आओ अंर्तमन के दीप,
दीप प्रज्वलित करें हम।
पथ पथ अंधियारे फैलें हैं ,दिशा दिशा भ्रम हैं
सूरज चांद सितारे सब हैं, पर उजास कम हैं
थके पके मन, डगमग पग हैं
भूले राह चले हम।
आओ अंर्तमन के दीप,
दीप प्रज्ज्वलित करें हम।
मन मुटाव वैमनस्य दूर हो, मानव मूल्य द्रवित हों
जीवन के इस चक्रव्यूह मे, घिरकर भी पल्लवित हों
आपाधापी बहुत हुई, हम भूले गए अपनों को
धन तृष्णा मे भाग रहे, अपनाए हुए सपनों को
आओ जन मन के समीप,
एक सीप सुसज्जित करें हम ।
आओ अंतर्मन के दीप,
दीप प्रज्ज्वलित करें हम।
-कमलेश कुमार दीवान-
संपर्क – kamleshkumardiwan@gmail.com

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