होम कविता त्रिलोक सिंह ठकुरेला के दोहे कविता त्रिलोक सिंह ठकुरेला के दोहे द्वारा त्रिलोक सिंह ठकुरेला - June 25, 2023 35 0 फेसबुक पर शेयर करें ट्विटर पर ट्वीट करें tweet सागर घन बनते रहे, और शिलाएँ रेत । चिरस्थायी कुछ नहीं, समय करे संकेत ।। समय कसौटी पर कसे, करता रहता जाँच । साबित करता वक्त ही, क्या हीरा, क्या काँच ।। जिनका सरल स्वभाव है, मिलता उन्हें दुलार । सागर सूखें प्रेम के, देख कुटिल व्यवहार ।। जिनका सृजन सुहावना, वे मन लेते मोह । बढ़ता जाता सहज ही, उनसे निस्पृह छोह ।। बहती है जीवन नदी, अपने ही अनुसार । युक्ति, कुशलता, संतुलन, सहज कराते पार ।। धन की मूढ़ अधीनता, देती मन के रोग । नेह-गंध से जो भरें, वही सयाने लोग ।। तुच्छ हुए सम्बन्ध अब, सब धन के आधीन । भावों को तीली दिखा, मानव हुआ मशीन ।। अनुभव देकर उम्र ने, ऐसा किया निहाल । एक मौन के सामने, हारे सौ वाचाल ।। करें भलाई लोक की, बना प्रेम को सत्व । जो परहित में विष पिये, पाता वही शिवत्व ।। ध्येय, धैर्य, धुन,ढंग,श्रम, रहते जिसके पास । समयशिला के वक्ष पर, लिखता वह इतिहास ।। संबंधित लेखलेखक की और रचनाएं हिंदी भाषा पर मधु शृंगी की कविता प्रीति रतूड़ी की कविताएँ सरिता मलिक की कविताएँ कोई जवाब दें जवाब कैंसिल करें कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें! कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें आपने एक गलत ईमेल पता दर्ज किया है! कृपया अपना ईमेल पता यहाँ दर्ज करें Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment. Δ This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.