Sunday, October 6, 2024
होमलघुकथानीना सिन्हा की दो लघुकथाएँ

नीना सिन्हा की दो लघुकथाएँ

1.समंदर
फोन से संवाद के क्रम में माँ के कठोर वक्तव्य सुनकर वह संज्ञाशून्य हो गई ! पथराई निगाहों से  उठती-गिरती लहरों को देखती रही। समंदर से भी बड़ा तूफान अंतर्मन में ठाठें मार रहा था, “स्वार्थी लोगों की बातों को दिल से लगा,जीवन क्यों समाप्त करना?” स्वविवेक ने  साहस का संचार किया।
रात की ट्रेन थी। बताने के लिए फोन किया था कि आकर सब संभाल लेगी। माँ का प्रतिउत्तर था, “शादी में न ही आती तो अच्छा..। लड़की वाले कुलीन खानदान से ताल्लुक रखते हैं,गर किसी ने तुझे पहचान लिया तो…?”
“क्यों नहीं कहती माँ कि मुझसे शर्म आती है। पिता की लंबी बीमारी और बेहिसाब कर्ज़ों का हवाला देकर जब बड़े शहर भेजा था तो भूल गई थी कि मैं इतनी पढ़ी लिखी नहीं हूँ कि ढंग की नौकरी मिल सके। महाजन की धमकियों से परेशान, पैसों के लिए बार-बार घर से आते फोन..। भारी दबाव में यह रास्ता चुना तथा दलदल में धँसती ही चली गई। क्यों नहीं रोका था तब..?
भाई की शादी पर मेरा साया तक न पड़े, यही चाहती है न? आशीर्वाद देने का हक छीनना चाहती है? जब तक पैसों की तंगी थी, मैं और मेरे पैसे अच्छे थे..। हारी बीमारी, पढ़ाई-लिखाई, शादी-ब्याह, सब में वही पैसे  खर्चे न तूने? भाई के डॉक्टर बनते, डाक्टर कन्या के पुत्रवधू बनने की धमक ने बेटी को दूर करने पर मजबूर कर दिया..! दहलीज पर मेरे लिए ‘नो एंट्री’ का बोर्ड लगा दिया, माँ!”
“ढेरों काम पड़े हैं ब्याह के। हड़बड़ी में मैं ढंग से समझा नहीं पाऊँगी, बात का बतंगड़ बन जाएगा। कहाँ इंकार है मुझे कि तू घर की रीढ़ है..। अपने इस त्याग को भाई के स्वर्णिम भविष्य के यज्ञ में अंतिम पूर्णाहुति समझ ले”,कहकर माँ ने फोन काट दिया था..।
2.विडंबना
“तुम बाबा को संभालो, मालती! मैं जाहन्वी को घंटा-दो घंटा पढ़ा दूँ। परीक्षा में पहला पर्चा ही जीव विज्ञान का है, जिससे बड़ा घबड़ाती है।”
पर नई हाउसहेल्प से बच्चा कहाँ संभलने वाला था। छोटे भाई के शोरगुल से परेशान जाहन्वी पढ़ने छत पर चली गई। सूर्यास्त हुया तो नीचे चली आई। उसे मम्मी की मदद और उसके ध्यान का इंतजार था। पर डेढ़ वर्ष के छोटे भाई के नखरे खत्म होने के नाम नहीं ले रहे थे।
“बेटा! पापा आकर समस्या हल कर देंगे।”
“मम्मी!पापा को आने में वक्त है और कोर्स बहुत, कैसे खत्म कर पाऊँगी?”
“मैं जाहन्वी बेबी की हेल्प कर सकती हूँ”, जाने को उद्यत मालती थम गई।
“इंग्लिश मीडियम से पाँचवी कक्षा की पढ़ाई में कैसे हेल्प करोगी?”
“कर लूँगी मैम! इंग्लिश मीडियम से बारहवीं कक्षा पास करके पत्राचार से स्नातक कर रही हूँ। पापा के अचानक घर छोड़कर जाने के बाद माँ कई घरों में काम कर घर चला रही थी। इतनी मेहनत की आदत न थी, उसे क्षयरोग हो गया। प्रतिकूल परिस्थितियों में, एक प्राइवेट स्कूल में नौकरी तो मिल गई , पर पगार मात्र तीन हजार थी। उसका भी समय निश्चित न था,कभी दो-तीन महीने पर, कभी नहीं तो कभी आधी-अधूरी पगार मिलती…। सेवा भाव से काम करने की नसीहत तथा पगार दिए जाने का आश्वासन मिलता रहता ,पर…।
‘भूखे भजन न होय गोपाला’, रोटी और माँ की दवाइयों के पैसे कहाँ से लाती? स्कूल ऑफिस के टेबल पर पड़े अखबार में हाउसहेल्प के लिए दिये गये विज्ञापन पर नजर पड़ी,तत्पश्चात आप से संपर्क किया। यहाँ के काम की पगार मेरी पिछली पगार से तीन गुनी थी, अतः टीचर का दिखावटी टैग फेंक हाउसहेल्प का काम करना ही ठीक लगा,मैम!” आँखें डबडबा गईं उसकी।
नीना सिन्हा
नीना सिन्हा
पटना साइंस कॉलेज, पटना विश्वविद्यालय से जंतु विज्ञान में स्नातकोत्तर। पिछले डेढ़ वर्षों से देश के समाचार पत्रों एवं प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में लघुकथायें अनवरत प्रकाशित, जैसे वीणा, कथाबिंब, डिप्रेस्ड एक्सप्रेस, आलोक पर्व, प्रखर गूँज साहित्यनामा, संगिनी, मधुरिमा, रूपायन, साहित्यिक पुनर्नवा भोपाल, पंजाब केसरी, राजस्थान पत्रिका, डेली हिंदी मिलाप-हैदराबाद, हरिभूमि-रोहतक, दैनिक भास्कर-सतना, दैनिक जनवाणी- मेरठ इत्यादि। संपर्क - [email protected]
RELATED ARTICLES

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

Most Popular

Latest