Saturday, July 27, 2024
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कल्पना मनोरमा के प्रभु राम पर केंद्रित दोहे

राम एक विश्वास हैं, नहीं धर्म का नाम।
जो ध्याता जैसे उन्हें, दिखते वैसे राम।। 1
रीति नीति पर चले थे, रघुकुल दीनानाथ।
पूजक केवल देखता, रघुनंदन का हाथ।। 2
वनवासी हो राम ने,जंगल किया सनाथ।
शबरी,बाली को मिले, प्रेमी भ्राता साथ।। 3
मर्यादा टिकती तभी,जब हो त्यागी वीर,
कौशल्या के राम ने, मन में साधा धीर।।4
रामलला के भवन में, उतरेंगे राकेश
बिजनी डोले पवन उड़, मुस्काए शैलेश।।5
हा लक्ष्मण! हा राम रे! कहां गए तुम लोग।
मन चातक रट रट मरा, जीवन जैसे घोग।।6
राम नाम का बोलना, राम नाम की आस।
त्याग तपस्या लगे जो, राम बसे हैं पास।। 7
जनम सफ़ल होगा तभी, जब आएगा धैर्य।
सीख लिया जो धैर्य को, मन आए स्थैर्य।। 8
मर्यादा में डटे थे, रघुकुल आनंदकंद
जिसने देखा कह उठा, पुष्प बीच मकरंद।।9
राम लला मां जानकी,लक्ष्मण प्यारे तात।
दशरथ जैसे विटप पर, लगते ऐसे पात।। 10
सिया सलौनी चल पड़ीं, महल अटारी छोड़
कंचन मृग मरीचिका, पाई अंधे मोड़।।11
दशरथ के सुत चार हैं, कौशल्या सुत एक
राम बिना उनको मिले, दुख के रूप अनेक।।12
रची न होती ऋषी ने, राम कथा अनमोल
कैसे मिलता जगत को, मर्यादा का मोल।।13
तुलसी ने रुचि रुचि लिखा, चरित राम मकरंद
कामी क्रोधी जो पढ़े, पा जाए आनंद।।14
अविरल धारा सत्य की, बहती सरयू संग
रघुकुल में शामिल हुए, सात्विक गुण सारंग ।।15
– कल्पना मनोरमा –
संपर्क – [email protected]
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