होम कविता रश्मि ‘लहर’ के दोहे कविता रश्मि ‘लहर’ के दोहे द्वारा रश्मि लहर - April 6, 2024 53 1 फेसबुक पर शेयर करें ट्विटर पर ट्वीट करें tweet 1. पद की गरिमा के बनें, झूठे दावेदार. प्रिय है मिथ्या चाटुता, मिथ्या ही सत्कार. 2. औरों की श्री कीर्ति का, कब रखते वे ध्यान? कृपाकांक्षी हैं स्वयं, बनते कृपानिधान. 3. थाली के बैंगन सदृश, कभी दूर या पास. आखिर उनकी बात पर, कैसे हो विश्वास? 4. उनकी बातें चुभ रहीं, चुभता हर संदेश. पद- मद में जो चूर हैं, वही बढ़ाते क्लेश. 5. करते वे अपमान हैं, खुद बन कर भगवान. याद न क्यों रहता उन्हें? समय बड़ा बलवान. रश्मि ‘लहर’ इक्षुपुरी काॅलोनी लखनऊ, उत्तर प्रदेश संबंधित लेखलेखक की और रचनाएं मनवीन कौर पाहवा की कविताएँ शोभा प्रसाद की तीन कविताएँ सावित्री शर्मा ‘सवि’ की कविता – चुनावी रंग 1 टिप्पणी अच्छे दोहे हैं लक्ष्मी जी आपके लेकिन फिर भी पहले दोहे में चाटुता शब्द खटक रहा है। दूसरे दोहे के तीसरे पद में दो मात्राएँ कम हैं अत: इसमें मात्रा दोष आ रहा है ।अगर आप ‘वे’ शब्द जोड़ दें-” वे स्वयं” तो यह दोष खत्म हो जाएगा। जवाब दें कोई जवाब दें जवाब कैंसिल करें कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें! कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें आपने एक गलत ईमेल पता दर्ज किया है! कृपया अपना ईमेल पता यहाँ दर्ज करें Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment. Δ This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.
अच्छे दोहे हैं लक्ष्मी जी आपके लेकिन फिर भी पहले दोहे में चाटुता शब्द खटक रहा है। दूसरे दोहे के तीसरे पद में दो मात्राएँ कम हैं अत: इसमें मात्रा दोष आ रहा है ।अगर आप ‘वे’ शब्द जोड़ दें-” वे स्वयं” तो यह दोष खत्म हो जाएगा। जवाब दें
अच्छे दोहे हैं लक्ष्मी जी आपके लेकिन फिर भी पहले दोहे में चाटुता शब्द खटक रहा है।
दूसरे दोहे के तीसरे पद में दो मात्राएँ कम हैं अत: इसमें मात्रा दोष आ रहा है ।अगर आप ‘वे’ शब्द जोड़ दें-” वे स्वयं” तो यह दोष खत्म हो जाएगा।