साहब की ही बंदगी, साहब की अरदास ।
कुछ भी कर मन बाबले, बन साहब का खास ।।
बेमानी हैं सब गणित, सारी तिकड़म छोड़ ।
सब साहब के हाथ में, उससे नाता जोड़ ।।
पोथी पढ़, उपदेश सुन, निकला यही निचोड़ ।
साहब ही संसार में, हर उलझन का तोड़ ।।
जो साहब साहब रटे, होता नहीं उदास ।
बड़ी अपरिमित शक्तियां, हैं साहब के पास ।
जिस पर साहब की कृपा, उस पर सब अनुकूल ।
कांटे भी उसके लिए, हो जाते मृदु फूल ।।
जो साहब की शरण में, रहता वही निशंक ।
साहब की करुणा मिले, पल में मिटें कुअंक ।।
साहब में ही सार है, बाकी सभी असार ।
जो भी साहब का हुआ, उसका बेड़ा पार ।।
साहब से बढ़कर नहीं, कुशल क्षेम का हेतु ।
पार लगाये सहज ही, साहब है वह सेतु ।।
किसको, कब, क्या बांटना, साहब का अधिकार ।
वह चाहे तो त्रास दे, वह चाहे तो प्यार ।।
साहब सब संभव करे, सहज बनाये काम ।
जैसे साहब खुश रहे, करिए आठों याम ।।
त्रिलोक सिंह ठकुरेला समकालीन छंद-आधारित कविता के चर्चित नाम हैं. चार पुस्तकें प्रकाशित. आधा दर्जन पुस्तकों का संपादन. अनेक सम्मानों से सम्मानित. संपर्क - trilokthakurela@gmail.com

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.