होम कविता त्रिलोक सिंह ठकुरेला के दोहे कविता त्रिलोक सिंह ठकुरेला के दोहे द्वारा त्रिलोक सिंह ठकुरेला - December 23, 2023 41 0 फेसबुक पर शेयर करें ट्विटर पर ट्वीट करें tweet साहब की ही बंदगी, साहब की अरदास । कुछ भी कर मन बाबले, बन साहब का खास ।। बेमानी हैं सब गणित, सारी तिकड़म छोड़ । सब साहब के हाथ में, उससे नाता जोड़ ।। पोथी पढ़, उपदेश सुन, निकला यही निचोड़ । साहब ही संसार में, हर उलझन का तोड़ ।। जो साहब साहब रटे, होता नहीं उदास । बड़ी अपरिमित शक्तियां, हैं साहब के पास । जिस पर साहब की कृपा, उस पर सब अनुकूल । कांटे भी उसके लिए, हो जाते मृदु फूल ।। जो साहब की शरण में, रहता वही निशंक । साहब की करुणा मिले, पल में मिटें कुअंक ।। साहब में ही सार है, बाकी सभी असार । जो भी साहब का हुआ, उसका बेड़ा पार ।। साहब से बढ़कर नहीं, कुशल क्षेम का हेतु । पार लगाये सहज ही, साहब है वह सेतु ।। किसको, कब, क्या बांटना, साहब का अधिकार । वह चाहे तो त्रास दे, वह चाहे तो प्यार ।। साहब सब संभव करे, सहज बनाये काम । जैसे साहब खुश रहे, करिए आठों याम ।। संबंधित लेखलेखक की और रचनाएं शोभा प्रसाद की तीन कविताएँ सावित्री शर्मा ‘सवि’ की कविता – चुनावी रंग दीपमाला गर्ग की कविता – ज़िंदगी के इम्तहान कोई जवाब दें जवाब कैंसिल करें कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें! कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें आपने एक गलत ईमेल पता दर्ज किया है! कृपया अपना ईमेल पता यहाँ दर्ज करें Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment. Δ This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.