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संपादकीय – शब्दों के जादूगर साहिर लुधियानवी की जन्म शताब्दी
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“ये पुरपेच गलियाँ, ये बदनाम बाज़ार
वो उजले दरीचों में पायल की छन-छन
जवानी भटकती है बद-कार बन कर
“औरत ने जनम दिया मर्दों को, मर्दों ने उसे बाज़ार दिया
“मैं वो फूल हूँ कि जिसको गया हर कोई मसल के
लोग औरत को फ़क़त जिस्म समझ लेते हैं
“मिलती है ज़िन्दगी में मुहब्बत कभी कभी
“वो अफ़साना जिसे अन्जान तक लाना न हो मुमकिन
“तुम मुझे भूल भी जाओ, तो ये हक़ है तुमको
“तेरे बचपन को जवानी की दुआ देती हूँ
“तू मेरे साथ रहेगा मुन्ने, ताकि तू जान सके
“मेरे घर आई एक नन्हीं कली
उसके आने से मेरे आँगन में
“संसार से भागे फिरते हो, भगवान को तुम क्या पाओगे
दौलत के लिये जब औरत की इस्मत को न बेचा जाएगा
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बहुत अच्छा संपादकीय भाई। जानकारी से भरपूर। सिनेमा और साहित्य पर आपका चिंतन सराहनीय है।
हार्दिक आभार भाई हरिमोहन जी।
बहुत बढ़िया …साहिर लुधियानवी का अधिकतर गीत बहुत गहरे है। बहुत बढ़िया संपादकीय..हार्दिक शुभकामनाएं
प्रगति जी हार्दिक आभार।
आपके सम्पादकीय ने महान् शायर साहिर की लेखनी के साथ भरपूर न्याय किया है। हार्दिक साधुवाद स्वीकारें।
सराहना के लिए आभार आदरणीय।
बहुत ही सुन्दर संपादकीय ।साहिर जी के विषय में जो नहीं पता था, वह भी पता चला। सिनेमा और साहित्य का खूबसूरत संगम इस संपादकीय में दृष्टिगत हो रहा है।आपको हार्दिक बधाई।
आभार निशा जी।
बहुत खूब । बढ़िया संपादकीय । अच्छी जानकारी मिली । शुक्रिया
शुक्रिया डॉक्टर प्रीत
शब्दों के जादूगर साहिर के साहित्य का एक अनोखा दृष्टिकोण और उनके जीवन में महिलाओं के स्थान पर विहंगम दृष्टि डालता हुआ यह आलेख सहज ही महिला दिवस और उनकी जन्म शताब्दी पर श्रेष्ठ वैचारिक श्रद्धा सुमन हैं।
हार्दिक साधुवाद सहित।
आभार विरेंदर भाई।
साहिर लुधियानवी के गीतों में छुपी प्रत्येक सम्वेदनाओं पर आपका मनन लाज़वाब है ।साधुवाद
प्रयास की सराहना के लिए आभार प्रभा जी।