राहुल अपनी गायन की कला से शहर भर में प्रसिद्व था। किसी ने उसे महानगर के सपने दिखाए और चल पड़ा अपनी पीठ पर सपनों को लादकर।
धक्के खाते हुए दिन बीतते गए,किसी तरह मंच पर गायकी का कमाल दिखाने का उसे एक अवसर मिला।
गायकी ऐसी कि रुह तक सिहर उठे..नर्म आवाज से दिल में उतर जाए।
वाहवाही से आकंठ पोटली पाकर वह धन्य हो गया। सपने अब ऊँची उड़ान भर रहे थे।
आपबीती सुनाई तो सबकी आँखे गंगा के पवित्र जल सा भर गई।इतनी धाराएँ फुट पड़ी कि स्वाभाविक भी अस्वाभाविक सा लगने लगे। अपने सामने सहृदयी और कोमल आत्माओं को देख उसे लोगों की कही बातें याद आने लगी।
मन ही मन सोचता हुआ वह…
“झूठ कहते हैं लोग कि महानगर में सब बिकाऊ है,क्या ये आँसू बिकने की चीज है..?बेवकुफ लोग।”
“जब कोई आगे बढ़ता है तो जलन में ऐसी बात करते ही है,यहाँ सब ठीक है।”
घर वापसी पर फूल,मालाएँ,मीडिया और नेता सब उसकी अगुआई में पंथ निहारते मिले।
खुशी से राहुल के पैर जमीं पर नहीं थे। थोड़ा अहं स्वाभाविक था। किसी सेलीब्रिटी की यह खास गुण होता है।
हफ्तेभर के बाद मौसम ठंडा क्या हुआ सब नर्म पड़ गया।
वह औंधे मुँह जमीं पर खुद को पाया जब किसी कार्यक्रम में न्यौते के बाद भी उसे पहचानने से इंकार कर दिया।
उठाने वाला हाथ अपने काँधे पर देखा तो आँखे भर आई।अब झूठ बात सच लग रही थी।
अच्छी रचना