एक सवाल मेरे मन में उठता है कि अक्षय, पवन गुप्ता, विनय शर्मा और मुकेश सिंह भी तो साधारण बैकग्राउण्ड से आते हैं। आख़िर उनकी कानूनी लड़ाई के लिये कौन पैसे जुटा रहा है। क्या उनके वकील बिना किसी फ़ायदे की उम्मीद के अपनी तरफ़ से समाज सेवा कर रहे हैं?

16 दिसम्बर 2012 की रात वो मनहूस रात थी जब पांच वहशी दरिंदों ने एक चलती हुई बस में निर्भया के साथ सामुहिक बलात्कार किया और उसके मित्र को बुरी तरह घायल कर दिया। बस के ड्राइवर राम सिंह के चार साथियों में से एक नाबालिग था। 

गैंगरेप और हत्या के मामले में अदालत अक्षय, पवन गुप्ता, विनय शर्मा और मुकेश सिंह को पहले ही दोषी क़रार दे चुकी थी। जबकि मुख्य आरोपी राम सिंह ने जेल में ही आत्महत्या कर ली थी। यह संपादकीय लिखने तक यानि कि 16 जनवरी 2020 तक यह तय नहीं हो पाया है कि इन अपराधियों को फांसी कब लगेगी। 

इस हाई-फ़ाई केस का निपटारा होने में इतना लम्बा वक्त लगने के कारण भारत की न्यायिक व्यवस्था पर सवालिया निशान लग गये हैं। इन अपराधियों को फांसी के फंदे तक पहुंचाने वाले पवन जल्लाद भी जेल प्रशासन के आदेश की प्रतीक्षा करते करते निराश हो गये दिखाई देते हैं। 

जब यह हादसा हुआ था उस समय केन्द्र में काँग्रेस पार्टी की सरकार थी और उन पर दबाव बनाया जा रहा था कि अपराधियों को जल्द से जल्द फांसी पर लटकाया जाए। मोमबत्तियों के जुलूस निकाले गये और पूरे भारत भर में प्रदर्शनों का जैसे तांता सा लग गया था। 

टीवी चैनलों पर रोज़ाना बहस होने लगी और हर तरफ़ एक ही पुकार थी कि इन दरिंदों को जीने का कोई हक़ नहीं है।निर्भया को इलाज के लिये सिंगापुर भेजा गया मगर उसके शरीर पर इतने ज़ुल्म किये गये थे, कि उसने सिंगापुर के हस्पताल में ही दम तोड़ दिया। 

निर्भया के माता पिता साधारण परिवेश से आते हैं। उनके पास कानूनी लड़ाई लड़ने के लिये कोई ख़ास पूंजी भी नहीं होगी। मगर अपनी दिवंगत बेटी को न्याय दिलाने के लिये इन दोनों ने किसी बात की परवाह नहीं की और कमर कस कर इन दरिंदों के विरुद्ध कानूनी लड़ाई जारी रखी।

वैसे एक सवाल मेरे मन में उठता है कि अक्षय, पवन गुप्ता, विनय शर्मा और मुकेश सिंह भी तो साधारण बैकग्राउण्ड से आते हैं। आख़िर उनकी कानूनी लड़ाई के लिये कौन पैसे जुटा रहा है। क्या उनके वकील बिना किसी फ़ायदे की उम्मीद के अपनी तरफ़ से समाज सेवा कर रहे हैं

ये वकील भारत की कानून व्यवस्था का पूरी तरह दुरुपयोग कर रहे हैं। साथ ही साथ निर्भया के माता पिता पर भी अतिरिक्त दबाव बनाया जा रहा है कि इन अपराधियों को क्षमा कर दें और अदालत फांसी की सज़ा को उम्र क़ैद में बदल दे। वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह ने ट्वीट किया था कि सोनिया गान्धी की ही तरह निर्भया के माता पिता भी इन अपराधी दरिदों को माफ़ कर दें।

इस पर  पर निर्भया की मां ने कहा था कि इंदिरा होती कौन हैं माफ़ी का सुझाव देने वालीं। उन्होंने कहा था कि अगर भगवान भी आकर कहें तो वे अपनी बेटी के गुनाहगारों को माफ़ नहीं करेंगी। इंदिरा जैसे लोगों के कारण बलात्कार के पीड़ित को न्याय नहीं मिल पाता। विश्वास नहीं होता कि उन्होंने इस तरह का सुझाव दिया।

सवाल यह उठता है जब सुप्रीम कोर्ट ने जुलाई 2018 में दोषियों की रिव्यू पीटीशन खारिज करके इनकी फांसी का रास्ता साफ़ कर दिया था, तो मामला आजतक लटका हुआ क्यों है। निर्भया मामले में चल रही देरी कहीं हम सब को मजबूर कर देती है कि हम हैदराबाद की डॉ. प्रियंका रे़ड्डी के बलात्कार एवं हत्या के मामले में दोषियों की एक्स्ट्रा ज्यूडीशियल किलिंग को सही ठहराना शुरू कर दें। गेन्द कभी सुप्रीम कोर्ट में पहुंच जाती है तो कभी राष्ट्रपति भवन तो कभी निचली अदालत। न्याय प्रक्रिया आख़िर हम सबसे चाहती क्या है? हमारे सब्र का और कितना इम्तहान लेना चाहते हैं न्यायालय ?

लेखक वरिष्ठ साहित्यकार, कथा यूके के महासचिव और पुरवाई के संपादक हैं. लंदन में रहते हैं.

8 टिप्पणी

  1. निर्भया कांड से संबधित तेजेन्‍द्र शर्मा का संपादकीय पढ़ा। सही सवाल है। मेरे मन में अक्‍सर यह सवाल उठता है कि सरकार और कोर्ट की ऐसी कौन सी मज़बूरियां हैं जो केस को लटकाये हैं या इसकी जिरह करनेवाले नहीं चाहते कि उनकी आय का स्‍त्रोत बंद हो जाये। पता नहीं हत्‍यारे कब तक खुद को बचायेंगे। अंतत: तो उन्‍हें फांसी पर लटकना ही है….देर आयदे दुरुस्‍त आयदे।

  2. सही प्रश्न उठाया आपने। मेरे मन में भी यह प्रश्न कई बार आया। परसों अंजना ओम कश्यप का एपी सिंह के साथ बातचीत सुन रहा था। पूरा नहीं सुन पाया लेकिन वकील साहब जवाब नहीं दे पा रहे थे।

  3. लचर भारतीय न्याय प्रक्रिया का निकृष्टत्म उदाहरण। एक बात और जो मेरी समझ से परे है वो यह कि डैथ वारंट जारी होने के बाद कैसी माफ़ी

  4. इतनी लचर न्याय व्यवस्था है हमारी जहां कानून के रखवाले ही कानून का दुरुपयोग अपराधी को बचाने के लिए कर रहे हैं। ऐसी न्यायव्यवस्था पर अनगिनत प्रश्न चिन्ह लगे हुए हैं।

  5. अब तो भारतीय न्याय प्रणाली से भरोसा उठ रहा है। यदि इन दरिंदों को फाँसी न हुई तो आने वाले समय में इस देश की लड़कियां कभी सुरक्षित महसूस नहीं करेंगी। बलात्कारियों के हौसले बढ़ेंगे।

  6. बलात्कारियों को अभी तक अगर तय फाँसी नहीं दी जा रही है तो इसकै पीछे निश्चित ही महाहत्यारों का हाथ हैं। सोचिए उनका षडयंत्र कितना घातक हैगा।
    . डा. चंद्रा सायता । भारत इंदौर

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