1- घटना…
जो मुझ पर घटी
वह कविता
जो तुम पर घटी
वह लेख
जो हम पर घटा
कहानी
जो सब पर घटा
इतिहास,
घटना ही शायद साहित्य है
और
बढ़ना
2- तुम्हारी कमी!
घर है
छत है
दीवारें हैं
इनमें रहता हूँ मैं
और मेरे साथ
रहती है
एक कमी!
कमी
साथ चाय पीने की कमी
सुबह अख़बार के पन्नों को
बाँट कर
पढ़ने की कमी,
अक्सर किसी समाचार पर
चर्चा या बहस
करने की कमी;
मेरी को तुम्हारी
तुम्हारी को मेरी
पसंद को
हमारी बना कर
साथ टी वी
देखने की कमी!
रोशनदान से
धूप की नरम छुअन
कभी
बारिश की छलकती बूँदें
रात चाँद की
हल्की सी झलक
कभी
तेज हवाओं के स्वर,
दिन के बदलते पहर
रितुओं के
बदलते मूड
इन सब में
तुम्हारे स्पर्श की कमी!
घर है
छत है
दीवारें हैं
इनमें रहता हूँ मैं
और मेरे साथ
रहती ही नहीं
खलती है
तुम्हारी कमी!
3 – काश!
काश मैं
पीने योग्य रहता
नदी ही रहता
खारे सागर में
ना समाता,
अपने गाँव में रहता
शहर
ना जाता!
4- गंगा
गुप्त जी का शब्द चयन और भावाभिव्यक्ति अद्भुत है ।
प्रभा मिश्रा