहित्य में विश्व के लगभग 15 से अधिक प्रवासी हिंदी तथा अन्य साहित्यकारों के कहानी और कविता संग्रहों पर अपनी लेखनी चलाकर  प्रवासी हिंदी साहित्य में एक नए युग को स्थापित किया है। डॉ. शुक्ला ने किसी मंच, गढ़, विचार तथा विवाद से दूर रहकर सभी देशी-विदेशी और प्रवासी साहित्यकारों पर अपनी जोरदार लेखनी चलाई है।
हिंदी के विकास के लिए इनका यह वैश्विक योगदान हिंदी साहित्य हमेशा याद रखेगा। डॉक्टर शुक्ला ने भारत और पोलैंड के रिश्तों पर भी एक सुंदर लेख लिखा है, गांधी जी पर भी लिखे लेख को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर सराहा गया है। इतना ही नहीं डॉ. शुक्ला ने अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अपनी भागीदारी तथा उपस्थित दर्ज कर हिंदी के विकास में हर संभव कार्य किया और आगे भी करते रहेंगे।
डॉ. शुक्ला ने वाह जिंदगी कहानी संग्रह की हर एक कहानी पर विस्तार से चर्चा करते हुए कहानियों पर समीक्षात्मक व्याख्यान किया और कहानी संग्रह की भाषा तथा उसके चरित्रों पर भी गहनत्म संदर्भ के साथ व्याख्यान दिया।

अपने व्याख्यान में बताया कि डॉ. रमेश पोखरियाल जी की कहानियाँ मानव जीवन के हर रिश्ते को दिखाती, समझाती नज़र आती हैं। इनकी कहानियों पर इनकी भाषा, इनके स्वभाव अर्थात् व्यक्तित्व की छाया है। व्यक्तित्व की सादगी और ताज़गी की तरह बहुत ही सहज भाषा में, सहजता के साथ जीवन की तमाम उलझनों, संघर्षों और जीवन की जिजीविषा को जीवंतता के साथ अभिव्यक्त करते हैं। भाषायी बोध की क्लिष्टता इन्हें कहीं दूर से भी छू कर नहीं गई है।
भाषा की मंदाकिनी में जटिल समस्याओं, विमर्शों और भारतीयता, राष्ट्रीयता का भाव अनायास रूप से प्रभावित करता है। कहीं भी कहानीकर उपदेशक के रूप में या फिर किसी बोध को बलात् पूर्वक डालने का प्रयास करते नहीं नज़र आते हैं। किसी विचारधारा को थोपते भी नज़र नहीं आते हैं। जीवन की छोटी-छोटी घटनाओं को लेकर जीवन जीने की कला सिखाते हैं। पाठक को भी ऐसे पात्र और घटनाएँ अपने आस-पास मिलेंगी। उसे अपने जीवन से जुड़ी बातों, घटनाओं पर विश्वास होता है और वे इन कहानियों के पात्रों को अपना पात्र, अपने लोग समझने लगते हैं। जीवन में संघर्ष है, संघर्ष से जुझ कर ही आनंद मिलता है, वही वास्तव में जीवन भी है।
डॉ. शुक्ला ने वाह जिंदगी कहानी पर अपने विचार प्रकट करते हुए कहा कि कहानी संग्रह का नामकरण वाह जिंदगी ही उसकी सार्थकता को सिद्ध करता है। ईश्वर प्रदत्त जिंदगी बहुत ही खूबसूरत, उम्दा है। अगर जीवन जीने का ढंग, तरीका आता है, तो जीवन खुशहाल हो जाता है। जीवन सुख-दुख, हार-जीत, उतार-चढ़ाव का नाम है। हर हाल में खुश रहने वाले के लिए जिंदगी खुशनुमा होती है, वे जीवन जीते हैं, काटते नहीं हैं।
वाह जिंदगी आत्मसंस्मरण शैली में रची यह कहानी लेखक के जीवन को दर्शाती ही नहीं है, अपितु हम सब के जीवन की तस्वीर है। अपने बचपन के संघर्षों के दिन गाँव से शिक्षा के लिए शहर आना और ईमानदारी, कर्तव्य निष्ठा से कार्य करते करते जीवन किस प्रकार गुज़र जाता है। दुख के आने पर, लोगों की साजिश का शिकार होने पर बालकनी में बैठे लेखक को एक छाया सी महसूस होती है। वह छाया अपना नाम जिंदगी बताती है। यह लेखक की कल्पना अपने आप से बातचीत या फिर स्वप्न सा भी हो सकता है। इस माध्यम से कहानीकार ने जिंदगी जीने का भाव जगाया है।
डॉ. शुक्ला ने वाह जिंदगी कहानी संग्रह की कहानियाँ पर अलग-अलग साहित्यकारों की कहानियों को याद करते हुए रमेश पोखरियाल जी की कहानियों को आज के संदर्भ में सार्थक और जन को जागरूक करने वाली कहानियाँ बताया। इस कार्यक्रम में उद्भव मंच से संचालक के रूप में डॉक्टर विवेक गौतम जी ने अपनी उपस्थिति दर्ज की और साथ ही मंच पर सुप्रसिद्ध कवि और लेखक श्री बेचैन कंडियाल जी भी जुड़े रहे। श्री बेचैन कंडियाल ने डॉ. शुक्ला के समीक्षात्मक अध्ययन को सार्थक बताया।

विदेशी साहित्यकारों द्वारा डॉ. रमेश पोखरियाल जी के साहित्य पर हुए शोध और समीक्षात्मक अध्ययन को उन्होंने बताया और कहा कि डॉ. शुक्ला का सटीक और साहित्य के प्रति गहनत्म अध्ययन सराहनीय है। इस कार्यक्रम को अंतरराष्ट्रीय मंच पर भी सुना गया। इंग्लैंड से सुप्रसिद्ध लेखक तेजेंद्र शर्मा जी और कवयित्री तथा लेखिका जय वर्मा जी जुड़ी,  अमेरिका से नीलू गुप्ता जी जुड़ीं, पोलैंड से डॉ. नवीन गुप्ता, डॉ. पूर्णेन्दु जी आदि जुड़ें।
भारतवर्ष से भी अलग-अलग राज्यों और विश्वविद्यालय के प्रोफेसर तथा अन्य गणमान्य लोग इस कार्यक्रम में सीधे जुड़े, इनमें डॉ. भंड़ारी गुप्ता, डॉ. विजय शंकर मिश्रा जी का नाम गिनाया जा सकता है। गुजरात से डॉ. नीना शर्मा, महाराष्ट्र से प्रदीप वालिया जी, चित्रकूट से शुभम त्रिपाठी जी। दिल्ली से दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर पूरनचंद टंडन, प्रसिद्ध स्तंभकार डॉ. नीरज भारद्वाज, डॉ. दिव्या शुक्ला आदि इस कार्यक्रम से जुड़े रहे।
इस सफल कार्यक्रम के आयोजन के लिए डॉक्टर विवेक गौतम जी का और बेचैन कंडियाल जी का डॉ. शुक्ला ने हृदय से आभार प्रकट किया। डॉ. विवेक गौतम जी के विषय में बताते हुए डॉ. शुक्ला ने कहा कि इन्होंने मुझे डॉ. रमेश पोखरियाल जी का कहानी संग्रह वाह जिंदगी का पीडीएफ भेजा और इन्हीं के आग्रह पर मैंने उनकी 20 कहानियों को एक ही बैठक में पढ़ लिया और आज इस कहानी संग्रह पर पहली बार अंतरराष्ट्रीय चर्चा हुई। इस कार्यक्रम की सार्थकता और लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि डॉ. शुक्ला को कितने ही सहित्यिक मंचों ने डॉ. रमेश पोखरियाल जी के साहित्य पर चर्चा के लिए आमंत्रित भी कर दिया है।

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