Saturday, July 27, 2024
होमकवितारश्मि 'लहर' के दोहे

रश्मि ‘लहर’ के दोहे

1.
पद की गरिमा के बनें, झूठे दावेदार.
प्रिय है मिथ्या चाटुता, मिथ्या ही सत्कार.
2.
औरों की श्री कीर्ति का, कब रखते वे ध्यान?
कृपाकांक्षी हैं स्वयं, बनते कृपानिधान.
3.
थाली के बैंगन सदृश, कभी दूर या पास.
आखिर उनकी बात पर, कैसे हो विश्वास?
4.
उनकी बातें चुभ रहीं, चुभता हर संदेश.
पद- मद में जो चूर हैं, वही बढ़ाते क्लेश.
 5.
करते वे अपमान हैं, खुद बन कर भगवान.
याद न क्यों रहता उन्हें? समय बड़ा बलवान.
रश्मि ‘लहर’
इक्षुपुरी काॅलोनी
लखनऊ, उत्तर प्रदेश
RELATED ARTICLES

2 टिप्पणी

  1. अच्छे दोहे हैं लक्ष्मी जी आपके लेकिन फिर भी पहले दोहे में चाटुता शब्द खटक रहा है।
    दूसरे दोहे के तीसरे पद में दो मात्राएँ कम हैं अत: इसमें मात्रा दोष आ रहा है ।अगर आप ‘वे’ शब्द जोड़ दें-” वे स्वयं” तो यह दोष खत्म हो जाएगा।

  2. सादर प्रणाम नीलिमा जी! चाटुता शब्द बहुत सोच-विचार कर प्रयोग किया है दोहे में। मात्रा दोष नहीं है। दोहे एकदम सही हैं। एक अनुरोध है..मेरा नाम कृपया शुद्ध लिखें।

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

Most Popular

Latest