अनिला सिंह चरक की ग़ज़लें
आंख थी मेरी समंदर दिल मेरा सहरा रहा
मिल न पाया वो जिसे हम उम्र भर ढूँढ़ा किए
दर्द के सहराओं में हम उम्र भर भटका एक
बारिशों में सिर बचाया भीगे इक अखबार से
खुशी की आरजू होगी ग़मों का सिलसिला होगा
जला करते हैं लम्हें छोड़ता है साँस वो जब जब
वो अक्सर मांगता है भीख अपनों से मोहब्बत की
तुम्हारे पांव के छाले. रिसे हैं रिसते जातें हैं
ये धागे प्यार के मिलते नहीं बाजार में अब तो
रंजिशें इतनी बढ़ी हम घर से बेघर हो गए
यह सदा किसकी है जो टकरा के लौटी है अभी
बर्फ के कुछ बुत बनाकर रोकर बच्चों ने कहा
आस्तीने कम पडी जब सांप रखने के लिए
कौन से रंगरेज ने लालिमा दी बर्फ को
खेल खेला गोलियों से बच्चों ने कश्मीर के
अमानत में ख्यानत हो रही है
यहां हर चीज अब बिकने लगी है
सजा कर दिल में कितने खंजरो को
बहुत नादान ये मेरा चमन है
लगा कर के गले अब झूठ को ही
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सभी गज़लें अच्छी लगीं आपकी अनिला जी!
दूसरी गजल में पहली पंक्ति में “तुम्हारे” है और दूसरी पंक्ति में “तू “है। यहाँ इस तरह लिखा जा सकता है-
“तेरे पाँवों के छाले हैं रिसे”
तो भी ठीक लगेगा।आप विचार कीजियेगा अगर उचित लगे।
वैसे यह शेर बहुत अच्छा लगा।
आपकी सभी गजलों में तीसरे नंबर की गजल सर्वश्रेष्ठ लगी।