होम कविता अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर मनीष श्रीवास्तव के दोहे कविता अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर मनीष श्रीवास्तव के दोहे द्वारा मनीष श्रीवास्तव बादल - March 6, 2022 126 1 फेसबुक पर शेयर करें ट्विटर पर ट्वीट करें tweet बिछिया, नथ, पायल, कड़ा, बाली, मंगल सूत। लाली, काजल नैन में, बिंदिया, गोदी पूत।। “बादल” लेता डूबकर, नारी मन की थाह। प्रतिपल उसको है लगी, नारी बहुत अथाह।। सहनशीलता की सदा, नारी रही मिसाल। ‘शक्ति स्वरूपा’ सत्य है, ‘अबला’ एक ख़याल।। तन – मन में हैं घुल गए, मानवता के रंग। प्रेम, त्याग, ममता, हया, सब नारी के संग।। जब पिंजरे को तोड़कर, उसने ली सौगंध। तभी उड़ानों से हुआ, नारी का अनुबंध।। प्रभु ने ऐसी दी उसे, अजब एक सौग़ात। इक पल में नारी पढ़े, सबके मन की बात।। घर में गृहिणी है कुशल, दफ़्तर कुशल प्रबंध। नारी के इक गीत में, बहुतेरे हैं बंध।। ग्राम-प्रधानी भी लड़े, गोबर लीपे द्वार। सभी गुणों से है भरी, आज गाँव की नार।। काम सुबह से रात तक, फिर भी मुख मुस्कान। नारी सोती रात जब, दिखती तभी थकान।। इसी प्रश्न पर देव तुम, आँखें लेते मूँद। क्यों नारी के भाग में, हरदम आँसू-बूँद।। नारी पर तुमने किया, हर युग में संदेह। पर तुमने देखा नही, नैनन निश्छल नेह।। नारी तेरी अस्मिता, हरदम लगती दाँव। कभी जुआ हारे तुझे, कभी बेड़ियां पाँव।। माँग भरे सिन्दूर से, पहिने मंगल सूत। ‘लाजो’ पत्थर ढो रही, बाँध पीठ पर पूत।। उस महिला को देखता, है झुक कर कैलाश। ईंटा – गारा ढो रही, नहीं एक अवकाश।। पसरी हैं ख़ामोशियाँ, किससे बोले कौन। जब बेटी होती विदा, शहनाई तक मौन।। ‘बादल’ कहता देखिए, इन दोहों में चित्र। कुछ में पत्नी-माँ लिखा, कुछ में बहनें-मित्र।। संबंधित लेखलेखक की और रचनाएं हरदीप सबरवाल की कविताएँ अरविन्द यादव की दो कविताएँ रश्मि विभा त्रिपाठी की कविता – फुदकती चिड़िया 1 टिप्पणी चलिए कोई तो आगे बढ़ कर सोच सका जवाब दें कोई जवाब दें जवाब कैंसिल करें कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें! कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें आपने एक गलत ईमेल पता दर्ज किया है! कृपया अपना ईमेल पता यहाँ दर्ज करें Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment. Δ This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.
चलिए कोई तो आगे बढ़ कर सोच सका